Maa Durga ke 9 Roop : मां दुर्गा के 9 रूपों का क्या है रहस्य?

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माँ दुर्गा

Maa Durga Ke 9 Roop

हम अपने आराध्य देवी-देवताओं के स्वरूपों को देखें तो किसी के कई हाथ हैं, कई सिर हैं. तमाम तरीके के अस्त्र-शस्त्र धारण करते हैं. सभी देवी-देवता अलग-अलग वाहनों पर विराजमान हैं, जैसे कोई सिंह पर तो कोई चूहे पर और कोई वृष पर आदि. ऐसा क्यों? क्या शास्त्रों में यह सब यूं ही लिख दिया गया होगा?

नहीं, दरअसल ये सब उनके स्थूल रूप नहीं, उनके गुण व उनकी विशेषताएँ और क्षमताएँ हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो सृष्टि में, प्रकृति में जो कुछ भी व्यक्त-अव्यक्त है, माता अर्थात शक्ति/एनर्जी का ही स्वरूप है.

पुराणों में उल्लिखित हमारे आराध्य देवी-देवताओं का स्वरूप, उनके अस्त्र-शस्त्र वाहन इत्यादि गूढ़ार्थ रखते हैं, जब हम उनके मर्म को समझने की कोशिश करेंगे तभी उनके अर्थ को समझ पायेंगे. जैसे दस हाथ और दस पैर वस्तुतः उनकी क्षमताएं और गति हैं. अर्थात एक ही समय में उनमें दसों दिशाओं में काम करने की और गति करने की क्षमता है. (Maa Durga Ke 9 Roop)

वाहन यानी जो हमें गंतव्य तक ले जाने में सहायता करे. वाहन पर विराजमान होने का अर्थ है कि कौन किस प्रकार की शक्तियों पर अंकुश लगाता है. जैसे मां दुर्गा सिंह की सवारी करती हैं. सिंह को उग्रता और हिंसक प्रवृत्तियों का प्रतीक माना जाता है. मां दुर्गा के सिंह पर सवार होने का मतलब है कि जो उग्रता और हिंसक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण पा सकता है, वही शक्ति है. भगवान गणेश जी का वाहन चूहा है, जो कि हमारे मन की ही तरह बहुत चंचल होता है और इधर-उधर भागता रहता है. जब इस मन पर बुद्धि-विवेक का नियंत्रण हो जाता है, तभी वह अपने इष्ट तक पहुँच पाता है.

यहां हम आदिशक्ति मां दुर्गा जी के 9 रूपों को देखते हैं कि हर रूप में उनके हाथों की संख्या, उनके वाहन, उनके वस्त्रों का रंग आदि अलग-अलग क्यों हैं. वैसे तो सनातन ग्रंथों में लिखी बातों का कोई एक अर्थ नहीं है, लेकिन कुछ चीजों को समझ लेने से हमें दूसरी चीजों को भी समझने में आसानी होती है. आप मां दुर्गा जी के 9 रूपों को ध्यान से देखिये तो आपको पता चलेगा कि उनके ये 9 रूप किसी नारी की जीवन यात्रा और जीवन के हर पड़ाव पर उसके अलग-अलग स्वभाव और लक्षणों को भी दर्शाते हैं.

मां दुर्गा के 9 रूप (Maa Durga Ke 9 Roop)

शैलपुत्री (Shailputri)

शैलपुत्री (Shailputri)

(Maa Durga Ke 9 Roop) मां दुर्गा को सबसे पहले शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है. इनके दो हाथ हैं. दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है.

शैलपुत्री की तुलना हम एक नवजात शिशु से कर सकते हैं. जब कोई लड़की जन्म लेती है तब वह अपने पिता के नाम से जानी जाती है, इसलिए मां का नाम ‘शैलपुत्री’ है. यह मां का सबसे आधारभूत स्वरूप है, जिनका अभी-अभी जन्म हुआ है, अतः इनके दो ही हाथ हैं, क्योंकि अभी इनमें अन्य शक्तियों का विस्तार नहीं हुआ है.

मां के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल है. यह जन्म से ही मां के स्वभाव को दर्शा रहा है कि बड़ी होकर वे कौन-कौन सी विशेषताओं को धारण करेंगी. जैसे हम कहते हैं न कि किसी बच्चे के जन्म के समय ही उसके लक्षण दिख जाते हैं.

मां का यह स्वरूप भी यह बताता है कि एक तरफ मां का स्वरूप संहारक और रक्षक का है तो दूसरी तरफ वे कमल की भांति निर्मल और कोमल भी हैं और कीचड़ में खिलने वाले कमल की भांति उन पर भी किसी सांसारिक बुराई का कोई असर नहीं होगा. धर्म की स्थापना ऐसे ही लोग कर सकते हैं.

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संसार में तीन तरह की प्रवृत्तियां बताई जाती हैं- सत यानी सद्गुण, रज यानी सांसारिक प्रवृत्ति और तम यानी तामसी प्रवृत्ति. त्रिशूल के तीन नुकीले सिरे इन तीनों प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं और मां दुर्गा इन गुणों पर पूर्ण नियंत्रण होने का संदेश देती हैं. एक तरफ वो असुरों या बुराइयों का नाश करेंगी तो दूसरी तरफ वे शांति की स्थापना भी करेंगी. निश्चय ही बुराई का नाश करके ही शांति की स्थापना की जा सकती है.

ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini)

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(Maa Durga Ke 9 Roop) मां दुर्गा की दूसरी शक्ति का नाम ब्रह्मचारिणी है. ब्रह्मचारिणी का अर्थ है- तप का आचरण करने वाली. देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हुए हैं. देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत दिव्य है.

ब्रह्मचर्य का अर्थ है सात्विक जीवन बिताना, शुभ विचारों को धारण करना, ईश्वर का ध्यान करना और विद्या ग्रहण करना. यह वैदिक धर्म वर्णाश्रम का पहला आश्रम भी है, जिसके अनुसार यह 25 वर्ष तक की आयु का होता है. इस आश्रम का पालन करते हुए विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिये, स्वयं को तैयार करने के लिए शिक्षा ग्रहण करनी होती है.

यह स्वरूप मां के सीखने की उम्र को दर्शाता है. यह समय धैर्य, त्याग और तपस्या का है. पूरा ध्यान अध्ययन पर लगाना है, ब्रह्मचर्य का पालन करना है. अभी मां अपने आगे के जीवन के तैयार हो रही हैं, अतः अभी भी उनके दो ही हाथ हैं. उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में योग-साधना में लीन रहने वाले ऋषि-मुनियों की तरह कमण्डल है. इस स्वरूप में वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं.

श्वेत रंग सभी रंगों में सबसे हल्का और आंखों को सुकून देने वाला होता है. यह रंग शांति, उमंग, उत्सव, ताजगी, पवित्रता और कोमलता का भी प्रतीक है. एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल. माला से भगवान और अपने कर्म के प्रति निष्ठा और सात्विकता का बोध होता है. माला ध्यान और जप का भी प्रतीक है. यह जीवन में आध्यात्मिकता के महत्व को समझने पर बल देती है.

चंद्रघंटा (Chandraghanta)

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(Maa Durga Ke 9 Roop) मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है. देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है. मस्तक के बीच में तीसरी आँख होती है. इनकी दस भुजायें हैं और सभी भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र विभूषित हैं.

यह मां का सबसे संपन्न और शक्तिशाली स्वरूप है. अध्ययन और शिक्षा ग्रहण के बाद मां अब सब प्रकार से तैयार हो चुकी हैं. इसीलिए जहां पिछले स्वरूपों में मां के दो ही हाथ थे, अब इस स्वरूप में उनके दस हाथ हैं, जो कि उनकी एक ही समय में दसों दिशाओं में काम करने की क्षमता को दर्शाते हैं.

मां का यह स्वरूप ज्ञान, भक्ति और कर्म- तीनों का संगम है. यह मां का शिक्षित युवा स्वरूप है, जो उम्र का सबसे शक्तिशाली पड़ाव होता है. इसीलिए उनकी तीसरी आंख (छठी इन्द्रिय) भी खुल चुकी है, जो कि चेतना शक्ति के विकास या जाग्रत होने का भी प्रतीक मानी जाती है. अर्थात अब मां जीवन में किसी भी संघर्ष के लिए हर प्रकार से तैयार हो चुकी हैं.

कूष्माण्डा (Kushmanda)

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(Maa Durga Ke 9 Roop) मां दुर्गा की चौथी शक्ति का नाम है- कूष्मांडा. इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की है और इसीलिए इन्हें ‘कूष्मांडा’ कहा जाता है. इनकी सभी भुजाओं में कमंडल, धनुष-बाण, कमल-पुष्प, कलश, चक्र और गदा है. एक हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है.

कू – छोटा,
ऊष्मा – ऊर्जा
अंडा या बीज

मां कूष्माण्डा की तुलना हम एक गर्भवती स्त्री से कर सकते हैं. मां के इस स्वरूप को ब्रह्माण्ड का रचियता कहा जाता है. इस स्वरूप में मां के हाथों में विभिन्न वस्तुयें एक गर्भवती या मां बनने जा रही स्त्री में आने वाली विशेषताओं को दर्शाती हैं कि माँ का यह स्वरूप त्याग और तपस्या (कमंडल और जपमाला) का भी है, शक्तिशाली (अस्त्र-शस्त्र) भी है, और सौम्य तथा निर्मल (कमल) भी है. मां एक हाथ में एक कुम्भ या मटका धारण किये हुए हैं. कई पौराणिक कथाओं में कुम्भ को गर्भ का प्रतीक माना गया है. अतः इस स्वरूप में मां एक नए जीवन की उत्पत्ति करने वाली हैं.

स्कंदमाता (Skandamata)

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(Maa Durga Ke 9 Roop) मां दुर्गा की पांचवी शक्ति का नाम स्कंदमाता है, जो पर्वतों पर निवास कर सांसारिक जीवो में नवचेतना का निर्माण करती हैं. स्कंद कुमार यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण ही इन्हें ‘स्कंदमाता’ कहा जाता है. भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजमान हैं. माता की चार भुजाएं हैं. दो भुजाओं में कमल और एक भुजा वर मुद्रा में है. एक भुजा से वह बालक स्कंद को अपनी गोद में पकड़े हुए हैं.

मां का यह स्वरूप मां बन चुकी स्त्री का है. ऐसी स्त्री अपनी संतान में ही खोयी रहती है. अपना सारा प्रेम और ममता उस पर लुटा देना चाहती है. जन्म के समय पुत्री अपने पिता के नाम से और पुत्र को जन्म देने के बाद वह अपने पुत्र के नाम से जानी जाती है. अतः यहां मां का नाम ‘स्कंदमाता’ (कार्तिकेय जी की माता) है. यह मां का सौम्य स्वरूप है और वात्सल्य से परिपूर्ण है. इसीलिए उनके इस स्वरूप में उनके हाथों में कोई शस्त्र नहीं है, कमल पुष्प हैं, क्योंकि अभी उनका पूरा ध्यान अपने बच्चे पर है.

कात्यायनी (Katyayani)

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दुर्गा जी की छठी शक्ति का नाम कात्यायनी है. इन्हीं देवी ने सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया था. माता की चार भुजाएँ हैं. एक भुजा में तलवार और दूसरी में कमल सुशोभित है. एक भुजा अभय मुद्रा में है और एक भुजा वर मुद्रा में.

जब एक स्त्री मां बन जाती है, तब यदि उसकी संतान को कोई भी कष्ट पहुंचाने की चेष्टा करता है, तब वह अपने शक्ति स्वरूप में आ जाती है. इस रूप में मां सौम्य तो हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर अपना शस्त्र निकाल लेती हैं. इसीलिए इस रूप में उनके एक हाथ में तलवार है. यह स्वरूप दर्शाता है कि कोई भी ममतामयी स्त्री अपनी संतान की रक्षा में किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहती. वह स्वयं ही सर्वशक्तिमान बन जाती है. यह विशेषता आप संसार की हर मां में देख सकते हैं, चाहे वे पशु ही क्यों न हों.

जैसे, कुछ वर्षों पहले एक वीडियो सामने आया था जिसमें एक विषैले सांप ने एक गिलहरी के बच्चों पर झपट्टा मारने का प्रयास किया, तब उन बच्चों की मां-गिलहरी उस सांप से ऐसे भिड़ गई थी और इतनी बुरी तरह काटा था कि सांप को वहां से तुरंत ही भाग जाना पड़ा था. जबकि गिलहरी की छवि एक बहुत ही सीधी-सीधी प्राणी की है.

माँ का एक हाथ अभय मुद्रा में है. माँ दुर्गा अखण्ड सुहाग की भी देवी हैं. मां कात्ययानी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री हैं. श्रीराधा जी सहित ब्रज की गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कालिंदी यमुना के तट पर मां कात्यायनी की ही पूजा की थी. रण में शत्रुओं का विनाश करते हुए देखकर वैरियों की पतिव्रता पत्नियां भयभीत होकर अपने सुहाग की रक्षा के लिए उनकी शरण में आ जाती हैं, तब वे सर्वमंगला दया करके उनके स्वामियों को भी अभय प्रदान कर देती हैं.

जैसा कि महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र में लिखा है-

अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभयदायकरे
त्रिभुवनमस्तक शूलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे।

कालरात्रि (Kalaratri)

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देवी की सातवीं शक्ति का नाम कालरात्रि है. यह माता का सबसे रौद्र और विकराल स्वरूप है, जो दर्शाता है कि मां के सब्र का बाँध टूट चुका है. इसमें वे अत्यंत भयंकर हो जाती हैं, जो अपने प्राणों तक से मोह नहीं करती. इस रूप में उनके क्रोध की सीमा इतनी बढ़ गई थी कि स्वयं उनके पति भगवान् शिव को आना पड़ा था उन्हें रोकने और सँभालने के लिए.

इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है. सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है. माता का यह भयानक रूप पापियों और अत्याचारों को भयकंपित करता है, लेकिन भक्तों के लिए इनका यही रूप अभयदान देने वाला और अत्यंत शुभकारी है. ‘काल को निगल जाने वाली’ अर्थात मां कालरात्रि अंधकारमय स्थितियों का विनाश कर काल से भी रक्षा करती हैं.

माता कालरात्रि के तीन नेत्र हैं (जैसे क्रोध में जब भगवान् शिव का तीसरा नेत्र खुल जाता है, तब कोई नहीं बचता) इनकी श्वांस से अग्नि की ज्वालाएं निकलती रहती हैं. इनका वाहन गर्दभ है. इनकी चार भुजाएं हैं. एक भुजा में लोहे का कांटा और दूसरी में खड्ग है. एक भुजा अभय मुद्रा में है और एक भुजा से मां अपने भक्तों को वरदान देती हैं.

जैसा कि महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र में लिखा है-

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि कल्मषमोषिणि घोषरते।
दनुजनिरोषिणि दुर्मदशोषिणि दुर्मुनिरोषिणि सिन्धुसुते
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते।
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते
शिवशिव शुम्भनिशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते।

महागौरी (Mahagauri)

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नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा की आठवीं शक्ति महागौरी की आराधना की जाती है. इनका रूप पूरी तरह से गौर वर्ण का है. इनके सभी आभूषण और वस्त्र भी श्वेत हैं, इसलिए इन्हें ‘श्वेतांबरधरा’ भी कहा जाता है. महागौरी वृषभ पर विराजमान रहती हैं, महागौरी की चार भुजाएं हैं. इनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में डमरू है. उनका एक हाथ अभय मुद्रा में है और दूसरे हाथों से वे अपने भक्तों को वरदान देती हैं.

जहाँ कालरात्रि रूप रौद्र रूप की पराकाष्ठा हैं, तो वहीं महागौरी शांति, सौम्यता और सुंदरता की पराकष्ठा हैं. यह मां का पूर्ण रूप है और इस स्वरूप में संतुलन भी है. डमरू को लय, संतुलन, सक्रियता और रचनात्मकता का प्रतीक भी माना जाता है. जब कोई स्त्री अपने जीवन के इतने चरण पार लेती है, तब उसमें एक तेज आ जाता है. उसके आचरण में पूर्णता आ जाती है. इस रूप में मां प्रेम और सौहार्द्र की प्रतीक हैं और अपने परिवार के प्रत्येक उत्तरदायित्वों को पूरे समर्पण और प्रेम के साथ निभाती हैं. सभी को जोड़कर रखती हैं. नवरात्रि में मां के इसी स्वरूप आराधना सबसे अधिक की जाती है.

सिद्धिदात्री (Siddhidatri)

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मां दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है, जो सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं. आठ प्रकार की सिद्धियां बताई गई हैं और मां सिद्धिदात्री की उपासना से सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती है. माता सिद्धिदात्री की भी चार भुजाएं हैं. चारों भुजाओं में गदा, शंख, कमल का पुष्प और चक्र हैं. ये कमल के पुष्प पर विराजमान हैं.

सिद्धि+दात्री, अर्थात मां ने जीवन भर जितना अनुभव और ज्ञान अर्जित कर लिया है, अब वे उसे सबको बांटने वाली हो गई हैं. अब वे सब कुछ जान चुकी हैं. यह मां का सबसे पूर्ण और दयावान स्वरूप है. इसलिए सभी उनके आगे नतमस्तक हैं. माता की उंगली में घूमता चक्र दूरदर्शिता के साथ इस बात का भी प्रतीक है कि पूरी सृष्टि उन्हीं के अधीन है. सभी उनके आदेश में हैं. वे बुराई और पापों का नाशकर धर्म का विकास करती हैं.

शंख ध्वनि और पवित्रता का प्रतीक है, जो शांति और समृद्धि का भी सूचक है. जिस प्रकार शंख की ध्वनि से आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है, उसी प्रकार मां दुर्गा के पास आने वाले सभी भक्त पूरी तरह से पवित्र हो जाते हैं. शंख ध्वनि ओम ध्वनि के समान ही मानी गई है. यह नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करके सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है.

यह ध्वनि हमें बताती है कि ऐसी ही नाद हमारे अंदर है जिसे आत्मा की आवाज कहते हैं, जो हर अच्छे-बुरे कर्म से पहले हमारे भीतर गुंजायमान होती है. यदि हम भीतर के इस नाद को सुनकर कर्म करें तो जीवन सहज और सरल हो जाता है. इस रूप में वे कमल पर विराजमान हैं, जो कि बताता है कि मां वह उन्हीं लोगों को सिद्धि प्रदान करेंगी जो कीचड़ और गंदगी जैसे समाज में रहकर भी अपने आप को निर्मल और पवित्र बनाए हुए हैं.

Written by – Aditi Singhal (working in the media)

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1 Comment

  1. इस ब्लॉग पोस्ट में हमें मां दुर्गा के नौ रूपों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है आपने पहले एक बड़े ही सरल शब्दों में लिखा है आप इसी प्रकार जानकारी साझा करते रहें इसके लिए धन्यवाद.

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