Kalyug me kya hoga and Kalki ka avatar kab hoga (Mahabharat)
कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर ने महामुनि मार्कण्डेय से अपने साम्राज्य में जगत् की भावी गतिविधि के विषय में प्रश्न किया. युधिष्ठिर बोले-
“भृगुवंशविभूषण महर्षे! हमने आपके मुख से युग के आदि में संघटित हुई उत्पति और प्रलय के संबंध में बड़े आश्चर्य की बातें सुनी हैं. अब मुझे इस कलियुग के विषय में पुनः विशेष रूप से सुनने का कुतूहल हो रहा है. जब सारे धर्मों का उच्छेद हो जायेगा, उस समय क्या शेष रह जायेगा? युगान्तकाल में कलियुग के मनुष्यों का बल-पराक्रम कैसा होगा? उनके आहार-विहार कैसे होंगे? कलियुग के किस सीमा तक पहुँच जाने पर पुनः सत्ययुग आरम्भ हो जायेगा?”
युधिष्ठिर के इस प्रकार पूछने पर मुनिश्रेष्ठ महर्षि मार्कण्डेय ने कहा-
“भरतश्रेष्ठ राजन्! मैंने देवाधिदेव भगवान् बालमुकुन्द की कृपा से पूर्वकाल में, निकृष्ट कलिकाल के प्राप्त होने पर सम्पूर्ण लोकों के भावी वृत्तांत के विषय में जो कुछ देखा-सुना या अनुभव किया है, वह बताता हूं. भरतश्रेष्ठ! सत्ययुग में मनुष्यों के भीतर वृषरूप धर्म अपने चारों पादों (पैरों) से युक्त होने के कारण सम्पूर्ण रूप में प्रतिष्ठित होता है. उसमें छल-कपट या दम्भ नहीं होता.
किंतु त्रेता में वह धर्म अधर्म के एक पैर से अभिभूत होकर अपने तीन अंशों से ही प्रतिष्ठित होता है. द्वापर में धर्म आधा ही रह जाता है. आधे में अधर्म आकर मिल जाता है. परंतु कलियुग आने पर अधर्म अपने तीन अंशों द्वारा सम्पूर्ण लोकों को आक्रांत करके स्थित होता है और धर्म केवल एक पैर से मनुष्यों में प्रतिष्ठित होता है. प्रत्येक युग में मनुष्यों की आयु, वीर्य, बुद्धि, बल तथा तेज क्रमशः घटते जाते हैं. जब सब मानव भयंकर स्वभाव वाले, धर्महीन, मांसखोर और शराबी हो जायेंगे, उस समय युग का संहार होगा.
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युधिष्ठिर! अब कलियुग के समय का वर्णन सुनो.
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी जातियों के लोग कपटपूर्वक धर्म का आचरण करेंगे और धर्म का जाल बिछाकर दूसरे लोगों को ठगते रहेंगे. अपने को पण्डित मानने वाले लोग सत्य का त्याग कर देंगे. सत्य की हानि होने से उनकी आयु थोड़ी हो जायेगी और आयु की कमी होने के कारण वे अपने जीवन-निर्वाह के योग्य विद्या प्राप्त नहीं कर सकेंगे.
विद्या के बिना ज्ञान न होने से लोभ उन सबको दबा लेगा. फिर लोभ और क्रोध के वशीभूत हुए मूढ़ मनुष्य कामनाओं में फंसकर आपस में वैर बांध लेंगे और एक-दूसरे के प्राण लेने की घात में लगे रहेंगे. जब दूसरों के जीवन का विनाश करने वाले क्रूर, भयंकर तथा जीवहिंसक मनुष्य पैदा होने लगें, तब समझ लेना चाहिये कि युगान्तकाल उपस्थित हो गया. युगान्तकाल उपस्थित होने पर कायर अपने को शूर-वीर मानेंगे और शूर-वीर कायरों की भाँति विषाद में डूबे रहेंगे.
अपने को ज्ञानी मानने वाले मनुष्य संसार में सत्य को मिटा देंगे
युगक्षय के समय पुरुष केवल स्त्रियों से ही मित्रता करने वाले होंगे. ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य- ये आपस में संतानोत्पादन करके वर्णसंकर हो जायेंगे. वे सभी तपस्या और सत्य से रहित हो शूद्रों के समान हो जायेंगे. अन्त्यज (चाण्डाल आदि) क्षत्रिय वैश्य आदि के कर्म करेंगे और क्षत्रिय-वैश्य आदि चाण्डालों के कर्म अपना लेंगे. युगान्तकाल आने पर लोगों की ऐसी ही दशा होगी. उस समय सारा जगत् म्लेच्छ हो जायेगा-इसमें संशय नहीं. अपने को पण्डित (ज्ञानी) मानने वाले मनुष्य संसार में सत्य को मिटा देंगे.
शूद्र धर्मोंपदेश करेंगे ओर ब्राह्मण लोग उनकी सेवा में रहकर उसे सुनेंगे तथा उसी को प्रामाणिक मानकर उसका पालन करेंगे. समस्त लोक का व्यवहार विपरीत और उलट-पुलट हो जायेगा. ऊँच नीच और नीच ऊँच हो जायेंगे. लोग हड्डी जड़ी हुई दीवारों की तो पूजा करेंगे और देवविग्रहों को त्याग देंगे. भूपाल! भयंकर कलियुग के अंत में जगत की यही दशा होगी. मनुष्यों की सारी क्रियाएं क्रम से विपरीत होंगी.
मनुष्य म्लेच्छों-जैसे आचार वाले और सर्वभक्षी हो जायेंगे
युग के सब लोग लोभ और मोह में फंसकर भक्ष्याभक्ष्य का विचार किये बिना ही एक साथ सम्मिलित होकर भोजन करने लगेंगे. अधर्म बढ़ेगा और धर्म विदा हो जायेगा. युगान्तकाल के मनुष्य म्लेच्छों-जैसे आचार वाले और सर्वभक्षी यानी अभक्ष्य का भी भक्षण करने वाले हो जायेंगे. वे प्रत्येक कर्म में अपनी क्रूरता का परिचय देंगे, इसमें संशय नहीं है.
उस समय त्याज्य (अभक्ष्य) पदार्थ भी भोजन के योग्य समझे जायेंगे. कितने ही लोग मछली के मांस से जीविका चलायेंगे. गायों के नष्ट हो जाने के कारण मनुष्य भेड़ और बकरी का भी दूध दुहकर पीयेंगे. जो लोग सदा व्रत धारण करके रहने वाले हैं, वे भी युगान्त काल में लोभी हो जायेंगे. लोग एक-दूसरे को लूटेंगे और मारेंगे. युगान्तकाल के मनुष्य जपरहित, नास्तिक और चोरी करने वाले होंगे. शूद्र ब्राह्मणों के साथ विरोध करेंगे. सारी पृथ्वी म्लेच्छों से भर जायेगी. सारे जनपद एक-जैसे आचार और वेशभूषा बना लेंगे.
लोग वृक्षों को कटवा देंगे, गायों पर अत्याचार करेंगे
युगान्तकाल के सभी मानव स्वेच्छाचारी हो जायेंगे. सभी स्वभावतः क्रूर और एक-दूसरे पर मिथ्या कलंक लगाने वाले होंगे. सब लोग बगीचों और वृक्षों को कटवा देंगे और ऐसा करते समय उनके मन में पीड़ा नहीं होगी. नदियों के किनारे की भूमि को कुदालों से खोदकर लोग वहाँ अनाज बोयेंगे. उन अनाजों में भी युगान्तकाल के प्रभाव से बहुत कम फल लगेंगे. मेघ असमय में ही वर्षा करेंगे. मनुष्य नीची भूमि में (अर्थात् गायों के जल पीने और चरने की जगह में) भी खेती करेंगे. दूध देने वाली गायों को भी बोझ ढोने के काम में लगा देंगे और सालभर के बछड़ों को भी हल में जोतेंगे.
पुरुष और स्त्रियां स्वेच्छाचारी हो जायेंगे
नरेश्वर! युगान्तकाल में सारा विश्व एक वर्ण, एक जाति का हो जायेगा. ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों का नाम ही नहीं रह जायेगा. युगक्षय-काल में पिता पुत्र के अपराध को क्षमा नहीं करेंगे और पुत्र भी पिता की बात नहीं सहेगा. पुत्र माता-पिता की हत्या करेंगे. स्त्रियां कठोर स्वभाव वाली और सदा कटुवादिनी होंगी. उन्हें रोना ही अधिक पसंद होगा. युगान्तकाल आने पर पुरुष और स्त्रियां स्वेच्छाचारी होकर एक-दूसरे के कार्य और विचार को नहीं सहेंगे. स्त्री अपने पति से और पति अपनी स्त्री से संतुष्ट नहीं होंगे. मित्र, संबंधी या भाई-बंधु धन के लालच से ही अपने पास रहेंगे.
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युगान्तकाल आने पर लोग उन प्रदेशों में चले जायेंगे जहाँ जौ और गेहूँ आदि अनाज अधिक पैदा होते हैं (चाहे वह देश निषिद्ध ही क्यों न हो). युधिष्ठिर! उस समय सारा जगत् म्लेच्छ हो जायेगा. मनुष्य श्राद्ध और यज्ञ-कर्मों द्वारा पितरों और देवताओं को संतुष्ट नहीं करेंगे. राजन्! उस समय कोई किसी का उपदेश नहीं सुनेगा और न कोई किसी का गुरु ही होगा. सारा जगत् अज्ञानमय अन्धकार से आच्छादित हो जायेगा. बूढ़ों की बुद्धि बालकों-जैसी होगी और बालकों की बूढ़ों-जैसी. कोई एक-दूसरे का विश्वास नहीं करेंगे.
वेदों की निंदा होगी, नीच-से-नीच कर्म होंगे
ब्राह्मण लोग व्रत और नियमों का पालन तो करेंगे नहीं, उल्टे वेदों की निंदा करने लग जायेंगे. कोरे तर्कवाद से मोहित होकर वे यज्ञ और होम छोड़ बैठेंगे. वे केवल तर्कवाद से मोहित होकर नीच-से-नीच कर्म करने के लिये प्रयत्नशील रहेंगे. सारा संसार म्लेच्छों की भाँति शुभ कर्म और यज्ञ-यागादि छोड़ देगा तथा आनन्दशून्य और उत्सवरहित हो जायेगा.
अपनी प्रशंसा के लिये लोग बड़ी-बड़ी बातें बनायेंगे, किंतु समाज में उनकी निंदा नहीं होगी. लोग प्रायः दीनों, असहायों तथा विधवाओं का भी धन हड़प लेंगे. उनके शारीरिक बल और पराक्रम क्षीण हो जायेंगे. वे उदण्ड होकर लोभ और मोह में डूबे रहेंगे. वैसे ही लोगों की चर्चा करने और उनसे दान लेने में प्रसन्नता का अनुभव करेंगे. कपटपूर्ण आचार को अपनाकर वे दुष्टों के दिये हुए दान को भी ग्रहण कर लेंगे.
राजा प्रजा की रक्षा नहीं करेंगे, उनसे रुपये ऐंठने के लिये लोभ अधिक रखेंगे
कुन्तीनन्दन! पापबुद्धि राजा एक-दूसरे को युद्ध के लिये ललकारते हुए परस्पर एक-दूसरे के प्राण लेने को उतारू रहेंगे और मूर्ख होते हुए अपने को पण्डित मानेंगे. इस प्रकार युगान्तकाल के सभी क्षत्रिय जगत् के लिये कांटे बन जायेंगे. कलियुग की समाप्ति के समय वे प्रजा की रक्षा तो करेंगे नहीं, उनसे रुपये ऐंठने के लिये लोभ अधिक रखेंगे. सदा मान और अहंकार के मद से चूर रहेंगे. वे केवल प्रजा को दण्ड देने के कार्य में ही रुचि रखेंगे.
भारत! लोग इतने निर्दयी हो जायेंगे कि सज्जन पुरुषों पर भी बार-बार आक्रमण करके उनके धन और स्त्रियों का बलपूर्वक उपभोग करेंगे तथा उनके रोने-बिलखने पर भी दया नहीं करेंगे. कलियुग की समाप्ति के समय असंतोषी तथा मूढ़-चित्त राजा भी सब तरह के उपायों से दूसरों के धन का अपहरण करेंगे. एक हाथ दूसरे हाथ को लूटेगा-सगा भाई भी भाई के धन को हड़प लेगा.
लोग दिखावे के लिये साधुवेष धारण करेंगे, हिंसा का जोर बढ़ेगा
नृपश्रेष्ठ! कलियुग के अंत भाग में लोगों के पास धन थोड़ा रहेगा और लोग दिखावे के लिये साधुवेष धारण करेंगे. हिंसा का जोर बढ़ेगा और कोई किसी को कुछ देने वाला नहीं रहेगा. युगक्षय काल में सभी देशों के लोग अन्न बेचेंगे. ब्राह्मण वेद विक्रय करेंगे और स्त्रियां वेश्यावृत्ति अपना लेंगी. भरतश्रेष्ठ! युगान्तकाल में धन के लिये क्रय-विक्रय के समय सभी सबको ठगेंगे. क्रिया के तत्त्व को न जानकर भी लोग उसे करने में प्रवृत्त होंगे.
प्रत्येक मनुष्य के जीवन धारण में भी शंका हो जायेगी. अर्थात् प्रत्येक मनुष्य का जीवन धारण करना कठिन हो जायेगा. राजन्! सब लोग लोभ के वशीभूत होंगे और ब्राह्मणों का धन उपभोग करने का जिनका स्वभाव पड़ गया है, वे धन के लिये ब्राह्मणों को मार भी डालेंगे. शूद्रों के सताये हुए ब्राह्मण भय से पीड़ित हो हाहाकार करने लगेंगे और अपने लिये कोई रक्षक न मिलने के कारण सारी पृथ्वी पर निश्चय ही भटकते फिरेंगे.
कुरुकुलतिलक युधिष्ठिर! अत्याचारियों से डरे हुए ब्राह्मण इधर-उधर भागकर नदियों, पर्वतों तथा दुर्गम स्थानों का आश्रय लेंगे. राजन्! श्रेष्ठ ब्राह्मण भी लुटेरों से पीड़ित होकर कौओं की तरह कांव-कांव करते फिरेंगे. दुष्ट राजाओं के लगाये हुए करों के भार से सदा पीड़ित होने के कारण वे धैर्य छोड़कर चल देंगे और शूद्रों की सेवा-शुश्रूषा में लगे रहकर धर्मविरुद्ध कार्य करेंगे.
मौसम आदि भी पृथ्वी के अनुकूल नहीं रहेंगे
इस प्रकार उथल-पुथल मच जाने पर संसार में कोई मर्यादा नहीं रह जायेगी. शिष्य गुरु के उपदेश पर नहीं चलेंगे. वे उल्टे उनका अहित करेंगे. अपने कुल का आचार्य भी यदि निर्धन हो तो उसे निरन्तर शिष्यों की डाँट-फटकार सुननी पड़ेगी. युगान्तकाल आने पर समस्त प्राणियों का अभाव हो जायेगा. सारी दिशाएं प्रज्वलित हो उठेंगी और नक्षत्रों की प्रभा विलुप्त हो जायेगी. ग्रह उल्टी गति से चलने लगेंगे. हवा इतनी जोर से चलेगी कि लोग व्याकुल हो उठेंगे. महान् भय की सूचना देने वाले उल्कापात बार-बार होते रहेंगे.
सब ओर बिजली की भयानक गड़गड़ाहट होगी, सब दिशाओं में आग लगेगी. उदय और अस्त के समय सूर्य राहु से ग्रस्त दिखायी देगा. भगवान् इन्द्र समय पर वर्षा नहीं करेंगे. युगान्तकाल उपस्थित होने पर बोयी हुई खेती उगेगी ही नहीं. महाराज! अमावस्या के बिना ही राहु सूर्य पर ग्रहण लगायेगा. युगान्तकाल आने पर सब ओर आग भी जल उठेगी. उस समय पथियों को मांगने पर कहीं अन्न, जल या ठहरने के लिये स्थान नहीं मिलेगा. वे सब ओर से कोरा जवाब पाकर निराश हो सड़कों पर ही सो रहेंगे.
युगान्तकाल उपस्थित होने पर बिजली की कड़क के समान कड़वी बोली बोलने वाले कौवे, हाथी, शकुन, पशु और पक्षी आदि बड़ी कठोर वाणी बोलेंगे. उस समय के मनुष्य अपने मित्रों, सम्बन्धियों, सेवकों तथा कुटुम्बीजनों को भी अकारण त्याग देंगे. प्रायः लोग स्वदेश छोड़कर दूसरे देशों, दिशाओं, नगरों और गांवों का आश्रय लेंगे और ‘हा तात! हा पुत्र!’ इत्यादि रूप से अत्यंत दुःखद वाणी में एक-दूसरे को पुकारते हुए इस पृथ्वी पर विचरेंगे.
युगान्तकाल में संसार की यही दशा होगी. युग का अंत काल उपस्थित होने पर लोगों की आयु अधिक-से-अधिक सोलह वर्ष की होगी, उसके बाद वे प्राणत्याग कर देंगे. पांचवें या छठे वर्ष में स्त्रियां बच्चे पैदा करने लगेंगी और सात-आठ वर्ष के पुरुष संतानोत्पादन में प्रवृत्त हो जायेंगे. उस समय एक ही साथ समस्त लोकों का भयंकर संहार होगा.
विष्णुयशा कल्कि का जन्म, सत्ययुग का आरम्भ
तदन्तर कालान्तर में सत्ययुग का आरम्भ होगा और फिर क्रमशः ब्राह्मण आदि वर्ण प्रकट होकर अपने प्रभाव का विस्तार करेंगे. उस समय लोक के अभ्युदय के लिये पुनः अनायास दैव अनुकूल होगा. जब सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति एक साथ पुष्य नक्षत्र एवं तदनुरूप एक राशि कर्क में पदार्पण करेंगे, तब सत्ययुग का प्रारम्भ होगा. उस समय मेघ समय पर वर्षा करेगा. नक्षत्र शुभ एवं तेजस्वी हो जायेंगे. ग्रह प्रदक्षिणा भाव से अनुकूल गति का आश्रय ले अपने पथ पर अग्रसर होंगे. उस समय सबका मंगल होगा. देश में सुकाल आ जायेगा. आरोग्य का विस्तार होगा तथा रोग-व्याधि का नाम भी नहीं रहेगा.
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राजन्! युगान्त के समय काल की प्रेरणा से सम्भल नामक ग्राम में किसी ब्राह्मण के मंगलमय घर में एक महान् शक्तिशाली बालक प्रकट होगा, जिसका नाम होगा विष्णुयशा कल्कि. वह महान् बुद्धि एवं पराक्रम से सम्पन्न महात्मा, सदाचारी तथा प्रजावर्ग का हितैषी होगा. मन के द्वारा चिंतन करते ही उसके पास इच्छानुसार वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जायेंगे. वह धर्म-विजयी चक्रवर्ती राजा होगा. वह उदारबुद्धि, तेजस्वी ब्राह्मण, दुःख से व्याप्त हुए इस जगत् को आनंद प्रदान करेगा. कलियुग का अंत करने के लिये ही उसका प्रादुर्भाव होगा. वही सम्पूर्ण कलियुग का संहार करके नूतन सत्ययुग का प्रवर्तक होगा. वह ब्राह्मणों से घिरा हुआ सर्वत्र विचरेगा और भूमण्डल में सर्वत्र फैले हुए नीच स्वभाव वाले सम्पूर्ण म्लेच्छों का संहार करेगा.
महाभारत वनपर्व १९०
Mahabharata Vana Parva 190
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