Moon Facts in Hindi
रात में टिमटिमाते तारों से भरे खूबसूरत आकाश की तरफ देखने पर अगर सबसे ज्यादा प्रभावित कोई करता है, तो वह है हमारा चंद्रमा (Moon). पूर्णिमा के चांद की चमक से तो सारा आकाश जगमगा जाता है. सुंदरता की ज्यादातर उपमाएं चंद्रमा से ही दी जाती हैं. यह चंद्रमा केवल हमारी आंखों को ही राहत नहीं पहुंचाता, बल्कि हमारी पृथ्वी (Earth) और यहां रहने वाले हर एक जीव को कई तरह से प्रभावित करता है. इसीलिए भौतिक हो या आध्यात्म, हर तरह से चंद्रमा का समान महत्व है.
जैसे सूर्य (Sun) के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती, उसी तरह चंद्रमा के बिना भी पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है. आकाश में छोटा सा दिखने वाला यह चंद्रमा हमारी पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह (Natural Satellite) है, जो पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाते-लगाते यहां के मौसम-जलवायु, समय-काल और यहां तक कि हम सबके मन पर भी गहरा असर डालता है. आज हम इसी चंद्रमा से जुड़ीं कई रोचक बातों को जानेंगे-
पृथ्वी से 3,84,400 किलोमीटर दूर है चन्द्रमा
चंद्रमा का व्यास लगभग 3,474 किलोमीटर है. चंद्रमा हमारे सौरमंडल का पांचवा सबसे बड़ा प्राकृतिक उपग्रह है, लेकिन इसका आकार इतना छोटा है कि सूर्य से करीब 75 लाख चंद्रमा और पृथ्वी से लगभग 60 चंद्रमा बनाए जा सकते हैं, लेकिन पृथ्वी के काफी निकट होने के कारण यह हमें सूर्य जितना ही बड़ा दिखाई देता है.
चंद्रमा पृथ्वी से 3 लाख 84 हजार 400 किलोमीटर दूर है. चंद्रमा के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में लगभग 1.3 सेकेंड लगते हैं. हालांकि, चंद्रमा का अपना प्रकाश नहीं होता, यानी ये खुद से नहीं चमकता, बल्कि सूर्य के प्रकाश से चमकता है. चंद्रमा पर कई गहरे गड्डे और पर्वत-पठार भी हैं, जो हमें चांद में ‘दाग’ की तरह नजर आते हैं.
27.3 दिनों में पूरा करता है पृथ्वी का एक चक्कर
पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है और चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर लगाता है. चंद्रमा 1.022 किमी/सेकेंड की रफ्तार से दौड़ते हुए पृथ्वी का एक चक्कर लगभग 27.3 दिनों में पूरा कर पाता है. इसे अपने अक्ष या धुरी पर एक बार घूमने में भी 27 दिन ही लगते हैं (जैसे पृथ्वी को अपने अक्ष पर एक बार घूमने में 24 घंटे लगते हैं) और इसीलिए चंद्रमा का केवल एक ही हिस्सा पृथ्वी की तरफ रहता है.
इसीलिए हम चंद्रमा का केवल एक ही भाग देख सकते हैं. पृथ्वी से चंद्रमा का करीब 58 प्रतिशत भाग ही देखा जा सकता है, जबकि अगर हम चंद्रमा पर खड़े होकर पृथ्वी को देखेंगे तो पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई नजर आएगी. चंद्रमा जब पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है तो इतने समय को ‘चंद्रमास’ कहा जाता है. एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा तक के समय को ‘चंद्रमास’ कहा जाता है.
कैसे हुआ चंद्रमा का जन्म?
जैसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर ‘बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory)’ दिया गया, उसी तरह चंद्रमा की उत्पत्ति के लिए ‘द बिग स्प्लैट‘ (The Big Splat) थ्योरी दी गई, जिसके अनुसार चंद्रमा का जन्म एक बड़े टकराव का नतीजा है. माना जाता है कि लगभग 4.44 अरब साल पहले, पृथ्वी के बनने के कुछ समय बाद ही मंगल ग्रह से 1 से 3 गुना बड़े आकार का एक पिंड या प्रोटो-प्लैनेट, जिसका नाम ‘थिया’ रखा गया है, पृथ्वी से टकराया. इस टक्कर से पृथ्वी का एक हिस्सा टूटकर अंतरिक्ष में बिखर गया. टक्कर से अलग हुआ पदार्थ पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से उसी की कक्षा में घूमने लगा और इस तरह हुआ हमारे चंद्रमा का जन्म. पृथ्वी और चंद्रमा की उम्र लगभग बराबर है.
घटता-बढ़ता चांद या चंद्रमा की कलाएं
चंद्रमा हमें रोज बदले हुए आकार में या घटता-बढ़ता दिखाई देता है. एक दिन चंद्रमा हमें पूरा गोल दिखाई देता है तो एक दिन वह दिखाई ही नहीं देता. जब हमें पूरा चंद्रमा दिखाई देता है तो हम उसे ‘पूर्णिमा’ कहते हैं. फिर एक के बाद एक रात को चंद्रमा का आकार घटता चला जाता है. 15वें दिन हमें चंद्रमा आकाश में नहीं दिखाई देता और इस दिन को हम ‘अमावस्या’ कहते हैं. फिर अगले दिन हमें नन्हा सा चंद्रमा दिखाई देता है और इसे हम ‘बालचंद्र’ कहते हैं. इसके बाद हर रात चंद्रमा बड़ा होता चला जाता है और एक बार फिर 15वें दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देता है. यह क्रम चलता रहता है, लेकिन ऐसा क्यों होता है?
चंद्रमा पर सूर्य के प्रकाश का असर- दरअसल, कुछ अन्य तारों की तरह चंद्रमा में भी अपना प्रकाश नहीं होता. यह तो सूर्य के प्रकाश से ही चमकता है. चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर लगाता रहता है. घूमते-घूमते इसके जिस-जिस भाग पर सूर्य की रोशनी पड़ती है, केवल वही भाग हमें दिखाई देता है, और जिस भाग पर सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ता, उस भाग को हम नहीं देख पाते. यानी अगर चंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश ना पड़े, तो हम चंद्रमा को देख ही नहीं पाएंगे.
घूमते-घूमते बन जाती हैं कलाएं- सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा, तीनों ही घूम रहे हैं. घूमते-घूमते जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है, तब चंद्रमा के जिस हिस्से पर सूर्य की रोशनी पड़ती है, वह हिस्सा पृथ्वी की तरफ नहीं होता, बल्कि सूर्य की तरफ होता है, तो ऐसे में हम चंद्रमा का प्रकाशित भाग नहीं देख पाते और इसलिए हमें चंद्रमा ही नहीं दिखाई पड़ता, इसे ही ‘अमावस्या‘ कहा जाता है. वहीं जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है, तब चंद्रमा के जिस हिस्से पर सूर्य की रोशनी पड़ती है, वह हिस्सा पृथ्वी की तरफ ही होता है और तब हम चंद्रमा के पूरे प्रकाशित भाग को देख पाते हैं और उसे हम ‘पूर्णिमा‘ कहते हैं.
पृथ्वी और चंद्रमा में अंतर, दोनों एक-दूसरे को कैसे करते हैं प्रभावित?
1. पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर लगभग 365 दिनों में पूरा करती है, वहीं चंद्रमा पृथ्वी का एक चक्कर लगभग 27 दिनों में पूरा करता है.
2. चंद्रमा का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग एक चौथाई है और इसका भार या वजन पृथ्वी के भार का लगभग 1/8 है.
3. चंद्रमा का द्रव्यमान (7.3477 किलोग्राम) पृथ्वी का 1/81 है. पृथ्वी पर जिस वस्तु का वजन 60 किलोग्राम है, उसी वस्तु का वजन चंद्रमा पर 10 किलोग्राम ही रह जाएगा.
4. चंद्रमा का तापमान- पृथ्वी पर दिन और रात के मौसम में ज्यादा अंतर नहीं होता, लेकिन चंद्रमा पर दिन बेहद गर्म और रातें बहुत ठंडी होती हैं. दिन में चंद्रमा का तापमान 100 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा होता है कि पानी भाप बनकर उड़ जाता है….और रात में यहां का तापमान -150 से -200 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है कि सब कुछ जम जाता है. इस तरह फिलहाल तो यहां जीवन संभव ही नहीं.
5. चंद्रमा पर आवाज- अगर दो व्यक्ति चंद्रमा पर खड़े होकर बात करें, तो उन्हें एक-दूसरे की आवाज नहीं सुनाई देगी. ऐसा इसलिए क्योंकि ध्वनि (Sound) को एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए किसी न किसी माध्यम (Medium) की जरूरत होती है, लेकिन चंद्रमा पर हमारी पृथ्वी की तरह न हवा है और न किसी तरह का कोई और माध्यम, इसलिए हमें वहां आवाज नहीं सुनाई पड़ेगी.
6. चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल- चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल का 1/6 है. चंद्रमा पर पृथ्वी की तरह वायुमंडल के न होने की एक वजह इसका कम गुरुत्वाकर्षण बल भी है. कम ग्रेविटी की वजह से यह किसी भी तरह के कणों या दूसरी चीजों को अपने से बाहर जाने से नहीं रोक पाता, जिस वजह से यहां वायुमंडल का निर्माण भी नहीं हो पाता.
7. चंद्रमा पर दिन-रात- पृथ्वी अपने अक्ष पर एक चक्कर 24 घंटे में पूरा करती है और इसलिए पृथ्वी पर 24 घंटों का दिन-रात होता है. जबकि चंद्रमा अपने अक्ष पर एक चक्कर 27 दिनों में पूरा करता है. चंद्रमा पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. यहां की रात भी उतनी ही लंबी होती है. इन सबका कारण पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल ही है.
दरअसल, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही चंद्रमा की अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार काफी कम है, जिस वजह से चंद्रमा को पृथ्वी के चारों तरफ घूमने में उतना ही समय (27 दिन) लगता है, जितना उसे अपने अक्ष या धुरी पर घूमने में लगता है.
लेकिन यही असर पृथ्वी पर चंद्रमा का भी पड़ता है. भले ही चंद्रमा की ग्रेविटी, पृथ्वी की तुलना में काफी कम है, लेकिन इतने पर भी चंद्रमा पृथ्वी के घूमने की रफ्तार को काफी कंट्रोल में रखता है, नहीं तो पृथ्वी अपनी धुरी पर और तेजी से घूमती, जिससे दिन-रात छोटे हो जाते. अगर चंद्रमा न होता तो पृथ्वी पर 24 घंटे की बजाय 6 से 12 घंटे का दिन-रात होता. चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से पृथ्वी के घूमने की रफ्तार कम हो जाती है.
8. पृथ्वी के जल को खींचता है अपनी तरफ- चंद्रमा की ग्रेविटी के कारण पृथ्वी पर ज्वार-भाटे आते हैं, यानी समुद्र में ऊंची-ऊंची लहरें उठती हैं, क्योंकि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के महासागरीय जल को अपनी तरफ खींचता है और यही काम सूर्य भी करता है. दोनों मिलकर पृथ्वी के जल को अपनी तरफ खींचते हैं. इससे जब समुद्र का पानी ऊपर उठता है तो उसे ‘ज्वार’ और जब वही पानी नीचे गिर जाता है तो उसे ‘भाटा’ कहते हैं.
9. धरती के मौसम पर चांद का असर- चंद्रमा से पृथ्वी पर समय और काल की गणना की जाती है. इसी के साथ, ये हमारी पृथ्वी के मौसम और जलवायु पर भी गहरा असर डालता है. चंद्रमा की वजह से हमारी पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री पर झुकी हुई है. अगर पृथ्वी अपनी धुरी पर झुकी हुई न होती, तो सब जगह दिन-रात बराबर होते. यानी अगर चंद्रमा न होता तो शायद पृथ्वी और ज्यादा झुकी होती, जिससे यहां हवा की रफ्तार बढ़ जाती और मौसम भी गड़बड़ा जाते.
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