Difference between Investigation, Inquiry and Trial (अन्वेषण, जांच और विचारण में अंतर) –
सामान्य बोलचाल की भाषा में जांच, इन्वेस्टिगेशन और विचारण लगभग एक जैसे ही शब्द लगते हैं, लेकिन कानून की भाषा में तीनों शब्दों में बहुत अंतर है. हम तीनों शब्दों में मुख्य अंतर को इस तरह समझ सकते हैं कि- जब कोई अपराध (Crime) घटित हो जाता है, तब पुलिस उस मामले में सबूत इकठ्ठा करने के लिए जो भी कार्यवाहियां करती है, उन्हें ‘अन्वेषण’ (Investigation) कहते हैं. वह मामले से जुड़ीं सभी कार्यवाहियों की रिपोर्ट तैयार कर न्यायालय को देती है. फिर न्यायालय अन्वेषण की रिपोर्ट की जांच (Inquiry) करता है. जांच के बाद न्यायालय इस बात का परीक्षण या विचारण (Trial) करता है कि अभियुक्त (Accused) को दोषी करार दिया जाए या दोषमुक्त कर दिया जाए.
इस तरह, किसी मामले में पहले अन्वेषण होता है (पुलिस की तरफ से), फिर जांच होती है (कोर्ट या मजिस्ट्रेट की तरफ से) और उसके बाद विचारण या परीक्षण होता है (कोर्ट या मजिस्ट्रेट की तरफ से).
जांच किसी मजिस्ट्रेट या न्यायालय की तरफ से ही की जा सकती है. पुलिस अधिकारी की तरफ से की गई अन्वेषण की कार्यवाही को जांच नहीं माना जाता है.
अन्वेषण (Investigation)
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 2 (ज) के अनुसार, उन सभी कार्यवाहियों को अन्वेषण कहते हैं, जो किसी मामले में सबूत इकट्ठा करने के लिए पुलिस अधिकारी की तरफ से या मजिस्ट्रेट की तरफ से अधिकृत किए गए किसी व्यक्ति द्वारा की जाती हैं.
यानी जब कोई पुलिस अधिकारी किसी मामले की जांच करता है, तो उस जांच को ही ‘अन्वेषण’ कहते हैं. अगर मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को किसी मामले की जांच करने का अधिकार दे दे, तो ऐसी जांच को भी ‘अन्वेषण’ माना जाएगा. अन्वेषण के तहत मामले से जुड़े सभी सबूत इकट्ठा किए जाते हैं, ताकि कोर्ट की तरफ से उन सभी सबूतों की जांच की जा सके.
अन्वेषण में घटनास्थल का निरीक्षण करना, घटना से जुड़े सभी तथ्य और परिस्थितियों की जांच करना, मामले से जुड़े लोगों से पूछताछ करना, मामले से जुड़े सभी सबूतों को इकट्ठा करना आदि शामिल हैं. इस तरह अन्वेषण में यह देखा जाता है कि किसी व्यक्ति पर लगाया गया कोई आरोप सही है या नहीं. अन्वेषण के आधार पर पुलिस अपनी रिपोर्ट तैयार करती है.
जांच (Inquiry)
अन्वेषण के बाद जांच शुरू होती है, जो कि मजिस्ट्रेट या न्यायालय की तरफ से ही की जा सकती है. अन्वेषण के दौरान पुलिस जो भी सबूत इकट्ठा करती है, वह उन सबकी रिपोर्ट बनाकर न्यायालय के सामने पेश करती है. न्यायालय उन सभी रिपोर्ट्स की जांच करता है और यह देखता है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं. इसके बाद वह विचारण करता है कि अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जाना है या दोषमुक्त.
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (छ) के अनुसार, जांच किसी न्यायालय या मजिस्ट्रेट की तरफ से की जाती है. इसमें विचारण या परीक्षण शामिल नहीं है.
शंभूनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में कहा गया है कि ‘मजिस्ट्रेट किसी अभियुक्त के खिलाफ पेश की गई रिपोर्ट पर विचार करता है, तो उसे जांच माना जाएगा’.
विचारण (Trial)
किसी अपराध के घटित होने पर अन्वेषण और जांच के बाद परीक्षण या विचारण का काम शुरू होता है. विचारण का उद्देश्य अभियुक्त को दोषसिद्ध या दोषमुक्त करना होता है. परीक्षण या विचारण की परिभाषा दंड प्रक्रिया संहिता में कहीं भी नहीं दी गई है, लेकिन इस शब्द का मतलब उन सभी कार्यवाहियों से लगाया जाता है, जिनमें किसी अपराधी को दोषी या दोषमुक्त करने की न्यायालय की शक्ति हो.
पढ़े – जानिये समन मामले और वारंट मामले (Summon case and Warrant case) क्या हैं? दोनों में क्या अंतर हैं?
पढ़े – प्राथमिकी या FIR क्या है? FIR और शिकायत में क्या अंतर है?
Tags : what is investigation, what is inquiry, what is trial, difference between investigation inquiry and trial
Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved
All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.
Be the first to comment