जमानत क्या है? अग्रिम जमानत और अंतरिम जमानत क्या है? जमानती और अजमानतीय अपराध में अंतर

जमानत क्या है, जमानत या बेल कितने प्रकार के है, जमानत क्या है, जमानत या बेल कितने प्रकार के है, What is bail and types of bail? and difference between bailable and non-bailable offence जमानत क्या है? जमानत या बेल कितने प्रकार के है?

जमानत क्या है (What is Bail and Types of Bail in Hindi)? अग्रिम जमानत, अंतरिम जमानत और नियमित जमानत क्या है (What is Anticipatory Bail, Interim Bail and Regular Bail in Hindi)? जमानती और अजमानतीय अपराध में अंतर (Difference between bailable and non-bailable offence in Hindi) – 

जमानत क्या है (What is Bail)

जमानत या बेल (Bail) पर रिहा होना का मतलब है- आरोपी की स्वतंत्रता की सीमाएं. जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया जाता है, तो उस व्यक्ति को कारागार से छुड़ाने के लिए न्यायालय के सामने दाखिल की गई अर्जी या आवेदन पर उसे किसी न किसी शर्त पर मुक्त करने का जो आदेश मिल जाता है, उसे जमानत कहते हैं.

जमानत के आधार पर ये शर्त रखी जाती है कि आरोपी व्यक्ति को जब भी बुलाया जाएगा, वह सुनवाई के लिए जरूर आएगा, नहीं तो उसकी जमानत जब्त कर ली जाएगी, या उसे फिर से पकड़ा जा सकता है. जमानत पर रिहा व्यक्ति पर देश छोड़ने से और बिना आज्ञा लिए यात्रा करने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, साथ ही जब भी जरूरी हो, तब उसे न्यायालय या पुलिस के सामने उपस्थित होना होता है.

जमानती और अजमानतीय अपराध (Bailable Offence and Non-bailable Offences)

सरल शब्दों में, जमानती अपराध (Bailable Offence) के मामले में अभियुक्त को छोड़ा जा सकता है, लेकिन अजमानतीय अपराध (Non-bailable Offences) के मामले में उसे जमानत पर नहीं छोड़ा जाता.

दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure-CrPC) की धारा 2 (क) में जमानती और गैर-जमानती (अजमानतीय) अपराध की परिभाषा दी गई है. इस धारा के अनुसार, जमानती और अजमातीय अपराध वे अपराध हैं, जो पहली अनुसूची में या तत्समय प्रवृत्त अन्य विधि द्वारा जमानती या अजमानतीय बताए गए हैं. इस तरह कोई अपराध जमानती होगा या गैर-जमानती, इसका निर्धारण CrPC की पहली अनुसूची की सहायता से किया जा सकता है. CrPC में इसके लिए पूरी लिस्ट बनाई गई है.

विधि के अनुसार, किसी व्यक्ति को उन मामलों में जमानत दी जा सकती है, जब उस पर लगे आरोप गंभीर प्रकृति के न हों. ऐसे मामलों में वह जमानत की मांग अपने एक अधिकार के रूप में कर सकता है. वहीं, जब किसी व्यक्ति पर लगे आरोप गंभीर प्रकृति के हों, तो उसे जमानत पर नहीं छोड़ा जा सकता है. इसका मतलब ये है कि वह जमानत की मांग तो कर सकता है, लेकिन एक अधिकार के रूप में नहीं. उसे जमानत दी जाएगी या नहीं, ये न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है.

‘मोतीराम बनाम मध्य प्रदेश’ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-

“जमानत एक नियम है और विरोध उसका एक अपवाद है. किसी व्यक्ति को अपने मन में यह संदेह नहीं रखना चाहिए कि जमानती अपराध के मामले में अभियुक्त को छोड़ ही दिया जाएगा और अजमानतीय अपराध के मामले में अभियुक्त को छोड़ा ही नहीं जाएगा. जमानती अपराध के मामले में अभियुक्त जमानत की मांग अधिकार के साथ कर सकता है, लेकिन गैर-जमानती अपराध के मामले में वह जमानत की मांग अधिकार के रूप में नहीं कर सकता, लेकिन न्यायालय के विवेक पर उसे जमानत पर छोड़ा जा सकता है.”

गैर-जमानती अपराधों में जमानत के नियम

अगर कोर्ट को यह विश्वास है कि आरोपी ने मृत्युदंड या आजीवन कारावास के दंड का अपराध किया है, तो ऐसे आरोपी को जमानत पर नहीं छोड़ा जा सकता है. लेकिन अगर वह आरोपी 16 साल से कम उम्र का हो, या स्त्री हो, या किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज हो, तो उसे जमानत पर छोड़ा जा सकता है, फिर भले ही उसने मृत्युदंड या आजीवन कारावास के दंड का अपराध ही क्यों न किया हो. लेकिन जमानत पर छोड़े जाने के लिए उस आरोपी को बॉन्ड या मुचलका भरकर देना होगा कि जमानत की अवधि के दौरान वह कोर्ट के सभी निर्देशों का पालन करेगा.

जमानती और अजमातीय अपराधों में क्या अंतर है? (Difference between Bailable Offence and Non-bailable Offences)

(1) जमानती अपराध वे अपराध हैं जिन्हें पहली अनुसूची में जमानती दिखाया गया है और जिन्हें किसी अन्य लागू हो रहे कानून की तरफ से जमानत योग्य बनाया गया है, जबकि बाकी सभी अपराध गैर-जमानती अपराधों में आ जाते हैं.

(2) जमानती अपराध कम गंभीर प्रकृति के या कम दंडनीय होते हैं, जबकि गैर-जमानती अपराध गंभीर और जघन्य होते हैं, जिनमें आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान होता है. अजमानतीय अपराधों में अपहरण, बलात्कार, लूट, डकैती, हत्या, हत्या का प्रयास, गैर-इरादतन हत्या या फिरौती के लिए अपहरण जैसे अपराध शामिल हैं.

(3) जमानती अपराधों में गिरफ्तारी से पहले या बाद में किसी पुलिस अधिकारी की तरफ से या न्यायालय द्वारा जमानत स्वीकार की जा सकती है. वहीं, गैर-जमानती अपराधों में केवल विशेष परिस्थितियों में ही न्यायालय की तरफ से जमानत स्वीकार की जा सकती है.

(4) अगर कोई व्यक्ति किसी जमानती अपराध के मामले में गिरफ्तार किया जाता है या उसे न्यायालय के सामने पेश किया जाता है और वह अपनी जमानत देने के लिए तैयार है तो उस व्यक्ति से CrPC की धारा 436(i) के अनुसार, न्यायालय बजाए जमानत लेने के, उससे बाद में किसी भी समय बुलाए जाने पर उपस्थित होने की प्रतिभूति रहित बंधपत्र (Bond without Security) पर हस्ताक्षर करा के उसे मुक्त करने का आदेश दे सकता है, जबकि गैर-जमानती अपराधों में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है.

अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail)

अजमानतीय अपराध के आरोप में गिरफ्तार होने की आशंका में व्यक्ति अग्रिम जमानत के लिए अर्जी लगा सकता है. सुनवाई के बाद कोर्ट की तरफ से उसे शर्तों के साथ अग्रिम जमानत दी जा सकती है. यह जमानत पुलिस की जांच होने तक जारी रहती है. किसी आरोपी की तरफ से अग्रिम जमानत की अर्जी लगाने पर, इस बात की सूचना आरोप लगाने वाले व्यक्ति को भी दे दी जाती है, ताकि अगर वह चाहे तो आरोपी को ऐसी जमानत देने का विरोध भी कर सकता है.

अंतरिम जमानत और नियमित जमानत (Interim Bail and Regular Bail)

अंतरिम जमानत (Interim Bail) थोड़े समय के लिए दी जाती है और यह सुनवाई से पहले नियमित या अग्रिम जमानत देने के लिए दी जाती है. जब किसी आरोपी के खिलाफ कोर्ट में मामला लंबित (pending) है तो उस दौरान आरोपी CrPC की धारा 439 के तहत ट्रायल कोर्ट या हाईकोर्ट से जमानत की मांग कर सकता है. इस धारा के तहत आरोपी को नियमित जमानत (Regular Bail) और या फिर अंतरिम जमानत दे दी जाती है. यहां ट्रायल कोर्ट या हाईकोर्ट अपना फैसला केस की स्थिति के आधार पर देता है. कोर्ट की तरफ से आरोपी से बॉन्ड या मुचलका भरवाया जाता है कि जमानत की अवधि के दौरान आरोपी कोर्ट की तरफ से दिए गए सभी निर्देशों का पालन करेगा.

पढ़े – जानिये इन्वेस्टिगेशन, जांच और विचारण (investigation inquiry and trial under crpc) क्या हैं? तीनों में क्या अंतर है?

पढ़े – जानिये समन मामले और वारंट मामले (Summon case and Warrant case) क्या हैं? दोनों में क्या अंतर हैं?

पढ़े – प्राथमिकी या FIR क्या है? FIR और शिकायत में क्या अंतर है?



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Sonam Agarwal 238 Articles
LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*