भारत की सबसे प्राचीन, धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी काशी की दिव्यता, भव्यता और उसका असली स्वरूप आज पूरी दुनिया के सामने आया है. एक लंबा इंतजार खत्म करते हुए 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने वाराणसी (Varanasi) में भगवान शिव को समर्पित प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर को गंगा के किनारे से जोड़ने वाले 400 मीटर लंबे काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor) का उद्घाटन किया.
पीएम मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत, बाबा विश्वनाथ मंदिर के परिसर को 3,000 वर्ग फीट से बढ़ाकर 5 लाख वर्ग फीट कर दिया गया है. इस अवसर पर बाबा विश्वनाथ मंदिर के लिए प्रसाद तैयार किया गया, जो 8 लाख से ज्यादा परिवारों में बांटा गया. उद्घाटन के दौरान पीएम मोदी ने पहले पवित्र गंगा नदी में स्नान किया, फिर काशी के काल भैरव मंदिर में जाकर पूजा की….और फिर मुख्य मंदिर में जाकर पूरे विधि-विधान से बाबा विश्वनाथ की पूजा-अर्चना की.
इसके बाद उन्होंने इस भव्य कॉरिडोर को बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले उन सभी कारीगरों के ऊपर पुष्पवर्षा करके उनका सम्मान किया, निर्माण कार्य में लगे सभी मजदूरों की कला और मेहनत को सराहा…और फिर उन्हीं के साथ बैठकर भोजन किया. पीएम मोदी ने इस भव्य परिसर के निर्माण में लगे हर एक कार्यकर्ता का आभार जताया. इसी के साथ, उन्होंने इस समारोह में आने वाले सभी मेहमानों सहित पूरे देश को संबोधित किया. शाम को वह दशाश्वमेद्य घाट पर गंगा आरती में भी शामिल हुए.
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor)
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट की आधारशिला प्रधानमंत्री मोदी ने 8 मार्च 2019 को रखी थी. यह पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसके तहत श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को गंगा नदी के तट से जोड़कर सुलभ मार्ग बनाया गया है. इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर, गंगा किनारे वाराणसी के पुराने घाट से स्नान कर, रुद्राक्ष और पारिजात के पेड़ों के बीच से होकर सीधे बाबा विश्वनाथ तक पहुंचा जा सकता है. लगभग 50,000 वर्ग मीटर के बड़े परिसर में बनाए गए इस कॉरिडोर का 95 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. परियोजना का पहला चरण सोमवार, 13 दिसंबर को खोल दिया गया है. वहीं, गंगा का प्रवेश द्वार, नीचे जाने वाली सीढ़ियां और घाट को पूरा होने में अभी दो महीने और लगेंगे.
Tomorrow, 13th December is a landmark day. At a special programme in Kashi, the Shri Kashi Vishwanath Dham project will be inaugurated. This will add to Kashi's spiritual vibrancy. I would urge you all to join tomorrow's programme. https://t.co/DvTrEKfSzk pic.twitter.com/p2zGMZNv2U
— Narendra Modi (@narendramodi) December 12, 2021
इस प्रोजेक्ट की कुल लागत लगभग 800 करोड़ रुपये है, जिसमें पहले चरण के निर्माण की लागत 339 करोड़ रुपये है. धाम के लिए 339 करोड़ की लागत से 300 भवन खरीदे गए. करीब 1400 दुकानदारों, किराएदारों और मकान मालिकों का पुनर्वास किया गया. इस प्रोजेक्ट के विकास से जुड़े अधिग्रहण या पुनर्वास के संबंध में देश के किसी भी न्यायालय में कोई मुकदमा लंबित नहीं है.
इस कॉरिडोर को 3 भागों में बांटा गया है. इसमें 4 बड़े-बड़े गेट और परिक्रमा पथ पर संगमरमर से बने हुए 22 शिलालेख लगाए गए हैं, जिनमें काशी की महिमा का वर्णन किया गया है.
ये कॉरिडोर ललिता घाट से शुरू होकर मंदिर के मुख्य भाग तक जाता है. इस कॉरिडोर में 5 हजार लाइटें लगाई गई हैं.
गंगा स्नान के बाद धाम के चौक तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु 80 सीढ़ियां चढ़ेंगे, वहीं जो लोग सीढ़ियां नहीं चढ़ सकते, उनके लिए एस्केलेटेर की भी व्यवस्था की गई है.
भूकंप और भूस्खलन से बचाने के लिए पत्थरों को पीतल की प्लेटों से जोड़ा गया है. यहां भारत माता, आदि शंकराचार्य और महारानी अहिल्याबाई की प्रतिमाएं भी लगाई गई हैं.
इस प्रोजेक्ट के तहत 40 से ज्यादा प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार कर उनका सौंदर्यीकरण किया गया, साथ में यह भी सुनिश्चित किया गया कि इन सबकी मूल बनावट में कोई बदलाव न हो. कॉरिडोर के आसपास रुद्राक्ष, बेल, पारिजात, वट और अशोक के पेड़-पौधे लगाए जा रहे हैं (ये सभी पेड़-पौधे भगवान शिव को बहुत प्रिय हैं).
इस भव्य कॉरिडोर में 23 नए छोटे-बड़े भवनों का निर्माण किया गया है, जिनमें तीर्थयात्रियों के लिए वैदिक केंद्र, मुमुक्षु भवन, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, सिटी म्यूजियम, व्यूइंग गैलरी, फूड कोर्ट समेत अलग-अलग सुविधाओं की व्यवस्था की गई है.
इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से पहले मंदिर का क्षेत्रफल केवल 3000 वर्ग फीट था, जो अब बढ़कर लगभग 5 लाख वर्ग फीट हो गया है.
अब करीब 50,000 से 75,000 श्रद्धालु मां गंगा के दर्शन और स्नान करके वहां से सीधे बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन के लिए मंदिर परिसर में जा सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन-
कॉरिडोर के लोकार्पण के बाद पीएम मोदी ने देश को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा-
“बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद के बिना कुछ भी खास नहीं हो सकता”
“बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद के बिना कुछ भी खास नहीं हो सकता. जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है. भगवान विश्वेश्वर का आशीर्वाद हमारे अंदर एक अलौकिक ऊर्जा को जगा देती है, हमारे भीतर की आत्मा को जगा देती है. यह विश्वनाथ धाम केवल एक भव्य इमारत नहीं है, बल्कि हमारी भारत की सनातन संस्कृति का भी प्रतीक है, हमारी अध्यात्मिकता का प्रतीक है, भारत की प्राचीनता, परंपराओं, ऊर्जा और गतिशीलता का भी प्रतीक है.
प्राचीन भारत की प्रेरणा भविष्य को कैसे दिशा दे रही है, यह विश्वनाथ धाम परिसर में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है. अब जब भी यहां कोई आएगा, तो केवल आस्था को ही नहीं, बल्कि यहां के अतीत के गौरव को भी महसूस करेगा”.
“अगर औरंगजेब है, तो शिवाजी भी हैं”
“काशी अविनाशी है, जिसकी रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं. यहां माता अन्नपूर्णा स्वयं विराजमान हैं. आक्रमणकारियों ने इस पवित्र नगरी पर कई बार हमले किए, इसे नष्ट करने की कोशिश की. यह शहर औरंगजेब के अत्याचारों और उसके आतंक के इतिहास का गवाह है, जिसने तलवार से सभ्यता को बदलने की कोशिश की, जिसने संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश की, लेकिन भारत की मिट्टी बाकी दुनिया से अलग है.
अगर औरंगजेब है, तो शिवाजी भी हैं. जब-जब कोई औरंगजेब आता है, तब शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं. अगर कोई सालार मसूद आता है, तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे भारत की एकता की ताकत का स्वाद चखा देते हैं.”
“हम तपस्या करना और देश के लिए दिन-रात बिताना जानते हैं”
“काशी केवल शब्दों की बात नहीं, संवेदनाओं की रचना है. काशी वह है, जहां जाग्रत जीवन है, जहां मृत्यु भी एक पर्व है, जहां सत्य ही संस्कृति है और प्रेम ही परंपरा है. गुलामी के लंबे समय ने हम भारतीयों का आत्मविश्वास इस तरह तोड़ा कि हम अपनी ही रचनाओं पर विश्वास खो बैठे. लेकिन दृढ़ संकल्प और ठोस सोच के साथ कुछ भी असंभव नहीं है. भारतीयों में कल्पनाओं को सच करने की शक्ति है.
हम तपस्या करना और देश के लिए दिन-रात बिताना जानते हैं. चुनौती कितनी भी बड़ी हो, हम भारतीय उन सबको एक साथ हरा सकते हैं. भारत अपनी खोई हुई विरासत को फिर से संजो रहा है. मेरे लिए जनता जनार्दन भगवान का ही रूप है, हर भारतवासी ईश्वर का ही अंश है. पूरे आत्मविश्वास के साथ हम सबको स्वच्छता, सृजन और आत्मनिर्भर भारत के लिए लगातार प्रयास करते रहना है”.
काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple)
काशी दुनिया की सबसे प्राचीन और पवित्र नगरियों में से एक है. यह भारत की सात पुरियों (अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अवंतिका और द्वारिका) में से एक है. इन सातों पुरियों में भी काशी को प्रथम पूज्य माना गया है, क्योंकि यह पवित्र नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है, जिसका नाश प्रलय में भी नहीं होता. यह नगरी वरुणा और असि नाम की नदियों के बीच बसी है, इसीलिए इसे ‘वाराणसी’ भी कहा जाता है. काशी को भारत का धर्म हृदय भी कहा जाता है.
काशी को मंदिरों का नगर भी कहते हैं. इस पवित्र नगरी में आदि शंकराचार्य और गोस्वामी तुलसीदास समेत कई महान संतों का आगमन हो चुका है. गंगा नदी के पश्चिमी तट पर दशाश्वमेध घाट पर स्थित काशी विश्वनाथ यानी भगवान शिव का एक बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है, जो कि भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. काशी विश्वनाथ के दर्शन करने और मन से भक्ति करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. काशी विश्वनाथ जी की कृपा से ही गुरु वशिष्ठ तीनों लोकों में पूजित हुए और राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए.
मंदिर पर मुस्लिम शासकों के हुए कई बार हमले
काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के उन मंदिरों में से एक है, जिस पर मुस्लिम शासकों ने कई बार हमले किए और इसे नष्ट करने की कोशिश की. 11वीं सदी में मोहम्मद गोरी ने इस मंदिर को बहुत लूटा था और इसे तुड़वा दिया था, जिसे एक बार फिर बनवाया गया, लेकिन 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने इसे फिर तुड़वा दिया. इसके बाद मुगल शासक शाहजहां ने इस मंदिर को तुड़वाने के लिए सेना की टुकड़ी भेजी थी, लेकिन वह कामयाब न हो सका. वहीं, 17वीं शताब्दी में मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे तुड़वाकर बगल में ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी.
महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था वर्तमान मंदिर का निर्माण
वर्तमान मंदिर का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) ने करवाया था. रानी अहिल्याबाई एक सफल शासक और कूटनीतिज्ञ थीं, लेकिन उनकी धार्मिक प्रवृत्ति, भगवान के प्रति भक्ति और मंदिरों के प्रति उनकी श्रद्धा के चलते उन्हें संत भी कहा जाता है. रानी अहिल्याबाई के योगदान के चलते काशी विश्वनाथ धाम के प्रांगण में उनकी भी एक मूर्ति लगाई गई है. 1853 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर के शिखर पर सोना लगवा दिया था, जिस कारण ही इस मंदिर को ‘स्वर्ण मंदिर’ भी कहा जाता है.
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