Mantra Jaap in Hindi-
मंत्र जाप के नियम (Mantra Jaap ke Niyam)
मंत्र-जप का क्या है महत्व- पूजा-पाठ करके जहां हम भगवान, प्रकृति या देवताओं का सम्मान या धन्यवाद कर रहे होते हैं, वहीं मंत्र-जाप (Mantra Jaap) के जरिए हम ईश्वर से कनेक्ट होने की कोशिश करते हैं. मंत्र साधना (Mantra Sadhana) अपनी शक्तियों को जगाने और भगवान तक अपनी आवाज या प्रार्थना पहुंचाने का बड़ा माध्यम है. जपयज्ञ को श्रेष्ठ यज्ञ कहा गया है. कलयुग में नामजप की ही महिमा सबसे अधिक है. कुछ चीजें देखने में तो बहुत छोटी होती हैं, लेकिन प्रभाव उनका बहुत बड़ा होता है, असीम होता है.
प्राचीन धर्म-ग्रंथों में मंत्र-जाप का पूरा महत्व अच्छे से समझाया गया है. पहले के ऋषि-मुनि, तपस्वी, महर्षि या ब्रह्मर्षि आदि सभी कड़ी मंत्र साधना करके ही तो अपनी शक्तियों को जगाकर इतना बढ़ा लेते थे. मंत्रों के उच्चारण से ध्वनि तरंगें पैदा होती हैं. मंत्र-जप में तीन चीजों का बहुत महत्व है- उच्चारण, लय और ताल. तीनों का सही अनुपात मंत्र शक्ति को बढ़ा देता है.
प्रकृति में हर चीज के कुछ नियम होते हैं. नियमों का पालन करके कोई काम करने से उस काम में सफलता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. भगवान की पूजा, हवन-यज्ञ और मंत्र-साधना के भी नियम होते हैं, जिनका पालन करने से अच्छे परिणाम जल्द सामने आते हैं. जैसे–
♦ मंत्र-जप के लिए छोटे मंत्रों का चुनाव करना चाहिए, क्योंकि इनके जप के समय गलतियों की संभावना बहुत कम होती है और ये जल्दी असर भी करते हैं. जैसे- ॐ, ॐ नमः शिवाय और श्रीराम सबसे शक्तिशाली मंत्र हैं. गायत्री मंत्र को श्रेष्ठ मंत्र कहा गया है.
♦ मंत्र-जप किसी न किसी आसन पर बैठकर ही करना चाहिए, नहीं तो उस समय हमारे अंदर जो शक्ति या ऊर्जा आती है, वह धरती में समा जाती है.
♦ अगर रोजाना किसी मंत्र का जाप कर रहे हैं, तो एक ही स्थान चुनें. रोज स्थान बदलें नहीं.
♦ अगर किसी माला की सहायता से जाप कर रहे हैं, तो माला को सही हाथों में और सही तरीके से पकड़ना चाहिए.
♦ मंत्र जप करने के लिए चंदन, रुद्राक्ष या स्फटिक की माला बहुत अच्छी मानी जाती है. इसके आलावा, उंगलियों के सहारे भी जप किया जा सकता है.
♦ अपना आसन और माला पर्सनल रखनी चाहिए. यानी किसी दूसरे के आसन पर बैठकर या किसी दूसरे की माला से मंत्र-जप करने से बचना चाहिए.
♦ मंत्र जाप करते समय अपनी पीठ सीधी रखनी चाहिए. अगर कोई व्यक्ति बीमार है, या वह बैठ नहीं सकता, तो ऐसे में वह लेटकर भी मंत्र का जप कर सकता है, लेकिन कोशिश करें कि लेटे हुए भी पीठ सीधी हो. और सबसे अधिक आवश्यक है कि आपका मन भटके नहीं.
♦ मंत्रों का जाप श्रद्धा और भक्ति की भावना से ही किया जाना चाहिए. मन में संदेह नहीं होना चाहिए.
♦ जप करते समय अपने तन-मन की स्वच्छता का पूरा ध्यान रखना चाहिए, खासकर मन की स्वच्छता बहुत जरूरी है.
♦ मंत्रों के प्रति पूरी आस्था होनी चाहिए, मन में भगवान के प्रति संदेह नहीं होना चाहिए.
♦ मंत्र-जप करते समय मन में एक विशेष प्रार्थना हो सकती है, लेकिन किसी के भी प्रति दुर्भावना नहीं होनी चाहिए.
♦ मंत्र जाप करते समय अपना ध्यान या मन ज्यादा से ज्यादा भगवान में ही लगाने की कोशिश करनी चाहिए. इसके लिए भगवान की मूर्ति या चित्र की सहायता भी ली जाती है.
♦ जाप करते समय अपने सामने एक दीपक या धूपबत्ती जलाना भी अच्छा माना जाता है.
♦ मंत्र-जप करने के बाद कम से कम 10-15 मिनट तक जल का स्पर्श न करें.
एक अच्छी सलाह- अगर आप रोज सुबह उठते ही अपने पलंग पर बैठे-बैठे ही 9 बार श्रीं का जप करके पलंग से उतरें, तो इससे घर में धन संबंधी समस्याएं नहीं रहती हैं. यह मंत्र तीन अक्षरों से मिलकर बना है और यह मां लक्ष्मी जी का सबसे बड़ा मंत्र माना जाता है.
भगवान तक अपनी आवाज या प्रार्थना पहुंचाने का साधन
मंत्र क्या होते हैं (Mantra kya hote hain)- मंत्र कुछ विशेष प्रकार के शब्दों की संरचना होते हैं, जिनका विधिपूर्वक जप करने से सृष्टि की समस्त उपलब्धियां प्राप्त की जा सकती हैं. मंत्र गूढ़ अर्थों का स्वरूप होते हैं. मंत्रों को इस तरह बनाया जाता है, जिससे ये अंदर और बाहर की शक्तियों को प्रकट करने का साधन बन जाते हैं. मंत्र यानी मन को एक तंत्र में बांधना.
मंत्रों में असीम शक्ति होती है और ये शक्ति हमारी प्राण ऊर्जा को जगाने की कोशिश करती है. हर शब्द के अंदर एक तरंग होती है और जब ये तरंग व्यक्ति के तरंगों से मैच हो जाती हैं, तो उस व्यक्ति पर असर डालती हैं. मंत्रों का असर सबसे पहले शरीर पर, फिर मन पर और फिर आत्मा पर पड़ता है.
मंत्र-जप के जरिए आत्मा, शरीर और आसपास का पूरा वातावरण शुद्ध हो जाता है. व्यक्ति कई तरह की परेशानियों से मुक्ति प्राप्त कर लेने में सक्षम हो पाता है. एकाग्र मन से भगवान का लगातार नाम जपने से या उनके किसी सिद्ध मंत्र का जाप करने से भगवान तक हमारी आवाज या प्रार्थना पहुंचने लगती है और फिर भगवान भी हमारे कष्टों को दूर करने के लिए तत्पर हो जाते हैं.
रोजाना अभ्यास से जगाई जा सकती हैं अपनी शक्तियां
मंत्र गूढ़ अर्थों का स्वरूप होते हैं. वैदिक ऋषियों को मंत्रों का रचनाकार नहीं, मंत्रदृष्टा कहा गया है, यानी उन्होंने मंत्रों की रचना नहीं की, मंत्रों के दर्शन किए हैं, अविष्कार नहीं किया, खोज की है. जैसे कि विश्वामित्र जी ने गायत्री मंत्र की रचना नहीं की, उसके दर्शन किए हैं. गायत्री मंत्र के बल पर उन्होंने माता गायत्री का साक्षात्कार किया और यह पहली बार था. इसके बाद उन्होंने वह परम कल्याणकारी गायत्री मंत्र विश्व को दिया, जिसके बाद वे “विश्व के मित्र” कहलाए.
अलग-अलग स्थानों पर नियमों के साथ की गई मंत्र साधना बहुत अच्छे परिणाम देती है. सच्चे मन से की गई भगवान की पूजा, हवन-यज्ञ और मंत्र-साधना में इतनी शक्ति होती है कि इनके रोजाना अभ्यास से व्यक्ति अपने अंदर की सभी शक्तियों को जगा सकता है. मंत्रों को सिद्ध करने के लिए मन को एकाग्र करना बहुत जरूरी है. अगर साधक का मन इधर-उधर भटकता रहता है, तो मंत्र को सिद्ध होने में उतनी ही देर लगती है.
इतनी शक्ति होती है मंत्र साधना (Mantra Jaap) में, बदल सकता है पूरा वातावरण
जिस स्थान पर रोज पवित्र मन से मंत्र-जाप या साधना होती है, वहां के आसपास एक सुरक्षा कवच सा बन जाता है. उस स्थान के पास बुरी या नकारात्मक शक्तियां नहीं फटक पातीं. आपने भी सुना होगा कि पहले के समय में जंगल के हिंसक जानवर भी सिद्ध ऋषि-मुनियों के आश्रम के आसपास आकर अपनी हिंसा छोड़ देते थे. शबरी के गुरु मतंग ऋषि के आश्रम में तो शेर और हिरण साथ मिलकर पानी पीते थे. गुरु वशिष्ठ के आश्रम के जानवर-पक्षी भी मंत्रों का जाप किया करते थे. ये सब सालों तक पवित्र मन से किए गए मंत्र-जप, साधना, तपस्या और अच्छे कर्मों का ही परिणाम होता है.
किन स्थानों पर मंत्र जप करने से मिलता है कितना फल?
मंत्र साधना निज स्थान पर या मंदिर में, या पर्वत, नदी, वन या गौशाला आदि किसी भी स्थान पर किया जा सकता है. अलग-अलग स्थानों का अलग-अलग महत्व होता है. साधना की सफलता के लिए हमारे ऋषियों ने अपने लंबे और सूक्ष्म अनुभव के जरिए अलग-अलग स्थानों पर जप-ध्यान का अलग-अलग महत्व और फल बताया है. अगर रोजाना एक निश्चित स्थान पर निश्चित समय और सही तरीके से लगातार मंत्र का या भगवान के नाम का जाप किया जाता है, तो जल्द ही लाभ मिलना शुरू हो जाता है. आइए जानते हैं कि किस स्थान पर और किस समय मंत्र जाप करने से कितना लाभ मिलता है-
निज स्थान पर मंत्र-जप- जो लोग कहीं जा नहीं सकते, तो ऐसे लोग अपने ही घर पर या जहां हैं, वहीं पर मंत्र-जाप कर सकते हैं. निज स्थान या अपने ही स्थान पर किया गया जप सामान्य लाभ देता है. ऐसे में नहा-धोकर, आसन बिछाकर, भगवान के चित्र या मूर्ति के सामने बैठकर, दीपक या धूपबत्ती आदि जलाकर मंत्र जाप करना और भी अच्छा माना जाता है.
सूर्योदय के समय या उससे पहले जप- हम सब जितनी भी महान विभूतियों या शक्तिशाली लोगों के बारे पढ़ते हैं, उनमें एक बात जरूर देखने को मिलती है कि सभी महान, ताकतवर या सफल लोग सूर्योदय से पहले ही सोकर उठते थे, क्योंकि वे सब सेहत या स्वास्थ्य या जीवन या समय के लिए सूर्य और सुबह-सुबह के समय का महत्व अच्छी तरह जानते थे… और इसीलिए वे उस सबसे महत्वपूर्ण और जरूरी समय को बिल्कुल नहीं गंवाते थे.
ब्रह्ममुहूर्त सूर्योदय से लगभग 96 मिनट पहले शुरू होता है और 48 मिनट पहले खत्म हो जाता है, इसलिए सूर्योदय से 50 मिनट पहले उठ जाना चाहिए. इस समय उठने पर पिट्यूटरी ग्लैंड से ऐसे हार्मोंस बनते हैं, जिनसे उत्साह, ऊर्जा और स्फूर्ति बढ़ती है. इस समय प्रकृति को करीब से महसूस किया जा सकता है. शास्त्रों के अनुसार, सूर्योदय के समय या उससे पहले मंत्र-जप करना बहुत प्रभावी होता है. इस समय स्वच्छ होकर अपने ही घर या स्थान पर बैठकर जाप किया जा सकता है.
पेड़-पौधों के पास या उनके नीचे मंत्र जाप- शास्त्रों में केला, पीपल, बरगद, बिल्व वृक्ष और तुलसी का बहुत महत्व बताया गया है. पीपल के पेड़ पर 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना गया है. सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देने वाला पेड़ भी यही है. पीपल और बरगद के पेड़ के पास या उनके नीचे स्थापित शिवलिंग या किसी देवता की मूर्ति की उपासना का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है.
पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर एकाग्र मन से किया गया हनुमान चालीसा का पाठ बहुत अच्छा माना जाता है. इसी तरह, बिल्व वृक्ष, केला और तुलसी के पास बैठकर पूजा-पाठ करने से वह पूजा सफल होती है. इन सभी पेड़-पौधों के पास या इनके नीचे बैठकर भगवान का जप करने से जल्द लाभ मिलते हैं.
गौशाला में किया गया जप- हम सब जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने सुरभी यानी गाय को अपनी माता ही माना है. गाय में भी सभी देवी-देवताओं का वास माना गया है. गाय का गोबर-मूत्र, दूध सभी पवित्र होते हैं. गायों की सेवा करने वाले और उसे प्रसन्न रखने वाले व्यक्ति को किसी और पूजा की जरूरत भी नहीं पड़ती. गाय में सभी तीर्थों का भी वास माना गया है. गौशाला में एक तरफ शांति से किया गया मंत्र-जप सौ गुना फल देता है.
मंदिरों में किया गया मंत्र जप- जिस स्थान पर किसी देवी-देवता की प्राण प्रतिष्ठा विधिवत हुई हो, या मंदिरों में या उनके पास मंत्र-जप करने से करोड़ गुना लाभ मिलता है. मंदिर ही वह स्थान होते हैं, जहां आकर कोई भी सामान्य व्यक्ति झूठ भी बोलना छोड़ देता है. यहां लोग अच्छे काम करने के उद्देश्य से ही आते हैं. यहां घंटे, शंख, आरती आदि की आवाजें गूंजती रहती हैं, इसलिए मंदिरों का वातावरण पॉजिटिव रहता है.
ज्योतिर्लिंग या शिवलिंग के पास किया गया जप- यह तो कई वैज्ञानिक रिसर्च में साबित हो चुका है कि शिवलिंग ऊर्जा का स्रोत होते हैं. वह आसपास की ऊर्जा को अपने अंदर खींचकर उसे नियंत्रित करने में मदद करता है. शिवलिंग, प्राण-प्रतिष्ठित शिवलिंग, बाणलिंग, स्वयंभू, ज्योतिर्लिंग, एकलिंग जी के पास बैठकर मंत्र जाप करने से अनंत गुना लाभ प्राप्त किया जा सकता है.
ज्योतिर्लिंगों का महत्व बहुत ज्यादा होता है, क्योंकि ज्योतिर्लिंग की स्थापना करने वाले भी भगवान या देवता ही हैं, जैसे- रामेश्वरम की स्थापना स्वयं भगवन राम ने, तो मल्लिकार्जुन की स्थापना भगवान शिव के ही पुत्र कार्तिकेय जी ने और इसी तरह सोमनाथ की स्थापना चंद्र देवता ने की है.
सिद्ध शक्तिपीठ में मंत्र-जप- देवी सती के शव के अलग-अलग अंगों से 52 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था. इन सभी शक्तिपीठों का बहुत महत्व है. ये बहुत पवित्र स्थान होते हैं. इन स्थानों में बैठकर जप करने से जल्द ही अनंत गुना लाभ मिलते हैं.
वन में किया गया मंत्र जप- जब नन्हें से भक्त ध्रुव ने नारद जी से पूछा कि “मुझे किस स्थान पर भगवान विष्णु के नाम का जाप करना चाहिए कि वे जल्द प्रसन्न होकर मुझे दर्शन दे दें”, तब नारद जी ने उनसे वन में जाकर तपस्या करने के लिए कहा. हमारे यहां लगभग सभी ऋषि-मुनि, तपस्वी आदि वन में ही किसी स्थान पर सुंदर और साफ-सुथरा आश्रम बनाकर रहते थे. वनों को साधना या तपस्या करने का उचित स्थान माना जाता था. यहां व्यक्ति प्रकृति के बहुत करीब होता है. वनों में किया गया मंत्र-जप हजार गुना लाभ देता है.
नदी-तट या संगम पर जप- हमारे देश में नदियों को माता का स्थान दिया गया है, क्योंकि हमारे देश की नदियां साधारण नहीं हैं, बल्कि इन सभी की उत्पत्ति देवलोक से मानी गई है. जहां नदी की दो या दो से ज्यादा धाराएं मिलती हैं, उस जगह को संगम कहते हैं, जैसे इलाहाबाद में गंगा, यमुना (और सरस्वती) के मिलन को त्रिवेणी संगम कहते हैं. संगम पर स्थापित मंदिर और मेलों का भी विशेष महत्व होता है. किसी नदी-तट या संगम पर किया गया मंत्र-जप लाख गुना लाभ देता है.
पर्वत पर किया गया जप- आप गौर कर सकते हैं कि ज्यादातर सिद्ध मंदिर पर्वतों पर होते हैं. दरअसल, प्राचीन समय में तपस्वी लोग पर्वतों पर जाकर तपस्या करते थे, जहां उनकी साधना में बाधा डालने वाला कोई नहीं होता था. पर्वतों पर भी प्रकृति को बहुत करीब से महसूस किया जा सकता है. वहां का वातावरण भी शांत और स्वच्छ होता है. तपस्वी लोग वहीं जो मूर्ति या शिवलिंग स्थापित करते थे, वे आज सिद्ध मंदिर बन चुके हैं. पर्वत पर किया गया मंत्र-जप दस हजार गुना लाभ देता है.
ग्रहणकाल में किया गया जाप- सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण के समय किये गए मंत्र जाप का बहुत महत्व बताया गया है. इस अवसर को हाथ से न जाने देने का प्रयास करना चाहिए. किसी भी ग्रहणकाल में अपने घर पर, या मंदिरों में या पवित्र नदी, संगम, पर्वत, गौशाला आदि में मंत्र-जप का अनंत फल मिलता है. किसी भी मंत्र-जप की शुरुआत पूर्णिमा या अमावस्या से करना सबसे अच्छा होता है.
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बहुत ही सुंदर जानकारी ।बहुत बहुत धन्यवाद।जय श्री राम।