ब्रह्माविष्णुमहेशानदेवदानवराक्षसा:।
यस्मात् प्रजज्ञिरे देवास्तं शंभुं प्रणमाम्यहम्॥
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देव, दानव व राक्षस जिनसे उत्पन्न हुए हैं, ऐसे भगवान शम्भु को मैं प्रणाम करता/करती हूं. जिनका शीश किशोर चन्द्रमा से सुशोभित है, जिनकी अमल धवल चंद्रिका में पतितपावनी गंगा के जलकण झिलमिल कर रहे हैं, ऐसे भगवान शशांक-शेखर में मेरी प्रीति सदा सर्वदा बनी रहे. क्या ही दिव्य छटा है करुणावतार के कर्पूरगौर श्रीअंगों की, जिनकी तेजोमूर्त्ति का ओर-छोर स्वयं ब्रह्मा और विष्णु जी भी न जान सके. कितना विराट है शिव का स्वरूप. उग्र है पर क्रूर नहीं, प्रलयंकर हैं पर पीड़क नहीं. सर्व-आश्चर्य हैं तो सर्व-आश्रय भी. वे दृश्य नहीं, दृष्टा हैं. सकल विश्व जिसकी एक बूँद ही में डूब सकता है, उस सरितांवरा को वे अपने सिर पर धारण किये हुए हैं. ऐसी अद्भुत महिमा है महेश्वर महाकाल की. हर हर महादेव!
त्रिदेवों में से एक, देवों के देव महादेव यानी भगवान शिव (Bhagwan Shiv) बहुत दयालु हैं, आदि गुरु हैं. इस समस्त ब्रह्मांड में ऐसा कोई नहीं, ऐसा कुछ नहीं, जिसके स्वामी भगवान शिव न हों, इसीलिए उन्हें विश्वनाथ, रामेश्वर, वैद्यनाथ, सोमनाथ, नागेश्वर, पशुपतिनाथ, भूतनाथ आदि भी कहते हैं. वे समस्त प्रकृति के स्वामी हैं. इसीलिए भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए प्रकृति की रक्षा करना भी बहुत जरूरी है.
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कई महान भक्तों ने ये अपना अनुभव बताते हुए लिखा है कि भगवान शिव की सच्चे मन से, भक्ति भावना के साथ आराधना करने, पूजा करने, उनके व्रत आदि रखने से कोई कामना अधूरी नहीं रहती. भगवान शिव की उपासना से केवल शिवजी ही नहीं, बल्कि माता पार्वती जी, भगवान कार्तिकेय जी, भगवान गणेश जी, भगवान विष्णु जी और सभी देवताओं की भी कृपा प्राप्ति हो जाती है.
भगवान् शिव सभी के आराध्य हैं. शिवजी की पूजा भगवान् श्रीराम भी करते हैं और रावण जैसा राक्षस भी. जिसे कोई स्वीकार नहीं करता, उसे शिव स्वीकार कर लेते हैं. शिव परम कल्याणकारी हैं. श्रेष्ठ, शुभ और कल्याणकारी आदि शिव के ही पर्यायवाची हैं. वे इतने मंगलकारी और शुभ हैं, कि उनसे जुड़कर अमङ्गल भी मंगल हो जाता है. उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी (बैल), सिंह, सर्प, मयूर (मोर) और मूषक (चूहा) सभी हैं, जो अनेक विषमताओं के बीच भी सामंजस्य रखने और प्रसन्न रहने की कला को दर्शाता है.
गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं-
इच्छित फल बिनु सिव अवराधें।
लहिअ न कोटि जोग जप साधें॥
“शिवजी की आराधना किए बिना करोड़ों योग और जप करने पर भी वांछित फल नहीं मिलता.”
भगवान् श्रीराम कहते हैं-
जेहि पर कृपा न करहि पुरारी।
सो न पाव भगति हमारी॥
अर्थात् हरि कृपा के लिए भी हर-कृपा आवश्यक है.
कभी भी कोई भी पूजा या आरती करने के बाद भगवान शिव के मंत्र “कर्पूरगौरं करुणावतारं….” पढ़ना बहुत अच्छा होता है. इसे पढ़ने के बाद पूजा पूरी हुई मानी जाती है. सुबह और शाम को किसी एकांत स्थान पर बैठकर आंखें बंद करके महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjay mantra) का जाप करने से मन को शांति मिलती है और मृत्यु का भय दूर होता है.
शास्त्रों में लिखा है कि इंसान के कर्मफल को बदलने की शक्ति किसी देवता में नहीं है, लेकिन भगवान शिव को यह अधिकार भी है और शक्ति भी, कि वे किसी भी इंसान के कर्मफल को भी बदल सकते हैं. महादेव किसी की भी मृत्यु को टाल सकते हैं, इसीलिए उन्हें ‘मृत्युंजय’ कहते हैं. वे किसी भी कठिन से कठिन रोग का इलाज कर सकते हैं, इसीलिए उन्हें वैद्यों के वैद्य यानी वैद्यनाथ भी कहते हैं.
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जटाओं में गंगा, मस्तक पर चंद्रमा, गले में सर्पों की माला त्रिनेत्रधारी भगवान शिव बड़े ही शरणागतवत्सल हैं, शरण में आए हुए की रक्षा जरूर करते हैं और प्रसन्न होने पर एक ही पल में सब कुछ ठीक कर सकते हैं. कोई भी प्राणी या वस्तु भगवान शिव से जुड़ने के बाद अमंगल नहीं रह जाता, ऐसी है महादेव की महिमा.
सपने में किसी शिवलिंग का दिखाई देना, या किसी शिवलिंग पर खुद को जल-दूध चढ़ाते देखना, या किसी शिवलिंग की पूजा-आराधना करते देखना अत्यंत शुभ होता है. शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक होता है, क्योंकि भगवान शिव की पूजा निराकार स्वरूप में भी की जाती है.
भगवान शिव की आरती (Shiv Aarti)
भगवान शिव की आरती (Bhagwan Shiv ji ki Aarti) में त्रिदेवों की स्तुति की गई है. कहा भी जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु महेश तीनों एक ही हैं, केवल अज्ञानता के कारण हम इन्हें अलग-अलग रूपों में जानते और देखते हैं. भगवान शिव की आराधना करते समय भगवान विष्णु और परमपिता ब्रह्माजी का भी ध्यान करना अच्छा होता है, क्योंकि प्रणवाक्षर (ॐ) में ये तीनों एक ही हैं. जानकारी के अनुसार, शिव आरती की रचना पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी ने थी.
भगवान शिव की आरती- ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा
रुद्राष्टक (Rudrashtak)
रुद्राष्टक (Rudrashtakam) को श्रीरामचरितमानस (Ramcharitmanas) के उत्तर कांड से लिया गया है. इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास जी (Goswami Tulsidas) ने की है. तुलसीदास जी कलियुग के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए रुद्राष्टक का पाठ करने का सुझाव देते हैं. यह प्रार्थना उस समय की है, जब एक दयालु और परम भक्त गुरु ने अपने एक अत्यंत अहंकारी शिष्य को भगवान शिव के क्रोध से बचाने के लिए उनसे क्षमा प्रार्थना की थी.
अपने शिष्य के प्रति गुरु का ऐसा प्रेम और दया को देखकर भगवान शिव ने उस शिष्य को क्षमा कर दिया था. जो भी व्यक्ति अपने पूरे अहंकार को त्यागकर भक्ति भाव से रुद्राष्टक का पाठ करता है, उसे भगवान शिव की कृपा जरूर प्राप्त होती है.
रुद्राष्टकम – नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं…
शिवाष्टक (Shivashtak)
भगवान शिव की स्तुति में जितने अष्टकों की रचना हुई है, उनमें शिवाष्टक (Shivashtak) भी प्रमुख है. शिवाष्टक में भगवान शिव की महिमा का वर्णन किया गया है, साथ ही इसमें भक्त ने अपने लिए भी प्रार्थना की है. इसकी रचना आदि गुरु शंकराचार्य (Adi Guru Shankaracharya) ने की थी. शिवाष्टक का रोज पाठ करने से बुरी परिस्थितियों से जल्द छुटकारा मिल जाता है. भगवान शिव की पूजा-आराधना के समय शिवाष्टक का पाठ करना बहुत ही अच्छा माना जाता है.
शिवाष्टक स्तोत्र – जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे… पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
शिव चालीसा (Shiv Chalisa)
चालीसा में देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन होता है और उनकी स्तुति की जाती है. देवी देवताओं की पूजा-आराधना करते समय चालीसा का पाठ करने से मन में भक्ति और विश्वास प्रबल होता है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है. शिव चालीसा (Shiv Chalisa) का अलग ही महत्व है. इसका रोज पाठ करने से कामनाओं की पूर्ति होती है.
शिव चालीसा – जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला…
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