Sita ji ki Gauri Puja and Ram-Sita Vivah
महाराज जनक जी के निमंत्रण पर महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण जी को साथ लेकर मिथिला नगरी पहुंचते हैं, जहां राजकुमारी सीता जी के भव्य स्वयंवर की तैयारियां चल रही हैं. लक्ष्मण जी की इच्छा पर भगवान श्रीराम गुरु विश्वामित्र की आज्ञा लेकर नगर भ्रमण को निकलते हैं. नगर को बहुत ही सुंदर तरीके से सजाया जा रहा है. चारों तरफ केवल खुशियां और आनंद ही आनंद है. राज्य में एक भी परिवार या व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसके पास धन की कमी हो, या जिसे किसी तरह का कोई कष्ट हो. नगर में सभी एक-दूसरे के साथ बहुत ही अच्छा व्यवहार करते हैं…
अब जहां स्वयं महालक्ष्मी जी ने ही जन्म ले लिया हो, भला वहां धन-धान्य और सुख-ऐश्वर्य की क्या कमी..
यहां श्रीराम और लक्ष्मण जी सुंदर नगर को देख रहे हैं, तो वहीं नगर के लोग इकठ्ठा होकर श्रीराम और लक्ष्मण को देख रहे हैं. हाथों में धनुष-बाण लिए दोनों भाई जहां भी जाते, वहीं लोगों की भीड़ इकट्ठी हो जाती. सब आश्चर्य से दोनों भाइयों को एकटक देखते और सोचने लगते कि ‘आखिर ये कौन हैं, इससे पहले इतनी सुंदरता तो कभी देखी ही नहीं. लगता है जैसे त्रिलोकी की सारी सुंदरता इन्हीं में समा गई हो. किसी से तुलना भी नहीं होती..’
श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि जैसे ही कोई व्यक्ति ये समाचार सुनता कि ‘वही दोनों सुंदर और वीर भाई हमारी गली की तरफ भी आ रहे हैं, जिन्होंने पूरी नगरी को लुभा रखा है…’ सब लोग घर-बार और सब काम-काज छोड़कर उन्हें देखने के लिए ऐसे दौड़ पड़ते, जैसे कोई गरीब खजाना लूटने के लिए दौड़ पड़ता हो. दोनों भाइयों को देखकर लोगों को ऐसा लगा, जैसे उन्होंने सब कुछ पा लिया हो. नगर की युवतियां अपने-अपने घरों की खिड़कियों से दोनों भाइयों को एकटक देख रही हैं.
श्रीराम और लक्ष्मण जी को देखकर लोग आपस में तरह-तरह की बातें भी करने लगे. एक-दूसरे से दोनों भाइयों के बारे में जानकारी जुटाने लगे. जब सब लोगों को ये जानकारी मिली कि ‘श्रीराम जी जितने सुंदर हैं उतने ही वीर.. उन्होंने सभी भयानक राक्षसों से महर्षि विश्वामित्र के आश्रम की रक्षा की है…’, तब सब एकमत से कहने लगे कि ‘संसार में न सीता जी जैसी (सुंदर, गुणवती और आदर्श) स्त्री कभी देखी और न श्रीराम जी जैसा (सुंदर, गुणवान और आदर्श) पुरुष. कितना अच्छा हो कि अगर इन्हीं दोनों का विवाह हो जाए. फिर तो श्रीराम जी मिथिला के जमाई राजा बन जाएंगे और इस बहाने बार-बार यहां आते रहेंगे’.
अब सब लोग प्रार्थना भी करने लगे कि ‘श्रीराम जी ही जानकी जी के योग्य हैं, राजकुमारी सीता जी का विवाह इन्हीं से होना चाहिए’. फिर सब लोग ये सोचकर डर भी रहे हैं कि इतने सुंदर और कोमल तन वाले श्रीराम क्या भगवान शिव का पहाड़ जैसा भारी धनुष उठा पाएंगे, क्योंकि महाराज जनक जी तो अपनी प्रतिज्ञा तोड़ेंगे नहीं. सब लोग कहने लगे कि काश! महाराज जनक अपनी प्रतिज्ञा भूलकर सीताजी का विवाह इन्हीं से करवा दें.
फिर सब लोग ये सोचकर अपने मन को मनाने भी लगे कि ‘जिन्होंने मारीच और सुबाहु जैसे भयानक राक्षसों का वध कर दिया, वे शिव का धनुष भी अवश्य उठा पाएंगे. आखिर जिस विधाता ने सीता जी को रचा है, उसी ने उनके योग्य वर (श्रीराम) भी तो बनाया होगा. विधाता ने श्रीराम जी को सीता जी के लिए ही यहां भेजा होगा… वह शिव धनुष कोई साधारण धनुष तो है नहीं. उसे केवल अपने बाहुबल से नहीं उठाया जा सकता है. शिव धनुष को तो वही उठा पाएगा, जिसे राजकुमारी सीता जी के लिए ही रचा गया होगा.’
फिर सब लोग अपने-अपने पुण्यकर्मों को भी मनाने लगे कि श्रीराम और सीता जी की सुंदर जोड़ी के जल्द ही दर्शन हों.
सीता जी का गौरी पूजन के लिए जाना
विवाह से पहले गौरी जी की पूजा-आराधना का विधान है. मां गौरी जी की सच्चे मन से उपासना करने से विवाह में आने वाली सभी समस्याएं और बाधाएं दूर होती हैं और मनवांक्षित वर का वरदान प्राप्त होता है. महारानी सुनयना जी अपनी लाड़ली पुत्री राजकुमारी सीता जी को गौरी मंदिर में जाकर उनकी पूजा-आराधना करने की आज्ञा देती हैं और कहती हैं कि ‘मां गौरी जी के चरणों में ध्यान लगाना और सच्चे मन से प्रार्थना करना कि वे तुम्हें तुम्हारे योग्य ही वर दें’.
माता की आज्ञा से सीता जी अपनी बहनों और सहेलियों के साथ गौरी पूजन के लिये पुष्प वाटिका की तरफ चल पड़ती हैं, जहां माता गौरी जी का बहुत ही सुंदर मंदिर स्थापित हैं… इधर श्रीराम जी भी गुरु की आज्ञा से लक्ष्मण जी के साथ पूजा के लिए फूल लेने पुष्प वाटिका में आते हैं. वहीं, अपनी सहेलियों के साथ सीताजी प्रसन्न मन से गौरी माता के मंदिर में गईं, जहां उन्होंने बड़े प्रेम से पूजा की और अपने योग्य वर मांगा.
इतने में ही सीता जी की एक सहेली फूल लेने के लिए मंदिर से बाहर चली जाती है, कि तभी उसकी नजर श्रीराम और लक्ष्मण पर पड़ती है. वह दौड़कर सीता जी के पास जाती है और कहती है कि ‘राजकुमारी जी, बस एक बार श्रीराम जी को देख लो, जिन्होंने अपने रूप से सभी को अपने वश में कर रखा है’. सभी सहेलियों के बार-बार कहने पर सीता जी मान जाती हैं.
जब श्रीराम और सीता जी पहली बार एक-दूसरे को देखते हैं..
सीता जी सभी सहेलियों के साथ मंदिर से बाहर निकलती हैं और श्रीराम जी को ढूंढने लगती हैं, कि तभी सीता जी को एक बेल के पीछे से श्रीराम जी आते हुए दिखाई देते हैं. वहीं, श्रीराम जी की भी नजर सीता जी पर पड़ती है. दोनों एकदम से सब भूलकर एक-दूसरे को देखकर ऐसे प्रसन्न हुए, जैसे वर्षों से बिछड़े दो प्रेमी फिर मिल गए हों.
राम और सीता जी क्षीर सागर के पुराने प्रेमी हैं. दोनों के पुराने और सनातन प्रेम को कोई नहीं देख पाता. दोनों की इस मानवीय लीला में कोई उनके दैवीय प्रीत को समझ न सका, और न कोई उसके बारे में जानता है कि बैकुंठ लोक से पृथ्वी पर आने के बाद, यानी इस मानवीय रूप में ये इन दोनों की पहली भेंट (मुलाकात) है.
लेकिन दोनों की इस भेंट में जो ध्यान देने वाली बात है, वो है- दोनों का मर्यादापूर्ण आचरण. पुष्पवाटिका में श्रीराम जी को देखकर सीता जी व्याकुल हो उठीं. अब उनका मन कई तरह की आशंकाओं से घिर उठा. उन्हें पता है कि उनके पिता जी ने उनके विवाह के लिए प्रतिज्ञा की है, और देश-विदेश से हजारों राजा-महाराजा, राजकुमार आदि उनके स्वयंवर के लिए जनकपुरी भी आ चुके हैं. लेकिन इस बीच सीता जी को श्रीराम जी से प्रेम हो जाता है.
प्रीत जितनी गहरी होती है, आशंकाओं की लहरें भी उतनी ही अधिक होती हैं. यही हाल उस समय सीताजी का है. वो विश्वास और अविश्वास के बीच झूल रही हैं. ऐसे में सीता जी अपने मन की बात किसी को नहीं बता पातीं. लेकिन उन्हें अपने तप, प्रेम और भगवान पर पूरा विश्वास है. वे यह भी जानती हैं कि उनके पिता ने उनके विवाह के लिए जो शर्त रखी है, वह बहुत सोच-समझकर ही रखी है.
Sita ji ki Gauri Puja– तब सीता जी सीधे मां गौरी जी के पास जाती हैं और अपने मन की सारी बात उन्हीं को बता देती हैं. सीता जी पहले गौरी जी की स्तुति करती हैं और कहती हैं-
फिर सीता जी मां गौरी जी से कहती हैं कि “आप तो सभी के हृदय में निवास करती हैं, मेरे मन की बात तो आप जानती ही हैं… और इसीलिए मैंने अपने मन की बात प्रकट नहीं की”.. और इतना कहकर सीता जी गौरी जी के चरण पकड़ लेती हैं.
मोर मनोरथु जानहु नीकें।
बसहु सदा उर पुर सबही कें॥
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं।
अस कहि चरन गहे बैदेहीं॥
सीता जी के मधुर स्वर और उनकी करुण पुकार सुनकर मां गौरी जी बहुत प्रसन्न हो जाती हैं. उनके गले की माला खिसक जाती है और सीता जी के गले में आ जाती है. गौरी जी मुस्कुराती हैं और सीता जी से कहती हैं, “तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी. तुम्हें जिससे प्रेम हो गया है, वही स्वभाव से सुंदर वर (श्री रामचन्द्रजी) तुम्हें मिलेगा. श्रीराम करुणानिधान (दया के सागर) और सुजान (सर्वज्ञ) हैं, तुम्हारे स्नेह को भली प्रकार जानते हैं.”.
मां गौरी जी की बात सुनकर सीता जी अत्यंत प्रसन्न होती हैं. वे उन्हें बार-बार धन्यवाद देते हुए प्रसन्न मन से राजमहल की ओर लौट चलती हैं. वहीं, श्रीराम ने पुष्प वाटिका में सीता जी को देखते ही यह प्रतिज्ञा कर ली कि, “राम के जीवन में सीता के अतिरिक्त कोई दूसरी स्त्री कभी नहीं आएगी”.
स्वयंवर के समय भी जब श्रीराम जी भगवान शिव का धनुष उठाने के लिए चलते हैं, तब सीता जी सभी देवी-देवताओं को मनाने लगती हैं और कहती हैं कि-
उस समय सीता जी के मन की दशा और अपने प्रति उनका इतना प्रेम देखकर श्रीराम जी मन ही मन बहुत प्रसन्न होते हैं. वे बिना देर किए एक ही हाथ से भगवान शिव का धनुष उठा लेते हैं. धनुष बहुत पुराना था, इसलिए प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयास में वह धनुष टूट जाता है. सीता जी अत्यंत प्रसन्नता के साथ वरमाला भगवान श्रीराम जी के गले में डाल देती हैं. आकाश से सभी देवी-देवता फूलों की वर्षा करने लगते हैं. उस समय महाराज जनक, माता सुनयना, सीता की बहनों-सहेलियों और सभी मिथिलावासियों आदि की खुशी का अंदाजा लगाना बहुत कठिन है.
श्री सीताराम जी के बारे में कुछ रोचक तथ्य-
(Some interesting facts about Shri Sitaram Ji)
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