Adhyatma and Science : प्राचीन भारत की अध्यात्म शक्ति और आज का वैज्ञानिक युग

science and adhyatm bhagwan, science bhagwan ko manta hai

ऑटोमेटिक प्रकृति ??

आधुनिक वैज्ञानिकों के मुताबिक ब्रह्मांड में 100 अरब गैलेक्सी हैं और हर एक गैलेक्सी में 100 अरब से ज्यादा तारे हैं. अगर हमारी पृथ्वी आगे जाकर एक ब्लैक होल बन जाए (हालांकि ऐसा कभी होगा नहीं), तो पृथ्वी का रेडियस मात्र 1 इंच ही रह जाएगा, तो जरा सोचिए कि हमारी गैलेक्सी ‘मिल्की वे’ के सेंटर में मौजूद ब्लैक होल किसी समय कितना बड़ा तारा रहा होगा, क्योंकि वर्तमान में उसका रेडियस लगभग 12 करोड़ किलोमीटर है… हमारा सूर्य इस ब्लैक होल की एक परिक्रमा करीब 23 करोड़ सालों में पूरी कर पाता है. और इससे भी बड़े करोड़ों ब्लैक होल इस ब्रह्मांड के एक छोटे से कोने में मौजूद हैं. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ब्रह्मांड कितना बड़ा है, शायद इसका कोई अंत ही नहीं है.

यह ब्रह्मांड हो या कोई भी वस्तु, हर चीज की उत्पत्ति में आखिर-आखिर तक कोई न कोई वैज्ञानिक तर्क मिल ही जाएगा, लेकिन सबसे आखिर में जाकर एक बिंदु पर अटक ही जाओगे, जहां विज्ञान का कोई भी नियम या तर्क काम नहीं करता.

ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर अब तक कई वैज्ञानिक सिद्धांत दिए जा चुके हैं, लेकिन वे सभी सिद्धांत आखिर में जाकर एक ऐसे ही बिंदु पर अटक जाते हैं, जहां विज्ञान पूरी तरह मौन हो जाता है. अब जैसे बिग-बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) को ही लें, जो अब तक का सर्वमान्य सिद्धांत है, जिस पर नासा को सबसे ज्यादा भरोसा है.

इस सिद्धांत के अनुसार, ज्यादातर वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिंदु में महाविस्फोट होने से हुई है, यानी जब न ब्रह्मांड था, न समय था, कुछ भी नहीं था, तब केवल एक बिंदु था, जिसमें सारा ब्रह्मांड समाया हुआ था. जब उस बिंदु में महाविस्फोट हुआ, तब वह बिंदु फैलता चला गया जिससे ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई.

लेकिन यहां सवाल ये है कि वह बिंदु कहां से आया? जब न अंतरिक्ष था, न समय था, कुछ था ही नहीं… तो वह बिंदु कहां लटका हुआ था, अचानक कहां से आया और कहां आया, क्यों आया, कब आया, उसे किसने बनाया और उसमें अचानक महाविस्फोट क्यों हुआ? फिलहाल इसका कोई भी जवाब आज विज्ञान के पास नहीं है और शायद हो भी नहीं सकता, क्योंकि कुछ बातें विज्ञान और भौतिकता से परे होती हैं.

कोई भी व्यवस्थित रचना बिना बुद्धि और बल के नहीं हो सकती और बुद्धि चेतन में होती है.

खैर, ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर और भी जितने भी सिद्धांत दिए गए हैं, उन सभी सिद्धांतों में सभी वैज्ञानिक जाकर एक न एक ऐसे बिंदु पर अटक ही जाते हैं, जहां भौतिक विज्ञान का कोई भी नियम या तर्क काम नहीं करता. कहा भी जाता है कि भौतिकता के सहारे ब्रह्मांड की 1 प्रतिशत गुत्थी भी नहीं सुलझाई जा सकती, लेकिन अध्यात्मिक शक्ति के सहारे पूरे ब्रह्मांड की सैर की जा सकती है.

रामायण में भगवान श्रीराम जी ने स्वयं कहा है कि कोई भी ‘युद्ध’ जीतने के लिए अध्यात्मिक शक्ति का होना बहुत जरूरी है.

हमारे देश के महान और आधुनिक गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने उस समय ब्लैक होल की खोज से संबंधित फॉर्मूला दे दिया था, जब कोई भी वैज्ञानिक ब्लैक होल की बात भी नहीं करता था. इनफिनिटी के करीब तक पहुंचने वाले रामानुजन का कहना था कि ‘उन्होंने अपने जीवन काल में जो करीब 4000 प्रमेय दी थीं, वे उन्हें उनकी नामगिरि देवी (महालक्ष्मी जी) की कृपा से प्राप्त हुई थीं’. रामानुजन ने कई बार इस बात का खुलासा किया था कि ‘नामगिरी देवी उनके सपने में आकर उन्हें गणित के गूढ़ रहस्य बताती थीं’ (इस बात का जिक्र डॉ. अब्दुल कलम और प्रोफेसर हार्डी ने भी किया है).

Indian Mathematician Srinivasa Ramanujan, mathematician ramanujan biography, important points about srinivasa ramanujan essay, Srinivasa Ramanujan inventions history, Ramanujan mathematics, भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय

इस तरह आज का विज्ञान खुद ही बार-बार एक अदृश्य शक्ति की तरफ इशारा करता रहता है, फिर भी वह इस शक्ति को नजरअंदाज करना नहीं छोड़ता, जबकि विज्ञान खुद ही ये नहीं जानता कि विज्ञान किसने बनाया. विज्ञान, विज्ञान के रहस्यों की नहीं, प्रकृति के रहस्यों की खोज में लगा रहता है.

हम जानते हैं कि जब कोई वैज्ञानिक किसी ऑटोमेटिक मशीन का निर्माण करता है, तो एक बटन दबाने पर मशीन के सभी पार्ट अपने आप कार्य करने लगते हैं. लेकिन हर ऑटोमेटिक मशीन को बनाने वाला भी तो कोई होता ही है. तो यह ऑटोमेटिक प्रकृति अपने आप कैसे बन गई?

ये ऑटोमेटिक प्रकृति किसने बनाई, ये आधुनिक विज्ञान नहीं जानता और कभी जान भी नहीं सकता, क्योंकि सत्य को ही नकार देने से कोई खोज कभी पूरी नहीं हो सकती, और यही कारण है कि आधुनिक वैज्ञानिकों को आए दिन अपने सिद्धांत बदलने पड़ते हैं, यही कारण है कि आधुनिक विज्ञान जिसे हम विकास समझ बैठे हैं, वास्तव में वह हमारी पृथ्वी को विनाश की ओर ले जा रहा है.

अगर सिर्फ ये तर्क दिया जाए कि जो दिखाई नहीं देता, वो होता भी नहीं. तो इस तर्क से कभी किसी चीज की खोज ही नहीं होनी चाहिए, क्योंकि खोज तो उन्हीं चीजों की होती है, जो दिखाई नहीं देतीं. जैसे दो पत्थरों में अग्नि को प्रकट करने का गुण है, लेकिन वह दिखाई नहीं देता, जब तक कि उन दो पत्थरों को बार-बार रगड़ा न जाए. छाछ में मक्खन भी है, लेकिन बिना मथे नहीं दिखाई देता.

Read Also : पहले देवता नजर आते थे तो आज क्यों नहीं?
Read Also : क्या डायनासोरों के समय इंसान भी थे?

brahm kya hai, bhagwan kya hai

आंखें बंद कर लेने से सूर्य का प्रकाश लोप नहीं हो जाता. कोहरे के कारण अगर सामने का रास्ता नजर नहीं आता, तो इसका मतलब ये नहीं कि आगे रास्ता ही नहीं है. विज्ञान चाहे जितनी उन्नति कर ले, लेकिन वह प्रकृति पर विजय कभी नहीं पा सकता, और ये बात खुद विज्ञान भी जानता है और ये कई बार साबित भी हो चुका है.

भारतवर्ष ही वह पवित्र भूमि है, जहां से मानव सभ्यता और संस्कृति का जन्म हुआ. जहां से विज्ञान और गणित का भी जन्म हुआ. आज विज्ञान ने जितनी भी उन्नति की है और आज तक जितनी भी उन्नति हुई है, वे सभी भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों और विद्वानों की खोज का ही परिणाम है, जिन्हें समझना आज के लोगों के लिए संभव ही नहीं है. हमारे प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों और विद्वानों की कही गईं बातों और की गईं खोजों को समझने के लिए ही आज के बड़े-बड़े वैज्ञानिक बड़ी-बड़ी रिसर्च करते रहते हैं.

आज के तो वैज्ञानिक युग के हजारों नुकसान सामने आ रहे हैं, चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है, हर मौसम कोड़े बरसा रहा है. आज प्राचीन काल की तरह मौसम को देखते हुए किसी तरह की कोई भी योजना नहीं बनाई जा सकती है.

केवल पृथ्वी ही नहीं, हमने तो अपना अंतरिक्ष भी कचरे से भर दिया है. आज के ‘महान’ वैज्ञानिक दूसरे ग्रहों पर तो जीवन तलाश रहे हैं और अपने प्रयोगों से अपनी ही पृथ्वी को बंजर बनाते जा रहे हैं. जैसे ही मानव ‘सभ्य’ बना, तब से अपनी धरती पर सांस लेना ही मुश्किल हो गया.

space junk

जबकि विमान तो पहले भी उड़ा करते थे, पुल से समुद्र पार तो पहले भी किए जाते थे, बड़े-बड़े भवन और ऊंचे-ऊंचे मंदिर तो पहले भी बना करते थे, अंतरिक्ष की सैर तो पहले भी हुआ करती थी, खेती तो पहले भी होती थी और वस्र-आभूषण और अन्य उपभोग की वस्तुओं का निर्माण तो पहले भी हुआ करता था, लेकिन तब न हवा में जहर घुला, न नदियां विषैली हुईं.


अगर हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों और विद्वानों की बातों का सही-सही मतलब पता चल जाए तो विज्ञान की और भी प्रगति के साथ-साथ पृथ्वी को भी सुखी और समृद्ध बनाया जा सकता है.

आज हमें NASA आदि की खोजें जितनी बड़ी लगती हैं, उन पर जितना आश्चर्य होता है, इन सब पर इतना आश्चर्य कभी नहीं होता, अगर हमें अपने ही प्राचीन भारतीय धर्म ग्रंथों के रहस्य पता चल जाते. अगर 90 लाख से ज्यादा पुस्तकों और ग्रंथों को जला न दिया गया होता, अगर संस्कृत के सही अर्थ समझने वालों को मार न दिया गया होता, अगर तक्षशिला, विक्रमशिला, नालंदा आदि विश्वविद्यालयों को नष्ट न कर दिया गया होता, तो कई बड़े रहस्यों पर से पर्दा भी जरूर उठता. और केवल नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला आदि को ही नहीं, समय-समय पर प्राचीन भारत के बहुत सारे धर्मग्रंथों को क्षति पहुंचाई गई और फिर कुछ तथाकथित विद्वानों ने अनुवाद के नाम पर उन्हीं धर्मग्रंथों को अपने-अपने हिसाब से लिखना-छापना शुरू कर दिया.

भारत में एक खास वर्ग की यह सोच है कि अगर उनके सामने कोई जानकारी ‘मून’ कहकर दो, तो वे इसे वैज्ञानिक शोध मानते हैं और अगर ‘चंद्रमा’ कहो, तो वे इसे अंधविश्वास कहेंगे… और ऐसे लोग हर खोज का क्रेडिट विदेशियों या अंग्रेजों को ही देना चाहते हैं, जबकि अंग्रेज खुद ही अपनी सभी खोजों के लिए भारत के मूल वेद-पुराणों पर निर्भर हैं.

प्राचीन भारत के जिन लाखों ग्रंथों को क्षति पहुंचाई गई, उनमें हमारे हजारों ऋषि-मुनियों और विद्वानों की करोड़ों सालों की कड़ी मेहनत और कठिन साधना थी. अगर ये मेहनत सुरक्षित रह पाती, तो हम सबको आज के वैज्ञानिकों की खोज में इतना आश्चर्य कभी नहीं होता, और न ही हमें विज्ञान की हर एक खोज का क्रेडिट अंग्रेजों को देना पड़ता..

न जाने कितनी ही बड़ी बीमारियों का इलाज दुनिया के पास होता, कितनी ही दुर्लभ जड़ी-बूटियों, वनस्पतियों आदि की जानकारी हमारे बीच होती, कितनी ही चीजों के सही प्रयोग और गुणों पर से पर्दा उठता, वेदों आदि में अर्थ के अनर्थ न किए जाते.. और हमें अपने तर्कों पर केवल एक वाक्य कहकर चिढ़ाया न जाता कि “तुम्हारे पास प्रमाण ही क्या है…” लेकिन सारे रहस्य, रहस्य ही रह गए, सब कुछ जलकर खाक हो गया…

Read Also : सनातन धर्म और हिंदू देवी-देवताओं से जुड़े विवाद और सवाल-जवाब


  • Tags : kya bhagwan hote hain ya nahin, bhagwan hone ke praman, bhagwan hone ke saboot, kya kabhi kisi ne bhagwan ko dekha hai, agar bhagwan hote to, bhagwan aur science, science vs bhagwan, science bhagwan ko manta hai ki nahin, bhagwan sach mein hote hain, भगवान होने के सबूत, भगवान होने का सबसे बड़ा सबूत क्या है, क्या भगवान है या नहीं, वैज्ञानिक भगवान को क्यों नहीं मानते, भगवान के होने के प्रमाण, साइंस भगवान को मानती है या नहीं, विज्ञान बड़ा है या भगवान, विज्ञान के अनुसार क्या भगवान है, ईश्वर है या नहीं, भगवान ईश्वर कहां है, भगवान कैसे होते हैं, भगवान कहां रहते हैं, ईश्वर क्या है भगवान क्या है


Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Niharika 268 Articles
Interested in Research, Reading & Writing... Contact me at niharika.agarwal77771@gmail.com

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*