Amount of Water in Universe
जल हमारे ग्रह पृथ्वी को परिभाषित करता है. जल की कहानी जीवन की कहानी है. यह ऐसा बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है, जिसके बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है. चाहे जानवर हों या पौधे, सभी को जीवित रहने के लिए जल की आवश्यकता है. हम सभी भोजन के बिना कई दिनों तक रह भी सकते हैं लेकिन पानी के बिना अधिक दिनों तक जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते, पौधे भी सूख जाते हैं. एक व्यक्ति औसतन एक दिन में 600 से 700 लीटर पानी का उपयोग कर लेता है.
पृथ्वी की सतह का लगभग 71 प्रतिशत भाग पानी से ढका है. पृथ्वी पर 326 मिलियन ट्रिलियन गैलन से अधिक पानी है. पृथ्वी के महासागरों में ग्रह के सभी जल का लगभग 96.5 प्रतिशत है. पृथ्वी पर कुल पानी का 3 प्रतिशत से भी कम मीठा पानी है (पीने के लिए उपयोगी). पृथ्वी के मीठे पानी का दो-तिहाई से अधिक हिस्सा बर्फ की चोटियों और ग्लेशियरों के रूप में मौजूद है.
जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है, महासागरों का विस्तार होता चला जाता है. एक अनुमान के मुताबिक, महासागर का स्तर वर्तमान में प्रति वर्ष 0.13 इंच की दर से बढ़ रहा है. ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर एक साल में 287 अरब टन की दर से पिघल रही है, और अंटार्कटिक की बर्फ की चादर एक साल में 134 अरब टन खो रही है. दोनों समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारक होंगे.
पृथ्वी पर पानी कैसे आया (How did water arrive on Earth)?
पृथ्वी पर पानी करोड़ों वर्षों से है, लेकिन वैज्ञानिक अभी भी इस बात पर बहस कर रहे हैं कि यह जीवनदायी जल पृथ्वी पर कहाँ से आया. इसे लेकर अलग-अलग सिद्धांत भी दिए गए हैं, जिस पर सभी वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं.
ज्यादातर वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर पानी क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं (Asteroids and Comets) से आया है, जो हमारे सौरमंडल के निर्माण के दौरान बचे हुए मलबे हैं और पानी से समृद्ध हैं. दरअसल, पृथ्वी के समुद्र का जल क्षुद्रग्रहों में पाए जाने वाले जल के समान है. यही कारण है कि लंबे समय से वैज्ञानिकों का यही सोचना है कि शुरुआती सौरमंडल के दिनों में पृथ्वी पर सबसे अधिक पानी क्षुद्रग्रहों के टकराने से आया है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अरबों वर्षों में अनगिनत धूमकेतु और क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराए हैं, और इस टकराव के फलस्वरूप हमारी पृथ्वी पर जल की मात्रा बढ़ी है. लेकिन इससे अब तक किसी को यह समझने में मदद नहीं मिली है कि पृथ्वी की सतह पर और सतह से नीचे इतना ढेर सारा पानी कहाँ से आया, क्योंकि इतना पानी केवल एस्टेरॉयड्स के टकराने से ही नहीं आ सकता.
इसे लेकर और भी सिद्धांत दिए गए हैं, जैसे पृथ्वी पर पानी एस्टेरॉयड्स और सूरज के बनने के बाद बचे धूल और गैस के विशाल बादलों से आया है, जिसे सौर नीहारिका कहा (Solar Nebula) जाता है. हाल के कुछ शोध इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि पृथ्वी के अंदर हाइड्रोजन ने महासागरों के निर्माण में भूमिका निभाई थी.
सितारों के बीच पानी (Oceans in the Stars)
NASA के मुताबिक, हमारे महासागरों की उत्पत्ति का राज सितारों (Stars) में छिपा है. बिग-बैंग के दौरान हाइड्रोजन का निर्माण हुआ और तारों के कोर में ऑक्सीजन का निर्माण हुआ. हाइड्रोजन और हीलियम जैसे तत्वों के संलयन के माध्यम से तारों के कोर में ऑक्सीजन का उत्पादन होता है. हमारी आकाशगंगा की विशाल तारकीय नर्सरी (Stellar Nursery, जहां तारों का निर्माण होता है) में भारी मात्रा में पानी, गैसीय रूप में मौजूद है.
हबल स्पेस टेलीस्कॉप के ऑब्जर्वेशन के मुताबिक, हेलिक्स नेबुला (Helix Nebula) में पानी के अणु पाए गए हैं. इसी के साथ, ओरियन नेबुला (Orion Nebula) में भी पानी के अणु मौजूद हैं और आज भी बन रहे हैं. यह नेबुला ज्यादातर हाइड्रोजन गैस से बना है. यह नेबुला इतना विशाल है और हर दिन इतना पानी बनाता है कि यह पृथ्वी के महासागरों में (जितना पानी है, उससे) 60 गुना से भी ज्यादा पानी हर दिन भर सकता है.
अन्य तारों के चारों ओर बनने वाली ग्रह प्रणालियों (Planetary Systems) में पानी के अणु प्रचुर मात्रा में हैं. 20 मिलियन वर्ष पुराने स्टार बीटा पिक्टोरिस के आसपास भी पानी के अणु पाए गए हैं [बीटा पिक्टोरिस पिक्टर तारामंडल में स्थित दूसरा सबसे चमकीला तारा है. यह हमारे सौरमंडल से 63.4 प्रकाश-वर्ष दूर स्थित है, और सूर्य से 1.75 गुना विशाल और 8.7 गुना चमकदार है. बीटा पिक्टोरिस प्रणाली (Beta Pictoris system) बहुत युवा है, केवल 20 से 26 मिलियन वर्ष पुरानी है].
हमारे सौरमंडल के महासागर (Oceans of our solar system)
अंतरिक्ष में हमारी पृथ्वी अकेली नहीं है, जहां पानी और पानी के महासागर हैं. जब आप हमारे सौरमंडल में गहराई से देखते हैं, तो आपको ऐसी बहुत सी दुनिया देखने को मिलेंगी, जिनके बारे में संकेत मिलते हैं कि उनकी बर्फीली सतहों के नीचे महासागर छिपे हुए हैं.
दूसरी दुनिया में पानी उपग्रहों, बौने ग्रहों और यहां तक कि धूमकेतुओं पर भी अलग-अलग रूपों में मौजूद है. चूंकि जीवन की संभावना के लिए केवल पानी ही पर्याप्त नहीं है. इसके लिए तो लाखों संभावनाएं चाहिए, इसलिए अब तक ब्रह्माण्ड के जितने हिस्से को हम जान सके हैं, उसमें अब तक हमारी पृथ्वी ही ऐसी है, जिस पर जीवन है.
शुक्र ग्रह पर पानी (Water on Venus)- अब तक के अध्ययनों में बताया गया है कि अतीत में या अरबों साल पहले शुक्र ग्रह पर पानी और यहां तक कि महासागर भी मौजूद थे, लेकिन ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण बढ़ते तापमान के साथ वे सब वाष्प बनकर उड़ गए होंगे. अब तक के अध्ययनों के मुताबिक, सौर मंडल का सबसे शक्तिशाली ग्रीन हाउस प्रभाव शुक्र ग्रह पर ही है.
मंगल ग्रह पर पानी (Water on Mars)- वैज्ञानिकों का अनुमान है कि घने वातावरण, प्रचुर मात्रा में पानी और वैश्विक महासागरों के साथ मंगल ग्रह भी कभी पृथ्वी जैसा ही था, लेकिन अरबों साल पहले, मंगल ने अपने सुरक्षात्मक वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र को खो दिया, जिससे यह हमारे सूर्य के प्रभावों के प्रति संवेदनशील हो गया (एक मजबूत वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी पर हमारे वातावरण की रक्षा करने में मदद करता है).
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अरबों साल पहले मंगल ग्रह में मौजूद पानी का लगभग 87 प्रतिशत खो चुका है. मंगल ग्रह पर बचा हुआ ज्यादातर पानी बर्फ में बदल चुका है या चट्टानों के नीचे फंसा हुआ है. मंगल की पहाड़ियों के किनारे से थोड़ी मात्रा में मैला, खारा पानी देखा जा सकता है.
यूरोपा पर पानी (Water on Europa)- वैज्ञानिकों को इस बात का पक्का यकीन है कि बृहस्पति के उपग्रहों में एक यूरोपा पर पानी की मौजूदगी है. माना जा रहा है कि यूरोपा की बर्फीली सतह के नीचे पानी की मात्रा पृथ्वी की तुलना में दोगुनी है. यूरोपा की सतह पर ज़्यादातर ठोस बर्फ है और इसके नीचे पानी मौजूद हो सकता है. दिलचस्प बात यह है कि यूरोपा का व्यास पृथ्वी के व्यास से कम है, लेकिन यूरोपा पर संभवतः पृथ्वी के सभी महासागरों की तुलना में पानी की मात्रा दोगुनी हो सकती है.
गेनीमेड पर पानी (Water on Ganymede)- यह हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा चंद्रमा (उपग्रह) है, और यह अपने स्वयं के चुंबकीय क्षेत्र वाला एकमात्र उपग्रह है. हाल के अध्ययनों से संकेत मिलता है कि यहां एक बड़ा भूमिगत खारे पानी का महासागर मौजूद है. गैनीमेड की ठोस सतह चट्टान के साथ मिश्रित बर्फ से बनी है. वैज्ञानिकों का यह अनुमान है कि गेनीमीड के भूमिगत महासागर में पृथ्वी पर मौजूद सभी महासागरों से भी ज्यादा पानी हो सकता है.
टाइटन पर पानी (Water on Titan)- वैज्ञानिकों के मुताबिक, टाइटन सौरमंडल का एकमात्र ऐसा अन्य स्थान है जहां पृथ्वी की तरह ही बादलों से बरसने वाले तरल पदार्थों का एक चक्र है. यह भी माना जाता है कि टाइटन पर बर्फ की परत से लगभग 30 मील (50 किमी) नीचे एक नमकीन उपसतह महासागर (Salty subsurface Ocean) है, हालाँकि अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है.
प्लूटो पर पानी (Water on Pluto)- हालाँकि, प्लूटो का आंतरिक भाग गर्म है, और कुछ वैज्ञानिकों को लगता है कि इसके अंदर एक महासागर भी हो सकता है. प्लूटो पृथ्वी के चंद्रमा के व्यास का लगभग दो-तिहाई है और इसमें संभवतः पानी की बर्फ के आवरण से घिरा एक चट्टानी कोर है. प्लूटो पर कुछ सैकड़ों मील लंबी रहस्यमयी भ्रंश रेखाएँ इस बात की ओर इशारा करती हैं कि प्लूटो में एक छिपा हुआ उपसतह महासागर हो सकता है.
इसी के साथ, वैज्ञानिकों ने कई एक्सोप्लेनेट (Exoplanets) में भी जल की मौजूदगी के संकेत देखे हैं.
क्वासर में पानी (Water in Space Quasar)
साल 2011 में खगोलविदों ने ब्रह्मांड में अब तक पाए गए सबसे बड़े और सबसे पुराने जलाशय की खोज की थी, जिसे क्वासर कहा जाता है और जो हमसे 12 अरब से अधिक प्रकाश वर्ष दूर है. माना जाता है कि इस क्वासर में पृथ्वी के सभी महासागरों की तुलना में 140 ट्रिलियन गुना अधिक पानी है. इस क्वासर के आसपास के जल वाष्प का पता लगाने और पुष्टि करने के लिए खगोलविदों ने दो अलग-अलग दूरबीनों का उपयोग किया था.
वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रारंभिक ब्रह्मांड में भी जलवाष्प मौजूद था. खगोलविदों ने दूरस्थ ब्रह्मांड में भी जलवाष्प की मौजूदगी की उम्मीद की थी, लेकिन इससे पहले इतनी दूर इसका पता नहीं लगाया था. पासाडेना, कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के एक वैज्ञानिक मैट ब्रैडफोर्ड ने कहा था कि यह दर्शाता है कि ब्रह्माण्ड के शुरुआती दिनों से पूरे ब्रह्माण्ड में पानी मौजूद है.
शोधकर्ताओं मानना है कि एपीएम 08279+5255 नामक क्वासर में हमारी गैलेक्सी मिल्की-वे की तुलना में 4,000 गुना अधिक जलवाष्प है, क्योंकि मिल्की वे का ज्यादातर पानी बर्फ में जमा हुआ है.
क्वासर क्या हैं (What are Quasars)?
कई खगोलविदों का मानना है कि क्वासर ब्रह्मांड में अभी तक खोजे गए सबसे दूर के पिंड हैं. वे सूर्य से एक खरब गुना अधिक चमकीले हो सकते हैं. खगोलविदों का मानना है कि क्वासर उन आकाशगंगाओं में स्थित हैं जिनके केंद्र में ब्लैक होल हैं. क्वासर बहुत चमकीले, दूर और सक्रिय सुपरमैसिव ब्लैक होल भी हो सकते हैं जो सूर्य के द्रव्यमान से लाखों से अरबों गुना अधिक हैं.
क्वासर हमसे बहुत दूर हैं, इसलिए वे जो प्रकाश छोड़ते हैं, उन्हें पृथ्वी तक पहुंचने में अरबों साल लग जाते हैं. ब्लैक होल क्वासर को अपनी ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं. क्वासर भारी मात्रा में ऊर्जा छोड़ते हैं. क्वासर रेडियो तरंगें, एक्स-रे, गामा-किरणें, पराबैंगनी किरणें और दृश्य प्रकाश छोड़ते हैं. यह ऊर्जा इतनी ज्यादा होती है कि इनकी चमक के आगे पूरी गैलेक्सी की चमक फीकी पड़ जाती है.
इतनी चमक के बावजूद, पृथ्वी से उनकी बड़ी दूरी के कारण क्वासर को खाली आँखों से नहीं देखा जा सकता है. ब्रह्मांड में सबसे चमकीले पिंडों में से एक क्वासर से ऊर्जा को पृथ्वी के वायुमंडल में पहुंचने में अरबों वर्ष लग जाते हैं. इस कारण से, क्वासरों का अध्ययन खगोलविदों को ब्रह्मांड के प्रारंभिक चरणों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है.
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