Bhimashankar Jyotirlinga Temple Maharashtra
भगवान शिव को समर्पित भीमाशंकर मंदिर (Bhimashankar Temple) 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यह मंदिर महाराष्ट्र के 5 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. अन्य 4 ज्योतिर्लिंग हैं-
श्री वैद्यनाथ,
श्री नागेश्वर,
त्र्यंबकेश्वर और
श्री घृष्णेश्वर.
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर महाराष्ट्र में पुणे शहर (Pune in Maharashtra) से लगभग 70 किमोमीटर की दूरी पर भीमाशंकर अभ्यारण्य (Bhimashankar Sanctuary) में स्थित है. यह मंदिर भीमा नदी का स्रोत (उद्गम स्थल) भी है. भीमाशंकर मंदिर न केवल अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिये प्रसिद्ध है, बल्कि प्राकृतिक सौष्ठव के कारण भी एक दर्शनीय स्थल है. भीमाशंकर सह्याद्रि की शोभा हैं. ऐसी प्राकृतिक सुंदरता कि मन हरा-भरा हो जाये.
सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के नयनाभिराम नजारे हैं जिसमें कहीं गगनचुम्बी पहाड़ियाँ, कहीं गहरी घाटियाँ, कहीं बिखरी जलराशि तो कहीं झरना भी. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग तक पहुँचने का पूरा मार्ग ही दर्शनीय है और प्रकृति-प्रेमी स्तब्ध घंटों तक एक-एक दृश्य को मंत्रमुग्ध निहारते रहते हैं. बरसात में तो यहाँ स्वर्ग ही उतर आता है. सर्दियों के दौरान ट्रेकर्स को यहाँ ट्रेकिंग करना बहुत ही आकर्षक लगेगा.
मंदिर के शिखर पर पहुँचने के बाद लगभग ढाई सौ सीढ़ियां उतरने के बाद मुख्य मंदिर तक पहुँचा जा सकता है. हालाँकि सीढ़ियां ज्यादा ऊंची नहीं हैं, मार्ग चौड़ा है और पूरा रास्ता छायादार है. बुजुर्ग अथवा दिव्यांग पर्यटकों के लिए मंदिर तक आने-जाने के लिए पालकी की व्यवस्था भी उपलब्ध है. मंदिर तक पहुँचने के रास्ते में स्थान-स्थान पर चढ़ावे के लिये फूल-बेलपत्र आदि की दुकानें हैं ही.
मंदिर के आसपास अन्य दर्शनीय स्थानों में महत्त्व के हैं- भीमा नदी का उद्गम स्थल, हनुमान झील, साक्षी विनायक, नागफनी आदि. वस्तुत: यह पूरा क्षेत्र ही अभ्यारण्य का हिस्सा है. यहाँ की जैव-विविधता और कतिपय स्थानों पर वनों की सघनता भी सुंदरता की अभिवृद्धि करती है और स्थान को दर्शनीय बना देती है. आपको यहाँ स्थान-स्थान पर वन-औषधि एवं जड़ी-बूटियों का विक्रय करने वाले लोग भी मिल जायेंगे.
मंदिर की संरचना एवं शिवलिंग
भीमाशंकर शिवलिंग का आधा भाग भगवान शिव और आधा भाग माता पार्वती जी का प्रतीक है. मंदिर में भगवान ‘अर्धनारीश्वर’ के रूप में विराजमान हैं. भीमाशंकर मंदिर के पास कमलजा मंदिर है जहाँ पार्वती जी की पूजा-अर्चना होती है. उन्होंने दैत्यों के खिलाफ लड़ाई में भगवान शिव की मदद की थी. इस मंदिर में वे एक कमल पर विराजमान हैं.
मंदिर के पीछे स्थित मोक्षकुंड को वह स्थान माना जाता है जहां महर्षि कौशिक ने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी. भीमाशंकर की कथा भगवान शिव द्वारा एक असुर के वध से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि यहां भगवान शिव प्रकाश के एक उग्र स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे.
भीमाशंकर मंदिर काले पत्थर से निर्मित है तथा इसे नागर शैली की वास्तुकला निरूपित किया जाता है. मंदिर का मुख्य द्वार कई देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ ठोस लकड़ी से बना है. मंदिर का मंडप विशाल है जिसके मध्य में गर्भगृह की ओर मुँह किया हुआ कछुआ बनाया गया है. मण्डप के स्तम्भ अलंकृत तथा दर्शनीय हैं. मंदिर के ठीक सामने एक विशाल प्राचीन घंटा है, जिस पर वर्ष 1729 लिखा हुआ है.
शनिदेव की प्रतिमा है जिससे कुछ ही दूरी पर दो नंदी बैल अलंकृत रूप में बैठे हुए हैं. गर्भगृह आयताकार है तथा सीढ़ियों से उतरकर नीचे जाना होता है जहाँ विशाल शिवलिंग के दर्शन किए जा सकते हैं. मंदिर संरचना के चारों ओर अनेक प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं जिनमें भगवान श्रीकृष्ण, हनुमान जी आदि प्रमुख हैं.
छत्रपति शिवाजी, पेशवा बालाजी विश्वनाथ और रघुनाथ पेशवा आदि नियमित रूप से इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए आया करते थे. छत्रपति शिवाजी ने भीमाशंकर मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए विशेष सुविधायें उपलब्ध करवाई थीं. मंदिर में प्राचीन तथा नवीन निर्माण का समागम है. उदाहरण के लिये मंदिर के शिखर का निर्माण 18वीं सदी में नाना फड़नवीस द्वारा करवाया गया था.
महत्वपूर्ण तथ्य
मंदिर सुबह 4:30 बजे खुलता है और शाम को 9:30 बजे बंद हो जाता है. मंदिर इस दौरान विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन भी करता है. भक्त दोपहर और शाम की आरती जैसे इन अनुष्ठानों का हिस्सा बन सकते हैं. मंदिर प्रशासन तीर्थयात्रियों को स्वयं गेंदे और बिल्व के पत्तों से ज्योतिर्लिंग का अभिषेक और पूजा करने की अनुमति देता है. महाशिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा, गणेश चतुर्थी और दीपावली इस मंदिर में मनाये जाने वाले मुख्य त्यौहार हैं.
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