What is El Nino and La Nino : अल नीनो और ला नीना क्या है? इन दोनों में क्या अंतर है?

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What is El Nino and La Nino

महासागर खारे पानी का एक सतत भंडार है जो पृथ्वी की सतह के 70 प्रतिशत से अधिक हिस्से को कवर करता है. भूगोलवेत्ता महासागर को पाँच प्रमुख भागों में विभाजित करते हैं- प्रशांत, अटलांटिक, हिन्द, आर्कटिक और दक्षिणी.

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महासागर पृथ्वी के मौसम और जलवायु में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मौसम बहुत हद तक समुद्र के तापमान पर निर्भर करता है. ये बड़ी मात्रा में गर्मी, पानी, नमी और कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित (Absorbing), भंडारण (Storing) और परिवहन (Transporting) करके पृथ्वी पर तापमान को संतुलित बनाये रखते हैं और हमारे ग्रह की जलवायु और मौसम को आकार देते हैं. महासागर दुनिया की 70 प्रतिशत से अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं.

अल नीनो और ला नीना (El Nino and La Nina), दोनों ही मौसमी घटनाएँ महासागर से जुड़ी हुई हैं. दोनों परस्पर विरोधी मौसम पैटर्न (Weather Pattern) हैं, जो पूर्वी मध्य भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र के तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण हो सकते हैं. एल नीनो और ला नीना, दोनों हर 4-5 साल में आते हैं और आमतौर पर 9-12 महीने तक चलते हैं. ला नीना की तुलना में एल नीनो अधिक बार होता है.
आज इन दोनों घटनाओं को समझने का प्रयास करते हैं-

ला नीना क्या है (What is La Nina)?

स्पेनिश में ला नीना का अर्थ ‘छोटी लड़की’ होता है. ला नीना को कभी-कभी एल विएजो या ‘कोल्ड इवेंट’ (El Viejo or anti-El Nino) भी कहा जाता है जिसका अर्थ है ‘अल नीनो का विरोधी’ (सिर्फ एक ठंडी घटना), क्योंकि ला नीना का प्रभाव अल नीनो के विपरीत होता है.

ला नीना एक मौसम पैटर्न है जो प्रशांत महासागर में शुरू होता है. ला नीना की घटना तब होती है, जब पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र (Eastern Tropical Pacific) में समुद्र का पानी सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है. ला नीना घटनाओं के दौरान, व्यापारिक हवाएँ सामान्य से भी अधिक तेज हो जाती हैं, जो अधिक गर्म पानी को एशिया की ओर धकेलती हैं. उष्णकटिबंधीय प्रशांत के पूर्वी और मध्य भाग और भी ठंडे हो जाते हैं, जबकि पश्चिम गर्म हो जाता है और अधिक वर्षा होती है.

बारिश के बादल आमतौर पर गर्म समुद्र के पानी के ऊपर बनते हैं. जब तेज हवाएँ इस गर्म पानी को हिलाती हैं, तो बादल और तूफान भी चलते हैं. सामान्य परिस्थितियों में, प्रशांत महासागर के ऊपर की हवाएँ धीरे-धीरे गर्म पानी को पश्चिम की ओर धकेलती हैं. वह गर्म पानी दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट से लेकर इंडोनेशिया तक जाता है. जैसे ही गर्म पानी चलता है, समुद्र के तल से ठंडा पानी धीरे-धीरे ऊपर उठकर उसकी जगह ले लेता है.

ला नीना वाले वर्ष में, प्रशांत महासागर के ऊपर हवाएँ सामान्य से बहुत अधिक तेज होती हैं. ऐसा आमतौर पर हर कुछ वर्षों में एक बार होता है. ला नीना के दौरान हवाएँ इतनी तेज होती हैं कि वे समुद्र के बहुत सारे गर्म पानी को पश्चिम में इंडोनेशिया की ओर धकेल देती हैं. और इसका मतलब है कि दक्षिण अमेरिका के पास बहुत सारा ठंडा पानी सतह पर आ जाता है. इससे पूर्वी प्रशांत महासागर का पानी सामान्य से कुछ डिग्री अधिक ठंडा हो जाता है. समुद्र के तापमान में यह छोटा सा बदलाव भी दुनिया भर के मौसम को प्रभावित कर सकता है.

ला नीना के दौरान समुद्र का गर्म पानी और बादल पश्चिम की ओर बढ़ते हैं. इसका अर्थ है कि इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसी जगहों पर सामान्य से कहीं अधिक बारिश हो सकती है. और दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे स्थान बहुत शुष्क (very dry) हो सकते हैं. ला नीना मौसम की स्थिति के कारण दुनिया के अन्य हिस्सों में भी अधिक तूफान और बिजली गिरने की स्थिति बन सकती है. ला नीना की घटना होने से एक साल पहले तक मौसम के पैटर्न की भविष्यवाणी की जा सकती है.

भारत में ला नीना का प्रभाव

आमतौर पर, ला नीना भारतीय मानसून के लिए फायदेमंद माना जाता है, क्योंकि हमारा भारत कृषि प्रधान देश है. इसके अलावा, भारतीय कृषि प्रणाली काफी हद तक मानसून की ताकत और वर्षा की मात्रा पर निर्भर करती है. ला नीना प्रभाव से भारत में मानसून में पर्याप्त वर्षा होती है, जिससे कृषि उपज को बढ़ावा मिलता है. बड़ी कृषि उपज देश की आर्थिक वृद्धि को बढ़ाती है. इसलिए ला नीना स्थिति भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए काफी अनुकूल होती है. दूसरी ओर, भारी वर्षा से कभी-कभी कुछ क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है, जिससे लोगों के जीवन और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ला नीना आमतौर पर भारत में सामान्य सर्दियों की तुलना में अधिक ठंड लाता है.

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2010 की ला नीना घटना ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के इतिहास की सबसे भीषण बाढ़ों में से एक से संबंधित है. 10,000 से अधिक लोगों को स्थान खाली करने के लिए मजबूर किया गया था, और आपदा से 2 अरब डॉलर से अधिक की क्षति का अनुमान लगाया गया था.


अल नीनो क्या है (What is El Nino)?

अल नीनो और ला नीना, दोनों ही मौसमी घटनाएँ प्रशांत महासागर में शुरू होती हैं, लेकिन दोनों लगभग हर तरह से विपरीत हैं. इन दोनों के परिणामस्वरूप समुद्री परिवर्तनों के साथ-साथ वायुमंडलीय स्थितियों में भी परिवर्तन होता है. ला नीना के कारण पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का पानी सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है. जबकि अल नीनो के कारण उसी क्षेत्र में पानी सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है (अल नीनो के कारण समुद्र की सतह का तापमान बढ़ जाता है). इसलिए, जो क्षेत्र ला नीना वर्षों के दौरान सूखे से प्रभावित होते हैं, वहां अल नीनो वर्षों में बहुत अधिक बारिश हो सकती है.

अल नीनो की घटना आमतौर पर दिसंबर के आसपास चरम पर होती है. क्रिसमस के समय के आसपास घटित होने की प्रवृत्ति के कारण इस घटना को अल नीनो के नाम से जाना जाने लगा. अल नीनो का स्पैनिश में अर्थ है “बच्चा” (The boy child) और इसका नाम शिशु यीशु के नाम पर रखा गया है. एल नीनो को सबसे पहले पेरू के मछुआरों ने पेरू के तट पर असामान्य रूप से गर्म पानी की उपस्थिति के रूप में पहचाना था.

एल नीनो के कारण पेरू तट का ठंडा सतही जल गर्म हो जाता है. जब पानी गर्म होता है, तो सामान्य व्यापारिक हवाएँ खो जाती हैं या अपनी दिशा उलट देती हैं. इसलिए, नमी से भरी हवाओं का प्रवाह पश्चिमी प्रशांत (उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशिया के पास का क्षेत्र) से पेरू के तट की ओर होता है. इसके कारण अल नीनो वर्षों के दौरान पेरू में भारी बारिश होती है जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में सामान्य मानसूनी बारिश नहीं होती है. तापमान और दबाव का अंतर जितना अधिक होगा, भारत में वर्षा की कमी उतनी ही अधिक होगी.

अल नीनो की स्थिति प्रशांत महासागर में उत्पन्न होती है, लेकिन यह इतनी बड़ी होती है कि यह पूरी दुनिया के मौसम को प्रभावित करती है. इस घटना के दौरान समुद्र का तापमान, विशेषकर प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों का तापमान बढ़ जाता है. दुनिया के जिस हिस्से में समुद्र गर्म होता है, वहां अधिक बादल बनते हैं और अधिक बारिश होती है. प्रशांत महासागर में, भूमध्य रेखा के पास, सूर्य समुद्र के पानी को विशेष रूप से गर्म कर देता है.

अल नीनो वाले वर्षों में, अल नीनो के वर्षों में, दक्षिण अमेरिका और कैलिफोर्निया में समुद्र का पानी सामान्य तापमान से ऊपर गर्म हो जाता है. समुद्र के इस गर्म हिस्से पर कई बारिश वाले बादल बनते हैं और अंतर्देशीय की ओर बढ़ते हैं (move inland), जिससे दक्षिण और मध्य अमेरिका और संयुक्त राज्य अमेरिका में सामान्य से अधिक बारिश होती है.

अल नीनो के दौरान व्यापारिक हवाएँ कमजोर हो जाती हैं. गर्म पानी को पूर्व की ओर, अमेरिका के पश्चिमी तट की ओर धकेल दिया जाता है. तो भूमध्य रेखा के साथ गर्म सतह का पानी दक्षिण अमेरिका के तट पर जमा हो जाता है और फिर उत्तर में कैलिफ़ोर्निया की ओर और दक्षिण में चिली की ओर बढ़ता है.

अल नीनो का प्रशांत तट के समुद्री जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है. दक्षिण अमेरिका के तट पर आमतौर पर ठंडे पानी में रहने वाली कई मछलियाँ दूर चली जाती हैं या मर जाती हैं. गर्म तटीय जल और खराब मछली पकड़ने की इस स्थिति को लोग “अल नीनो” कहते हैं जिसका अर्थ है “मसीह का बच्चा”, क्योंकि कभी-कभी यह क्रिसमस के समय आता है.

अल नीनो का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है?

अल नीनो घटना कोई नियमित चक्र नहीं है, इनका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता. तो हमें कैसे पता चलेगा कि पृथ्वी के चारों ओर समुद्र के तापमान में क्या हो रहा है? इसका सबसे अच्छा तरीका है अंतरिक्ष में जाना और वहां से पृथ्वी को देखना! जहाँ समुद्र गर्म होता है, वहाँ समुद्र का स्तर थोड़ा ऊँचा होता है. अंतरिक्ष से देखने पर पता चलेगा कि जहां समुद्र सबसे गर्म होता है, वहां पानी की सतह (सबसे ठंडे क्षेत्रों की तुलना में) लगभग 2 मीटर (7 फीट से थोड़ा कम) ऊंचा हो सकता है.

अल नीनो का भारत पर प्रभाव

आमतौर पर, अल नीनो सूखे का कारण बनता है. भारत, ऑस्ट्रेलिया में यह सूखे की स्थिति ला सकता है. इससे फसल उत्पादकता काफी हद तक प्रभावित होती है. कुछ समय में यह भी देखा गया है कि अल नीनो सूखा नहीं लाता बल्कि भारी वर्षा कराता है. दोनों ही स्थितियों में इससे भारी क्षति होती है.

1950 के बाद से, भारत को जिन 13 सूखे का सामना करना पड़ा, उनमें से 10 अल नीनो वर्ष के दौरान और एक ला नीना वर्ष में हुआ. ऐसा इसलिए है क्योंकि सामान्य तौर पर, अल नीनो का मतलब भारत के लिए औसत से कम बारिश है.

सर्दियों के दौरान अल नीनो भारतीय उपमहाद्वीप में गर्म स्थिति का कारण बनता है और गर्मियों के दौरान शुष्क और कमजोर मानसून का कारण बनता है. इसलिए, यह सूखे जैसी स्थिति पैदा करता है और कृषि को प्रभावित करता है. धान, मूंगफली, मक्का, ग्वार, अरंडी, मूंग, अरहर और बाजरा जैसी फसलों को अल नीनो की स्थिति से बहुत नुकसान होता है.

अल नीनो के नकारात्मक पराभव

अल नीनो के कारण गंभीर सूखा और संबंधित खाद्य असुरक्षा, बाढ़, बारिश और तापमान में वृद्धि से बीमारियों का प्रकोप, कुपोषण, गर्मी का तनाव और श्वसन संबंधी बीमारियों सहित कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं. अल नीनो से संबंधित बाढ़ दुनिया के कुछ हिस्सों में हैजा, डेंगू और मलेरिया में वृद्धि से जुड़ी है, जबकि सूखे से जंगल की आग लग सकती है जो श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकती है. हालाँकि कहीं-कहीं पर अल नीनो का प्रभाव कभी-कभी सकारात्मक भी हो सकता है. उदाहरण के लिए, अल नीनो अटलांटिक में तूफान की घटनाओं को कम कर देता है.


अल नीनो और ला नीना में मुख्य अंतर (Difference between el nino and la nino)

अल नीनो को अक्सर गर्म चरण कहा जाता है, जबकि ला नीना को ठंडा चरण कहा जाता है.

अल नीनो की घटनाएँ मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र के गर्म होने से जुड़ी हैं, जबकि ला नीना की घटनाएँ इसके विपरीत हैं, जिनमें इन्हीं क्षेत्रों में लगातार ठंडक बनी रहती है।

अल नीनो के दौरान पूर्व से पश्चिम की ओर चलने वाली व्यापारिक हवाएँ कमजोर हो जाती हैं, जबकि ला नीना के दौरान पूर्व से पश्चिम की ओर चलने वाली व्यापारिक हवाएँ तेज हो जाती हैं.

अल नीनो में हवा की गति कम होती है, जबकि ला नीना में हवा की गति बहुत तेज होती है.

अल नीनो में कोरिओलिस बल की शक्ति कम हो जाती है, जबकि ला नीना में कोरिओलिस बल की ताकत बढ़ जाती है.

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