Factors Affecting Climate Change : जलवायु क्या है, जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?

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(फोटो क्रेडिट : सोशल मीडिया)

जलवायु क्या है- मौसम (Weather) और जलवायु (Climate) में अंतर है. इस अंतर को आप अपने बोलने के तरीके से आसानी से समझ सकते हैं, जैसे-

आज मौसम कैसा है? कल की तुलना में आज मौसम बहुत अच्छा है.
भारत की जलवायु कैसी है? कई दशकों में भारत की जलवायु बदल गई है.

किसी स्थान पर 30 साल या उससे अधिक समय तक मौसम की औसत स्थिति जलवायु कहलाती है. पृथ्वी के अलग-अलग भागों में अलग-अलग प्रकार की जलवायु है. उदाहरण के लिए, सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा (विषुवत रेखा) के ऊपर सीधी पड़ती हैं, इसलिए भूमध्य रेखा के करीब वाले क्षेत्र गर्म होते हैं, अतः वहां की जलवायु गर्म होती है. जबकि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव ठंडे हैं, क्योंकि वहां सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा सबसे कम पहुंच पाती है, अतः ध्रुवों की जलवायु ठंडी होती है.

वातावरण में अल्पकालिक (मिनट से महीने तक) परिवर्तन को मौसम कहते हैं, जबकि वातावरण में दीर्घकालिक परिवर्तन को जलवायु कहते हैं. आमतौर पर, स्थानों पर मौसम मिनट-दर-मिनट, घंटे-दर-घंटे, दिन-प्रतिदिन और मौसम-दर-मौसम बदल सकता है, जबकि जलवायु एक लंबे समय अंतराल पर बदलता है.

भारत की जलवायु कैसी है (How is the Climate of India)-

भारत को उष्णकटिबंधीय मानसून (Tropical Monsoon) प्रकार की जलवायु वाले देश के रूप में जाना जाता है. भारत के बड़े आकार, इसकी अक्षांशीय सीमा, उत्तर में हिमालय और दक्षिण में हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के परिणामस्वरूप भारत के उपमहाद्वीप में तापमान और वर्षा के वितरण में बहुत भिन्नता है.

जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting climate)-

किसी स्थान के तापमान, आर्द्रता, वायुदाब, मेघ, वर्षण और पवनें आदि जलवायु के अलग-अलग तत्व हैं. इन सभी तत्वों में तापमान, वायुदाब, वर्षण और पवनें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इन तत्वों का वैश्विक प्रभाव अधिक होता है. ये तत्व अलग-अलग कारकों जैसे अक्षांश, ऊँचाई, महाद्वीपीयता, समुद्री जलधाराएँ, सूर्यातप, प्रचलित पवनें, ढाल और अभिमुखन, प्राकृतिक वनस्पति और मृदा (मिट्टी आदि) द्वारा प्रभावित होते हैं.

अक्षांश (Latitude)- पृथ्वी की गोलाई के कारण इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अक्षांशों के अनुसार अलग-अलग होती है. इससे तापमान भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर सामान्यतः घटता चला जाता है.

पृथ्वी द्वारा प्राप्त सूर्यातप (Insolation या Solar Irradiation) की मात्रा सूर्य की किरणों के आपतन कोण (Incidence Angle) पर निर्भर करती है. पृथ्वी के अपने अक्ष (Tilt) पर झुकाव के कारण मध्यान्ह या दोपहर (Noon) के समय उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सूर्य की किरणें लगभग लंबवत पड़ती हैं. लेकिन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ध्रुवों की ओर जाने पर सूर्य की किरणें तिरछी होती जाती हैं. इस कारण भूमध्य रेखीय क्षेत्रों से ध्रुवों की ओर तापमान में कमी आती है.

ऊँचाई (Altitude)- वायुमंडल मुख्य रूप से धरती से विकिरित होने वाली दीर्घ तरंगों द्वारा गर्म होता है [हमारे चारों ओर का वातावरण या हवा सीधे सूर्य की किरणों से गर्म नहीं होती है. सूर्य की किरणें सबसे पहले पृथ्वी की सतह को गर्म करती हैं, जो बदले में ऊष्मा को विकीर्ण करना (फैलाना या प्रसारित करना) शुरू कर देता है, जिससे हमारे चारों ओर की हवा गर्म होने लगती है. सतह के पास की हवा गर्म हो जाती है.]

इसी कारण धरातल के निकट के स्थान, ऊँचाई पर स्थित स्थानों की अपेक्षा ज्यादा गर्म होते हैं (ऊँचाई के साथ-साथ तापमान में कमी होने लगती है). लेकिन ऊँचाई के साथ तापमान में कमी होने की दर सदैव स्थिर नहीं रहती. यानी यह दर स्थान और मौसम के अनुसार बदलती रहती है. हालाँकि, आमतौर पर प्रत्येक 165 मीटर की ऊँचाई पर तापमान 1° सेल्सियस या प्रत्येक 1000 मीटर की ऊँचाई पर 6.5° सेल्सियस कम हो जाता है.

महाद्वीपीयता (Continentality)- महाद्वीपीयता या समुद्र से दूरी भी किसी स्थान विशेष की जलवायु को प्रभावित करती है. जलीय निकायों (जल के आसपास वाले स्थान) की तुलना में स्थलीय भाग जल्दी गर्म और ठंडे होते हैं. इस कारण समुद्री क्षेत्रों की अपेक्षा महाद्वीपीय क्षेत्रों का तापमान अधिक होता है. इसलिए समुद्र के नजदीक वाले स्थानों पर मौसम एक समान रहता है (समकारी प्रभाव). समुद्र से जितना दूर जाते हैं, मौसम असमान होने लगता है.

जैसे- मुंबई, चेन्नई आदि जगहों का मौसम सालभर एक समान महसूस होता है, जबकि दिल्ली के मौसम में वर्ष में कई उतार-चढ़ाव दिखाई देते हैं.

महासागरीय जलधाराएं (Ocean Currents)- गर्म और ठंडी महासागरीय जलधाराएं तटीय भागों को प्रभावित करती हैं. गर्म महासागरीय जलधाराएँ ठंडे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं और ठंडी महासागरीय धाराएँ गर्म क्षेत्रों में तापमान को कम कर देती हैं.

गल्फ स्ट्रीम या उत्तरी अटलांटिक प्रवाह जैसी गर्म महासागरीय जलधाराओं के कारण पश्चिमी यूरोप के देशों का मौसम गर्म बना रहता है. इससे इस क्षेत्र में स्थित बंदरगाह सालभर खुले रहते हैं. गर्म जलधाराओं के ऊपर बहने वाली हवाओं के कारण वर्षा भी होती है.

समान अक्षांश पर उत्तरी-पूर्वी कनाडा के तट पर स्थित बंदरगाह, यहां बहने वाली लेब्राडोर ठंडी जलधारा के कारण कई महीनों तक बर्फ से ढके रहते हैं. ठंडी जलधाराएं गर्मी के मौसम के तापमान को भी कम कर देती हैं. विशेष रूप से तब, जब वे समुद्र की ओर से आने वाली पवनों द्वारा धरातल की ओर बढ़ती हैं.

नोट – जो जल जलधाराएँ निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर (Low Latitudes to High Latitudes) चलती हैं, गर्म जलधाराएँ कहलाती हैं. जबकि जो जलधाराएँ उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर चलती हैं, उन्हें ठंडी जलधाराएँ कहते हैं.

या, जब गर्म महासागरीय जल ठंडे क्षेत्रों की ओर बढ़ता है तो इसे गर्म महासागरीय धारा कहते हैं, वहीं जब ठंडी महासागरीय जलधारा गर्म क्षेत्रों की ओर बढ़ती है तो इसे ठंडी महासागरीय धारा कहते हैं.

स्थानीय पवनें (Local Winds)- स्थानीय पवनें अपनी प्रकृति के अनुसार (यानी ठंडी या गर्म पवनें) जिन-जिन क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं, उन सबको प्रभावित करती हैं. जैसे उत्तर भारत में गर्मियों के मौसम में चलने वाली भीषण गर्म स्थानीय पवनें, जिन्हें ‘लू’ कहा जाता है, हीट वेव्स का कारण बनती हैं. इसी प्रकार, चिनूक पवनें (गर्म व शुष्क हवा) उत्तरी अमेरिका के रॉकी पर्वत के पूर्वी भाग में स्थित चरागाहों (पशुओं के चरने का स्थान) को हिम से मुक्त कर देती हैं.

उच्चावचीय दशाएं (Altitude Conditions)- जलवायु पर उच्चावचीय दशाओं का भी प्रभाव पड़ता है. निचले क्षेत्रों की तुलना में पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है, क्योंकि पर्वत हवाओं के लिए अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं. अपने चलने के मार्ग में पर्वतीय अवरोध के कारण हवाएं पर्वतीय ढाल के सहारे ऊपर उठती हैं. ये हवाएँ ऊँचाई के साथ-साथ ठंडी होती जाती हैं, जिस कारण आर्द्र या नम हवाएं संघनित होकर वर्षा करती हैं.

(गर्म होने पर हवा हल्की हो जाती है और ऊपर उठती है. जैसे-जैसे यह ऊपर उठती है, यह फैलती है और अपनी ऊष्मा ग्रहण करने की क्षमता खो देती है, जिससे तापमान कम हो जाता है. परिणामस्वरूप, संघनन होता है और मेघपुंज बादल बनते हैं).

प्राकृतिक वनस्पति और मृदा (Natural Vegetation and Soil)- प्राकृतिक वनस्पति किसी भी स्थान या प्रदेश के तापमान को बहुत प्रभावित करती है. उदाहरण के लिए, अमेजन बेसिन क्षेत्र घने वर्षा वनों से ढका हुआ है, इसलिए आसपास के स्थानों की तुलना में यह क्षेत्र सूर्य की कम ऊष्मा प्राप्त कर पाता है. इस कारण यह क्षेत्र खुले स्थानों की तुलना में अधिक ठंडा है.

इसी प्रकार, गहरे रंग की मृदा, हल्के रंग की मृदा की तुलना में अधिक ऊष्मा अवशोषित (Absorbs More Heat) करती है. शुष्क मृदा तापमान परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होती है, जबकि चिकनी मृदा जैसी नम मृदा देर से गर्म और ठंडी होती है. मृदाओं में इस प्रकार के अंतर से अलग-अलग प्रदेशों के तापमान में छोटे-छोटे परिवर्तन देखे जा सकते हैं.

ढाल, छाया और अभिमुखन (Slope, Shade and Orientation)- मंद ढाल की तुलना में तीव्र ढाल वाले स्थानों पर तापमान में अधिक तीव्र परिवर्तन देखा जाता है. जैसे आल्पस पर्वत का दक्षिणी ढाल सूर्य की ऊष्मा अधिक प्राप्त करता है, इसलिए इसका दक्षिणी ढाल अंगूर की खेती के लिए अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त है और वनस्पतियों के मामले भी यह ढाल काफी समृद्ध है.

मानवीय गतिविधियों का प्रभाव (Impact of Human Activities)- जिस स्थान के लोग प्रकृति की रक्षा करना जानते हैं, और जिस स्थान के लोग प्रकृति के साथ लगातार खिलवाड़ करते रहते हैं, एक समय उन दोनों स्थानों की जलवायु में अंतर देखने को मिल जाता है. मानव इतिहास में, पहले के लोग जो प्रकृति की पूजा करते थे, और जनसँख्या भी कम होती थी, उसकी तुलना में आज के वैज्ञानिक युग (पेड़ों की जमकर कटाई, प्रदूषण, जनसँख्या वृद्धि आदि) की जलवायु में बहुत अंतर देखने को मिलता है.

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LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

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