हनुमान जी (Hanuman ji) को संकटमोचन (Sankat mochan) क्यों कहा जाता है, क्योंकि उनके पास हर समस्या का समाधान है. उनके पास हर समस्या का समाधान क्यों है, क्योंकि इस पूरी सृष्टि में एकमात्र हनुमान जी ही हैं, जो कभी दुखी नहीं हुए, कभी परेशान नहीं हुए, अपना हर कार्य शांत और प्रसन्न मन से करते हैं… और इसीलिए वे कभी असफल भी नहीं हुए. उनके सामने कितनी ही कठिन परिस्थिति क्यों न आ गई हो, कितनी ही बड़ी समस्या क्यों न हो, लेकिन हनुमान जी कभी किसी परेशानी या समस्या या चुनौती को देखकर घबराए नहीं, सिर्फ उसका समाधान खोजने में लग गए.
आप पौराणिक कहानियां सुनें, तो पाएंगे कि हर एक देवता, यहां तक कि भगवान तक कभी-कभी दुखी हुए हैं, रोये हैं, परेशान हुए हैं, लेकिन हनुमान जी कभी नहीं. जब रावण के पुत्र मेघनाद ने श्रीराम-लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया, तो वहां मौजूद सभी रो रहे हैं, लेकिन तभी उन सबका ध्यान इस पर गया कि हनुमान जी तो वहां हैं ही नहीं. सब सोचने लगे कि राम-लक्ष्मण के प्राण संकट में हैं, और उन्हीं के सबसे बड़े भक्त हनुमान जी यहां हैं ही नहीं, तभी उन सबने देखा कि हनुमान जी वैकुंठ से सीधा गरुड़ जी को साथ लेकर आ रहे हैं.
यानी हनुमान जी के सामने चाहे जितनी बड़ी समस्या आ जाए, वे कभी घबराते नहीं, कभी परेशान नहीं होते, सीधा समाधान खोजने में लग जाते हैं, हर कार्य श्रीराम जी का नाम लेकर ही करते हैं… और यही कारण है कि वे कभी किसी कार्य में असफल नहीं हुए, और इसीलिए उनके पास हर समस्या या संकट का समाधान है.
अगर हनुमान जी को समझ लिया तो…
प्रभु श्रीराम-सीता जी आदि का चिंता करना या रोना आदि उनकी लीलाएं हैं, ताकि इस बहाने उनके भक्तों या बच्चों के चरित्र की महानता संसार के सामने आ सके. श्रीराम (Shri Ram) तो भगवान हैं, उनके समान कोई दूसरा नहीं, लेकिन श्रीराम का कार्य भी अपने हनुमान के बिना नहीं चलता. पृथ्वी पर जहां-जहां, जब-जब रामत्व प्रकट होता है, तब-तब वहां किसी न किसी रूप में हनुमानत्व भी जन्म लेता है. न श्रीराम जी जैसे भगवान हैं और न हनुमान जी जैसे भक्त. अगर हनुमान जी को समझ लिया तो समझो कि हमने ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्ति योग को समझ लिया.
यानी तीनों साधनों- ज्ञान, कर्म और भक्ति को समझने की कुंजी हनुमान जी को समझने में ही है… और हनुमान जी को समझने की कुंजी सुंदरकांड में है. रामचरितमानस के सुंदरकांड (Sunderkand) में हनुमान जी के पराक्रम, भक्ति, बुद्धिमानी, चतुराई, विवेक शक्ति और श्रीराम जी के प्रति उनके समर्पण और प्रेम की गाथा है. सुंदरकांड में हनुमान जी के चरित्र की सभी सुंदर विशेषताओं को उजागर किया गया है, इसीलिए इस कांड का नाम ‘सुंदरकांड’ है. यह कांड इंसान को जीवन के सभी महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाता है… और यही कारण है कि सुंदरकांड का पाठ करना या सुनना या घर में इसका पाठ होना बेहद शुभ और मंगलकारी माना जाता है.
अतुलित बल के स्वामी
वानरराज केसरी और माता अंजना (अंजनी) के पुत्र हनुमान जी अत्यंत बलशाली, बुद्धिमान और भक्ति से परिपूर्ण हैं, जिनके बल, बुद्धि और भक्ति की कोई सीमा ही नहीं है. भगवान शिव जिनके समान कोई नहीं, जो देवों के देव हैं, जो ही सत्य और सुंदर हैं, उन्हीं के अवतार (ग्यारहवें रुद्रावतार) होने के कारण हनुमान जी ने कल्याणकारी शक्तियों के साथ जन्म लिया है और वो सभी शक्तियों के स्वामी हैं.
हनुमान जी की शक्ति का अंदाजा तो कोई नहीं लगा सकता, लेकिन कुछ उदाहरण जरूर दिए जा सकते हैं. आपने वो कहानी तो सुनी ही होगी कि एक बार सुग्रीव के भाई बाली ने हनुमान जी को अपने साथ लड़ने की चुनौती दी. दरअसल, बाली को यह वरदान प्राप्त था, कि जो भी उसके सामने लड़ने के उद्देश्य से आएगा, उसका आधा बल बाली को ही मिल जाएगा. यही कारण था कि बाली को हराना किसी के लिए भी संभव ही नहीं था.
खैर, हनुमान जी ने बाली की चुनौती को स्वीकार कर लिया. लेकिन बाली के पिता देवराज इंद्र घबरा गए. उन्होंने तुरंत जाकर हनुमान जी से प्रार्थना की कि वे बाली के सामने अपने बल का केवल 1/10 भाग ही लेकर जाएं. हनुमान जी मान गए. वे बाली के सामने अपने बल का सिर्फ 1/10 भाग ही लेकर गए. अब हनुमान जी के केवल इतने से बल का भी आधा हिस्सा बाली में समाने लगा.
तभी बाली को ऐसा लगने लगा कि उसका शरीर फटने वाला है. उसकी हालत ऐसी हो गई कि वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था. तभी इंद्र ने बाली से कहा कि “तुम तुरंत हनुमान जी के सामने से चले जाओ, क्योंकि इनके बल की कोई सीमा ही नहीं है, तुम्हारा शरीर इनका बल नहीं संभाल पाएगा और तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी”. बाली तुरंत हनुमान जी के सामने से भाग गए.
राम दूत अतुलित बलधामा,
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा
इतना बल, फिर भी…
हनुमान जी केवल शक्ति और बुद्धि के ही नहीं, भक्ति के भी प्रतीक हैं, क्योंकि उनके समान कोई भक्त भी नहीं. इसीलिए तो वे ‘भक्त शिरोमणि’ या ‘भक्तराज’ कहे जाते हैं. हनुमान जी की असीमित शक्ति का रहस्य भी उनकी श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति ही है. हनुमान जी अतुलित बल के स्वामी हैं, फिर भी अहंकार से कोसों दूर हैं. इसीलिए तो उन्हें हनुमान (अहंकाररहित या मान/अहंकार का हनन करना) कहते हैं.
हनुमान जी झुकाना तो जानते ही हैं, साथ ही झुकना भी जानते हैं. वे उत्तेजित बहुत कम ही होते हैं, हर कार्य शान्त और प्रसन्न मन से करते हैं, सोच-समझकर करते हैं, अपने स्वामी भगवान श्रीराम का नाम लेकर करते हैं, इसीलिए उनके लिए हर तरह के कार्य आसान हैं. वे किसी भी कार्य को करते समय अपनी बुद्धि, शक्ति और भक्ति सभी का इस्तेमाल करते हैं… और यही कारण है कि श्रीराम जी सभी कठिन कार्य हनुमान जी को ही सौंपते हैं. अपने स्वामी श्रीराम जी के कार्य में उन्हें इतना आनंद आता है, कि वे कभी थकते नहीं. अपनी हर जिम्मेदारी को प्रसन्न मन से निभाते हैं.
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
रामचरितमानस (Ramcharitmanas) में जब तक हनुमानजी की एंट्री नहीं होती, तब तक रामकथा (Ram katha) श्रीराम जी के ही कन्धों पर चलती है, लेकिन जैसे ही किष्किंधा-कांड से हनुमान जी की एंट्री होती है, भगवान श्रीराम स्वयं ही हनुमान जी के कन्धों पर विराजमान हो जाते हैं. यानी यहां से पूरी रामकथा हनुमान जी के कंधों पर चलती है. फिर चाहे राम-सुग्रीव की मित्रता कराना हो, चारसौ कोस का समुद्र पार करके अकेले ही राक्षसों की नगरी में जाकर सीता जी का पता लगाना हो, श्रीराम-लक्ष्मण जी को नागपाश से मुक्त कराना हो, लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी लाना हो आदि.
श्रीराम और हनुमान का मिलन रामकथा में एक नया और सुंदर रूप ले लेती है. इस कथा में भक्त शिरोमणि हनुमान जी की भक्ति का अनुपम रंग चढ़ जाता है.
राम-सीता जी के लाड़ले पुत्र हनुमान
सीता जी लंका में बेहद दुखी थीं, उन्हें कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. वे केवल उम्मीद के सहारे वहां जी रही थीं. ऐसे में अचानक हनुमान जी आते हैं, ‘माता-माता’ कहकर श्रीराम जी का संदेश सुनाते हैं, अपनी शक्ति का परिचय भी देते हैं, और विश्वास दिलाते हैं कि अब सब कुछ जल्द ही ठीक होने वाला है. सीता जी प्रसन्न होकर हनुमान जी को आशीर्वाद देती हैं, कि “सदा श्री रघुवर जी के लाड़ले रहो”. ऐसा आशीर्वाद देकर सीता जी एक तरह से यह बता देती हैं कि हनुमान जी उनके सबसे लाड़ले पुत्र तो बन ही चुके हैं. श्री सीताराम जी की अपने पुत्र हनुमान जी पर विशेष कृपा रहती है.
हनुमान जी की सबसे शुभ मूर्ति या चित्र
हनुमान जी की तो सभी मूर्तियां या चित्र शुभ होते हैं, लेकिन संजीवनी के पर्वत को उठाकर लाने वाली उनकी मूर्ति या चित्र को सबसे शुभ माना जाता है. ऐसा क्यों? क्योंकि यह वो समय था, वह कार्य था, जब हनुमान जी ने समय की दिशा ही पलट दी थी. आप रामचरितमानस पढ़ेंगे तो पाएंगे कि जब लक्ष्मण जी को मेघनाद की शक्ति लगी थी, तब श्रीराम जी ने यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि ‘अगर लक्ष्मण नहीं रहे, तो मैं भी नहीं रहूंगा’, उधर सीताजी ने कह दिया कि अगर राम नहीं तो सीता भी नहीं. और अगर ये तीनों नहीं तो अयोध्या में भी भरत, तीनों माताएं आदि और प्रजा भी नहीं. उधर रावण बेहद प्रसन्न हो गया था कि लक्ष्मण जी के साथ अब सब कुछ अपने आप ही खत्म हो जाएगा.
श्रीराम जी की सच्चे मन से भक्ति करने वाला कभी निराश हो सकता है क्या?
फिर हनुमान जी ने कहा कि ‘मुझे कार्य बताओ, वह कार्य समय पर कैसे होगा, उसकी चिंता मत करो’. रात ही रात में हनुमान जी रावण के सुषेण वैद्य को ले आए, फिर तेजी से उड़ते हुए, बीच में कालनेमि को सबक सिखाकर, हिमालय तक जा पहुंचे. हनुमान जी को जब समझ नहीं आया कि इतने तरह की जड़ी-बूटियों में संजीवनी बूटी (Sanjeevani) कौन सी है, तो उन्होंने कोई रिस्क नहीं लिया, बिना एक पल गंवाए वे पूरा पर्वत ही साथ उठाकर ले आए. और इस पर्वत के रूप में उन्होंने एक साथ सबके प्राण बचा लिए. युद्ध या समय की पूरी दिशा ही पलट दी. इसीलिए हनुमान जी के इस रूप या चित्र को सबसे शुभ और मंगलकारी माना जाता है.
जब कभी जीवन में ऐसा लगता है कि सब कुछ खत्म होने वाला है, कोई रास्ता या उपाय सूझ ही नहीं रहा, तब हनुमान जी के इसी चित्र या मूर्ति के सामने बैठकर या इस रूप का ध्यान करके शांति से उनसे प्रार्थना करनी चाहिए, उनसे अपनी समस्याओं का समाधान पूछना चाहिए और कहना चाहिए कि-
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसों नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो
हनुमान चालीसा की महिमा (Sankat mochan Hanuman Chalisa)
हनुमान जी इस कलियुग के जागृत देवता हैं, जो भक्तों के सभी तरह के कष्टों को दूर करते हैं. हनुमान जी उन देवताओं में शामिल हैं जो कलियुग (Kali Yuga) में भी अपने भक्तों के लिए धरती पर मौजूद हैं, यानी हनुमान जी का ध्यान करने से इनकी कृपा तुरंत प्राप्त होती है. हनुमान जी पर भगवान राम की विशेष कृपा है और जो भी सच्चे मन से भगवान राम और हनुमान जी का ध्यान करता है, उसकी सभी परेशानियों का अंत हो जाता है.
कहते हैं कि रोज हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) का पाठ करने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और उसे कोई भी बंधक नहीं बना सकता है. गोस्वामी तुलसीदासजी (Goswami Tulsidasji) ने श्रीरामचरितमानस लिखने से पहले हनुमान चालीसा लिखी थी और फिर हनुमानजी की कृपा से ही वे श्रीरामचरितमानस की रचना कर पाए. हनुमान चालीसा के एक-एक शब्द का इतना प्रभाव है कि अगर पूरे मन से इसे पढ़ा जाए तो जीवन की हर बाधा दूर होने लगती है, हर रास्ता सरल और हर काम सफल होने लगता है.
अगर आप किसी की साजिशों या अपने शत्रुओं से परेशान हैं, बीमारियों से परेशान हैं, कर्ज की समस्या से परेशान हैं, या किसी तरह के कानूनी विवादों में फंसे हैं, या अगर आपको अंधेरे या भूत-प्रेत से डर लगता हो या मन में किसी भी तरह का भय हो, तो आपको रोज कम से कम एक बार हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए. यह आपको हर संकट से मुक्त करेगा. हनुमान चालीसा का पाठ करने से किसी भी तरह की कोई नकारात्मक ऊर्जा (निगेटिव एनर्जी) पास नहीं आती. हनुमान जी का सुरक्षा कवच आपके साथ रहता है.
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