ब्रह्मोस मिसाइल के लिए भारत-फिलीपींस समझौता, दुश्मन के दुश्मनों से दोस्ती बढ़ाने का प्रयास

india philippines brahmos

एक तरफ जहां हमारे देश की सेना को राफेल, S-400 जैसे दुनिया के सबसे अच्छे और खतरनाक हथियार खरीदकर सौंपे जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अब हमारा देश दूसरे देशों को सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस जैसे हथियार भी बेच रहा है. हाल ही में फिलीपींस (Philippines) ने भारत में बनी ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos missile) को खरीदने के लिए हमारे देश के साथ 375 मिलियन अमेरिकी डाॅलर का समझौता किया है .

इस क्षेत्र में यह भारत के लिए अब तक का सबसे बड़ा समझौता है. इतना ही नहीं, फिलीपींस जैसे ही अन्य 40 से ज्यादा देश भी भारत से हथियार खरीदना चाहते हैं. इनमें ज्यादातर वे देश शामिल हैं, जो चीन से परेशान हैं. यानी भारत चीन के दुश्मन देशों को हथियार देकर सबको चीन के खिलाफ एकजुट करने की कोशिश में है.

दुश्मन देश को रोकने के लिए जरूरी हैं ये दोनों ही प्रयास

दरअसल, दुश्मन देश को रोकने के लिए दो विकल्प सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं-

पहला- आर्थिक, सैन्य और टेक्नोलॉजी के मामले में लगातार आगे बढ़ते जाना और खुद को मजबूत बनाना. दूसरा- दुश्मन देश के पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत करना, क्योंकि दुश्मन का दुश्मन दोस्त माना जाता है. देखा जाए तो अब भारत ये दोनों ही प्रयास करने में लग गया है. एक तरफ दूसरे देशों से खरीदे गए बड़े हथियार हमारी सेना को और मजबूती दे रहे हैं, वहीं दूसरे देशों को हथियार बेचकर पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

चीन के दुश्मन देश : दक्षिण चीन सागर को लेकर विवाद

south china sea

फिलीपींस भी उन्हीं देशों में शामिल है, जिनका चीन के साथ विवाद चल रहा है. फिलीपींस की सीमा दक्षिण चीन सागर (South China Sea) से लगती है, जिसे चीन अपनी विस्तारवादी नीति (Expansionist policy) के तहत हड़पना चाहता है. इस सागर पर फिलिपींस भी अपना अधिकार जताता है, लेकिन चीन मानने को तैयार नहीं है.

साल 2016 में अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ने चीन के दावे को गलत साबित करते हुए फिलिपींस को मालिकाना हक सौंपा था, लेकिन चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. इसी बात को लेकर इन दोनों देशों के बीच लंबे समय से टकराव जारी है.

दक्षिण चीन सागर (South China Sea)- यह सागर दक्षिण-पूर्व एशिया में पश्चिमी प्रशांत महासागर का हिस्सा है. यह समुद्र चीन, ताइवान, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और वियतनाम से घिरा हुआ है. यह पूर्वी चीन सागर से ताइवान जलसंधि के जरिए और फिलीपींस सागर से लूजॉन जलसंधि से जुड़ा हुआ है.

फिलिपींस समेत कई छोटे-छोटे देश ये दावा करते हैं कि यह जलीय इलाका (water area) उनका है. दरअसल, इस सागर का हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच लिंक होने की वजह से बड़ा रणनीतिक महत्व है . इस इलाके में प्राकृतिक तेल और गैस के भंडार होने के भी अनुमान हैं, इसीलिए इस सागर की सीमाओं से लगे सभी देश इस पर अपना-अपना अधिकार जताते हैं.

चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है. चीन के साथ ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम भी इस क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर अपना दावा जताते हैं. इस सागर को लेकर अमेरिका और चीन के बीच में भी विवाद चलता रहता है.

south china sea

इन विवादों से भारत को मिल सकता है फायदा

फिलीपींस के आलावा, भारत ने वियतनाम के साथ भी 100 मिलियन डॉलर का समझौता किया है, जिसके तहत वियतनाम को भारत में निर्मित 12 हाई स्पीड गार्ड बोट दी जाएंगी. दुनिया के कई देश, भारत में बनी ब्रह्मोस मिसाइल, तेजस एयरक्राफ्ट, अर्जुन MK-1A टैंक और रॉकेट सिस्टम खरीदना चाहते हैं… और भारत भी कई देशों को कई खतरनाक हथियारों की सप्लाई कर रहा है.

इन सबसे हम समझ सकते हैं कि भारत किस रणनीति पर काम करना चाहता है. हालांकि, भारत का मकसद सिर्फ यही नहीं है. यह रक्षा क्षेत्र में निर्यात के मामले में भी आगे बढ़ने की कोशिश है. ब्रह्मोस मिसाइल भारत की आत्मनिर्भर ताकत को दिखाती है. इस तरह के हथियारों का निर्यात भारत को हथियार बेचने वाले दुनिया के टॉप देशों की लिस्ट में शामिल करने में मदद करेगा.

अभी भारत को तय करना है लंबा सफर

हालांकि, भारत अभी इस मामले में काफी पीछे है. जी न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में हथियारों का बाजार लगभग 531 बिलियन डॉलर्स का है. दूसरे देशों को हथियार बेचने के मामले में फिलहाल अमेरिका सबसे ऊपर है. इस क्षेत्र में उसकी हिस्सेदारी 37 प्रतिशत बताई जाती है. वहीं, दूसरे नंबर पर रूस (20 प्रतिशत हिस्सेदारी), तीसरे नंबर पर फ्रांस (8 प्रतिशत), चौथे स्थान पर जर्मनी (साढ़े पांच प्रतिशत) पांचवे नंबर पर चीन (5 प्रतिशत) है.

हथियारों की खरीद के मामले में दूसरे नंबर है भारत

इस लिस्ट में (हथियार बेचने के मामले में) भारत का स्थान मात्र 0.2 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ 24वां है. साल 2015 में भारत की ये हिस्सेदारी 0.1 प्रतिशत थी. हथियारों को खरीदने के मामले में भारत, सऊदी अरब (Saudi Arabia) के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है. चूंकि यह समय हमारे देश की सेना को तेजी से मजबूती देने का है, इसी के तहत साल 2020 में दुनियाभर में जितने हथियार खरीदे गए, उनमें से 10 प्रतिशत हथियार तो अकेले भारत ने ही खरीद लिए थे. पिछले 15 सालों में हमारा देश करीब 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर के हथियारों की खरीद कर चुका है.

दूसरे देशों पर निर्भरता को कम करने की कोशिश जारी

हालांकि, इसमें एक पॉइंट ये भी है कि भारत में हथियारों की खरीद में 33 प्रतिशत तक की कमी आई है, जबकि हथियारों के निर्यात में 228 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई है. साल 2015-16 में भारत ने दूसरे देशों को लगभग 2 हजार करोड़ रुपये के हथियार बेचे थे. 2020-21 में ये आंकड़ा बढ़कर करीब 6 हजार 300 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. यानी रक्षा क्षेत्र (Defense sector) में भारत दूसरे देशों पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश तो कर ही रहा है, साथ ही आत्मनिर्भर होने के प्रयास लगातार जारी हैं.

भारत की ब्रह्मोस मिसाइल

brahmos

हमारे देश में बनी ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos missile) के लिए दुनिया के कई देश लाइन लगाकर खड़े हैं. इस मिसाइल को भारत और रूस ने मिलकर भारत में ही बनाया है. इसे ब्रह्मोस एयरोस्पेस लिमिटेड की तरफ से रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूस के मिलिट्री इंडस्ट्रियल कंसोर्टियम NPO मशिनोस्ट्रोयेनिया (Mashinostroyenia) के जॉइंट वेंचर के रूप में तैयार किया गया है (ब्रह्मोस एयरोस्पेस एक जॉइंट वेंचर कंपनी है, जिसकी स्थापना DRDO और रूस की मशिनोस्ट्रोयेनिया ने की है). इसी से ब्रह्मोस का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है (Brahmaputra+Moskva = BrahMos).

ब्रह्मोस मिसाइल मध्यम दूरी की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल (medium-range supersonic cruise missile) है, जिसे जमीन, विमान, जहाजों और यहां तक ​​कि पनडुब्बियों से भी लॉन्च किया जा सकता है. क्रूज मिसाइल जमीन और समुद्र की सतह के काफी करीब चलती हैं और जाकर बिल्कुल अपने निशाने पर ही लगती हैं . दुश्मन देशों के रडार इनका पता नहीं लगा पाते हैं. स्पीड के मामले में ऐसी मिसाइलों को सबसोनिक (लगभग 0.8 मैक स्पीड), सुपरसोनिक (2 से 3 मैक स्पीड) और हाइपरसोनिक (5 मैक से ज्यादा की स्पीड) क्रूज मिसाइलों के रूप में बांटा गया है.

  • नोट- स्पीड के आधार पर मिसाइलें दो तरह की होती हैं-
  • बैलिस्टिक मिसाइल और
  • क्रूज मिसाइल.
    मारक क्षमता के आधार पर मिसाइलें चार तरह की होती हैं-
  • कम दूरी या छोटी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल (short range missile)
  • मध्यम दूरी तक मार करने वाली मिसाइल (medium range missile)
  • इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (intermediate range ballistic missile)
  • इंटरकॉन्टिनेंटल (अंतर्महाद्वीपीय) बैलिस्टिक मिसाइल (intercontinental ballistic missile)

ब्रह्मोस मिसाइल ‘दागो और भूल जाओ’ (fire and forget) के फार्मूले पर काम करती है, यानी इसे लॉन्च करने के बाद इसे आगे की गाइडेंस की जरूरत नहीं पड़ती है. यह दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और सबसे तेज ऑपरेशनल एंटी-शिप क्रूज मिसाइल है. ब्रह्मोस की स्पीड (sound) ध्वनि की रफ्तार से भी ज्यादा यानी 2.8 मैक और इसकी रेंज 290 किलोमीटर है, लेकिन लड़ाकू विमान (fighter aircraft) से दागे जाने पर यह आसानी से 400 किमी की दूरी तक पहुंच जाती है. आने वाले समय में इसकी रेंज को 600 किलोमीटर तक बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. 250-300 किलोग्राम की वहन क्षमता के साथ, ब्रह्मोस मिसाइल रेगुलर वारहेड के साथ-साथ परमाणु हथियार ले जाने में भी सक्षम है.



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