Hanuman ji Ka Roop Kaisa Hai
आज हमारे बहुत सारे भाइयों का यह कहना है कि “हनुमान जी कपि नहीं, एक मनुष्य थे, जो कि वानर नाम की जनजाति से आते थे. वानर का अर्थ कपि नहीं, वन में विचरण करने वाले मनुष्य से होता है. हमारे नादान पौराणिक भाइयों ने उन्हें कपि मानकर उनके साथ अन्याय किया है.”
दरअसल, ऐसा कहने वाले हमारे भाई हनुमान जी को डार्विन की थ्योरी से जोड़ने के लिए ऐसा कह देते हैं और बताते हैं कि रामायण काल के सभी वानर उस समय के निएंडरथल मानव थे. लेकिन सच कहा जाये तो आज बहुत से वैज्ञानिकों को भी डार्विन की थ्योरी पर पूरा विश्वास नहीं है.
लेकिन पहली बात कि ऐसे भाइयों से हमारा कोई विरोध नहीं है क्योंकि यह, हनुमान जी के प्रति उनकी अपनी आस्था और अपना प्रेम है. और दूसरी बात कि हनुमान जी के लिए “थे” शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि हनुमान जी आज भी पृथ्वी पर उपस्थित हैं. तो आइये जानते हैं कि ग्रंथों के अनुसार कैसा है हनुमान जी का स्वरूप-
भगवान् अलग-अलग प्रयोजनों से कोई भी शरीर धारण करें, लेकिन उनके गुण और शक्तियां तो उनमें रहेंगी ही. जैसे भगवान् विष्णु ने अनेक रूप धारण किये- मत्स्य रूप, कच्छप रूप, वराह रूप, नरसिंह रूप आदि. हनुमान जी के रूप-स्वरूप और शक्ति-प्रताप-महिमा आदि का वर्णन वाल्मीकि रामायण के साथ-साथ महाभारत में भी हुआ है.
श्रीहनुमान जी के स्वरूप और रूप पर वेदों, उपनिषदों और पुराणों आदि में सांगोपांग विवेचन उपलब्ध होता है. हनुमान जी साक्षात परब्रह्म हैं और रूद्र रूप में प्रकट महादिव्य शक्ति के भागवत ज्योति के प्रतीक हैं. हनुमान जी भगवान श्रीराम के प्रिय हैं और यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता है. पवननंदन हनुमान जी विपत्तियों का नाश कर देते हैं तथा दुष्टों और दानवों के समूह रूपी वन को जलाकर भक्त जनों को अभय प्रदान करते हैं. महर्षि अगस्त्य हनुमान जी की विशेषताओं का वर्णन करते हुए श्रीराम से कहते हैं-
“संसार में ऐसा कौन है जो पराक्रम, उत्साह, बुद्धि, प्रताप, सुशीलता, मधुरता, नीति-अनीति, विवेक गंभीरता, चतुरता, उत्तम बल और धैर्य में श्रीहनुमान जी से बढ़कर हो.”
वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड में हनुमान जी सीताजी को स्वयं ही बताते हैं कि-
“मैं इच्छानुसार रूप धारण करने की शक्ति रखता हूँ. मुझमें पर्वत, वन, अट्टालिकाओं, चहारदीवारी ओर नगरद्वारसहित इस लंकापुरी को रावण के साथ ही उठा ले जाने की शक्ति है.” (सुन्दरकाण्ड सर्ग ३५ व ३७)
हनुमान जी के रूप का निश्चित आकार-प्रकार नहीं है. श्रीराम के कार्य संपादन के लिए ही हनुमान जी ने शरीर धारण किया था. रामायण और पुराणों में हनुमान जी के स्वेच्छानुसार अनेक रूपों में अभिव्यक्त अथवा प्रकट होते रहने का उल्लेख मिलता है. यह भी हनुमान जी की एक विशेषता है कि वे विभिन्न प्रकार के रूप धारण कर लिया करते हैं. हनुमान जी कहीं वानरदेह में अभिव्यक्त हैं, तो कहीं मानवदेह में.
जैसे भगवान श्रीराम से प्रथम बार मिलने के लिए हनुमान जी ने मानव शरीर धारण किया था, और सीताजी की खोज में समुद्र पार करते समय उन्होंने विराट रूप धारण किया था. सीताजी के सामने वे लघु रूप में आ गए थे और लंका को जलाते समय वे भयंकर कालाग्नि के समान हो गए थे. इसी प्रकार भारत जी को श्रीराम के आगमन का संदेश सुनने के लिए भी वे मनुष्य शरीर में गए थे. उन्होंने (पांडवों में से एक भाई) भीम को दर्शन देते समय अपने शरीर को पर्वत के समान बड़ा कर लिया था.
श्रीराम के लिए ही आये थे वे सभी वानर
वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड का सर्ग 17 उस समय के उन पराक्रमी वानरों के विषय में विस्तृत जानकारी देता है, जो रामकाज में सहायक बने थे. इस सर्ग के अनुसार-
“(देवताओं के हित के लिए) जब भगवान विष्णु राजा दशरथ के पुत्रभाव को प्राप्त हो गए, तब ब्रह्माजी ने सम्पूर्ण देवताओं से कहा- “देवगण! अब तुम लोग भी भगवान् विष्णु के सहायक के रूप में ऐसे पुत्रों की सृष्टि करो, जो बलवान, इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ, माया जानने वाले, शूरवीर, वायु के समान वेगशाली, नीतिज्ञ, बुद्धिमान, विष्णुतुल्य पराक्रमी, किसी से परास्त न होने वाले, तरह-तरह के उपायों के जानकार, दिव्य शरीरधारी तथा देवताओं के समान सब प्रकार की अस्त्रविद्या के गुणों से संपन्न हों.” (बालकाण्ड सर्ग १७ श्लोक २, ३, ४)
“ब्रह्माजी के ऐसा कहने पर देवताओं ने उनकी आज्ञा स्वीकार की और वानर रूप में अनेकानेक पुत्र उत्पन्न किये. महात्मा, सिद्ध, ऋषि, विद्याधर, नाग और चारणों ने भी वन में विचरने वाले वानर-भालुओं के रूप में वीर पुत्रों को जन्म दिया. रीक्ष, वानर तथा लंगूर जाति के वीर शीघ्र ही उत्पन्न हो गए.” (बालकाण्ड सर्ग १७ श्लोक ८, ९, १९).
फिर इसी प्रकार सभी देवताओं ने अपने-अपने अंश से पुत्रों को उत्पन्न किया. वे शूरवीर वानर पर्वत, वन और समुद्रों सहित समस्त भूमण्डल में फैल गए. श्लोक ३१ के अनुसार, वे और ही प्रकार के वानर थे, अर्थात् वे प्राकृतिक वानरों से विलक्षण थे. श्लोक ३७ के अनुसार, वे सभी वानर भगवान् श्रीराम की सहायता के लिए ही प्रकट हुए थे.
तो वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के सर्ग १७ के अनुसार, जिन वानरों ने श्रीराम की सहायता की थी, वे श्रीराम के लिए ही पृथ्वी पर आये थे, उससे पहले ऐसे वानर पृथ्वी पर नहीं थे. अतः उन वानरों को डार्विन की थ्योरी और निएंडरथल मानव आदि से जोड़ना उचित नहीं है.
निश्चित सी बात है कि जब युगों के अंत में भगवान् धरती पर अवतार लेते हैं, तब बहुत से देवी-देवता उनके लीला-सहचर बनने के लिए अलग-अलग रूपों में पृथ्वी पर आ जाते हैं. भगवान श्रीकृष्ण के समय भी यही हुआ था और भगवान् कल्कि के समय में भी यही होगा.
किष्किन्धाकाण्ड के सर्ग 3 के अनुसार-
जब सुग्रीव हनुमान जी को श्रीराम और लक्ष्मण जी का भेद जानने के लिए भेजते हैं, तब हनुमान जी विचार करते हैं- “मेरे इस कपिरूप पर किसी का विश्वास नहीं जम सकता.” अतः हनुमान जी ने अपने उस रूप का परित्याग करके सामान्य तपस्वी का रूप धारण कर लिया. (किष्किन्धाकाण्ड सर्ग ३ श्लोक २)
किष्किन्धाकाण्ड के सर्ग 67 के अनुसार, जब जांबवान जी ने हनुमान जी को उनके अतुलित बल का स्मरण कराया, तब हनुमान जी ने वानर वीरों की सेना का हर्ष बढ़ाने के लिए उस समय अपना विराट स्वरूप प्रकट किया. साथ ही हर्ष के साथ अपनी पूँछ को बारम्बार घुमाकर अपने महान बल का स्मरण किया. (किष्किन्धाकाण्ड सर्ग ६७ श्लोक ४)
वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड के सर्ग 32 के अनुसार-
अशोक वाटिका में जब हनुमान जी सीताजी को रामकथा सुनाकर उनके सामने प्रकट हो जाते हैं, तब सीताजी हनुमान जी को पहली बार देखकर बहुत ही डर जाती हैं और बहुत आश्चर्यचकित भी होती हैं. और जब हनुमान जी उनके चरण छूने के लिए उनकी ओर बढ़ने लगते हैं तब सीताजी को भय के मारे मूर्छा-सी आने लगती है. पहले तो उन्हें विश्वास ही नहीं होता कि वे हनुमान जी को सच में देख रही हैं या स्वप्न में. वे सोचने लगीं कि-
“अहो! वानरयोनि का यह जीव तो बड़ा ही भयंकर है. इसकी ओर तो आँख उठाकर देखने का भी साहस नहीं होता. आज मैंने बड़ा बुरा स्वप्न देखा है, सपने में वानर को देखना शास्त्रों में निषिद्ध बताया गया है. मेरी भगवान् से प्रार्थना है कि मेरे इस बुरे स्वप्न का प्रभाव श्रीराम आदि पर न पड़े. परन्तु इस वानर का रूप तो स्पष्ट दिखाई दे रहा है, और यह तो मुझसे बात भी कर रहा है.” सीताजी यह सब सोच ही रही थीं, कि उधर मूंगे के समान लाल मुख वाले महातेजस्वी पवनकुमार हनुमान जी ने उस अशोक वृक्ष से नीचे उतरकर माथे पर अंजलि बांध ली. (सुन्दरकाण्ड सर्ग ३२, ३३)
सुन्दरकाण्ड के सर्ग 50 के अनुसार-
(जब लंका में हनुमान जी पहली बार रावण के सामने आते हैं) समस्त लोकों को रुलाने वाला रावण भूरी आँखों वाले हनुमान जी को सामने खड़ा देख रोष से भर गया. तरह-तरह की आशंकाओं से उसका दिल बैठ गया. वह उन तेजस्वी वानरराज के विषय में तरह-तरह के विचार करने लगा कि “क्या इस वानर रूप में साक्षात् भगवान् नंदी यहाँ आ गए हैं?”
रावण हनुमान जी से कहता है कि “तुम कौन हो और कहाँ से आये हो? तुम्हें किसने भेजा है? तुम ठीक-ठीक बता दो, तो तुम छोड़ दिए जाओगे. तुम्हारा केवल रूप ही वानर का है, किन्तु तुम्हारा तेज साधारण वानरों जैसा नहीं है.”
इसके बाद जब हनुमान जी रावण के सामने अपना परिचय देते हैं, साथ ही श्रीराम और सीताजी के वास्तविक स्वरूप व प्रताप का वर्णन करते हुए रावण को उचित सलाह देते हैं, तब रावण क्रोध से तिलमिला उठता है और हनुमान जी को मृत्यदंड देने की घोषणा करता है. तब विभीषण सहित उसके कई मंत्री दूत की हत्या का विरोध करते हैं. तब रावण कहता है-
“वानरों को अपनी पूँछ बड़ी प्यारी होती है. वही इनका आभूषण है. अतः जितना जल्दी हो सके, इसकी (हनुमान जी की) पूँछ जला दो. जली पूँछ लेकर ही यह यहाँ से जाये. राक्षसगण इसकी पूँछ में आग लगाकर इसे सड़कों और चौराहों सहित समूचे नगर में घुमाएं.” (वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड सर्ग ५३)
और फिर इसके बाद क्या हुआ, वह तो सब जानते ही हैं. सब राक्षस-राक्षसियाँ इधर-उधर भागते हुए चिल्लाने लगे- “यह वानर नहीं साक्षात् काल है. कहीं सम्पूर्ण जगत के पितामह ब्रह्माजी का प्रचंड कोप ही तो वानर शरीर धारण करके राक्षसों का संहार करने के लिए यहाँ नहीं आ गया है? या भगवान् विष्णु का महान तेज ही तो अपनी माया से वानर का शरीर ग्रहण करके राक्षसों का विनाश करने के लिए यहाँ नहीं आया है?” (वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड सर्ग ५४)
महाभारत में हनुमान जी का स्वरुप
महाभारत के ‘वनपर्व’ के अध्याय 146, 147 और 150 में हनुमान जी और भीम का संवाद है. इन अध्यायों में भी हनुमान जी के स्वरूप और शक्ति-प्रताप का परिचय मिलता है.
“विद्युतपात के समान चकाचौंध पैदा करने के कारण हनुमान जी की ओर देखना अत्यंत कठिन हो रहा था. उनके अंग की कांति गिरती हुई बिजली के समान पिंगल वर्ण की थी. उनका गर्जन-तर्जन वज्रपात की गड़गड़ाहट के समान था. वे विद्युतपात के समान चंचल प्रतीत होते थे. उनके कंधे चौड़े और पुष्ट थे. उनके शरीर का मध्यभाग एवं कटिप्रदेश पतला था. उनकी लंबी पूंछ का अग्रभाग कुछ मुड़ा हुआ था, तथा वह पूँछ ऊपर की ओर उठकर फहराती हुई ध्वजा-सी सुशोभित होती थी. उनकी रोमावली घनी थी. उनके होंठ छोटे थे. जीभ और मुख का रंग तांबे के समान था. कान भी लाल रंग के थे और भौंहें चंचल थीं. मुख के भीतर की श्वेत दंतावलि उनकी शोभा बढ़ाने के लिए आभूषण का काम दे रही थी. उनके चमकते हुए दांत अपने सफेद और तीखे अग्रभाग के द्वारा अत्यंत शोभा पा रहे थे. हनुमान जी का मुख किरणों से प्रकाशित चंद्रमा के समान दिखाई देता था. वे शत्रुसूदन वानरवीर अपने कांतिमान शरीर से प्रज्वलित अग्नि के समान जान पड़ रहे थे.” (महाभारत वनपर्व अध्याय १४६ श्लोक ७६-८२)
गंधमादन पर्वत पर तेजी से बढ़ते हुए भीम को हनुमान जी अहंकार से युक्त देखते हैं. तब अपने छोटे भाई का हित करने के उद्देश्य से हनुमान जी भीम का रास्ता रोककर लेट जाते हैं और उनके बल को चुनौती देते हैं. तब भीम ने क्रोध में आकर कहा- “मैं इस वानर की पूँछ पकड़कर इसे यमराज के पास भेज देता हूँ.”
“ऐसा सोचकर भीम ने हनुमान जी की पूँछ उठाने का प्रयास किया. दोनों हाथों से पूरा जोर लगा दिया. उनकी भौंहें तन गईं, आँखें फटी-सी रह गईं और उनके सारे अंग पसीने से तर हो गए, फिर भी भीम हनुमान जी की पूँछ को किंचित भी न हिला सके.”
तब भीम हाथ जोड़कर खड़े हो गए और कहने लगे- “कपिप्रवर! मैंने आपसे जो कठोर बातें कहीं, उन्हें क्षमा कर दीजिये. आप कोई सिद्ध हैं या देवता? इस प्रकार वानर का रूप धारण करने वाले आप कौन हैं?”
तब हनुमान जी भीम को बता देते हैं कि वे हनुमान ही हैं. इसके बाद हनुमान जी भीम को पूरी रामायण सुनाते हैं, और चारों युगों का वर्णन करते हैं. तब भीम हनुमान जी के सामने उनके उस रूप को देखने की इच्छा प्रकट करते हैं, जो हनुमान जी ने समुद्र पार करते समय धारण किया था.
भीम का प्रिय करने की इच्छा से हनुमान जी ने अपने उसी रूप को प्रकट कर दिया, जो उन्होंने समुद्र पार करते समय धारण किया था. उन्होंने अत्यंत विशाल शरीर धारण कर लिया. वे अमित तेजस्वी वानरवीर उस सम्पूर्ण वन को आच्छादित करते हुए गंधमादन पर्वत की भी ऊंचाई को लांघकर वहां खड़े हो गए.
हनुमान जी के उस विराट रूप को देखकर भीम को बहुत आश्चर्य हुआ. उनके शरीर में बार-बार हर्ष से रोमांच होने लगा. हनुमान जी का तेज सूर्य के समान दिखाई दे रहा था. उनका शरीर स्वर्णमय मेरुपर्वत के समान था और उनकी प्रभा से सारा आकाशमण्डल प्रज्जवलित-सा जान पड़ रहा था. भीम हनुमानजी की ओर अधिक देर तक देख न सके. उन्होंने अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं. तब हनुमान जी उनसे मुस्कुराते हुए बोले-
“भीम! तुम यहाँ मेरे इतने ही बड़े रूप को देख सकते हो, परन्तु मैं इससे भी बड़ा हो सकता हूँ. मेरे मन में जितने बड़े स्वरूप की भावना होती है, मैं उतना बढ़ सकता हूँ. वहीं, भयानक शत्रुओं के समीप मेरी मूर्ति अत्यंत ओज के साथ बढ़ती है.”
हनुमान जी का वह अत्यंत भयंकर और अद्भुत शरीर देखकर भीम घबरा-से गए. उनके शरीर के रोंगटे खड़े होने लगे. और तब भीम ने हाथ जोड़कर हनुमान जी से कहा- “प्रभो! आज मैंने आपके इस शरीर का विशाल प्रमाण प्रत्यक्ष देख लिया. महापराक्रमी वीर! अब कृपया आप अपने शरीर को समेट लीजिये. आप तो सूर्य के समान दिखाई दे रहे हैं. मैं आपकी ओर देख नहीं सकता.”
और तब हनुमान जी ने अपने शरीर को समेट लिया, और भीम को धर्म का ज्ञान देकर प्रेम से उन्हें विदा किया. मार्ग में भीम हनुमान जी के उस अद्भुत विशाल रूप तथा भगवान् श्रीराम के आलौकिक माहात्म्य व प्रभाव का बार-बार स्मरण करते जाते.
पंचवक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम्।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम्॥
पंचमुखी रूप में हनुमान जी के पूर्वदिशा का मुख वानर का है, जो सूर्य की प्रभा से युक्त है. दक्षिण की ओर का मुख नरसिंह आकार का है जो महान और अद्भुत है व भीषण भय को नष्ट कर देता है. पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड़ का है जिससे समस्त रोगों का शमन होता है. यह विषरोग का निवारण करता है. उतराधिमुखी हनुमान सूकरवक्त्र वाले हैं. यह मुख नीले नभ के समान श्याम वर्ण का है. यह ज्वर रोग का नाश करता है. ऊर्ध्वमुख अश्व के आकार का है. यह दानवों का नाश करता है. पंचमुखी हनुमान जी पीतांबर तथा मुकुट से अलंकृत हैं.
Written By : Aditi Singhal (working in the media)
Edited By : Niharika
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