कर्नाटक के हलेबीडु में स्थित होयसलेश्वर मंदिर (Hoysaleswara Temple, Halebidu Karnataka) भारतीय मंदिर वास्तुकला की एक और उत्कृष्ट कृति है. मनमोहक झील के किनारे स्थित होयसलेश्वर मंदिर सुंदर बगीचों से घिरा हुआ है और यहां का वातावरण बहुत शांत है. भगवान शिव को समर्पित होयसलेश्वर मंदिर होयसल स्थापत्य शैली को प्रदर्शित करता है. यह मंदिर प्राचीन भारत के गौरवशाली इतिहास का वर्णन करता है, जिसे एक बार तो देखने जरूर जाना चाहिए.
होयसलेश्वर मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में 1120 CE और 1150 CE के बीच किया गया था. मंदिर का निर्माण होयसल शासक राजा विष्णुवर्धन (Hoysala King Vishnuvardhana) ने करवाया था. कहा जाता है कि विष्णुवर्धन होयसालेश्वर के नाम पर ही इस मंदिर का नाम होयसलेश्वर मंदिर रखा गया. होयसलेश्वर मंदिर के निर्माण का वित्त पोषण भगवान शिव के भक्तों द्वारा किया गया था. कहा जाता है कि प्रसिद्ध चेन्नाकेशव मंदिर (Chennakeshava Temple) का निर्माण भी इस समय के दौरान ही हुआ था.
‘द्वारसमुद्र’ का नाम ‘हलेबीडु’ क्यों पड़ा?
होयसलेश्वर मंदिर की कहानी भी भारत के बाकी मंदिरों की तरह ही है. जब होयसालेश्वर मंदिर का निर्माण हुआ था, तब इस स्थान को ‘द्वारसमुद्र’ के नाम से जाना जाता था. लेकिन 14वीं सदी में दिल्ली के सुल्तानों द्वारा मंदिर को दो बार नष्ट करने की कोशिश की गई और मंदिर को क्षति भी पहुंचाई गई.
इतिहासकारों के मुताबिक, अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक की सेनाओं ने इस शहर में भारी लूटपाट की, साथ ही बहुत नुकसान पहुंचाया, जिससे इस शहर का नाम ‘हलेबीडु’ या ‘हालेबिदु’ या ‘होलेवीद’ पड़ा, जिसका अर्थ है ‘पुराना घर’ या ‘पुराना खंडहर’.
हालांकि, आक्रांताओं की इस तबाही में कुछ मंदिर बच गए, जिन्हें आज भी देखने पर लोग एकदम मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. इन मंदिरों की वास्तुकला, शिल्पकाल और भव्यता देखते ही बनती है. इसकी स्थापत्य सुंदरता और इसका ऐतिहासिक अतीत इसे एक महत्वपूर्ण शहर बनाता है.
बेलूर से सिर्फ 17 किमी दूर यह खूबसूरत शहर होयसलों की प्राचीन राजधानी थी. होयसला राजवंश ने लगभग 200 सालों तक दक्षिण भारत के ज्यादातर हिस्सों पर शासन किया. इस दौरान उन्होंने बहुत ही शानदार मंदिरों का निर्माण करवाया.
होयसलेश्वर मंदिर की विशेषताएं-
(Hoysaleswara Temple architecture)
♦ लॉन पर एक तारे के आकार के आधार पर बना होयसलेश्वर मंदिर एक वास्तुशिल्प चमत्कार है. यह मंदिर दक्षिण भारत में भगवान शिव के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है. होयसलेश्वर मंदिर अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला के लिए जाना जाता है और दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है. होयसल मंदिरों को कभी-कभी हाइब्रिड या वेसर भी कहा जाता है, क्योंकि उनकी अनूठी शैली न तो पूरी तरह द्रविड़ है न ही नागर.
♦ होयसल मंदिरों की सबसे बड़ी विशेषता है कि इनकी डिजाइन बहुत ही जटिल होती थी. मुख्य मंदिर सीधा चौकोर होता है और इसमें आगे बढ़े हुए अनेक कोण होते हैं, जिससे मंदिरों की डिजाइन किसी तारे की तरह लगने लगती है, और इस तरह इन मंदिरों को एक तारकीय योजना के रूप में जाना जाता है. ये मंदिर सोपस्टोन (नरम पत्थर) से बने होते हैं, जो बनने के बाद बहुत सख्त हो जाता है.
♦ होयसलेश्वर मंदिर के बाहरी भाग को बारीक मूर्तियों से सजाया गया है, जबकि मंदिर के अंदर का भाग तुलनात्मक रूप से सरल है. अंदरूनी हिस्सों में उत्तम नक्काशी है. सबसे आकर्षक वस्तु अत्यधिक पॉलिश किए गए खराद से बने स्तंभ हैं. मंदिर की सुंदर प्रतिमाएं और उत्तम नक्काशी लोगों को भारत के सुनहरे दिनों में वापस ले जाती है.
♦ मंदिर के आधार में हाथियों, शेरों, घोड़ों और फूलों के स्क्रॉल के साथ नक्काशीदार फ्रेज की 8 पंक्तियां हैं. इसकी दीवारें जटिल रूप से नक्काशीदार हिंदू देवताओं, ऋषियों और होयसल राजाओं के जीवन को दर्शाती फ्रेज से सजी हुई हैं. मंदिर की बाहरी दीवारें रामायण, महाभारत और भगवद गीता आदि के बारीक चित्रों से सजी हुई हैं.
♦ मंदिर परिसर में दो मुख्य मंदिर हैं- एक होयसलेश्वर को समर्पित है और दूसरा राजा विष्णुवर्धन की रानी शांतलदेवी को समर्पित है, जिन्होंने मंदिर का निर्माण करवाया था. दोनों मंदिरों में भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग हैं. मंदिर परिसर के भीतर अन्य मंदिरों में अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं, जिनमें से एक सूर्य भगवान को समर्पित है.
♦ इस मंदिर में एक विशाल पत्थर के नंदी के साथ सूर्य देव की 7 फीट लंबी मूर्ति है. होयसलेश्वर मंदिर का एक और चमत्कार भगवान गणेश जी की मूर्तियों का समूह है. मंदिर की बाहरी दीवार का दाहिना हिस्सा एक नृत्य करते हुए गणेश जी के चित्र से शुरू होता है. मंदिर में भगवान गणेश जी की लगभग 240 अलग-अलग मुद्राओं वाली मूर्तियां हैं.
♦ गरुड़ स्तंभ मंदिर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कि गरुड़ राजाओं और उनकी रानियों के अंगरक्षकों का उल्लेख करते हैं. इन सबके साथ, मंदिर की छत भी अनोखी है, जिसे सुनकाशी के रूप में जाना जाता है. मंदिर के इस हिस्से को छोटी छतों और एटिक्स से सजाया गया है जो अब एक खंडहर की स्थिति में हैं. लेकिन मंदिर की हर एक मूर्ति आसानी से दिखाई देती है. वहीं, मंदिर परिसर के भीतर संग्रहालय (म्यूजियम) खुदाई में मिलीं मूर्तियों, लकड़ी के हस्तशिल्प, नक्शों और देवताओं और मंदिरों की तस्वीरों का खजाना है.
होयसलेश्वर मंदिर का समय
(Hoysaleshwar Temple Timings)
होयसलेश्वर मंदिर में अब फिलहाल नियमित पूजा-अर्चना नहीं होती है, यानी यह एक दर्शनीय स्थल ज्यादा बनकर रह गया है… और इसलिए यहां प्रसाद वितरण की व्यवस्था भी नहीं है और न ही कोई विशेष त्योहार आदि मनाए जाते हैं. हालांकि, बहुत से लोगों के लिए यह एक पूजनीय स्थान ही है और इसलिए मंदिर में जूते पहनकर जाने पर मनाही है.
यह मंदिर सुबह 6:30 बजे खुलता है और रात 9:00 बजे बंद हो जाता है. पर्यटक साल के किसी भी समय इस मंदिर में जा सकते हैं. मंदिर परिसर में स्थित संग्रहालय (museum) सोमवार से शुक्रवार सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुलता है.
हलेबीडु बेंगलुरु से 210 किलोमीटर और मंगलुरु से लगभग 170 किलोमीटर दूर है. बनवारा निकटतम रेलवे स्टेशन (30 किमी) है. हलेबीदु में जिला मुख्यालय हसना (33 किमी) से अच्छी बस सेवा है. हलेबीडु कर्नाटक की समृद्ध विरासत का केंद्र है और इसलिए यहां ठहरने के लिए सभी बजट में अच्छे होटलों और खाने-पीने के लिए रेस्टोरेंट्स की भी अच्छी व्यवस्था है.
होयसलेश्वर मंदिर के आसपास के दर्शनीय स्थल-
केदारेश्वर मंदिर (Kedareswara Temple)- यह मंदिर होयसलेश्वर मंदिर से 400 मीटर की दूरी पर स्थित है. भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर 12वीं में बनाया गया था. मंदिर की वास्तुकला एक तारे के आकार के लेआउट और जटिल रूप से डिजाइन की गई मूर्तियों के साथ अद्भुत है, जो महाभारत और रामायण जैसी महान भारतीय घटनाओं को चित्रित करती है.
बेलूर (Belur)- कर्नाटक का एक और मंदिर शहर, बेलूर होयसलेश्वर मंदिर से 40 किमी दूर है. यह शहर भगवान विष्णु जी के अवतार भगवान चेन्नाकेशव को समर्पित मंदिर के लिए प्रसिद्ध है. इस मंदिर की दीवारें देवी-देवताओं, पौराणिक आकृतियों और रामायण, महाभारत और उपनिषद के दृश्यों की उत्तम नक्काशी से सजी हुई हैं.
लक्ष्मी देवी मंदिर (Lakshmi Devi Temple)- डोड्डागड्डावल्ली में स्थित यह मंदिर होयसलेश्वर मंदिर से लगभग 16 किमी दूर है. यह होयसाल के शासन के दौरान निर्मित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. यह सोपस्टोन मंदिर कुछ कीमती कन्नड़ शिलालेखों, भैरव और भूतनाथ, मां काली, भगवान विष्णु और भगवान शिव की अच्छी तरह से परिभाषित मूर्तियों को संग्रहीत करता है.
श्रवणबेलगोला (Shravanabelagola)- हासन जिले से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह दक्षिण भारतीय तीर्थ अपने जैन मंदिर के लिए जाना जाता है. यह स्थल अपनी 58 फीट ऊंची, ग्रेनाइट बाहुबली प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है. ओदेगल बसदी, त्यागदा कम्बा, सिद्धारा बसदी और चेन्ना बसदी जैसे जगह की जुड़वां पहाड़ियों, विंध्यगिरी और चंद्रगिरि पर कई मंदिर स्थित हैं.
जैन बसदी (Jain Basadi)- हलेबीदु एक लोकप्रिय जैन तीर्थ स्थल भी है. जैन बसदी होयसलेश्वर मंदिर से 1 किमी की दूरी पर स्थित है. इस परिसर में तीन जैन मंदिर हैं, अर्थात् पार्श्वनाथ स्वामी मंदिर, आदिनाथ स्वामी मंदिर और शांतिनाथ स्वामी मंदिर. ये मंदिर उत्कृष्ट नक्काशियों का खजाना हैं, जैसे पार्श्वनाथ मंदिर की एक काले पत्थर की मूर्ति के साथ एक सर्प नक्काशीदार सिर, जो देवता की रक्षा करता प्रतीत होता है.
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