IPC Section 80 in Hindi
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-
IPC की धारा 80 ‘दुर्घटना या दुर्भाग्य’ (Accident or Misfortune) से संबंधित है
जब कोई वैध कार्य (जो काम कानून की नजर में गलत न हो) करते समय सावधानी बरतने के बाद भी कोई हादसा हो जाता है और उससे किसी व्यक्ति को कोई क्षति पहुंची हो, तो उस काम को करने वाला व्यक्ति दोषी नहीं माना जाएगा, क्योंकि उसने वह कार्य किसी को क्षति पहुंचाने के इरादे से नहीं किया था. यह धारा इस सिद्धांत पर आधारित है कि “कोई कार्य अपने आप में आपराधिक नहीं होता, जब तक कि उसे करने वाले (कर्ता) ने उसे आपराधिक आशय से न किया हो.”
‘दुर्घटना’ का मतलब संयोग से घटी कोई घटना नहीं है, बल्कि घटना अनाशयित (आशय के बिना) और अप्रत्याशित (अचानक, जिसकी आशा न रही हो) होनी चाहिए. ‘दुर्घटना’ और ‘दुर्भाग्य’ दोनों शब्दों का मतलब ही किसी दूसरे को पहुंची क्षति से है, लेकिन फिर भी दोनों के बीच अंतर ये है कि ‘दुर्घटना’ का मतलब जहां केवल दूसरों की क्षति से है, वहीं ‘दुर्भाग्य’ का मतलब खुद उसके निर्माता और ऐसे अन्य व्यक्तियों की क्षति से है, जो कार्य से पूरी तरह से अलग हैं.
IPC की धारा 80
विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना-
“वह कोई बात अपराध नहीं है, जो दुर्घटना या दुर्भाग्य से और किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना विधिपूर्ण तरीके से, विधिपूर्ण साधनों द्वारा और उचित सतर्कता और सावधानी के साथ विधिपूर्ण कार्य करने में हो जाती है.”
इस तरह, दुर्घटना या दुर्भाग्य को अपने बचाव के रूप में पेश करने के लिए जरूरी है कि-
(1) जो कार्य हुआ है, वह अनाशयित और अप्रत्याशित हो,
(2) वह कार्य किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना किया गया हो,
(3) दुर्घटना विधिक साधनों द्वारा, विधिक तरीके से किए गए किसी विधिक कार्य का नतीजा हो,
(4) कार्य उचित सतर्कता और सावधानी से किया गया हो, यानी जितनी सतर्कता और सावधानी बरती जा सकती थी, उतनी बरती गई हो.
उदाहरण:
A कुल्हाड़ी से काम कर रहा है. तभी अचानक कुल्हाड़ी का फल उसमें से निकलकर उछल जाता है और पास में खड़े व्यक्ति को लग जाता है, जिससे उस व्यक्ति की मौत हो जाती है. यहां अगर A की तरफ से उचित सावधानी बरती गई थी, तो उसका यह कार्य अपराध नहीं है और माफी योग्य है.
जोगेश्वर बनाम एम्परर के मामले में अभियुक्त एक व्यक्ति की घूंसे से पिटाई कर रहा था. उसी समय पिटने वाले व्यक्ति की पत्नी अपने पति को बचाने के लिए अपना 2 महीने का बच्चा लिए हुए मारपीट में हस्तक्षेप करने लगती है. अभियुक्त ने उस महिला पर भी प्रहार किया, लेकिन उसका प्रहार बच्चे के सिर पर लग गया, जिससे बच्चे की मौत हो गई. इस मामले में न्यायालय ने कहा कि ‘हालांकि बच्चे को अचानक चोट आई, लेकिन अभियुक्त को धारा 80 के तहत ‘दुर्घटना का बचाव’ नहीं मिलेगा, क्योंकि अभियुक्त कोई विधिक कार्य नहीं कर रहा था और न ही विधिक तरीके से कर रहा था.’
यानी अगर किसी अवैध कार्य (Illegal Act) को करते हुए कोई दुर्घटना हो जाती है, तो वहां इस धारा का बचाव नहीं मिलेगा.
अवैध कार्य और दुर्घटना के संबंध में मैकाले ने कहा था कि “जब कोई कार्य खुद अपने आप में निर्दोष है, तो किसी व्यक्ति को जिसने उसे किया है, इसलिए दंडित करना कि उसके कार्य से ऐसे बुरे नतीजें आए हैं, जिनका कोई भी मानव बुद्धि पहले से अनुमान नहीं लगा सकती थी, घोर बर्बर और हास्यास्पद बात होगी.”
इसके लिए मैकाले ने दो उदाहरण दिए हैं-
(1) अगर कोई नौवहन चालक (Shipping Driver) पूरी सावधानी और सतर्कता के साथ जहाज चला रहा है और इसके बाद भी कोई दुर्घटना हो जाती है, जिससे बहुत से यात्रियों की डूबकर मौत हो जाती है, तो ऐसे में ड्राइवर को हत्या का दंड देना अन्यायपूर्ण होगा.
लेकिन अगर ड्राइवर की यात्रा अवैध है, जो कि एक अपराध है, तो क्या ऐसे में उसकी सजा पर कोई प्रभाव पड़ेगा? इस सवाल पर मैकाले ने कहा कि ‘ऐसा ड्राइवर अपनी उस अवैध यात्रा के लिए दंडनीय है, लेकिन वह उस दुर्घटना के लिए उत्तरदाई नहीं होगा, क्योंकि यात्रियों की मृत्यु कारित करना उसका आशय (इरादा) नहीं था.
(2) जहां कोई जेबकतरा किसी व्यक्ति की जेब काट रहा है. वह व्यक्ति अपनी जेब में पिस्तौल छिपाकर रखा है. जेबकतरा जैसे ही पिस्तौल को पकड़ता है, उसका ट्रिगर दब जाता है, जिससे पिस्तौल रखने वाले व्यक्ति की मौत हो जाती है. यहां जेबकतरा केवल चोरी के लिए दंडित किया जाएगा न कि हत्या के लिए.
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