भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 103-106: संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार

section 103 to 106 ipc in hindi, ipc section 103 to 106
Law

IPC Section 103 to 106 in hindi

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-

भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106 तक प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकारों (Right of Private Defense) के बारे में बताया गया है.

IPC की धारा 103

कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने तक का होता है-
“संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार धारा 99 में दिए गए निर्बंधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का है, अगर वह अपराध जिसके किए जाने के, या किए जाने के प्रयास के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिन पश्चात प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का है, यानी-
पहला, लूट,
दूसरा, रात्रौ गृह-भेदन,
तीसरा, अग्नि द्वारा रिष्टि, जो किसी ऐसे निर्माण, तंबू या जलयान को की गई है, जो मानव आवास के रूप में, या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है,
चौथा, चोरी, रिष्टि या ग्रह अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अगर प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया, तो परिणाम मृत्यु या घोर उपहति होगा”.

भारतीय दंड संहिता की धारा 103 उन परिस्थितियों की तरफ इशारा करती है, जिनमें प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए संपत्ति की रक्षा के लिए भी हमलावर या अपराधी की मृत्यु तक कारित की जा सकती है.

इस धारा के तहत, अगर चोरी, रिष्टि या ग्रह अतिचार ऐसी परिस्थिति में किया जा रहा है, जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका उत्पन्न हो जाए कि अगर प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल ना किया गया, तो परिणाम मृत्यु या घोर उपहति (गंभीर चोट) होगा, तो संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार में हमलावर की मृत्यु तक कारित की जा सकती है. यह धारा भी धारा 99 में दिए गए निर्बंधनों या शर्तों के अधीन है, यानी-

(1) अगर संपत्ति की रक्षा में लोक प्राधिकारियों की सहायता ली जा सकती है, तो उस समय संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के तहत हमलावर की मृत्यु कारित नहीं की जा सकती है.

(2) संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के तहत भी हमलावर को उतनी ही अपहानि कारित करने या क्षति पहुंचाने की अनुमति है, जितनी संपत्ति की प्रतिरक्षा के लिए जरूरी है.

अगर किसी व्यक्ति को अपने नियोजक की संपत्ति पर चौकीदारी करने के लिये नियुक्त किया गया है, तो धारा 97, 99, 103 और 105 के तहत उसे बचाव का अधिकार दिया गया है. यानी अगर नियोजक की संपत्ति की रक्षा में वह चौकीदार किसी व्यक्ति की मृत्यु भी कारित कर देता है, तो वह अपराधी नहीं माना जाएगा, बशर्ते उस चौकीदार के दिमाग में इस संभावना की युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न हो जाए कि उसने जिस हमलावर की मृत्यु कारित की है, वह धारा 103 में दिया गया कोई ना कोई अपराध (चोरी, रिष्टि या गृह अतिचार) करना ही चाहता था, या ऐसा अपराध करने का प्रयास कर रहा था….और अगर प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल ना किया गया, तो उसका परिणाम मृत्यु या घोर उपहति (गंभीर चोट) होगा.

IPC की धारा 104

ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है-
“अगर वह अपराध, जिसके लिए जाने या किए जाने के प्रयास से प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, ऐसी चोरी, रिष्टि या आपराधिक अतिचार है जो पूर्वगामी अंतिम धारा (धारा 103) में दी गईं भांतियों में से किसी भांति का न हो, तो उस अधिकार का विस्तार से स्वेच्छया मृत्यु कारित करने तक का नहीं होता, लेकिन उसका विस्तार धारा 99 में दिए गए निर्बंधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है”.

धारा 104 के तहत, संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार में हमलावर या अपराधी की मृत्यु कारित करने के लिए धारा 103 के तहत जिन परिस्थितियों या युक्तियुक्त आशंकाओं का जिक्र किया गया है, अगर उनमें से कोई भी परिस्थिति या युक्तियुक्त आशंका नहीं बन रही है, तो ऐसे में हमलावर की मृत्यु कारित नहीं की जा सकती. संपत्ति की रक्षा के लिए उसे कोई अन्य क्षति पहुंचाई जा सकती है.

यानी अगर चोरी, रिष्टि या गृह अतिचार के समय हमलावर की तरफ से मृत्यु या घोर उपहति (गंभीर चोट) जैसी कोई हानि की युक्तियुक्त आशंका न हो रही हो, या अगर लोक प्राधिकारियों की सहायता ली जा सकती हो, तो ऐसे में हमलावर की मृत्यु कारित नहीं की जा सकती है, बल्कि संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार में हमलावर को उतनी ही हानि या क्षति पहुंचाई जा सकती है, जितनी कि उसे रोकने या संपत्ति को बचाने के लिए जरूरी है. (लगभग वही नियम जो शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार में धारा 100 के तहत दिए गए हैं)

IPC की धारा 105

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहना-
“संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब प्रारंभ होता है, जब संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका प्रारंभ होती है.
चोरी के विरुद्ध संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक, या लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त कर लेने तक, या संपत्ति प्रत्युद्धृत (वापस मिल जाने तक) हो जाने तक बना रहता है.
लूट के विरुद्ध संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु, उपहति या सदोष अवरोध कारित करता रहता है या कारित करने का प्रयत्न करता रहता है, या जब तक तत्काल मृत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल वैयक्तिक अवरोध का भय बना रहता है.
आपराधिक अतिचार या रिष्टि के विरुद्ध संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी के आपराधिक अतिचार या रिष्टि करता रहता है.
रात्रौ गृह-भेदन के विरुद्ध संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब तक बना रहता है, जब तक ऐसे गृह-भेदन से आरंभ हुआ ग्रह अतिचार होता रहता है”.

धारा 105 यह बताती है कि संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार कब शुरू होता है और कब तक बना रहता है. धारा 102 की तरह ही संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब शुरू होता है, जब संपत्ति के खिलाफ खतरे की युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न होती है और यह अधिकार तब तक बना रहता है जब तक-

चोरी के मामले में- जब तक चोर संपत्ति समेत व्यक्ति की पहुंच से बाहर ना हो जाए, या जब तक लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त न कर ली जाए, या जब तक चोरी की संपत्ति वापस ना मिल जाए.

लूट के मामले में- जब तक हमलावर व्यक्ति की मृत्यु या उपहति या सदोष अवरोध कारित करता रहता है, या कारित करने का प्रयास करता रहता है,
या जब तक तत्काल मृत्यु या तत्काल उपहति या तत्काल सदोष अवरोध का डर बना रहता है.

आपराधिक अतिचार या रिष्टि के मामले में- जब तक अपराधी आपराधिक अतिचार या रिष्टि का अपराध करता रहता है.

रात्रौ गृह-भेदन के मामले में- जब तक गृह अतिचार बना रहता है.

जैसे- गृह अतिचार समाप्त हो जाने के बाद अगर व्यक्ति चोर का पीछा करते हुए उसे घर के बाहर मैदान में मार डालता है, तो उसे इस धारा के तहत बचाव का कोई अधिकार नहीं मिलेगा.

जैसे- अगर कोई चोर चोरी करने के लिए किसी के घर के अंदर घुसा, लेकिन उसने किसी के आने की आहट सुनी, जिससे वह तुरंत ही घर से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगा. इसी कोशिश में एक ऐसी जगह फंस जाता है, जहां से न तो वह घर के अंदर जा पा रहा है और न ही घर के बाहर. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति उस चोर को मार डालता है, तो वह व्यक्ति अपराधी माना जाएगा.

IPC की धारा 106

घातक हमले की विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है-
“जिस हमले से मृत्यु की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित होती है, उसके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने में अगर प्रतिरक्षक ऐसी स्थिति में हो कि, निर्दोष व्यक्ति की अपहानि की जोखिम के बिना वह उस अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से न कर सकता हो, तो उसके प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार वह जोखिम उठाने तक का है”.

धारा 106 यह बताती है कि वैयक्तिक प्रतिरक्षा (Personal Defence) के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए कुछ विशेष परिस्थितियों में निर्दोष व्यक्तियों को हानि पहुंचाई जा सकती है. धारा 106 केवल उन्हीं मामलों में लागू होती है, जिसमें मृत्यु की युक्तियुक्त आशंका हो, न कि घोर उपहति की. धारा 99 के निर्बंधन या सीमाएं धारा 106 पर भी लागू होती हैं.



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Sonam Agarwal 238 Articles
LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*