भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 87 : “जो सम्मति देता है, उसे क्षति नहीं पहुंचती”

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IPC Section 87 in Hindi

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-

सम्मति से किया गया कार्य, अगर कर्ता का आशय मृत्यु या घोर उपहति कारित करने (गंभीर चोट पहुंचाने) का नहीं है, तो अपराध नहीं होता

IPC की धारा 87 ज्यादातर खेलकूद के मामलों, जैसे- हॉकी, गुल्ली-डंडा, क्रिकेट, फुटबॉल, मुक्केबाजी में लागू होती है. यह धारा ऐसे खेलों में अभियुक्त को आपराधिक दायित्व से सुरक्षा देती है. जैसे- कोई व्यक्ति खेल खेलने के लिए अपनी सहमति दे देता है और खेल विधिपूर्ण तरीके से और उचित सावधानी के साथ खेला जा रहा है…और इस दौरान भी कोई घटना घट जाती है, तो वह घटना अपराध की कैटेगरी में नहीं आएगी. इसका कारण ये है कि खेलों का मुख्य उद्देश्य किसी को शारीरिक क्षति पहुंचाना नहीं होता.

इस धारा का मुख्य सिद्धांत ये है कि-
♠ सहमति कभी भी मृत्यु या गंभीर चोट को न्यायोचित नहीं ठहराती.
♠ हर एक व्यक्ति अपने कार्यों के लिए सर्वोत्तम निर्णय ले सकता है.
♠ कोई कभी किसी ऐसे कार्यों के लिए सहमति नहीं देता, जो उसे क्षति पहुंचा सकते हैं.

IPC की धारा 87

सम्मति से किया गया कार्य जिससे मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय न हो और न उसकी संभाव्यता का ज्ञान हो-
“वह कोई बात, जो मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के आशय से न की गई हो और जिसके बारे में कर्ता को यह ज्ञात न हो कि उससे मृत्यु या घोर उपहति कारित होना सम्भाव्य है, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस बात से 18 साल से ज्यादा के उम्र के व्यक्ति को, जिसने वह अपहानि सहन करने की चाहे अभिव्यक्त या चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित होना कर्ता द्वारा आशयित हो या जिसके बारे में कर्ता को ज्ञात हो कि वह उपर्युक्त जैसे किसी व्यक्ति को, जिसने उस अपहानि की जोखिम उठाने की सम्मति दे दी है, उस बात द्वारा कारित होनी संभाव्य है.”

धारा 87 इंग्लिश विधि के सूत्र “जो सम्मति देता है, उसे क्षति नहीं पहुंचती” पर आधारित है. इस धारा के तहत गंभीर चोट या मृत्यु के अलावा अन्य कोई क्षति भले ही आशयित रही हो, या कर्ता को उसके होने की संभावना का ज्ञान रहा हो, तो ऐसी परिस्थितियों में अपराध नहीं माना जाएगा, अगर-
(1) वह कार्य ना तो मृत्यु या गंभीर चोट कारित करने के आशय से किया गया हो, और न इस ज्ञान से किया गया हो कि उस कार्य से मृत्यु या गंभीर चोट कारित होने की संभावना है.
(2) क्षति किसी व्यक्ति को उसकी सम्मति से कारित की गई हो,
(3) सम्मति देने वाला व्यक्ति 18 साल से ज्यादा की उम्र का है,
(4) सम्मति स्पष्ट या विवक्षित हो सकती है.

उदाहरण-
क्रिकेट के दौरान बल्लेबाज द्वारा चौका या छक्का लगाने के लिए बल्ला घुमाया जाता है. गेंद उड़कर किसी खिलाड़ी के सिर पर लग जाती है, जिससे उस खिलाड़ी की मौके पर ही मौत हो जाती है, तो वह बल्लेबाज किसी अपराध का दोषी नहीं है, अगर खेल पूरी सावधानी और नियमों के साथ खेला जा रहा था, क्योंकि फिर इसमें कोई दो राय नहीं है कि बल्लेबाज का आशय किसी खिलाड़ी को मारने का नहीं था.

अगर सम्मति किसी बेहद खतरनाक काम को करने के लिए प्राप्त कर ली जाती है और फिर उस काम को करने के दौरान सहमति देने वाले की मौत हो जाती है, तो अगर सहमति लेने वाले का आशय किसी की मृत्यु कारित करना नहीं था, या सहमति लेने वाला यह नहीं जानता था कि इससे मौत हो सकती है, तो ऐसे में सीमित दंड की व्यवस्था की जाती है.

जैसे– कोई खिलाड़ी किसी व्यक्ति के सिर पर नींबू रखकर उस पर बंदूक से निशाना लगाता है और उसका निशाना चूक जाता है, जिससे उस व्यक्ति की मौत हो जाती है, तो ऐसे में अभियुक्त हत्या की कोटि में ना आने वाले आपराधिक मानववध का दोषी होगा.

वहीं, कुछ कार्य या खेल, जिन पर कानूनी प्रतिबंध लगाया गया है, उन्हें सहमति लेकर करने या खेलने पर अगर किसी पक्षकार को कोई क्षति पहुंचती है, तो ऐसे में अभियुक्त को धारा 87 का बचाव नहीं मिलेगा.


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