IPC Section 101 and 102 in Hindi
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-
भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106 तक प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकारों (Right of Private Defense) के बारे में बताया गया है.
IPC की धारा 101
कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न ने कोई अपहानि कारित करने तक का होता है-
“अगर अपराधी पूर्वगामी अंतिम धारा (धारा 100) में दी गईं भांतियों (प्रकारों) में से किसी भांति का नहीं है, तो शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार हमलावर की मृत्यु स्वेच्छया कारित करने तक का नहीं होता, लेकिन इस अधिकार का विस्तार धारा 99 में दिए गए निर्बंधनों के अध्यधीन हमलावर की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है.”
धारा 101 के तहत, प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए हमलावर की मृत्यु कारित को छोड़कर कोई अन्य क्षति या अपहानि कारित की जा सकती है, अगर मामला धारा 100 के तहत नहीं आता है.
यानी धारा 100 के तहत, हमलावर की मृत्यु कारित करने के लिए जिन परिस्थितियों या युक्तियुक्त आशंकाओं का जिक्र किया गया है, अगर उनमें से कोई भी परिस्थिति या युक्तियुक्त आशंका नहीं बन रही है, तो ऐसे में हमलावर की मृत्यु कारित नहीं की जा सकती. अपने बचाव में उसे कोई अन्य क्षति पहुंचाई जा सकती है.
धारा 100 के तहत, शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार में हमलावर की मृत्यु कारित तब की जा सकती है, जब-
(1) जब ऐसा हमला हो जिसके द्वारा मृत्यु की आशंका हो,
(2) जब ऐसा हमला हो जिसके द्वारा किसी घोर उपहति या किसी गंभीर चोट की आशंका हो (धारा 320),
(3) बलात्संग के आशय से किया गया हमला (धारा 375),
(4) प्रकृति विरुद्ध काम पिपासा तृप्त करने के आशय से किया गया हमला या कार्य (धारा 377),
(5) अपहरण (धारा 362) या व्यपहरण (धारा 359) के आशय से किया गया हमला,
(6) सदोष परिरोध (निश्चित परिसीमा से बाहर जाने से रोकना) करने के आशय से किया गया हमला, जिससे पुलिस या प्रशासन की सहायता प्राप्त न की जा सके (धारा 340),
(7) ऐसा हमला, जिसमें अम्ल या एसिड फेंकने की युक्तियुक्त आशंका हो.
अगर प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए अभियुक्त (Accused) ने हमलावर की मृत्यु कारित ना करते हुए उसे कोई और क्षति पहुंचाई है, तो उसे यह साबित करना होगा कि उसने धारा 99 के तहत सीमा का उल्लंघन नहीं किया है.
IPC की धारा 102
शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार की शुरुआत और उस अधिकार का बना रहना-
“शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह अपराध न किया गया हो और वह अधिकार तब तक बना रहता है, जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है.”
धारा 102 यह बताती है कि शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार कब शुरू होता है और कब तक बना रहता है. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी समय शुरू हो जाता है, जैसे ही शरीर के लिए खतरे की युक्तियुक्त (उचित) आशंका उत्पन्न होती है और यह अधिकार तब तक बना रहता है, जब तक ऐसे खतरे की आशंका बनी रहती है.
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