Lachit Borphukan History Assam
स्कूल में पढ़ाई जाने वाली हमारी इतिहास की किताबों में आक्रांताओं को एक महान शासकों के तौर पर पेश किया गया है, लेकिन देश के जिन योद्धाओं ने उनसे वीरतापूर्वक लड़ते हुए, उन्हें हराकर अपने राज्य और अपनी भूमि की रक्षा की, उनका नाम तक इतिहास की किताबों में नहीं मिलता है. इसी बात पर एक बार फिर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने लचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) की 400वीं जयंती पर एक बार फिर उनका जिक्र करते हुए कहा-
“भारत का इतिहास केवल गुलामी का इतिहास नहीं है, भारत का इतिहास योद्धाओं का है, विजय का है, त्याग का है, तप का है, वीरता का है, बलिदान का है, महान परंपराओं का इतिहास है. यह अत्याचारियों के विरुद्ध अभूतपूर्व शौर्य और पराक्रम दिखाने का इतिहास है. लेकिन दुर्भाग्य से हमें आजादी के बाद भी वही इतिहास पढ़ाया जाता रहा, जो गुलामी के कालखण्ड में साजिश के तौर पर रचा गया था.”
“जबकि आजादी के बाद जरूत थी, हमें गुलाम बनाने वाले विदेशियों के एजेंडे को बदला जाए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. देश के हर कोने में मां भारती के वीर बेटे-बेटियों ने कैसे आतताइयों का मुकाबला किया, अपना जीवन समर्पित कर दिया… उस इतिहास को जानबूझकर दबा दिया गया. क्या देश की संस्कृति और पहचान के लिए, मुगलों के खिलाफ युद्ध में लड़ने वाले, हजारों लोगों का बलिदान कोई मायने नहीं रखता? क्या लचित बोरफुकन का शौर्य कोई मायने नहीं रखता?”
“असम के लोगों ने अनेकों बार तुर्कों, मुगलों, अफगानों का मुकाबला किया और उन्हें पीछे खदेड़ा. मुगलों ने गुवाहाटी पर कब्जा कर लिया था, लेकिन लचित बोरफुकन जैसे योद्धाओं ने मुगल सल्तनत से गुवाहाटी को आजाद करवा लिया. लचित बोरफुकन की कहानी हमें बताती है कि अगर कोई तलवार के जोर से हमें झुकाना चाहता है, हमारी शाश्वत पहचान को बदलना चाहता है, तो हमें उसका जवाब देना भी आता है.”
कौन थे लचित बोरफुकन?
(Who was Lachit Borphukan?)
असम के इतिहास में ‘सरायघाट के युद्ध’ (Battle of Saraighat) का जिक्र मुख्य रूप से आता है. इसी युद्ध से जुड़ा हुआ है वीर लचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) का नाम जिन्हें मुगलों को धूल चटाने के लिए याद किया जाता है. लचित बोरफुकन भारत के ऐसे महान योद्धा थे, जिन्होंने औरंगजेब की 80,000 सैनिकों की फौज को एक निर्णायक युद्ध में हरा दिया था. वे असम की उस अहोम सेना के मुख्य नायक थे, जिसने असम राज्य पर लगभग 600 वर्षों तक शासन किया था.
‘पूर्वोत्तर का शिवाजी’
लचित बोरफुकन को पूर्वोत्तर का शिवाजी भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने वीर शिवाजी की ही तरह मुगलों की रणनीति को विफल कर युद्ध के मैदान में हरा दिया था. इन्होंने साल 1671 में ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra) के तट पर हुए सराईघाट के युद्ध में अपनी सेना का नेतृत्व बड़े प्रभावशाली तरीके से किया, जिससे असम पर कब्जा करने का मुगल सेना का प्रयास विफल हो गया था. इसे एक नदी पर होने वाली सबसे बड़ी नौसैनिक लड़ाई के रूप में जाना जाता है, जिसमें मुगल सेना की हार और अहोम सेना की जीत हुई थी.
The Lachit Borphukan Gold Medal
तभी से असम के इतिहास में लचित बोरफुकन का नाम अमर हो गया. औरंगजेब का सेनापति हारकर भी यह कहकर गया था कि उन्होंने ऐसा योद्धा कभी नहीं देखा. लचित बोरफुकन से भारतीय नौसैनिक शक्ति को मजबूत करने, अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने और नौसेना की रणनीति से जुड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण की प्रेरणा मिलती है. राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को ‘लचित बोरफुकन स्वर्ण पदक’ प्रदान किया जाता है.
लचित बोरफुकन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
लचित बोरफुकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था. वे अहोम सेना के प्रमुख थे. लचित बोरफुकन के पिता कालुक मो-साई (एक ताई-अहोम पुजारी) को 4 रुपये का कर्ज चुकाने के लिए बंधुआ मजदूर बनना पड़ा था. बाद में उनकी नेतृत्व क्षमता से प्रभावित होकर अहोम साम्राज्य के 10वें राजा प्रताप सिंह ने उन्हें अपना सेनापति नियुक्त कर दिया. इसके बाद यह परिवार पूरी तरह से अपने राजा और अहोम के लिए समर्पित हो गया.
अहोम साम्राज्य (Ahom Kingdom)
साल 1225 से लेकर 1826 तक असम में अहोम साम्राज्य का शासन था. असम में अहोम वंश की स्थापना 13वीं शताब्दी में म्यांमार के शान प्रांत से आए सुकफा (Sukaphaa) नाम के राजा ने की थी. अहोम वंश के शासकों ने खुद को हिंदू धर्म में पूरी तरह ढालकर अपना शासन असम की हिंदू जनता के मुताबिक ही किया.
16वीं शताब्दी तक असम के एक बड़े हिस्से पर सादिया साम्राज्य का शासन हुआ करता था, लेकिन अहोम राजवंश ने सादिया साम्राज्य को हराकर असम को अपने नियंत्रण में ले लिया. यह वह दौर था, जब पूर्वोत्तर में अहोम साम्राज्य का विस्तार हो रहा था.
इसी दौर में मुगलों की ताकत में भी विस्तार हो रहा था, और उन्होंने भारत के एक भूखंड पर अपना कब्जा कर लिया था, लेकिन शाहजहां के शासनकाल में पूर्वोत्तर मुगलों की पहुंच से बहुत दूर था. औरंगजेब के शासनकाल में पूर्वोत्तर के राज्यों पर भी कब्जे की तैयारी शुरू हो गई थी.
औरंगजेब का हमला और अहोम सैनिकों का शौर्य
औरंगजेब ने अहोम साम्राज्य पर विजय के लिए 21 सामंत, 32 हजार पैदल सैनिक, 18 हजार तुर्क घुड़सवार और 15 हजार तीरंदाजों को भेजा, लेकिन इसके बाद भी लचित बोरफुकन के आगे मुगल सेना की एक न चली. साल 1671 में लचित बोरफुकन के अचानक हमले की रणनीति से मुगल सेना को भयानक नुकसान पहुंचा.
सरायघाट के युद्ध में शुरुआत में मुगल सेना हावी रही, जिससे अहोम सेना पीछे हटने लगी, तभी लाचित बोरफुकन एक छोटी सी नाव लेकर खुद युद्ध में उस समय उतर गए, जब उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था. उन्होंने अकेले ही पूरी सेना का नेतृत्व किया. उनका हर सैनिक नाव चलाने, तीरंदाजी, खाईयां खोदने और बंदूक-तोप चलाने में माहिर था.
मुगल सेना जंग के मैदान में उनकी एक भी कमजोरी न पकड़ सकी. लाचित बोरफुकन की ललकार से, फिर से जोश से भरे अहोम सैनिकों ने पूरी ताकत से लड़ते हुए मुगल सैनिकों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया. वहीं पर बनाए गए हथियार और छोटी नाव को लेकर यह बड़ा युद्ध लड़ा गया.
संख्या बल और युद्ध की जानकारी के आधार पर कई असमानताओं के बावजूद वह देशभक्ति की ही ताकत थी, जिसने अहोम सेना को विजय दिलाई. इसके बाद भी मुगलों ने कई बार अहोम सेना पर हमले किए, लेकिन वे कामयाब न हो सके और असम मुगलों का गुलाम होने से बच गया, जिसकी सबसे बड़ी वजह थे लाचित बोरफुकन.
असम (Assam)
उत्तर पूर्वी राज्यों से घिरा असम या आसाम भारत का एक बेहद ही खूबसूरत, उपजाऊ और महत्वपूर्ण राज्य है. प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस स्थान का नाम प्रागज्युतिसपुर (Pragjyotishpura) बताया गया है. इस राज्य का उल्लेख महाभारत और रामायण और पुराणों में भी किया गया है. राज्य हरियाली के सुंदर हरे-भरे आवरण, पहाड़ियों और नदियों की एक श्रृंखला, मुख्य रूप से ब्रह्मपुत्र से सुशोभित है.
अनादि काल से असम अलग-अलग जातियों और जनजातियों का निवास स्थान रहा है. इस राज्य की प्रमुख नदी ब्रह्मपुत्र है. सुरम्य प्राकृतिक सुंदरता से संपन्न इस राज्य का क्षेत्रफल लगभग 78,438 वर्ग किमी है. इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम, मेघालय तथा त्रिपुरा एवं पश्चिम में पश्चिम बंगाल स्थित है.
म्यांमार (Myanmar)
1937 तक म्यांमार भी भारत का ही हिस्सा था. इसे ‘ब्रह्मा‘ या ‘ब्रह्मदेश’ के नाम से जाना जाता था. ब्रिटिश राज के बाद इस देश को अंग्रेजी में ‘बर्मा’ कहा जाने लगा. 1937 ई. में ब्रिटिश भारत से म्यांमार को अलग कर दिया गया और द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान ने इस पर अपना अधिकार कर लिया. यह भारत और चीन के बीच एक रोधक राज्य का भी काम करता है. म्यांमार के उत्तर में चीन, पश्चिम में भारत, बांग्लादेश और हिंद महासागर तथा दक्षिण और पूर्व में थाईलैंड और लाओस देश स्थित हैं.
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