Layers of Atmosphere : पृथ्वी का वायुमंडल, जानिए वायुमंडल की सभी परतों के बारे में

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Layers of Atmosphere in Hindi-

पृथ्वी को चार भागों में बांटा गया है- स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल और जीवमंडल (Lithosphere, Hydrosphere, Atmosphere and Biosphere). इनमें से वायुमंडल का मतलब नाम से ही पता चलता है कि वायुमंडल यानी वायु (हवा) का मंडल या आवरण. हमारी पृथ्वी चारों तरफ से वायु की एक घनी-मोटी चादर से घिरी हुई है, जिसे वायुमंडल (Atmosphere) कहते हैं. इसे पृथ्वी का ‘सुरक्षा कवच’ और ‘जीवनदायनी घेरा’ भी कहा जाता है. वायुमंडल को कई परतों (Layers) में बांटा गया है.

इसी वायुमंडल में अलग-अलग तरह की गैसें जैसे- ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, ऑर्गन आदि हैं, इसी वायुमंडल में सभी मौसमी क्रियाएं होती हैं, इसी वायुमंडल में हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर, ड्रोन आदि उड़ते हैं. यही वायुमंडल पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणियों को सूर्य की तेज और हानिकारक किरणों से बचाता है… आदि. पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणी इस वायुमंडल पर निर्भर हैं, और इसे हमारी पृथ्वी का सुरक्षा घेरा भी कहते हैं. यह वायुमंडल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की वजह से पृथ्वी से जुड़ा रहता है.

वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसों का लगभग 99% भाग दो गैसों- नाइट्रोजन और ऑक्सीजन से बना हुआ है. वायुमंडल में लगभग 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और बाकी 1% भाग में ऑर्गन (93%), कार्बन डाइऑक्साइड (0.03%) नियॉन और हाइड्रोजन आदि गैसें हैं. वायुमंडल के निचले भाग में धूलकण और जलवाष्प होती है, जिनके कारण वर्षा और हिमपात (Rain and Snowfall) होता है. वायुमंडल की निचली परत सघन (Denser) होती है, जबकि ऊपरी परतें विरल (Sparse) होती जाती हैं.

Layers of Atmosphere : 

पृथ्वी के वायुमंडल की संरचना को कई भागों या परतों में बांटा गया है. प्रत्येक परत या मंडल की अपनी विशेषताएं हैं. इन परतों का अधिकतर भाग पूर्ण रूप से परिभाषित नहीं है और इनकी सीमा के निर्धारण में भी मतभेद हैं. वर्तमान में वायुमंडल के बारे में प्राप्त आधुनिकतम जानकारी के आधार पर प्रभावी वायुमंडल की ऊँचाई 16 से 29 हजार किलोमीटर तक है, लेकिन समुद्र तल से 800 किलोमीटर की ऊँचाई तक का वायुमंडल सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है.

सामान्य तौर पर ऊँचाई, तापमान और वायुदाब की विशेषताओं के आधार पर पृथ्वी के वायुमंडल की परतों को मुख्य रूप से 5 अलग-अलग भागों में बांटा गया है (नीचे से शुरुआत करके)-

(1) क्षोभमंडल (Troposphere) (0-11 km)
(2) समतापमंडल (Stratosphere) (11-50 km)
(3) मध्यमंडल (Mesosphere) (50-85 km)
(4) बाह्यमंडल (Thermosphere) (85-800 km)
(5) बहिर्मंडल (Exosphere) (800-10,000 km)

(1) क्षोभमंडल या ट्रोपोस्फीयर (Troposphere)

क्षोभमंडल वायुमंडल की सबसे निचली परत है. यह धरातल से शुरू होकर समुद्र तल से औसतन 10 से 12 किलोमीटर ऊपर तक फैला हुआ है, क्षोभमंडल की सतह से ऊंचाई लगभग 13 किलोमीटर है, भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में इसकी ऊंचाई लगभग 18 किलोमीटर और ध्रुवीय क्षेत्रों में इसकी ऊंचाई लगभग 8 किलोमीटर है.

‘ट्रोपाज’ ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है- मिश्रण या विक्षोभ. इसी कारण इसे विक्षोभ मंडल भी कहा जाता है. क्षोभमंडल के सबसे निचले हिस्से को ‘सीमा परत’ (Boundary Layer) कहा जाता है, और सबसे ऊपरी परत को ट्रोपोपॉज (Tropopause) कहा जाता है. क्षोभ सीमा को संक्रमण स्तर (Transition Level) भी कहा जाता है.

इसे परिवर्तन या संवहन मंडल (Change or Convection Circle) के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि मौसम संबंधी लगभग सभी क्रियाएं, जैसे- बारिश, बादलों का गरजना, आंधी-तूफान, बिजली कड़कना आदि इसी क्षोभमंडल में होती हैं.

क्षोभमंडल में वायुमंडल की समस्त वायु का 75% भाग होता है. यह परत मुख्य रूप से जलवाष्प और धूलकणों से बनी है. अधिकतर बादल इसी परत में दिखाई देते हैं क्योंकि वायुमंडल का 99% जलवाष्प यहीं पाया जाता है.

जैसे-जैसे आप क्षोभमंडल में ऊपर जाते हैं, तापमान और वायुदाब कम होता जाता है. ऊंचाई के साथ-साथ ताप में कमी आती जाती है और प्रति 165 मीटर पर 1 डिग्री सेल्सियस (1 किमी पर 6 डिग्री सेल्सियस) की कमी होती है. इसे ‘सामान्य ह्रास दर’ कहते हैं.

जब हवा का एक पार्सल ऊपर की ओर बढ़ता है तो वह फैलता जाता है. गर्मियों में क्षोभमंडल की ऊंचाई बढ़ जाती है तथा सर्दियों में घट जाती है. जब हवा फैलती है तो वह ठंडी हो जाती है, और इसी कारण वायुमंडल का यह भाग ठंडा और गर्म होता रहता है.

क्षोभमंडल की समाप्ति के बाद आता है समतापमंडल. लेकिन इन दोनों परतों के बीच धरती से 12 से 16 किमी की ऊंचाई पर 1 से 1.6 मीटर मोटी परत मिलती है, जिसे क्षोभ सीमा या मध्य स्तर (Middle Level) कहा जाता है. इस सीमा पर मौसमी बदलाव बंद हो जाते हैं.

(2) समताप मंडल या स्ट्रैटोस्फियर (Stratosphere)

यह वायुमंडल की दूसरी परत है. समतापमंडल क्षोभमंडल के ऊपर से शुरू होता है और लगभग 50 किलोमीटर (31 मील) की ऊंचाई तक फैला होता है. ध्रुवों पर समतापमंडल की मोटाई सबसे अधिक और भूमध्य रेखा पर न्यूनतम होती है.

समतापमंडल में मौसमी परिवर्तन नहीं होते हैं, इसीलिए समतापमंडल में वायुयान उड़ाने के लिए आदर्श दशाएं पाई जाती हैं. यानी प्लेन वगैरह इसी समतापमंडल में उड़ाए जाते हैं. हालांकि, कभी-कभी इस मंडल में विशेष बादलों का निर्माण होता है, जिन्हें मुक्ताभ मेघ (Muktabha clouds) कहा जाता है. लेकिन ये बारिश करने वाले मेघ नहीं होते हैं.

समतापमंडल पृथ्वी की ओजोन परत के घर के रूप में जाना जाता है, क्योंकि ओजोन परत समताप मंडल के भीतर स्थित है. इस परत में ओजोन अणु सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet Rays) को अवशोषित कर लेते हैं और इसे गर्मी में बदल देते हैं. इस वजह से, क्षोभमंडल के विपरीत, आप जितना ऊपर जाते हैं समतापमंडल गर्म होता जाता है!

यानि समतापमंडल में ऊँचाई के साथ तापमान में वृद्धि ओजोन गैस द्वारा पराबैंगनी किरणों के अवशोषण (Absorption) के कारण होती है. लगभग 50 किलोमीटर की ऊँचाई पर तापमान में गिरावट शुरू हो जाती है. यह समतापमंडल की अंतिम सीमा होती है, जिसे ‘स्ट्रैटोपॉज’ कहा जाता है. इसके ऊपर तापमान फिर से कम होने लगता है.

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ओजोनमंडल (Ozonosphere)- ओजोन परत समतापमंडल के भीतर स्थित है. ओजोन मंडल वास्तव में समतापमंडल का निचला भाग है. इस परत की मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है. ओजोन परत पृथ्वी से 15 किमी से 30 किमी के बीच समताप मंडल में स्थित है और हमें और अन्य जीवित चीजों को सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से बचाती है. ओजोन परत के क्षरण से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है. इस परत को बचाना अनिवार्य है. ओजोन परत को सबसे ज्यादा नुकसान CFC (क्लोरो फ्लोरो कार्बन) से होता है, जो मुख्य रूप से AC और फ्रिज से निकलती है.

ओजोन (O3) गंधयुक्त और हल्के नीले रंग की गैस होती है. यह ऑक्सीजन का ही एक प्रकार है. जब ऑक्सीजन के तीन परमाणु आपस में जुड़ते हैं, तो ओजोन परत बनाते हैं.

(3) मध्यमंडल या मीसोस्फीयर (Mesosphere)

समतापमंडल के ऊपर मेसोस्फीयर या मध्यमंडल है. यह समुद्रतल से लगभग 80-85 किमी (53 मील) की ऊंचाई तक फैला हुआ है (या मध्यमंडल के ऊपर औसतन 50 से 80-85 किमी की ऊंचाई तक). जैसे-जैसे आप मध्यमंडल से ऊपर जाते हैं, तापमान ठंडा होता जाता है. हमारे वायुमंडल का सबसे ठंडा भाग इसी परत में है, जो -90°C से -100°C तक पहुंच सकता है. मध्यमण्डल की ऊपरी सीमा को मध्यमंडल सीमा या मेसोपॉज कहते हैं. इस मंडल में ध्रुवों के ऊपर गर्मियों में नॉक्टीलुसेंट बादल (Noctilucent clouds) पाए जाते हैं. अधिकतर उल्कापिंड इस वायुमंडलीय परत में आकर जल जाते हैं.

(4) बाह्यमंडल या तापमण्डल या थर्मोस्फीयर (Thermosphere)

थर्मोस्फीयर या तापमण्डल मध्यमंडल के ऊपर मौजूद होता है. यह मध्यमंडल से औसतन 80 किमी की ऊंचाई से लेकर 600-800 किमी तक फैला हुआ है. इतनी ऊँचाई पर गैसें अत्यंत विरल हो जाती हैं, इसलिए तापमण्डल में प्रत्यक्ष रूप से तापमान का मापन नहीं किया जा सकता है.

यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां ऊपर जाने पर तापमान बढ़ता जाता है. तापमान में यह वृद्धि सूर्य से पराबैंगनी और एक्स-रे किरणों के अवशोषण (Absorption) के कारण होती है. ऊपरी तापमण्डल में तापमान लगभग 500 डिग्री सेल्सियस से 2,000 डिग्री सेल्सियस या इससे ज्यादा हो सकता है. हालांकि, इस परत में हवा इतनी पतली होती है कि ठंड का एहसास होता है.

तापमंडल में सैटेलाइट्स पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं, जैसे सभी स्पेस स्टेशन पृथ्वी से करीब 400 किमी की ऊंचाई पर स्थापित किए गए हैं. तापमण्डल के विद्युत आवेशित गैस अणु पृथ्वी से रेडियो तरंगों को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर देते हैं. इस प्रकार यह परत लंबी दूरी के संचार में भी मदद करती है.

अरोरा (Aurora), नॉर्दर्न लाइट्स और सदर्न लाइट्स भी थर्मोस्फीयर में होते हैं (आमतौर पर रात में या सुबह होने से ठीक पहले पृथ्वी के दोनों ध्रुवों यानी दक्षिणी और उत्तरी ध्रुव (South and North Pole) के आसमान में हरे, लाल और नीले रंग के मिश्रण से पैदा होने वाले सुंदर प्रकाश को ‘अरोरा’ कहते हैं).

तापमण्डल हमें उल्काओं आदि से भी बचाता है क्योंकि इसका उच्च तापमान पृथ्वी की ओर आने वाले लगभग ऐसे सभी मलबे को जला देता है.

आयन मंडल (Ionosphere)-

आयन मंडल (Ionosphere) कोई अलग परत नहीं है, यह तापमण्डल का ही एक भाग है. इसमें विद्युत आवेशित कण पाए जाते हैं, जिन्हें आयन (Ion) कहा जाता है. विद्युत और चुंबकीय घटनाएं जैसे कॉस्मिक किरणें, विद्युत चमक आदि इसी मंडल में होती हैं. सूर्य की पराबैंगनी किरणों से और अन्य अधिक ऊर्जा वाली किरणों और कणों से आयनमंडल की गैसें आयनित (Ionized) हो जाती हैं.

पृथ्वी से प्रसारित होने वाली रेडियो तरंगें (Radio waves) इस परत से टकराकर वापस लौट आती हैं, जिससे रेडियो कम्युनिकेशन में मदद मिलती है. अगर ये परत न होती तो पृथ्वी से भेजी जाने वाली सभी रेडियो तरंगें सीधे अंतरिक्ष में ही निकल जातीं और वापस पृथ्वी पर नहीं आ पातीं. आयनमंडल को भी चार परतों में बांटा गया है.

(5) बहिर्मंडल या एक्सोस्फीयर (Exosphere)

यह वायुमंडल की सबसे बाहरी परत है. यह वह क्षेत्र है जहां अणु और परमाणु अंतरिक्ष में पलायन करते हैं. यह थर्मोस्फीयर (तापमण्डल) के टॉप से लगभग 10,000 किमी तक फैला हुआ है. हालाँकि, इस परत की कोई स्पष्ट ऊपरी सीमा नहीं है.

बाह्यमंडल अंततः अंतरिक्ष में लुप्त हो जाता है (यह परत कितनी ऊंचाई तक फैली हुई है, इसकी सटीक जानकारी नहीं है). इस मंडल को पृथ्वी के वायुमंडल की सीमा माना जा सकता है. इसके बाद अंतरिक्ष आ जाता है. थर्मोस्फीयर और एक्सोस्फीयर के बीच की सीमा को थर्मोपॉज के रूप में जाना जाता है.

यहाँ गैसों का घनत्व अत्यंत कम हो जाता है. इस परत में केवल ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, ऑर्गन और हीलियम जैसी गैसों के अंश होते हैं क्योंकि गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण गैस के अणु आसानी से अंतरिक्ष में भाग जाते हैं.

जानिए- ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीन हाउस गैस प्रभाव


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LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

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