Earth’s Internal Structure : पृथ्वी की आंतरिक संरचना

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पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Crust Mantle Core)

Earth Internal Structure (Prithvi ki Antarik Sanrachna)

पृथ्वी की संरचना (Earth’s internal structure) को मुख्य रूप से 3 अलग-अलग परतों में बांटा जा सकता है- क्रस्ट, मेंटल और कोर (Crust, Mantle and Core). प्रत्येक परत के अपने गुण हैं.

पृथ्वी के भीतर गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान भी बढ़ता जाता है. क्रस्ट से कोर की तरफ प्रति 32 मीटर पर 1 डिग्री सेल्सियस का तापमान बढ़ जाता है.

तापमान में तीव्र गति से वृद्धि एक निश्चित गहराई तक होती है, इसके बाद यह वृद्धि धीमी गति से होती है. तापमान में वृद्धि के मुख्य कारण हो सकते हैं-

रेडियोधर्मी तत्वों के क्षय से गर्मी
आंतरिक और बाह्या शक्तियां, जैसे गुरुत्वाकर्षण बल और और ऊपरी चट्टानों का भार
रासायनिक प्रक्रियाएं.

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पृथ्वी की सबसे बाहरी परत पर क्रस्ट (Crust) है, जिसमें महाद्वीप और महासागरीय घाटियां शामिल हैं. पृथ्वी का क्रस्ट किसी सेब पर छिलके के समान है. पृथ्वी के क्रस्ट की मोटाई महाद्वीपों में 35 से 70 किलोमीटर (22 से 44 मील) और महासागरीय घाटियों में 5 से 10 किलोमीटर (3 से 6 मील) है. कोर (Core) पृथ्वी की सबसे भीतरी परत है, जो लगभग 2900 किमी की गहराई पर स्थित है.

अंदर से सूर्य से भी ज्यादा गर्म है हमारी पृथ्वी- पृथ्वी के आंतरिक भाग का तापमान 6000 से 7000 डिग्री सेल्सियस तक होता है. ऐसी स्थिति में आंतरिक भाग में पाई जाने वाली चट्टानों को तरल और गैसीय अवस्था में होना चाहिए, लेकिन ऐसा है नहीं. इतने उच्च तापमान पर पदार्थ का ठोस अवस्था में पाया जाना आश्चर्यजनक है. वैज्ञानिक इसका कारण ये बताते हैं-

सतह से केंद्र की ओर गहराई में जाने पर तापमान में वृद्धि के साथ-साथ दबाव (Pressure) में भी वृद्धि होती जाती है. यह दबाव सागर तल पर वायुमंडल की परतों द्वारा लगाए जाने वाले बल की तुलना में लाखों गुना ज्यादा होता है. अत्यधिक दबाव के कारण पृथ्वी के केंद्र (Earth’s center) के निकट अत्यधिक तापमान के बाद भी धात्विक आंतरिक कोर (Metallic Inner Core) की तरल चट्टानें ठोस अवस्था में पाई जाती हैं.

ये चट्टानें प्लास्टिक अवस्था में हो सकती हैं, इसलिए इनमें लचीलापन होता है और आंतरिक दबाव के कारण 2900 किलोमीटर की गहराई तक ठोस दिखाई देती हैं. जहां कहीं भी दबाव में कमी आती है, उसके नीचे के भाग की चट्टानें बहुत ज्यादा तापमान के कारण पिघल जाती हैं और बाहर निकलने की कोशिश करती हैं, जिस कारण ये कई सारे रास्ते बनाकर ऊपरी सतह पर आ जाती हैं. ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruptions) इसी का एक उदाहरण है.

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(1) पृथ्वी का क्रस्ट या पपड़ी या भूपर्पटी या ऊपरी परत (Earth’s Crust)

क्रस्ट पृथ्वी का सबसे बाहरी ठोस भाग है. यह नाजुक (Fragile) है, यानी जहां आसानी से टूट-फूट हो सकती है. क्रस्ट की मोटाई सब जगह एक समान नहीं है. महासागरीय क्रस्ट (Oceanic crust) की मोटाई महाद्वीपीय क्रस्ट (Continental crust) की तुलना में कम है.

महासागरों के नीचे क्रस्ट की औसत मोटाई लगभग 5 किलोमीटर है, जबकि महाद्वीपों के नीचे यह 30 किलोमीटर तक फैली होती है. वहीं, जहां पर्वतों की रेंज होती है, वहां यह मोटाई और भी ज्यादा होती है, जैसे हिमालय पर्वत श्रेणियों के नीचे क्रस्ट की मोटाई लगभग 70 किलोमीटर है.

पृथ्वी के क्रस्ट को दो भागों में बांटा गया है-

ऊपरी क्रस्ट ऐसी चट्टानों से मिलकर बना है, जिनका ज्यादातर सिलिका (Si) और एल्युमिनियम (Al) से बना है, इसलिए इसे सियाल (SIAL) भी कहा जाता है. महाद्वीपों का ज्यादातर भाग सियाल का बना हुआ है. महासागरीय क्रस्ट में जिस प्रकार की चट्टान दिखाई देती है वह बेसाल्ट है. ऊपरी क्रस्ट की मोटाई लगभग 28 किलोमीटर है.

क्रस्ट की निचली परत ऊपरी क्रस्ट की तुलना में भारी चट्टानों से बनी है, जिसमें मुख्य रूप से सिलिका और मैग्नीशियम ज्यादा है, इसलिए इस भाग को सीमा (SIMA) कहा जाता है. सियाल और सीमा की मोटाई मिलकर 70 किलोमीटर से ज्यादा नहीं है और यह पृथ्वी के पूरे आयतन का लगभग 1% है.

(2) पृथ्वी का मेंटल (Earth’s Mantle)

कोर से ऊपर और क्रस्ट के नीचे की मोटी परत को मेंटल कहा जाता है. इसकी मोटाई लगभग 2900 किलोमीटर (1,800 मील) है. इसका आयतन पूरी पृथ्वी के आयतन का 83% है. यह ठोस अवस्था में है. इसका घनत्व (Density) क्रस्ट भाग से अधिक होता है. क्रस्ट और मेंटल के सबसे ऊपरी हिस्से को लिथोस्फीयर कहा जाता है.

पृथ्वी का मेंटल उच्च घनत्व वाले पदार्थों जैसे ऑक्सीजन, आयरन और मैग्नीशियम से बना हुआ है. इसका तापमान 900 डिग्री सेल्सियस से 2200 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है. पृथ्वी के मेंटल को ऊपरी मेंटल (एस्थेनोस्फीयर) और निचले मेंटल (मीसोस्पीयर) में बांटा गया है (Upper mantle and Lower mantle).

एस्थेनोस्फीयर की मोटाई 400 किलोमीटर तक आंकी गई है. ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान जो लावा सतह पर पहुंचता है, उसका मुख्य स्रोत एस्थेनोस्फीयर है. एस्थेनोस्फीयर मेंटल का ऊपरी भाग है. यह मैग्मा का मुख्य स्रोत है जो ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान सतह पर अपना रास्ता खोजता है.

मेंटल पृथ्वी के आंतरिक भागों में होने वाली सभी प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसका कारण है यहां मैग्मा की मौजूदगी. ऊपरी परत का दबाव क्रस्ट के निचले हिस्से और मेंटल के ऊपरी हिस्से को लगभग एक ठोस रूप देता है. अगर यह दबाव जारी रहता है तो पृथ्वी के अंदर से पिघला हुआ मैग्मा क्रस्ट की दरारों से ज्वालामुखी विस्फोट के माध्यम से सतह तक पहुंचने की कोशिश करता है.

असंबद्धता (Disassociation)- असंबद्धता का अर्थ ऐसी सतह से है, जहां पर भूकंपीय तरंगों की गति अचानक बदल जाती है. इस बदलाव का कारण पृथ्वी की भौतिक रासायनिक संरचना (Physicochemical Composition) में आया परिवर्तन है. पृथ्वी के आंतरिक क्रस्ट और बाह्य मेंटल के बीच के भाग को मोहो असंबद्धता (Moho discontinuity) कहते हैं.

(3) पृथ्वी का कोर या भूगर्भ (Earth’s Core)

कोर पृथ्वी का सबसे आंतरिक भाग है जो मेंटल के नीचे पृथ्वी के केंद्र तक पाया जाता है. यह 2900 किलोमीटर की गहराई से पृथ्वी के केंद्र तक फैला हुआ है. यह पृथ्वी की सबसे आंतरिक परत है, जिसकी शुरुआत गुटेनबर्ग असंबद्धता से होती है, यानी गुटेनबर्ग असंबद्धता (2900 किलोमीटर) कोर और मेंटल को अलग-अलग करती है.

पृथ्वी की सबसे भीतरी परत कोर (Core) एक तरल बाहरी कोर और एक ठोस आंतरिक कोर (Liquid outer core and solid inner core) में बंटी है. बाह्या कोर का विस्तार 2900 किलोमीटर की गहराई से 5150 किलोमीटर तक है, जबकि आंतरिक कोर का विस्तार 5150 किलोमीटर की गहराई से पृथ्वी के केंद्र 6378 किलोमीटर की गहराई तक है.

बाहरी कोर की मोटाई करीब 2,300 किलोमीटर (1,429 मील), जबकि आंतरिक कोर की मोटाई लगभग 1,200 किलोमीटर (746 मील) है. बाहरी कोर तरल या अर्ध तरल अवस्था में हो सकता है, जबकि आंतरिक को ठोस अवस्था में है.

कोर बहुत भारी सामग्री से बना है. यह ज्यादातर निकल और लोहे से बना है, इसलिए इसे ‘निफे’ (NIFE) या बैरीस्फीयर भी कहा जाता है. कोर का आयतन पूरी पृथ्वी के आयतन का 16% और द्रव्यमान का 32% है.

पृथ्वी का सबसे आंतरिक भाग बहुत गर्म है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका तापमान सूर्य के तापमान से भी ज्यादा है. इतने उच्च तापमान पर यहां मौजूद पदार्थ गैस और तरल अवस्था में मौजूद होने चाहिए, लेकिन पृथ्वी का आंतरिक कोर ठोस अवस्था में है.

पृथ्वी के कोर का तापमान सूर्य की सतह से भी ज्यादा गर्म है. पृथ्वी के केंद्र का तापमान 6,000 डिग्री सेल्सियस (10,830 डिग्री फॉरेनहाइट) तक हो सकता है. आंतरिक कोर की यह तीव्र गर्मी पृथ्वी के अंदर के पदार्थों को बाहरी कोर और मेंटल तक ले जाने का कारण बनती है.

पृथ्वी के भीतर गहरे पदार्थ की गति के कारण क्रस्ट और ऊपरी मेंटल से बनी बड़ी प्लेटें पृथ्वी की सतह पर धीरे-धीरे खिसकती रहती हैं. यह भी संभव है कि ये गतियाँ पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करती हैं, जिसे मैग्नेटोस्फीयर (Magnetosphere) कहा जाता है.

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