Shri Krishna Leela Kahani
आज से लगभग 5200 वर्ष पहले, भारतवर्ष में एक राज्य हुआ करता था-प्राग्ज्योतिषपुर, जहां नरकासुर नाम का एक क्रूर राक्षस राज कर रहा था. उसने 16100 स्त्रियों का अपहरण कर उन्हें बंदी बना रखा था. द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के पास संदेश भेजा गया और उनसे नरकासुर का वध करके उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की गई. श्रीकृष्ण अपनी दूसरी भार्या भूदेवी सत्यभामा के साथ नरकासुर से युद्ध करने गए. उसे समझाया पर वह नहीं माना, तो आखिरकार श्रीकृष्ण को उससे युद्ध करना पड़ा.
यह चित्र नरकासुर वध के लिए गए श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा का है. सत्यभामा दिखने में जितनी सुंदर हैं, युद्धकला में उतनी ही निपुण भी हैं. और जरा श्रीकृष्ण को तो देखिए, नीचे गरुड़ पर बैठे हैं. बाण छोड़ने के बाद झटका लगने से सत्यभामा का संतुलन न बिगड़ जाए, इसलिए अपने पैर से सत्यभामा का पिछला पैर अड़ा रखा है.
श्रीकृष्ण के हाथ में विश्व का सबसे अचूक मारक अस्त्र सुदर्शन चक्र है, लेकिन पत्नी युद्ध कर रही है, तो कृष्ण स्वयं बैठ गए हैं और पत्नी के युद्ध कौशल को देखकर श्रीकृष्ण बलिहारी हैं.. एक ओर से पत्नी को स्वतंत्रता दे रहे हैं, तो दूसरी ओर से उसकी रक्षा भी कर रहे हैं.
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सनातन के इतर विश्व के किसी भी पंथ, संप्रदाय, विचारधारा में नारीवाद के ऐसे मुक्त विचार का उदाहरण नहीं मिलता, जहाँ स्त्री-पुरुष स्वतंत्र भी हैं और परस्पर पूरक और रक्षक भी! जहाँ नारी व्यक्तित्व भी है, व्यक्ति भी! जहाँ पुरुष स्त्री की स्वतंत्रता से विस्मित भी है और उसका आधार भी!
कितना कुछ है हमारे सनातन धर्म में, हमारी संस्कृति में, जिस पर हम गर्व कर सकें. बस विषैले नैरेटिव्स से परे सत्य देखने और समझने की नजर और इच्छा होनी चाहिए..
खैर, श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने नरकासुर का वध कर सभी को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई और 16100 स्त्रियों को उसकी कैद से मुक्त करवाया. वे सभी नरकासुर के द्वारा पीड़ित थीं, दुखी थीं, अपमानित, लांछित और कलंकित थीं. पर अब वे सब स्त्रियां श्रीकृष्ण को देखकर जोर-जोर से रोने लगीं. श्रीकृष्ण ने उनसे रोने का कारण पूछा तो उन सभी स्त्रियों ने कहा-
“हे द्वारकाधीश! आपने हम सबको उस दुष्ट की कैद से मुक्त तो करवा दिया, पर अब हम जाएँ कहाँ? सामाजिक मान्यताओं के चलते हम स्त्रियों को कोई भी अपनाने को तैयार नहीं होगा. समाज के कुछ लोग लोक-लाज, मान-मर्यादा आदि के नाम पर हमारे चरित्र और हमारी पवित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाएंगे.” वे सभी स्त्रियां रो-रोकर श्रीकृष्ण से प्रार्थना करने लगीं कि भगवान श्रीकृष्ण ही उनसे विवाह कर लें.
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तब आखिरकार श्रीकृष्ण ने उन सभी स्त्रियों को आश्रय दिया. श्रीकृष्ण उसी समय अपने 16100 रूपों में प्रकट हो गए और उन सभी स्त्रियों के हाथों वरमाला पहन ली. वे सभी स्त्रियां अत्यंत प्रसन्न हो गईं. श्रीकृष्ण उन सभी को अपने साथ द्वारिकापुरी ले आए. वहां वे सभी नारियां रानी बनकर स्वतंत्रतापूर्वक और सम्मानपूर्वक रहती थीं. वहां वे सभी वहां भजन, कीर्तन, ईश्वर भक्ति आदि करते हुए सुखपूर्वक रहती थीं. द्वारका एक भव्य नगर था जहां सभी समाज और वर्ग के लोग रहते थे.
बेड़ियाँ काटते हैं श्रीकृष्ण
क्या आपने कभी सोचा है कि श्रीकृष्ण ने जेल में ही क्यों जन्म लिया?
काली अँधेरी रात में जब वे आये, तो सबसे पहले जन्म देने वाले के शरीर की जंजीरें कट गईं. कैद करने वाले कपाट भी खुल गए. वस्तुतः श्रीकृष्ण आए ही थे बेड़ियाँ काटने… हर तरह की बेड़ियाँ! जन्म लेते ही वे बेड़ियां काटते हैं.
थोड़े से बड़े होते हैं तो लज्जा और अपने-पराए की जंजीरे काटते हैं. ऐसे काटते हैं कि सारा गांव चिल्लाने लगता है- ‘कन्हैया हम तुमसे बहुत प्रेम करते हैं.’ क्या बच्चे और क्या बुजुर्ग, महिलाऐं, पुरुष, लड़कियां सब… कोई भय नहीं, कोई लज्जा नहीं!
श्रीकृष्ण प्रेम के बारे में सबसे बड़े भ्रम को दूर करते हैं और सिद्ध करते हैं कि प्रेम देह का नहीं, हृदय का विषय है. और इसीलिए तो श्रीकृष्ण के वहां से चले जाने के बाद भी किसी के प्रेम पर तनिक भी असर न पड़ा. माथे पर मोर मुकुट बांधे श्रीकृष्ण इस तरह स्वयं को गोस्वामी सिद्ध करते हैं. वे एक ही साथ “पूर्ण पुरुष” और “गोस्वामी” की दो परस्पर विरोधी उपाधियाँ धारण करते हैं.
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कुछ दिन बाद वे समाज की सबसे बड़ी रूढ़ि पर प्रहार करते हैं, जब पूजा की पद्धति ही बदल देते हैं. देवताओं के स्थान पर लौकिक और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा को प्रारम्भ कराना उस युग की सबसे बड़ी क्रांति थी. वे नदी, पहाड़, हल, बैल, गाय की पूजा और रक्षा की परम्परा प्रारम्भ करते हैं. वे इस सृष्टि के पहले पर्यावरणविद् हैं.
थोड़े और बड़े होते हैं तो परतंत्रता की जंजीरें काटते हैं और उस कालखंड के सबसे बड़े तानाशाह को मारते हैं. राजा बन कर नहीं, आम आदमी बनकर मारते हैं.
इसके बाद वे सृष्टि की सबसे बड़ी बेड़ी पुरुषसत्ता पर प्रहार करते हैं. तनिक सोचिये, आज खुद को अत्याधुनिक बताने वाले लोग भी क्या इतने उदार हैं कि अपनी बहन को अपनी गाड़ी पर बिठाकर उसके प्रेमी के साथ भगा दें? पर श्रीकृष्ण ऐसा करते हैं. अपनी बहन का पूरा ध्यान रखते हैं. उसकी पसंद को भली-भांति परख और समझकर ही वे ऐसा करते हैं. स्त्री समानता को लागू कराने वाले व्यक्ति हैं वे. वे स्त्री की बेड़ियां काटते हैं.
कुछ दिन वे नरकासुर की कैद में बंद 16100 बलात्कृता कुमारियों की बेड़ियाँ काटकर, और उन्हें अपना नाम देकर समाज में रानी की गरिमा दिलाते हैं. श्रीकृष्ण अवतार योगेश्वर भी है, धर्म भी है, तो साक्षात युद्ध भी है. श्रीकृष्ण को फर्क नहीं पड़ता कि नरकासुर के बंधन से स्वतंत्र कराई गईं स्त्रियों को वो पत्नी रूप में स्वीकार कर रहें हैं तो यह संसार क्या सोचेगा? नहीं, वो शिव की तरह हैं, अर्थात जिन्हें कोई स्वीकार नहीं करेगा, उन्हें वो स्वीकार करेंगे!
फिर वह ऊंच-नीच की बेड़ियां काटते हैं और राजपुत्र होकर भी सुदामा जैसे दरिद्र को मित्र बनाते हैं और मित्रता निभाते भी हैं, ऐसे निभाते हैं कि युगों-युगों तक मित्रता के आदर्श बने रहते हैं.
फिर अपने जीवन के सबसे बड़े रणक्षेत्र में अन्याय की बेड़ियां काटते हैं. कहते हैं कि यदि वे चाहते तो एक क्षण में महाभारत समाप्त कर सकते थे. पर नहीं, उन्हें न्याय करना है, उन्हें दुनिया को बताना है कि किसी स्त्री का अपमान करने वाले का समूल नाश होना ही न्याय है. श्रीकृष्ण ने कहा है, “पुरुष होने की पहली शर्त है, नारी का सम्मान.”
श्रीकृष्ण स्वयं शस्त्र को हाथ नहीं लगाते, क्योंकि उन्हें पांडवों को भी दण्डित करना है. स्त्री आपकी सम्पति नहीं, जो आप उसको दांव पर लगा दें, या उसके अपमान की परवाह न करें, या उसका अपमान होता देखकर भी चुप रहें. स्त्री जननी है, स्त्री आधा विश्व है. श्रीकृष्ण न्याय करते हैं. वे अन्याय की बेड़ियां तोड़ते हैं.
वे मानव इतिहास के महानायक हैं, रियल हीरो हैं.
By Radhika Agarwal
(बेड़ियाँ काटते हैं श्रीकृष्ण) आंशिक परिवर्तन सहित साभार : सर्वेश तिवारी श्रीमुख (‘परत’ पुस्तक के लेखक)
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