Navratri Kanya Pujan Vidhi
नवरात्रि (Navratri) में आने वाली नवमी को ‘महानवमी’ (Mahanavami) भी कहा जाता है. मां सिद्धिदात्री का पूजन करने के बाद ही नवरात्रि का समापन किया जाता है. नवमी नवरात्रि का 9वां दिन और दुर्गा पूजा (Durga Puja) का आखिरी दिन होता है. अष्टमी की शाम से ही नवमी की तिथि लग जाती है. इस दिन 9 दिन के उपवास का आखिरी दिन होता है. नवरात्रि के ये 9 दिन बहुत ही धूमधाम से मनाया जाते हैं. इसके बाद दसवें दिन दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है एक बड़े त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) की दसवीं तिथि को दशहरा या विजयादशमी मनाया जाता है, और चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की नवमी तिथि को रामनवमी मनाई जाती है. नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है, आइए कन्या पूजन (kanya pujan vidhi) से जुड़ी मुख्य बातों को जानते हैं-
महानवमी
शास्त्रों के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि मां पार्वती ने महिषासुर नाम के राक्षस को मारने के लिए दुर्गा का रूप लिया था. आदिशक्ति ने दुर्गा का रूप धारण कर महिषासुर से 8 दिनों तक युद्ध किया और नौवें दिन महिषासुर का वध कर दिया. इसके बाद से ही नवरात्रि को मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई है. इसी के साथ, सबसे पहले भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध करने से पहले 9 दिन तक मां दुर्गा की पूजा-आराधना की थी और इसके बाद लंका पर चढ़ाई करके दसवें दिन ही रावण का वध कर दिया था, इसीलिए नवरात्रि के अगले दिन विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन को सत्य की असत्य पर जीत और अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है.
कन्या पूजन और उसका महत्व (Kanya pujan aur uska mahatva)
नवरात्रि का समापन कन्या पूजन (Kanya Poojan) करके किया जाता है. नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है. नौ देवियों के रूप में नौ कन्याओं का पूजन करने से माता रानी की असीम कृपा प्राप्त होती है. दुर्गा नवमी के दिन कई लोग अपना व्रत पूरा करते हैं और अंत में छोटी-छोटी कन्याओं का पूजन किया जाता है और उन्हें घर में बुलाकर उन्हें भोजन करवा के उनका आशीर्वाद लिया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छोटी कन्याओं को देवी का रूप माना गया है कन्याओं के पूजन के बाद ही 9 दिन के बाद व्रत खोला जाता है.
शास्त्रों के अनुसार, कन्या पूजन के लिए दुर्गा अष्टमी का दिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है. हालांकि कुछ लोग सप्तमी या नवमी को भी कन्या पूजन करते हैं. दुर्गा के रूप में 2 से 10 साल तक की कन्याओं का पूजन करने का विधान है.
कन्या पूजन से मिलते हैं ये लाभ
2 वर्ष की कन्या को कुमारी, 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति, 4 वर्ष की कन्या को रोहिणी, 6 वर्ष की कन्या को कालिका, 7 वर्ष की कन्या को शांभवी और 8 वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा गया है. कन्याओं को मां के 9 रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री जानकर उनकी पूजा करने से मां दुर्गा की असीम कृपा प्राप्त होती है.
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कुमारी कन्या का पूजन करने से दुख और दरिद्रता का नाश होता है. शत्रुओं का नाश होता है और आयु, धन और बल में वृद्धि होती है. त्रिमूर्ति कन्या का पूजन करने से धर्म, अर्थ और काम की पूर्ति होती है. धन-धान्य का आगमन होता है और वंश-वृद्धि होती है. कल्याणी कन्या का पूजन करने से बुद्धि, विजय, राज्य और सुख की प्राप्ति होती है.
कालिका कन्या का पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है. शांभवी कन्या का पूजन करने से सम्मोहन और दुख-दरिद्रता का नाश होता है और विजय की प्राप्ति होती है. सुभद्रा कन्या की पूजा करने से मनोरथ सफल होते हैं, वहीं रोहिणी कन्या का पूजन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है.
नवरात्रि कन्या पूजन की विधि (Navratri Kanya Pujan Vidhi)
Navratri Kanya Pujan Vidhi – अपनी सामर्थ्य के अनुसार 5 या 5 से ज्यादा कन्याओं की पूजा करनी चाहिए. इसी के साथ, एक बालक को भी भोजन करवा के दक्षिणा देने की परंपरा है, लेकिन उसे श्रृंगार आदि का सामान नहीं दिया जाता. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह बालक हनुमान जी का प्रतीक माना जाता है.
इस दिन निर्जल और निराहार रहकर कन्याओं को प्रेम सहित आमंत्रित करें. उनके पैर धोकर उन्हें आदर सहित आसन पर बिठाएं. उनके बाएं हाथ पर मौली बांधे, पैरों में महावर लगाएं, लाल चुनरी ओढ़ाएं और उनके माथे पर रोली का तिलक लगाएं. फिर हलवा, पूरी और चने का प्रसाद और फल आदि कन्याओं को बड़े प्रेम से खिलाएं. अपने सामर्थ्य अनुसार उन्हें चूड़ियां, कुछ श्रृंगार की वस्तुएं और दक्षिणा देकर उनके पांव छुएं और उनका आशीर्वाद लें.
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