जीवन समंक प्राप्त करने की विधियां (Methods of Obtaining Vital Statistics in Hindi)
जीवन समंक (Vital Statistics) प्राप्त करने के तरीके – जीवन समंक आमतौर पर निम्नलिखित तीन विधियों द्वारा प्राप्त किए जाते हैं –
1. पंजीयन विधि (Registration Method) –
पंजीयन विधि (Registration Method) को जीवन सम्बन्धी घटनाओं और उनकी विशेषताओं के विवरण की एक स्थायी, नियमित व अनिवार्य रीति माना जाता है। अधिकांश देशों में लोगों द्वारा जीवन की प्रत्येक महत्वपूर्ण घटना का पंजीयन करना एक कानूनी दायित्व होता है।
उदाहरण के लिए, बच्चे के जन्म लेने पर उसकी जानकारी, और इसके साथ – साथ माँ की आयु, माता-पिता के धर्म आदि से सम्बंधित सभी सूचनायें उपयुक्त अधिकारी को देना जरूरी होता है। इसी प्रकार, मृत्यु की स्तिथि में, शव का अंतिम संस्कार करने से पूर्व उसकी सूचना देना तथा मृत्यु – सर्टिफिकेट (मृत्यु प्रमाण-पत्र) को प्राप्त करना भी जरूरी समझा जाता है।
जीवन सम्बन्धी घटनाओं के अभिलेखन (recording) को स्थायी एवं निरन्तर बनाये रखने के लिए इसे कानूनी रूप (वैधानिक रूप) देना जरूरी होता है ताकि इसमें अनिवार्यता का गुण आ सके। वैसे तो अस्पताल के रिकॉर्ड से भी जन्म और मृत्यु का विवरण प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन यह विवरण अपने आप में पूर्ण नहीं माना जाता है क्योंकि सभी बच्चे न तो अस्पतालों में पैदा ही होते हैं और न ही मरने वाले सभी लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।
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2. जनगणना विधि (Census-Enumeration Method) –
विश्व के अधिकांश देश हर 10 वर्ष में जनगणना का कार्य करते हैं। शब्द “जनगणना” एक सुनिश्चित समय पर देश की कुल जनसंख्या (देश के सभी व्यक्तियों की संख्या), उनकी जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक स्थिति से सम्बंधित डेटा के संग्रहण (Collection), संकलन एवं प्रकाशन की संपूर्ण प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
जनगणना विधि का पहला दोष यह है कि जनगणना – वर्ष (Census Year) के लिए तो आँकड़े प्राप्त हो जाते हैं जबकि दो जनगणना तिथियों (वर्षों) के बीच के वर्षों (Intercensal years) के लिए जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती जिसके फलस्वरूप यह विधि उपयुक्त नहीं मानी जाती है।
जनगणना विधि का दूसरा दोष यह है कि यह जनगणना – वर्ष के लिए भी जन्म व मरण का पूर्ण विवरण उपलब्ध कराने में विफल रहती है।
हाँ ! जिन क्षेत्रों में पंजीयन विधि लागू नहीं की जा सकती अथवा वह त्रुटिपूर्ण सिद्ध होती है, वहां समय-समय पर कालिक सर्वेक्षणों (periodic surveys) के माध्यम से जन्म और मृत्यु सम्बन्धी तदर्थ सूचनाएँ (ad-hoc information) प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार ये तदर्थ सर्वेक्षण (ad hoc surveys) अन्तर्वर्ती वर्षों (बीच के वर्षों) के लिए समंक उपलब्ध कराने की दृष्टि से काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं।
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3. विश्लेषणात्मक विधि (Analytical Method) –
यह जनगणना समंकों की सहायता से जीवन – दरों का अनुमान लगाने की ऐसी गणितीय विधि है जो क्रमागत दो जनगणनाओं के विवरण के विश्लेषण पर आधारित होती है।
हाँ ! इस विधि में प्रयुक्त किये जाने वाले संगणना विवरण अत्यधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय होने चाहिये, वरना जीवन – समंकों का अनुमान सर्वथा पूरी तरह से दोषपूर्ण बना रहेगा।
मान लीजिये अगर प्रवास (migration) के सम्बन्ध में कुछ मान्यताएं मान ली जाएँ और संगणना की विश्वसनीयता की भी जाँच पूरी तरह से कर ली जाय, तब ऐसी स्थिति में, जनसंख्या की संगणनाओं के समंको को, जनगणना के मध्यवर्ती काल में होने वाले जन्म, मृत्यु तथा विवाह आदि की उपसादित संख्या (updated number) के आधार पर वांछित सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं।
यह विधि केवल उन क्षेत्रों या देशों के लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती है जहाँ पंजीयन का अभाव हो अथवा पंजीयन प्रणाली त्रुटिपूर्ण हो लेकिन जनगणना का कार्य दक्षता, शुद्धता तथा विश्वसनीयता से किया जाता हो।
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