भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 76 से 79 : कब मिलेगा ‘तथ्य की भूल’ का बचाव?

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IPC Section 76 to 79 in Hindi

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-

IPC की धारा 76 से 79 : तथ्य की भूल के अधीन किए गए कार्य क्षम्य होते हैं

यहां पहले यह जान लेना जरूरी है कि कानून में तथ्य की भूल (Mistake of Fact) क्षम्य (क्षमा करने योग्य) है, लेकिन विधि की भूल (Mistake of Law) क्षम्य नहीं है, फिर चाहे दीवानी मामला हो या आपराधिक. इसका मतलब ये है कि कोई अभियुक्त (Accused) अपने बचाव में ये तर्क तो दे सकता है कि उसे इस तथ्य के बारे में पता नहीं था, इसलिए उससे यह अपराध हो गया.

लेकिन कोई भी अभियुक्त अपने बचाव में ये तर्क नहीं दे सकता है कि-
उसे इस कानून के बारे में नहीं पता था, या
वह नहीं जानता था कि कानून के तहत यह कार्य अपराध है, नहीं तो वह यह कार्य ना करता, या
उसे भारत के ‘इस’ कानून के बारे में पता नहीं था, क्योंकि उसके देश में ‘यह कार्य’ अपराध नहीं है.

♦ IPC की धारा 76 (IPC Section 77 in Hindi)

विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप को विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य-
“वह कोई बात अपराध नहीं है, जो किसी ऐसे व्यक्ति ने की है, जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो या जो तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण सद्भावपूर्वक यह विश्वास करता है कि वह उस कार्य को करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध है”.

उदाहरण :
♠ कानून के आदेश के पालन में अपने वरिष्ठ ऑफिसर के आदेश से एक सैनिक भीड़ पर गोली चलाता है, तो उस सैनिक ने कोई अपराध नहीं किया. (विधि द्वारा बाध्य)

♠ अगर किसी ऑफिसर को A नाम के व्यक्ति को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया है. अपनी सम्यक जांच (भली-भांति जांच करके) में ऑफिसर B नाम के व्यक्ति को A समझकर गिरफ्तार कर लेता है, तो ऑफिसर ने कोई अपराध नहीं किया. (तथ्य की भूल)

इस तरह, धारा 76 के अनुसार ‘तथ्य की भूल’ का बचाव तब मिलेगा, जब-
(1) एक व्यक्ति द्वारा किया गया कोई कार्य, जिसे करने के लिए वह कानून द्वारा बाध्य है, या कानून द्वारा अपने को बाध्य समझता है (तथ्य की भूल के कारण उसे लगता है कि इस कार्य को करने के लिए वह कानून द्वारा बाध्य है),
(2) भूल तथ्य से संबंधित होनी चाहिए न कि विधि से,
(3) उसने ‘सद्भावपूर्वक’ विश्वास किया हो.

सद्भावपूर्वक (Good Faith)’ शब्द की परिभाषा IPC की धारा 52 में दी गई है, जिसके अनुसार, “वह बात सद्भावपूर्वक की गई या विश्वास की गई नहीं कही जाती, जो सम्यक सतर्कता और ध्यान के बिना की गई या विश्वास की गई हो.”

यानी कोई भी व्यक्ति अगर सामान्य जांच-पड़ताल या सतर्कता से सही तथ्यों का पता लगा सकता था, तो उस स्थिति में उसे ‘तथ्य की भूल’ का बचाव नहीं मिलेगा.

उदाहरण : अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी की मौत की अफवाह सुनकर सच और झूठ का पता लगाए बिना ही दूसरा विवाह कर लेता है, लेकिन विवाह के बाद उसे पता चलता है कि अफवाह तो झूठी थी, तब ऐसे में उस पुरुष पर द्विविवाह (Bigamy) का अभियोग लगाने पर उसे ‘तथ्य की भूल’ का बचाव नहीं मिलेगा, क्योंकि उसने सच का पता लगाने की कोशिश ही नहीं की.

वहीं, अगर किसी अपराध में ‘भूल’ का कोई महत्व ही नहीं है और विधि में वह अपराध दंडनीय ही है तो ऐसे में भी ‘तथ्य की भूल’ का बचाव नहीं मिलता.

♦ IPC की धारा 79

विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने आप को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य-
“वह कोई बात अपराध नहीं है जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत हो, या तथ्य की भूल के कारण न की विधि की भूल के कारण सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत है.”

उदाहरण : A को सद्भावपूर्वक लगता है कि B C की हत्या कर रहा है. कानून में किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह किसी भी व्यक्ति को बचाकर उसकी हत्या करने जा रहे व्यक्ति को पकड़कर उचित प्राधिकारियों के सामने पेश कर सकता है. A ऐसा ही करता है, वह C को बचाकर B को प्राधिकारियों के सामने पेश करने के लिए उसे पकड़ लेता है. बाद में पता चलता है कि C B को मार रहा था और B तो C से अपना बचाव करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन तब भी A अपराधी नहीं माना जाएगा. A को ‘तथ्य की भूल’ का बचाव मिलेगा.

इस तरह, धारा 79 भी तथ्य की भूल से ही संबंधित है. इस धारा के लागू होने के लिए जरूरी है कि-
(1) तथ्य की भूल के तहत एक व्यक्ति द्वारा कोई कार्य किया गया हो,
(2) भूल तथ्य से संबंधित होनी चाहिए न की विधि से,
(3) भूल सद्भावना में कारित होनी चाहिए,
(4) कार्य या तो विधि द्वारा न्यायानुमत (कानून की नजर में सही कार्य) होना चाहिए, या उसे करने वाला अपने आप को सद्भावपूर्वक विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करता हो.

धारा 76 और 79 में अंतर : धारा 76 और 79 में मुख्य अंतर यह है कि धारा 76 के तहत विधिक बाध्यता या कानूनी बाध्यता (यानी व्यक्ति को कानून के आदेशों का पालन करना पड़ता है) होती है, जबकि धारा 79 के तहत विधिक न्यायानुमतता (व्यक्ति को कानून की तरफ से आदेश तो नहीं मिला है, लेकिन कानून की नजर में ऐसा करना उचित है) होती है.

धारा 77 और 78

धारा 77 और 78 विशेषाधिकार (Privilege) से संबंधित हैं. अगर न्यायालय के आदेश में कोई कार्य किया जाता है और जब न्यायालय को सद्भावपूर्वक यह विश्वास हो कि वह कानून की तरफ से दी गईं शक्तियों का ही इस्तेमाल कर रहा है…और उस दौरान कोई गलत कार्य हो जाता है, तो उसके लिए न्यायालय और न्यायालय के आदेश का पालन करने वाला व्यक्ति दोषी नहीं माना जाएगा.

♦ IPC की धारा 77

न्यायिकतः कार्य करते हुए न्यायाधीश का कार्य-
“वह कोई बात अपराध नहीं है, जो न्यायिकतः कार्य करते हुए न्यायाधीश द्वारा ऐसे किसी शक्ति के प्रयोग में की जाती है, जो या जिसके बारे में उसे सद्भावपूर्वक विश्वास है कि वह उसे विधि द्वारा दी गई है.”

♦ IPC की धारा 78

न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य
“वह कोई बात जो न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में की जाए, या उसके द्वारा अधिदिष्ट (Mandated) हो, अगर वह उस निर्णय का आदेश के प्रवृत्त रहते की जाए तो वह अपराध नहीं है, चाहे उस न्यायालय को ऐसा निर्णय या आदेश देने की अधिकारिता ना रहे हो, लेकिन यह तब जब कि वह कार्य करने वाला व्यक्ति सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि उस न्यायालय को वैसी अधिकारिता थी.”

धारा 77 किसी न्यायाधीश को उन मामलों में सुरक्षा देती है, जिनमें वह कानून की तरफ से प्राप्त अधिकारों का इस्तेमाल अनियमितता से करता है, साथ ही उन मामलों में भी सुरक्षा देती है, जिनमें वह न्यायाधीश सद्भावपूर्वक अपने क्षेत्राधिकार को पार कर जाता है, यानी जहां के लिए उसे आदेश देने या निर्णय देने का वैध अधिकार नहीं है, लेकिन उसे सद्भावपूर्वक यह विश्वास है कि उसे क्षेत्राधिकार है. इस धारा के तहत बचाव केवल आपराधिक प्रक्रियाओं में मिलता है.

वहीं, धारा 78 किसी न्यायालय के फैसले या आदेश के तहत कार्य करने वाले अधिकारियों को सुरक्षा देती है. इस धारा के तहत, एक ऐसे अधिकारी को भी बचाव मिल सकता है, जो उस न्यायालय के आदेश का पालन करता है, जिसे क्षेत्राधिकार नहीं था, लेकिन उस अधिकारी को सद्भावपूर्वक यह विश्वास होना चाहिए कि उस न्यायालय को क्षेत्राधिकार था.

Read Also – भारतीय दंड संहिता (IPC) का अध्याय-4, धारा 76 से 106 – सामान्य अपवाद



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About Sonam Agarwal 237 Articles
LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

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