भारतीय दंड संहिता (IPC) का अध्याय-4, धारा 76 से 106-सामान्य अपवाद

ipc section 76 to 106 in hindi
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IPC Section 76 to 106 in Hindi

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी जिन अपराधों में क्षमा कर दिया जाता है.

इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. क्योंकि आपराधिक उत्तरदायित्व के लिए- (1) स्वतंत्र इच्छा, (2) अच्छाई या बुराई करने में अंतर करने की शक्ति और (3) उन तथ्यों का ज्ञान जिन पर किसी कार्यवाही की अच्छाई या बुराई निर्भर करती है…शर्तों का होना जरूरी है.

अध्याय 4 के ‘सामान्य अपवादों’ को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है- पहला, धारा 76 से धारा 95 तक- इन धाराओं के तहत अपराध इसलिए क्षम्य हैं, क्योंकि इनमें दुराशय या आपराधिक मनःस्थिति का अभाव है. यानी व्यक्ति अपराध के आशय से कार्य नहीं करता, इसलिए उसे क्षमा किया जा सकता है. क्योंकि अपराधशास्त्र का एक सिद्धांत है कि ‘केवल कार्य किसी भी व्यक्ति को अपराधी नहीं बनाता, अगर उसका मन भी अपराधी न हो.दूसरा, धारा 96 से लेकर धारा 106 तक ऐसे अपवाद, जो किए गए अपराध को न्यायानुमत (Justify) बनाते हैं.

‘सामान्य अपवादों’ में इन विषयों को शामिल किया गया है-

तथ्य की भूल (धारा 76 से 79)
दुर्घटना और दुर्भाग्य (धारा 80)
आवश्यकता का सिद्धांत (धारा 81)
अपराध करने में अक्षम व्यक्ति (धारा 82 और धारा 83)
विकृतचित्तता या पागल व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य (धारा 84)
अस्वैच्छिक मत्तता (धारा 85 और 86)
♦ सहमति या सम्मति (धारा 87 से 91) (धारा 87, धारा 88, 89, धारा 90-92)
दुराशय के बिना किया गया कार्य (धारा 92 से 94)
तुच्छ प्रकृति के कार्य (धारा 95)
♦ प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार (धारा 96 से 106)

तथ्य की भूल क्षम्य है, लेकिन विधि की भूल क्षम्य नहीं है

कानून में तथ्य की भूल क्षम्य है, लेकिन विधि की भूल क्षम्य नहीं है, फिर चाहे दीवानी मामला हो या आपराधिक. इसका मतलब ये है कि कोई अभियुक्त अपने बचाव में ये तर्क तो दे सकता है कि उसे इस तथ्य के बारे में पता नहीं था, इसलिए उससे यह अपराध हो गया.

लेकिन कोई भी अभियुक्त अपने बचाव में ये तर्क नहीं दे सकता है कि-
• उसे इस कानून के बारे में नहीं पता था, या
• वह नहीं जानता था कि कानून के तहत यह कार्य अपराध है, नहीं तो वह यह कार्य न करता, या
• उसे भारत के ‘इस’ कानून के बारे में पता नहीं था, क्योंकि उसके देश में ‘यह कार्य’ अपराध नहीं है.

जैसे- अगर कोई व्यक्ति काले हिरण का शिकार करता है, जिसका शिकार करना अपराध है, क्योंकि वह एक दुर्लभ प्रजाति है, उसकी संख्या अब बहुत कम ही बची है और इसलिए उसके संरक्षण के लिए उसके शिकार को अपराध बना दिया गया है, तो इस स्थिति में काले हिरण का शिकार करने वाला व्यक्ति अपने बचाव में ये तर्क नहीं दे सकता कि “उसे नहीं पता था कि काले हिरण का शिकार करना अपराध है, नहीं तो वह उसका शिकार न करता.”

लेकिन वह अपने बचाव में ये तर्क दे सकता है कि “वह नरभक्षी शेर को मारने की कोशिश कर रहा था और उसे लगा था कि वह झाड़ियों के पीछे ही छिपा है. वह नहीं जानता था (सद्भावपूर्वक) कि झाड़ियों के पीछे शेर नहीं, बल्कि काला हिरण है और उसने झाड़ियों पर बंदूक चला दी.”

अस्वैच्छिक मत्तता में किया गया कार्य क्षम्य है, लेकिन स्वैच्छिक मत्तता में नहीं

इसी तरह, कानून में अस्वैच्छिक मत्तता की हालत में किए गए आपराधिक कार्य को क्षम्य बताया गया है, लेकिन स्वैच्छिक मत्तता की हालत में किया गया आपराधिक कार्य क्षम्य नहीं है. जैसे- अगर किसी व्यक्ति ने अपनी मर्जी से शराब नहीं पी है, बल्कि उसे जबरदस्ती या धोखे से पिलाई गई है…और फिर नशे की हालत में वह कोई अपराध कर देता है, तो अपने बचाव के लिए उसे ये सिद्ध करना होगा कि नशे की वजह से उसे ये नहीं पता था कि वह क्या कर रहा है, साथ ही उसने यह नशा अपनी मर्जी या अपने ज्ञान से नहीं किया था.

अगर ये साबित हो जाता है कि व्यक्ति ने नशा अपनी मर्जी से ही किया था, या उसे पता था कि उसे नशा करवाया जा रहा है और तो भी उसने किया, तो भले ही अपराध करते समय वह अपने कार्य की प्रकृति को न समझ पा रहा हो, लेकिन तब भी वह अपराधी माना जाएगा.

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