The Making of Nationalism in Europe (Part-2) : यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण

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The Rise of Nationalism in Europe

The Making of Nationalism in Europe
(यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण)

18वीं सदी के मध्य में यूरोप के अंदर कोई राष्ट्र राज्य (Nation State) नहीं था.

Nation State क्या है- कोई भी ऐसा देश, जिसके अधिकतर लोग कॉमन लैंग्वेज, कॉमन कल्चर या कॉमन आइडेंटिटी को फॉलो करते हों (लोगों की लैंग्वेज, कल्चर, आइडेंटिटी वगैरह same हो). आज भारत, जर्मनी, फ्रांस आदि नेशन स्टेट्स हैं. लेकिन 18वीं सदी के मध्य में यूरोप के अंदर कोई नेशन-स्टेट नहीं था. बल्कि बड़े-बड़े साम्राज्य थे, जिनके ऊपर राजा-महाराजा शासन करते थे.

उदाहरण के लिए, हैब्सबर्ग साम्राज्य (Habsburg Empire) के अंदर अलग-अलग तरह के लोग रहते थे जिनके विचार (Ideas), संस्कृति (Culture), परम्पराएं (Traditions), भाषा (Language) सब अलग-अलग थे. तो ऐसे लोगों के मन में भी नेशन स्टेट बनाने का विचार कैसे आया? आइये जानते हैं-

The Aristocracy and the New Middle Class (अभिजात वर्ग और नया मध्यम वर्ग)

उस समय यूरोप के अंदर दो तरह के लोग रहते थे- Aristocrats और Peasants (अमीर और गरीब). Aristocrats अमीर लोग होते थे, उनके पास जमीनें और टाउन हाउसेस होते थे. Aristocrats की संख्या कम थी, लेकिन इनके पास पावर बहुत थी, क्योंकि इनके पास धन था. इन लोगों का मानना था कि फ्रेंच लैंग्वेज रईसों की भाषा है, इसलिए ये लोग फ्रेंच लैंग्वेज बोलते थे. इन लोगों की लाइफस्टाइल (रहन-सहन, कपड़े, खाना-पीना) लगभग एक जैसी ही थी.

इसके विपरीत Peasants गरीब वर्ग था. इन लोगों के पास खुद की कोई जमीन नहीं थी. ये लोग Aristocrats की जमीनों पर काम करते थे और उनकी देखभाल करते थे. Peasants की संख्या तो अधिक थी लेकिन इनके पास पावर नहीं थी, क्योंकि इनके पास धन नहीं था.

जब औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) आती है तो एक नया मजदूर वर्ग उभरकर सामने आता है, जिसका नाम होता है मध्यम वर्ग (Middle Class). ये लोग न ही ज्यादा गरीब थे और न ज्यादा अमीर. ये लोग शिक्षित (Educated) लोग थे, जैसे व्यापारी, उद्योगपति, पेशेवर (businessmen, industrialists, professionals) आदि.

इन मिडिल क्लास वाले लोगों के मन में दो विचार आये. पहला विचार आया राष्ट्रीय एकता (National Unity) का. यानी कि एक जैसा कल्चर, ट्रेडिशन, लैंग्वेज वाले लोग एक साथ रहेंगे. तो एक तरह से नेशन स्टेट वाला ही विचार.

और दूसरा विचार आया उदार राष्ट्रवाद (Liberal Nationalism or Liberalism) का. इस विचार के अंतर्गत-
(1) ऑटो करेंसी खत्म होनी चाहिए.
(2) जनता के हिसाब से सरकार बननी चाहिए.
(3) सभी नागरिकों के पास आजादी होनी चाहिए.
(4) कानून की नजर में सबलोग बराबर होने चाहिए.
(5) चर्च के लोगों को जन्म के आधार पर जो प्रिविलेज (अतिरिक्त अधिकार) मिले हुए थे, उन्हें खत्म करना चाहिए.
(6) देश का एक संविधान होना चाहिए और सरकार को संविधान के अनुसार ही काम करना चाहिए.
(7) सरकार ‘प्रतिनिधि लोकतंत्र’ (Representative Form of Government) होनी चाहिए.

(प्रतिनिधि लोकतंत्र एक प्रकार का लोकतंत्र है जिसमें लोग अपने नेताओं का चुनाव करते हैं. इसे अप्रत्यक्ष लोकतंत्र या प्रतिनिधि सरकार के रूप में भी जाना जाता है. प्रतिनिधि लोकतंत्र महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोगों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने से पहले उन्हें जानने में मदद करता है.)

अपनी इन मांगों की पूर्ति के लिए मिडिल क्लास लोग संघर्ष कर रहे थे. लेकिन इसमें एक समस्या यह थी कि ये लोग महिलाओं को सपोर्ट नहीं कर रहे थे. भले ही ये लोग मतदान के अधिकार (Voting Rights) की मांग कर रहे थे, लेकिन केवल पुरुषों के लिए. और वह भी ऐसे पुरुषों के लिए, जिनके पास प्रॉपर्टी हो. इस कारण से महिलाएं और बिना प्रॉपर्टी वाले पुरुष यूरोप के अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन (Protest) कर रहे थे.

इसके अलावा, एक और समस्या यह थी कि व्यापारी (Traders) काफी ज्यादा टैक्स भरने के बाद ही व्यापार कर पाते थे. जब व्यापारी हैम्बर्ग से नूर्नबर्ग (Hamburg to Nuremberg) व्यापार करने आते थे, तो उन्हें 11 जगहों पर 5% की दर से टैक्स देना पड़ता था. इसके अलावा, यूरोप में अलग-अलग प्रकार की करेंसी चलती थी (लगभग 30 प्रकार की). इससे व्यापारियों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता था. उन्हें हर राज्य में करेंसी बदलनी पड़ती थी.

तब, वर्ष 1834 में एक कस्टम यूनियन (Customs Union Form) का गठन हुआ. इसका नाम Zollverein (ज़ोलवेरिन) था. इसकी स्थापना वर्ष 1834 में प्रशिया (Prussia) के नेतृत्व में की गई थी और बाद में इसमें अन्य जर्मन स्टेट्स भी जुड़ गए थे. इसने तीन काम किये-

♦ जो अलग-अलग जगहों पर टैक्स देने पड़ रहे थे, उन्हें हटा दिया (टैरिफ बैरियर्स को समाप्त कर दिया).
♦ यूरोप के अंदर चल रही अलग-अलग प्रकार की 30 करेंसी को घटाकर 2 पर ला दिया.
♦ रेलवे नेटवर्क को प्रमोट किया, जिससे व्यापार करना और आसान हो गया था.

(ज़ोलवेरिन 1834 आंदोलन को जर्मनी के एकीकरण में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया, क्योंकि इस आंदोलन के माध्यम से पूरे जर्मनी में एक मुक्त-व्यापार क्षेत्र (free-trade zone) बनाया गया था. संघ ने सफलतापूर्वक मुद्राओं की संख्या को तीस से घटाकर दो कर दिया और टैरिफ बाधाओं को समाप्त कर दिया.)

A New Conservatism After 1815 (1815 के बाद एक नया रूढ़िवाद)

नेपोलियन बोनापार्ट ने 1799 से शासन करना स्टार्ट किया था और उसका शासन 1815 तक चला. तो अब हम जानते हैं कि क्यों 1815 में नेपोलियन का शासन खत्म हो गया था-

दो पक्षों के बीच एक लड़ाई होती है. एक तरफ नेपोलियन होता है और दूसरी तरफ होते हैं चार देश – ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रिया और प्रशिया.

इस लड़ाई को ‘वाटरलू की लड़ाई’ (Battle of Waterloo) कहा जाता है. इस लड़ाई में नेपोलियन हार जाता है और जीतने वाले चारों देश कंजरवेटिव (रूढ़िवादी) थे, जो नहीं चाहते थे कि समाज में कोई बदलाव हो. इन्हें मोनार्की सिस्टम (राजशाही व्यवस्था) ही पसंद था और ये चाहते थे कि मोनार्की सिस्टम फिर से वापस आ जाए. इसके लिए ये चारों देश Conservatism (रूढ़िवाद) को वापल लाते हैं. यानी कि नेपोलियन ने जो कुछ भी किया था, उसे हटाकर पुरानी व्यवस्था को वापस लाते हैं, और साथ में यूरोप में जितने भी बदलाव हुए थे, उनको पहले जैसा ही कर देते हैं. जैसे कि-

♦ ये लोग मोनार्की सिस्टम को वापस ले आते हैं.
♦ ये चर्च की सत्ता को वापस ले आते हैं.
♦ पहले जो अमीर-गरीब (अपर क्लास और लोअर क्लास) का सिस्टम था, उसे भी वापस ले आते हैं.
♦ निरंकुश शासन (Autocratic Rule) को वापस ले आते हैं.
♦ इन्होंने सेंसरशिप भी लगा दी थी, यानी कि कोई इनके खिलाफ कुछ बोल नहीं सकता था, कुछ लिख नहीं सकता था और ना ही इनके खिलाफ कोई आवाज उठा सकता था.

इसके अलावा, इन चार राज्यों ने एक संधि (Treaty) पर हस्ताक्षर किए, जिसका नाम ‘वियना की संधि 1815’ (Treaty of Vienna 1815) था. इस संधि की मेजबानी (Host) ऑस्ट्रियाई चांसलर ड्यूक मैरिज कर रहे थे.

(1815 की वियना संधि, यूरोप के लिए एक समझौता तैयार करने हेतु मित्र शक्तियों – ऑस्ट्रिया, ग्रेट ब्रिटेन, प्रशिया और रूस के बीच औपचारिक समझौता था.
इस संधि का मुख्य लक्ष्य नेपोलियन के शासनकाल के दौरान यूरोप में लाए गए सभी परिवर्तनों को पहले जैसा करना था. इसका मुख्य उद्देश्य नेपोलियन द्वारा उखाड़ फेंके गए राजतंत्रों को बहाल करना तथा यूरोप में एक नई रूढ़िवादी व्यवस्था बनाना था.)

वियना की संधि के तहत-

♦ फ्रांस में जो बर्बन राजवंश (Bourbon Dynasty) चलता था (जिसे हटा दिया गया था), उसे फिर से बहाल (Restore) कर दिया गया. (फ्रांसीसी क्रांति के दौरान अपदस्थ किए गए बोरबॉन राजवंश को पुनः सत्ता में लाया गया तथा फ्रांस ने वे क्षेत्र खो दिए जिन्हें उसने नेपोलियन के अधीन अपने अधीन कर लिया था.)

♦ फ्रांस के चारों ओर की सीमाओं पर राज्य स्थापित किए गए, ताकि भविष्य में फ्रांस का विस्तार न हो सके.

♦ प्रशिया को उसकी पश्चिमी सीमाओं पर महत्वपूर्ण नए क्षेत्र दिए गए.

♦ ऑस्ट्रिया को उत्तरी इटली का कंट्रोल (नियंत्रण) दे दिया गया.

♦ नेपोलियन द्वारा स्थापित 39 राज्यों के जर्मन परिसंघ को अछूता छोड़ दिया गया.

♦ रूस को पोलैंड का हिस्सा दिया गया, और प्रशिया को सैक्सोनी का एक हिस्सा दिया गया.

वियना की संधि के बाद यूरोप में राजशाही व्यवस्था पूरी तरह से लागू हो गई थी और रूढ़िवादी लोगों के पास सत्ता आ गई थी.

क्रमशः

Read Also :

Nationalism in Europe (Part-1)

The Rise of Nationalism in Europe (Part-3)

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