भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 81 : आवश्यकता का सिद्धांत

section 81 ipc in hindi
Law

IPC Section 81 in Hindi

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-

IPC की धारा 81 ‘आवश्यकता के सिद्धांत’ (Doctrine of Necessity) से संबंधित है. यह सिद्धांत किसी बड़ी हानि को बचाने के लिए किसी छोटी हानि को कारित करने की मंजूरी देता है. यानी इस धारा के तहत, वह कोई कार्य अपराध नहीं है जो यह जानते हुए किया गया है कि उससे कोई ना कोई हानि होने की संभावना है, लेकिन उस कार्य को एक बड़ी हानि को रोकने के लिए, बिना किसी आपराधिक आशय के सद्भावपूर्वक किया गया हो.

IPC की धारा 81

कार्य जिससे अपहानि कार्य होना संभाव्य है, लेकिन जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि को रोकने के लिए किया गया हो-
“वह कोई बात केवल इस कारण अपराध नहीं है कि वह यह जानते हुए की गई है कि उससे अपहानि कारित होने की संभावना है, अगर वह अपहानि कारित करने के किसी आपराधिक आशय के बिना और व्यक्ति या संपत्ति को अन्य अपहानि से बचाने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक की गई हो.”

इस धारा के लिए एक स्पष्टीकरण दिया गया है कि, “ऐसे मामले में यह तथ्य का प्रश्न है कि जिस अपहानि का निवारण किया जाना है (जिस हानि को रोका जाना है), क्या वह ऐसी प्रकृति की ओर इतनी आसन्न थी कि वह कार्य, जिससे यह जानते हुए कि उससे अपहानि कारित होने की संभावना है, करने का खतरा उठाना न्यायानुमत या माफी योग्य था.”

इस तरह, ‘आवश्यकता के सिद्धांत’ को अपने बचाव में पेश करने के लिए जरूरी है कि-
(1) दोषकर्ता हालांकि यह जानता है कि उसके द्वारा किए गए कार्य से कोई ना कोई हानि होने की संभावना है, लेकिन फिर भी वह उसे आपराधिक आशय के बिना करता है,
(2) कार्य किसी दूसरी हानि या बड़ी हानि को रोकने के लिए किया गया हो,
(3) जिस हानि को रोकने के लिए कार्य किया गया हो, वह किसी व्यक्ति या संपत्ति से संबंधित होनी चाहिए,
(4) कार्य सद्भावपूर्वक किया गया हो.

उदाहरण :
(1) A एक जहाज का कप्तान है. अचानक वह बिना किसी गलती या उपेक्षा के एक ऐसी स्थिति में आ जाता है कि अगर उसने तुरंत जहाज का रास्ता नहीं बदला, तो इससे पहले कि वह अपने जहाज को रोक सके, 20-30 यात्रियों से भरी नाव X उस जहाज से टकराकर डूब जाएगी. जबकि जहाज का रास्ता बदलने से केवल 2 यात्रियों वाली नाव Y के ही उससे टकराकर डूबने का खतरा उठाना पड़ेगा, जिसके बच निकलने की भी संभावना है.

यहां अगर जहाज का कप्तान Y नाव को डुबाने के आशय के बिना और…ज्यादा यात्रियों से भरी X नाव को बचाने के इरादे से सद्भावपूर्वक अपने जहाज का रास्ता बदल देता है, तो भले ही Y नाव उससे टकराकर डूब जाती है, लेकिन वह कप्तान उस अपराध का दोषी नहीं होगा.

(2) किसी जगह बड़ी आग लगी है. A नाम के व्यक्ति को लगता है कि उस आग को और आगे तक फैलने से रोकने के लिए कुछ घरों को गिरा देना जरूरी है और इससे कई लोगों और उनकी संपत्ति को बचाया जा सकता है. ऐसे में अगर A कुछ घरों को गिरा देता है, तो वह उस अपराध का दोषी नहीं माना जाएगा.

कोथ बनाम शार्प के मामले में आग फैलने से बचाने के लिए जहाज को जलाना न्यायोचित माना गया.

कब नहीं मिलेगा इस धारा का बचाव

इसे लेकर आर. वी. डडले एंड स्टीफन (1884) का मामला प्रमुख उदाहरण है. इस मामले में एक नाव पर 4 लोग सवार थे. उनमें से 3 वयस्क थे और एक बालक. वे चारों कई दिनों तक समुद्र में यात्रा करते रहे, लेकिन उन्हें किनारा नहीं मिला. वे चारों ही भूख से तड़पने लगे. तब उस नाव पर सवार तीनों वयस्क जान बचाने के लिए अपने साथ मौजूद बच्चे को मारकर उसका मांस खा जाते हैं.

यहां तीनों अभियुक्तों ने अपने बचाव में इसी ‘आवश्यकता के सिद्धांत’ का तर्क दिया और कहा कि ‘अगर हम तीनों उस बच्चे को मारकर ना खाते, तो कुछ समय बाद हम चारों ही भूख से मारे जाते, जबकि ऐसे में कम से कम हम तीनों के प्राण बच गए.’ लेकिन इस मामले में ‘आवश्यकता के सिद्धांत’ को न्यायोचित नहीं माना गया.

इस मामले को लेकर कहा गया है कि-
आत्मरक्षा चरम आवश्यकता नहीं है.
अपनी रक्षा के लिए दूसरे के प्राण नहीं लिए जा सकते हैं.
हर एक व्यक्ति का परम कर्तव्य है कि वह दूसरों की रक्षा करे.

Read Also – भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 76 से 79 : कब मिलेगा ‘तथ्य की भूल’ का बचाव?

Read Also – भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 80 : कब मिलेगा ‘दुर्भाग्य या दुर्घटना’ का बचाव?



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Sonam Agarwal 237 Articles
LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*