Mahabharat Reading : क्या महाभारत को घर में रखने और पढ़ने से लड़ाई होती है?

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फोटो क्रेडिट : सोशल मीडिया (Facebook)

Mahabharat Gita Press Reading

मैं जैसे-जैसे महाभारत पढ़ती जाती हूं, वैसे-वैसे समझ आता जा रहा है कि क्यों यह भ्रांति फैलाई गई कि महाभारत को घर में नहीं रखना चाहिए या उसे कभी पूरी नहीं पढ़नी चाहिए. क्योंकि महाभारत को पढ़ने से आपको अपने प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं. यदि हिन्दू लोग बुद्धि और धैर्य के साथ पूरी महाभारत का अध्ययन करते रहते, तो जातिवाद में भी न टूटते, क्या सही है क्या गलत, इसका निर्णय कर पाते. महाभारत तो थी ही मानवजाति के कल्याण के लिए, धर्म-अधर्म की बारीकियां सिखाने के लिए.

और महाभारत को पूरी पढ़ने से मना क्यों किया गया? क्योंकि आधा सत्य या आधा ज्ञान हमेशा ही बहुत खतरनाक होता है. यदि आप महाभारत के एक प्रसंग को पढ़ेंगे तो शायद आपके मन में किसी विषय को लेकर एक गलत धारणा बन जाए, लेकिन जब आप सारे प्रसंगों को पढ़ लेंगे तब ही आप सारी चीजों को समझ पाएंगे.

महाभारत को पढ़ने से झगड़े नहीं होते, बल्कि महाभारत को न पढ़ने से, और पूरा न पढ़ने के कारण ही झगड़े हो रहे हैं.

यदि मैं केवल अपनी बात करूं तो बचपन में मैंने महाभारत के नाम पर केवल बीआर चोपड़ा की महाभारत (BR Chopra Mahabharat) देखी थी. ज्यादा कुछ समझ तो नहीं आया था, लेकिन मन में महाभारत के प्रति एक नकारात्मक राय जरूर बन चुकी थी, विशेष रूप से युधिष्ठिर के प्रति. सोचती थीं कि युधिष्ठिर को धर्मराज किसने कह दिया? और मन में ऐसे-ऐसे तो प्रश्न आ गए थे, जिन्हें पूछने की भी हिम्मत नहीं होती थी किसी से…

कई बार सोचा था कि एक बार मूल महाभारत को उठाकर पढ़ लूं, लेकिन उसकी मोटाई देखकर कभी मन ही नहीं लगा उसे खोलने में.

फिर पता नहीं क्यों, कुछ समय पहले ही Hotstar पर स्टार प्लस की महाभारत (Star Plus Mahabharat) देख डाली. मम्मी-पापा रोज देख रहे थे तो उनके साथ देख ली. उसके बाद महाभारत में इतना इंटरेस्ट आया कि अब जब भी समय मिलता है तो गीताप्रेस की महाभारत (Mahabharata Gita Press) उठाकर बैठ जाती हूं. हिन्दू-सनातन धर्म का जितना उपकार गीताप्रेस ने किया है, उतना किसी धर्मगुरु ने भी नहीं किया.

और जब मैंने मूल महाभारत को पढ़ा, तब लगा कि हां! युधिष्ठिर धर्मराज ही थे, पांचों पांडव धर्म स्थापना के लिए पांच शरीर और एक प्राण के समान थे, और श्रीकृष्ण तो महाभारत का सौंदर्य हैं ही.

हालांकि, मैं इस सीरियल की कई बातों से सहमत तो नहीं हूं, कुछ चीजें सही नहीं दिखाई गई हैं इसमें. लेकिन अब तक महाभारत पर जितने भी धारावाहिक बने हैं, या जितनी भी पुस्तकें-उपन्यास लिखे गए हैं, उन सब में मुझे इस महाभारत को बनाने वाले का प्रयास ज्यादा अच्छा लगा. आज फेसबुक पर इतिहासकार बने घूम रहे पुस्तक विक्रेता महाभारत पर अपने जिस प्रकार के विचार और ज्ञान दे रहे हैं, कम से कम उनके विचारों से तो लाख गुना अच्छा है यह सीरियल.

इस सीरियल में सौरभ राज जैन जी (Saurabh Raj Jain Mahabharata) ने भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका निभाई है, और काफी अच्छा काम किया है उन्होंने. इस किरदार के लिए उनकी जितनी तारीफ की जाये, कम है.

सौरभ राज जैन जी अब तक मुख्य रूप से चार जगहों पर भगवान विष्णु और उनके अवतारों का किरदार निभा चुके हैं-

कलर्स टीवी पर आने वाले “जय श्रीकृष्णा” में विष्णु जी
“देवों के देव महादेव” में विष्णु जी, श्रीराम और श्रीकृष्ण
स्टार प्लस के “महाभारत” सीरियल में श्रीकृष्ण और विष्णु जी
“Om namo venkatesaya” Movie में विष्णुजी और भगवान वेंकटेश्वर.

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रामानंद सागर की “रामायण” और “जय श्रीकृष्ण” सीरियल (जिनकी जितनी तारीफ की जाये, कम है) के बाद एकमात्र स्टार प्लस की “महाभारत” ही है, जिसे मैंने एक भी एपिसोड बिना miss किए पूरा देखा है. और इसके बाद मैंने महाभारत का अध्ययन आरम्भ किया.

और अगर आप भी एक बार मूल महाभारत को ठीक से पढ़ डालेंगे, तो आपकी यह भ्रांति भी अपने आप ही समाप्त हो जाएगी कि महाभारत में पहले केवल 8800 श्लोक ही थे और बाद में बढ़ा दिए गए. हां कहीं-कहीं के अनुवाद परेशान करते हैं, शायद अनुवादकों को भी बड़ी मुश्किल हुई होगी उन्हें समझने में.

लेकिन जब आप सारी चीज पढ़ लेंगे, तुलनात्मक अध्ययन करेंगे, उन्हें खुद से समझने का प्रयास करेंगे, तो बहुत कुछ समझ आ जायेगा. और फिर बाकी बातें तो इस पर निर्भर करती ही हैं कि पढ़ कौन रहा है. जैसी नजर, वैसा ही दृश्य. जैसा चरित्र, वैसी समझ.

लेकिन जब आप पूरी महाभारत को पढ़ लेंगे तो आप भी बोल उठेंगे-

धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्‌ क्वचित्‌॥

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भारत का एक महान्‌ ग्रंथ – महाभारत

महाभारत आर्य-संस्कृति तथा भारतीय सनातन धर्म का एक महान्‌ ग्रंथ तथा अमूल्य रत्नों का अपार भण्डार है. भगवान्‌ वेदव्यास जी स्वयं कहते हैं कि “इस महाभारत में मैंने वेदों के रहस्य और विस्तार, उपनिषदों के सम्पूर्ण सार, इतिहास-पुराणों के उन्मेष और निमेष, चातुर्वण्य के विधान, पुराणों के आशय, ग्रह-नक्षत्र-तारा आदि के परिमाण, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, पाशुपत (अन्तर्यामी की महिमा) तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, वनों तथा समुद्रों का भी वर्णन किया है.

अतएव महाभारत महाकाव्य है, गूढ़ार्थमय ज्ञान विज्ञान-शास्त्र है, धर्मग्रन्थ है, राजनीतिक दर्शन है, कर्मयोग-दर्शन है, भक्ति-शास्त्र है, अध्यात्म शास्त्र है, आर्यजाति का इतिहास है ओर सर्वार्थसाधक तथा सर्वशास्त्रसंग्रह है.

सबसे अधिक महत्त्व की बात तो यह है कि इसमें एक, अद्वितीय, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान्‌, सर्वलोकमहेश्वर, परमयोगेश्वर, अचिन्त्यानन्त गुणगणसम्पन्न, सृष्टि-स्थिति-प्रलयकारी, विचित्र लीलाविहारी, भक्त-भक्तिमान्‌, भक्त-सर्वस्व, निखिलरसामृतसिन्धु, अनंत प्रेमाधार, प्रेमघनविग्रह, सच्चिदानन्दघन, वासुदेव भगवान्‌ श्रीकृष्ण के गुणगौरव का मधुर गान है. इसकी महिमा अपार है. औपनिषद ऋषियों ने भी इतिहास-पुराण को पञ्चम वेद बताकर महाभारत की सर्वोपरि महत्ता स्वीकार की है.

महाभारत आदिपर्व :

इदं शतसहस्रं हि श्लोकानां पुण्यकर्मणा।
सत्यवत्यात्मजेनेह व्याख्यातममितौजसा॥
धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्‌ क्वचित्‌॥

“असीम प्रभावशाली सत्‍यवतीनन्‍दन व्‍यास जी ने पुण्‍यात्‍मा पाण्‍डवों की यह कथा एक लाख श्‍लोकों में कही है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सम्‍बन्‍ध में जो बात इस ग्रन्‍थ में है, वही अन्‍यत्र भी है। जो इसमें नहीं है, वह कहीं भी नहीं है।”

अस्मिन्नर्थश्च कामश्च निखिलेनोपदेक्ष्यते।
इतिहासे महापुण्ये बुद्धिश्च परिनैष्ठिकी॥
अक्षुद्रान्दानशीलांश्च सत्यशीलाननास्तिकान्।
कार्ष्णं वेदमिमं विद्वाञ्छ्रावयित्वाऽर्थमश्नुते॥
महीं विजयते राजा शत्रूंश्चापि पराजयेत्।
इदं पुंसवनं श्रेष्ठमिदं स्वस्त्ययनं महत्॥

“इसमें (महाभारत में) अर्थ और धर्म का पूर्णरूप से उपदेश किया गया है। इस परमपावन इतिहास से मोक्ष बुद्धि प्राप्त होती है। जिनका स्‍वभाव अथवा विचार खोटा नहीं है, जो दानशील, सत्‍यवादी और आस्तिक हैं, ऐसे लोगों को व्‍यास द्वारा विचरित वेदस्वरूप इस महाभारत को जो श्रवण कराता है, वह विद्वान अभीष्ट अर्थ को प्राप्त कर लेता है। इसका श्रवण करने वाला राजा भूमि पर विजय पाता है और सब शत्रुओं को परास्‍त कर देता है।”

इदं हि वेदैः समितं पवित्रमषि चोत्तमम्।
श्राव्यं श्रुतिसुखं चैव पावनं शीलवर्धनम्॥
नरेण धर्मकामेन सर्वः श्रोतव्य इत्यपि।
निखिलेनेतिहासोऽयं ततः सिद्धिमवाप्नुयात्॥

“यह महाभारत वेदों के समान पवित्र और उत्तम है। यह सुनने योग्‍य तो है ही, सुनते समय कानों को सुख देने वाला भी है। इसके श्रवण से अन्‍त:करण पवित्र होता है और उत्तम शील-स्‍वाभाव की वृद्धि होती है। धर्म की इच्‍छा रखने वाले मनुष्‍य के द्वारा यह‍ सारा महाभारत इतिहास पूर्णरुप से श्रवण करने योग्‍य है। ऐसा करने से मनुष्‍य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।”

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महाकाव्यों को पढ़ने और समझने के लिए आवश्यक नियमों का पालन करें-

रामायण और महाभारत दो प्रमुख महाकाव्य हैं. एक महाकाव्य की रचना श्री वाल्मीकि जी ने की है और दूसरे महाकाव्य की रचना श्री वेदव्यास जी ने. महाकाव्यों को समझना आसान नहीं. महाकाव्यों को समझने की दृष्टि पाश्चात्य ‘सभ्यता’ में कभी नहीं होगी. महाकाव्यों को समझने के लिए कुछ नियमों का पालन भी करना पड़ता है. चित्त को शुद्ध करना पड़ता है. चित्त अपने आप शुद्ध नहीं होता. आहार शुद्धि उसका एक प्रमुख अंग है.

पहली शर्त- नियमित संध्यावंदन सहित हिन्दू जीवन पद्धति का अनुसरण करें.
दूसरी शर्त- महाकाव्यों को स्वयं से पढ़ें.
तीसरी शर्त- सभी प्रमुख पुराणों को भी पढ़ें.
और अंतिम शर्त- किसी आधुनिक लेखक के मतों पर ध्यान न दें.

उपर्युक्त तीन शर्तों का पालन करने पर अपना दृष्टिकोण निखर जायेगा. फिर किसी से दृष्टिकोण उधार नहीं मांगना पड़ेगा.

Written By : Aditi Singhal (working in the media)
(Guest Author)

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