Shri Mahalaxmi Puja Vidhi (1)
भगवती श्री महालक्ष्मी (Shri Mahalakshmi) चल और अचल, दृश्य और अदृश्य, सभी शक्तियों, सिद्धियों और निधियों की अधिष्ठात्री देवी या साक्षात् नारायणी हैं.
भगवान् श्रीगणेश जी (Shree Ganesh) सिद्धि, बुद्धि एवं शुभ और लाभ के स्वामी तथा सभी अमंगलों और विघ्नों के नाशक हैं, ये सत् बुद्धि प्रदान करने वाले हैं. अतः इनके एक साथ पूजन से सभी कल्याण मंगल एवं आनंद प्राप्त होते हैं.
कार्तिक कृष्ण अमावस्या (Kartik Amavasya) को भगवती श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान् श्रीगणेश जी की नूतन प्रतिमाओं का प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है. पूजन के लिए किसी चौकी या कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी और उनके दाहिने भाग में मां लक्ष्मी जी की प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए. ये प्रतिमाएं घर पर भी बनाई जा सकती हैं.
पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजन स्थान को भी पवित्र कर लेना चाहिए, और स्वयं भी पवित्र होकर श्रृद्धा भक्तिपूर्वक सायंकाल में इनका पूजन करना चाहिए. मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मी जी के पास ही किसी पवित्र पात्र में केसरयुक्त चन्दन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर द्रव्य लक्ष्मी (रुपयों) को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनों की पूजा करनी चाहिए. पूजन सामग्री को यथास्थान रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो. पूजन लाल ऊनी आसन अथवा कुशा के आसन पर बैठकर करना चाहिए.
पूजन सामग्री में जो वस्तु उपलब्ध न हो, उसके लिए उस वस्तु का नाम बोलकर ‘मनसा परिकल्प समर्पयामि’ बोलें. यदि श्रीगणेशजी जी की प्रतिमा विद्यमान न हो तो एक सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें अथवा मिट्टी के गणेश जी बनायें और उनका आवाहन करें.
सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर आचमन, पवित्री धारण, मार्जन, प्राणायाम कर अपने ऊपर और पूजन सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़कर जल छिड़कें-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
आसन शुद्धि और स्वस्ति पाठ करके हाथ में जल-अक्षत आदि लेकर पूजन का संकल्प करें-
“ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, मैं ___, विक्रम सम्वत ___ को, कार्तिक मास (या जिस माह में पूजन कर रहे हैं, उस माह का हिंदी नाम) की ___तिथि को, __ वार के दिन, __ नक्षत्र में, शुभ पुण्य तिथि में, भारत देश के, __ राज्य के, __ शहर में, धन वैभव प्रदाता श्री महालक्ष्मी जी, आपकी प्रसन्नता के लिए, कायिक, वाचिक, मानसिक ज्ञात-अज्ञात समस्त पापों से छुटकारा पाने के लिए, श्रुति स्मृति पुराणों के फल को प्राप्त करने के लिए, आरोग्य, ऐश्वर्य, दीर्घायु, विपुल धन-धान्य, समृद्धि, पुत्र-पौत्रों की अभिवृद्धि के लिए, व्यापार में उत्तरोत्तर लाभ के लिए, अपने परिवार सहित आपका, महासरस्वती जी, महाकाली जी, कुबेर आदि का पूजन कर रही/रहा हूँ। इस कर्म की निर्विघ्नता हेतु मैं सर्वप्रथम श्रीगणेशजी का पूजन कर रही/रहा हूँ।”
यह संकल्प वाक्य पढ़कर जल-अक्षत आदि गणेश जी के समीप छोड़ दें.
श्रीगणेश जी का पूजन
श्रीगणेश जी का पूजन करें. पूजन से पहले उनकी नूतन प्रतिमा की नमन रीति से प्राण-प्रतिष्ठा कर लें-
प्रतिष्ठा-
बायें हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन अक्षत को गणेश जी की प्रतिमा पर छोड़ते जाएँ-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञँ्समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ॥
ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
इस प्रकार प्रतिष्ठा कर भगवान् श्रीगणेश जी का षोडशोपचार पूजन करें. तदनन्तर नवग्रह पूजन, षोडशमातृका पूजन तथा कलश पूजन करें.
कलश पूजन –
जल, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से कलश और कलश में वरुण देव का पूजन करें और कलश में देवताओं का आवाहन करें. कलश को फूलमाला, फल, मिठाई, इत्र अर्पित करें और धूप-दीप दिखाते हुए निम्नलिखित मंत्र पढ़ें-
ॐ कलशस्य मुखे विष्णु: कंठे रुद्र: समाश्रित:।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:॥
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुंधरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथवर्ण:॥
अंगैच्श सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:।
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा।
आयान्तु देवपूजार्थम् दुरितक्षयकारकाः॥
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धुकावेरी जलेऽस्मिन संनिधिम् कुरु॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः।
आयान्तु मम शान्त्यर्थम् दुरितक्षयकारकाः॥
इस मंत्र के साथ कलश में वरुण देवता का पूजन करें-
ॐ अपांपतये वरुणाय नमः।
नवग्रह पूजन-
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः
सर्वेग्रहाः शान्तिकराः भवन्तु॥
षोडशमातृका पूजन (अंतरिक्ष में विद्यमान 16 कल्याणकारी शक्तियों का युग्म)-
गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः॥
धृतिः पुष्टिस्तथा तुष्टिरात्मनः कुलदेवता।
गणेशेनाधिका ह्येता वृद्धो पूज्याश्च षोडशः॥
महालक्ष्मी जी का पूजन
इसके बाद प्रधान पूजा में भगवती महालक्ष्मी जी का पूजन करें. पूजन से पहले नूतन प्रतिमा तथा द्रव्य लक्ष्मी की “ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य…” एवं “ॐ अस्यै प्राणाः….” इत्यादि मंत्रों से पूर्वोक्त रीति से प्राण-प्रतिष्ठा कर लें. इसके बाद हाथ में पुष्प लेकर निम्न मंत्र से भगवती महालक्ष्मी जी का ध्यान करें-
ध्यान-
या सा पद्यासनस्था विपुलकटितटी पद्यपत्रायताक्षी गंभीरावर्तनाभिःस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया। या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगण खचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः सा नित्यं पद्यमहस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता॥
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
(पुष्प अर्पित करें)
आवाहन-
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम्।
सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम्॥
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः। महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
(पुष्प अर्पित करें)
आसन-
तप्तकाञ्चनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवी जुषताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
आसनं समर्पयामि।
(आसन के लिए कमल आदि पुष्प अर्पित करें)
पाद्य-
गङ्गादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम्।
पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते॥
ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां
ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
पादयोः पाद्यं समर्पयामि।
(चन्दन पुष्पादियुक्त जल अर्पित करें)
अर्घ्य-
अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम्।
अर्घ्यं गृहाण मद्दत्तं महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव जुष्टामुदाराम्।
तां पद्मनीमीं शरणं प्र पद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि।
(अष्टगंधमिश्रित जल अर्घ्य पात्र से देवी के हाथों में दें)
• अष्टगंध क्या है – अगर, तगर, चन्दन, कस्तूरी, लाल चन्दन, कुमकुम, देवदारू और केसर.
आचमन-
सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्मविष्ण्वादिभि: स्तुता।
ददाम्याचमनं तस्यै महालक्ष्म्यै मनोहरम्॥
ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्व:।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मी:॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
आचमनीयं जलं समर्पयामि।
(आचमन के लिए जल चढ़ाएं)
स्नान-
मन्दाकिन्याः समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः।
स्नानं कुरुष्व देवेशि! सलिलैश्च सुगन्धिभिः॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
जलस्नानं समर्पयामि।
स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
(स्नानीय जल अर्पित करें)
दुग्ध स्नान-
कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितं॥
ॐ पयः पथिव्यां पयऽओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
पयः स्नानं समर्पयामि।
पयः स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।
(गाय के कच्चे दूध से स्नान करायें और फिर शुद्ध जल से स्नान करायें)
दधिस्नान-
पयस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः।
सुरभि नो मुखा करत्प्रण आयूँषि तारिषत्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
दधिस्नानं समर्पयामि।
दधिस्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।
(दही से स्नान करायें और फिर शुद्ध जल से स्नान करायें)
घृतस्नान-
नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकम्।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा। दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्धिशो दिग्भ्यः स्वाहा॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
घृतस्नानं समर्पयामि।
घृतस्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।
(घी से स्नान करायें और फिर शुद्ध जल से स्नान करायें)
मधुस्नान-
तरु पुष्प समुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधुः।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः॥ मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवँ रजः। मधुद्यौरस्तु नः पिता॥ मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
मधुस्नानं समर्पयामि।
मधुस्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।
(शहद से स्नान करायें और फिर शुद्ध जल से स्नान करायें)
शर्करास्नान-
इक्षुसार समुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ अपा(गुं), रसमुद्वयस(गुं) सूर्ये सन्त(गुं) समाहितम्। अपा(गुं) रसस्य यो रसस्तं वो गृह्याम्युत्तम मुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गुह्ढाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
शर्करास्नानं समर्पयामि।
शर्करास्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।
(शर्करा से स्नान करायें और फिर शुद्ध जल से स्नान करायें)
पञ्चामृत स्नान-
एकत्र मिश्रित पञ्चामृत से एकतंत्र से निम्न मंत्र से स्नान करायें-
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम्।
पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ पंच नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः।
सरवस्ती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत् सरित्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि।
पञ्चामृत स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।
(पञ्चामृत से स्नान करायें और फिर शुद्ध जल से स्नान करायें)
गन्धोदक स्नान-
मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम्।
चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
गन्धोदकस्नानं समर्पयामि।
(चन्दन मिश्रित जल से स्नान करायें)
शुद्धोदक स्नान-
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान करायें और उसके बाद प्रतिमा या द्रव्यलक्ष्मी का अंङ्ग-प्रोक्षण कर (पोंछकर) उसे यथास्थान आसन पर स्थापित करें और निम्न रूप से उत्तराङ्ग पूजन करें-
आचमन-
शुद्धोदक स्नान के बाद “ॐ महालक्ष्म्यै नमः” कहकर आचमनीय जल अर्पित करें.
वस्त्र-
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम्।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके॥
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
वस्त्रं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
(वस्त्र अर्पित करें और आचमनीय जल दें)
उपवस्त्र-
कञ्चुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम्।
गृहाण त्वं मया दत्तं मङ्गले जगदीश्वरि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
उपवस्त्रं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
(कञ्चुकी आदि उपवस्त्र चढ़ाएं और आचमनीय जल दें)
मधुपर्क-
कांस्ये कांस्येन पिहितो दधिमध्वाज्यसंयुतः।
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
मधुपर्कं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
(मधुपर्क समर्पित करें और आचमनीय जल दें)
आभूषण-
रत्न कंङ्कण वैदूर्य मुक्ता हारादिकानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः॥
ॐ क्षुत्विपासामलां ज्येष्ठाम्अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
नानाविधानि कुण्डलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि।
(आभूषण समर्पित करें)
गन्ध-
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्युपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
गन्धं समर्पयामि।
(केसर आदि मिश्रित चन्दन अर्पित करें)
रक्तचंदन-
रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम्।
मया दत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
रक्तचन्दनं समर्पयामि।
(रक्त चंदन चढ़ायें)
सिन्दूर-
सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये।
भक्तया दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
सिन्दूरं समर्पयामि।
(सिन्दूर चढ़ायें)
कुमकुम-
कुंकुमं कामदं दिव्यं कुंकुमं कामरूपिणम्।
अखण्डकामसौभाग्यं कुंकुमं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
कुंकुमं समर्पयामि।
(कुमकुम अर्पित करें)
पुष्पसार-
तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च।
मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
पुष्पसारं च समर्पयामि।
(पुष्पसार या सुगन्धित तेल या इत्र चढ़ायें)
अक्षत-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुंकुमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
अक्षतान् समर्पयामि।
(कुंकुमाक्त अक्षत अर्पित करें)
• (कहीं-कहीं पर महालक्ष्मी जी को अक्षत के स्थान पर हल्दी की गांठें या धनिया तथा भोग में गुड़ का प्रसाद चढ़ाया जाता है)
पुष्प और पुष्पमाला-
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि।
(देवी को पुष्प और पुष्पमाला अर्पित करें. यथासंभव लाल कमल अर्पित करें)
दूर्वा-
विष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम्।
क्षीरसागरसम्भूते दूर्वां स्वीकुरू सर्वदा॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
दूर्वांकुरान् समर्पयामि।
(दूर्वांकुर अर्पित करें)
अंङ्गपूजा-
रोली, कुमकुम मिश्रित अक्षत पुष्पों से निम्न मंत्र पढ़ते हुए अंङ्ग पूजा करें-
ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि।
ॐ चञ्चलायै नमः, जानुनी पूजयामि।
ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि।
ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि।
ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि।
ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षः स्थलम् पूजयामि।
ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि।
ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि।
ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि।
ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
सर्वांग पूजयामि।
क्रमशः
आगे की पूजा : अष्टसिद्धिपूजन, अष्टलक्ष्मी पूजन (Click Here)
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