Valmiki Ramayana : श्रीराम ने क्यों ली थी सीताजी की अग्नि परीक्षा?

sita agni pariksha valmiki ramayana yuddha kanda, सीता जी की अग्नि परीक्षा
सीता जी की अग्नि परीक्षा

Valmiki Ramayan Sita Agni Pariksha

इस ब्रह्माण्ड में पृथ्वी का अस्तित्व धूल के एक कण के बराबर भी नहीं है. क्या इस ब्रह्माण्ड के रचियता पृथ्वी पर पैदा हुए किसी राक्षस का वध करने के लिए अवतार लेंगे? नहीं, वे मानव जाति को कुछ न कुछ सिखाने या शिक्षा देने के लिए अवतार लेते हैं. वे कुछ ऐसी लीलाएं करके चले जाते हैं, जो कदम-कदम पर हमारा मार्गदर्शन करती हैं.

Read Also : भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण

मानव जाति को शिक्षा देने के लिए भगवान ही प्रश्न पूछते हैं और स्वयं ही उनका उत्तर देते रहते हैं या दिलवाते रहते हैं. वे ही शिष्य बन जाते हैं और वे ही गुरु. वे ही चिंता करते और रोते हैं और वे ही हर समस्या का समाधान निकालते हैं. वे ही गलतियां करते हैं और वे ही उन्हें सुधारने का मार्ग भी बताते हैं. अब जैसे कि श्रीराम ने सीता जी की अग्नि परीक्षा क्यों ली? क्या समाज के सामने केवल सीता जी की पवित्रता सिद्ध करने के लिए? क्या और कोई प्रयोजन नहीं था उनका?

आप ध्यान दीजिये तो पूरी रामायण में श्रीराम को जब भी किसी की बात गलत लगी, तब श्रीराम ने सबकी बात तथ्यों और तर्कों के साथ काटी है. कहीं भी वे चुप नहीं रहे, पर सीता जी की अग्निपरीक्षा में उनका एक अलग ही व्यवहार देखने को मिलता है. श्रीराम ने हनुमान जी के द्वारा सीताजी के लिए जो सन्देश भेजा था, और सीता जी के सामने आने पर जो बातें कहीं, वो सर्वथा अलग थीं.

Read Also : राज्याभिषेक के बाद सीताजी का वनवास क्यों?

दंडकारण्य में जाने से पहले सीता जी साधारण स्त्रियों की तरह व्यवहार करती हैं, और तब श्रीराम उन्हें समझाते हैं कि कोई भी नागरिक चाहे वह तपस्वी हो या संन्यासी, शत्रुओं से देश की तथा अपने देशवासियों की रक्षा करना उसका प्रथम कर्तव्य है. हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि देश के शत्रुओं ने जब तक ‘मेरा’ कुछ नहीं बिगाड़ा, तब तक हम उनसे क्यों लड़ें…

वहीं, युद्ध के बाद श्रीराम एक साधारण पुरुष की तरह व्यवहार करते हैं, और तब सीता जी उन्हें उनकी ‘भूल’ का एहसास कराती हैं. हालाँकि, सीताजी श्रीराम को उनकी किसी भूल का एहसास नहीं करा रही थीं, बल्कि वे दोनों ही मिलकर समाज से एक महत्वपूर्ण बात कहना चाह रहे थे.

Read Also : श्रीराम को सीता जी का उपदेश

हनुमान जी ने श्रीराम से कहा- “सीताजी ने आँखों में आंसू भरकर मुझसे कहा है कि मैं शीघ्र ही प्राणनाथ के दर्शन करना चाहती हूँ. भगवन! आपने जिनके लिए इन युद्ध आदि कर्मों का सारा उद्योग आरम्भ किया था, उन शोकसंतप्त मिथिलेशकुमारी सीताजी को आप दर्शन दें.”

हनुमान जी के ऐसा कहने पर श्रीराम सहसा ध्यानस्थ हो गए, उनकी आँखें डबडबा आयीं, और वे लम्बी सांस खींचकर (अपने आंसुओं को छिपाते हुए) भूमि की ओर देखते हुए पास ही खड़े विभीषण से बोले- “तुम विदेहनन्दिनी सीताजी को स्नान करवाके और दिव्य आभूषणों से विभूषित करवाके शीघ्र मेरे पास ले आओ.”

और तब राक्षसियों ने सीताजी को स्नान कराया, बहुत प्रकार के आभूषण पहनाए और फिर विभीषण एक सुंदर पालकी सजाकर ले आए. लेकिन जब श्रीराम ने देखा कि सब लोग सीता जी के दर्शन करना चाहते हैं, तब वे विभीषण से बोले कि “सीता को पैदल ही ले आओ, जिससे सब वानर उनके दर्शन कर सकें.”

सीताजी के लिए श्रीराम समुद्र पार कर लंका तक पहुँच गए, पूरे युद्धभर तो श्रीराम को सीताजी की चिंता लगी रही, किसी भी परिस्थिति में उन्होंने युद्ध नहीं रोका, लेकिन युद्ध के बाद जब सीता जी सामने आती हैं तो श्रीराम उनसे बड़े कड़वे वचन बोलते हैं. यहाँ श्रीराम उपमा भी कैसी देते हैं कि “जिस प्रकार आँख के रोगी को दीपक की ज्योति नहीं सुहाती, उसी प्रकार आज तुम मुझे अप्रिय जान पड़ रही हो.”

श्रीराम की बातें सुनकर वहां उपस्थित सब राक्षसियों तक को उन पर क्रोध आ जाता है.

और तब श्रीराम की बातों का सीताजी क्या उत्तर देती हैं-

“वीर! आप ऐसी कठोर, अनुचित, कर्णकटु और रूखी बात मुझे क्यों सुना रहे हैं, जैसे कोई निम्न श्रेणी का पुरुष निम्न कोटि की स्त्री से न कहने योग्य बातें भी कह डालता है, उसी तरह आप भी मुझसे कह रहे हैं. प्रभो! मनुष्य उसी वस्तु के लिए उत्तरदाई होता है जिस पर उसका अधिकार होता है. मैं अपने हृदय की स्वामिनी हूं. उसे मैंने अपने वश में रखा है. वह सदा आपके ही चिंतन में रहता है, पर मेरे शरीर पर मेरा वश नहीं है, मेरे अंग पराधीन हैं. यदि रावण ने मेरे शरीर का जबरन स्पर्श कर लिया, तो इसमें मेरा क्या अपराध है?”

निश्चय ही हमारा मन तो हमारे ही अधीन है. हम अपने मन को किस तरफ दौड़ाते हैं, यह हमारे ऊपर ही निर्भर करता है, पर हमारा शरीर हमारे वश में नहीं होता, वह हमारी इच्छा के विरुद्ध बीमार भी होता है, चोटिल भी होता है, बूढ़ा भी होता है और मरता भी है, क्योंकि वह पराधीन है.

इसके बाद सीताजी कहती हैं कि “नीच श्रेणी की स्त्रियों का आचरण देखकर यदि आप समूची स्त्री जाति पर ही संदेह करते हैं, तो यह उचित नहीं है.”

सीता जी के इन तर्कों पर श्रीराम कुछ नहीं बोलते, बल्कि सिर झुकाकर खड़े हो जाते हैं. इस प्रकार श्रीराम स्वयं ही सीता जी के तर्कों को मौन सहमति दे देते हैं. उन्होंने सबके सामने यह दर्शा दिया कि सीता जी के तर्कों का उनके पास कोई उत्तर नहीं है. श्रीराम ने सीताजी को न तो परीक्षा का कोई आदेश दिया था न ऐसा कोई आग्रह किया था.

जब सीताजी लक्ष्मण जी से अपने लिए अग्नि का प्रबंध करने के लिए कहती हैं, तब लक्ष्मण जी श्रीराम की तरफ रोष (क्रोध) से देखते हैं. उनसे सीताजी का वह अपमान सहा नहीं जा रहा था. तब श्रीराम उन्हें संकेत में अपना अभिप्राय समझा देते हैं. और तब श्रीराम के अभिप्राय को जानकर लक्ष्मण जी अग्नि का प्रबंध कर देते हैं. अब श्रीराम ने लक्ष्मण जी को संकेत में अपना क्या अभिप्राय बताया, यह वाल्मीकि जी ने नहीं बताया.

सीताजी के प्रति श्रीराम का ऐसा आचरण देखकर उस समय सब लोग उन्हीं की माया में फंस जाते हैं. सब देवगण सोचने लगे, “अहो! सब कुछ जानते हुए भी आखिर श्रीराम अपनी लक्ष्मी सीताजी को कैसे नहीं पहचान रहे..?

और तब सब देवताओं सहित ब्रह्माजी आते हैं और श्रीराम की स्तुति करते हुए उन्हें उनका वास्तविक स्वरूप बताते हैं. यहां पर वाल्मीकि जी ने श्रीराम के वास्तविक स्वरूप और उनके अवतार का पूरा भेद खोल दिया है. सब देवगण श्रीराम की स्तुति कर उनसे पूछते हैं कि, “भगवन! आप सम्पूर्ण विश्व के उत्पादक और सर्वव्यापक हैं, आप साधारण मनुष्य की भांति व्यवहार क्यों कर रहे हैं?”

पर श्रीराम और सीताजी अपनी मानवीय लीला किये जाते हैं.

फिर अग्नि में प्रवेश करने के बाद जो सीताजी दिखाई देती हैं, वे प्रातःकाल की सूर्य की भांति अरुणपीत क्रांति से प्रकाशित हो रही थीं. उनके श्रीअंगों पर लाल रंग की रेशमी साड़ी लहरा रही थी. उनकी अवस्था नई थी और उनके द्वारा धारण किए गए फूलों के हार मुरझाये तक नहीं थे (अग्नि से निकलीं यह वाली सीताजी असली थीं).

अरण्यकाण्ड के सर्ग 54 श्लोक 13 में भी वाल्मीकि जी ने अप्रत्यक्ष रूप से इस बात का संकेत दिया है कि “लंका में मायामयी सीता ही आयी थीं, इसीलिए रावण उन्हें ला सका था. मायारूपिणी होने के कारण ही रावण को सीता जी के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान न हो सका था.”

वहीं, मारीच भी रावण से कहता है, “श्रीराम की पत्नी सीता अपने ही पातिव्रत्य के तेज से सुरक्षित हैं. आपमें इतनी शक्ति नहीं कि आप उन्हीं सीता जी का हरण कर सकें.”

इसी प्रसंग को तुलसीदास जी ने और अच्छे से स्पष्ट कर दिया है-

सीता प्रथम अनल महुँ राखी।
प्रगट कीन्हि चह अंतर साखी॥
तेहि कारन करुनानिधि कहे कछुक दुर्बाद।
सुनत जातुधानीं सब लागीं करै बिषाद॥

यहाँ सीता जी ने जो तर्क दिए, वो नारी जाति के लिए कितने उपयोगी हैं. जिन लड़कियों के साथ दुर्भाग्यवश कोई अपराध हो जाता है, तो कुछ परिवार या पति उन्हीं के चरित्र पर संदेह करके उन्हें पुनः अपनाने से मना कर देते हैं, जबकि इसमें उस स्त्री का क्या दोष? ऐसे में उस स्त्री को नहीं, उसके अपराधी को कठोर दंड मिलना चाहिए… इसी के साथ, बुरी स्त्रियों का आचरण देखकर समस्त नारी जाति पर संदेह नहीं करना चाहिए. समाज को यही बताने के लिए श्रीराम और सीता जी ने यह लीला की. ऐसी लीला कर उन्होंने समाज की मानसिकता को भी दर्शाया है.

Read Also : जब श्रीराम के सामने रखा गया नास्तिकता का तर्क, तब श्रीराम ने दिया यह उत्तर

श्रीराम ने ऐसा ही सन्देश अपने श्रीकृष्ण के अवतार में भी दिया है.

श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने नरकासुर का वध कर सबको उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई और 16,100 स्त्रियों को उसकी कैद से मुक्त कराया. वे सभी स्त्रियां नरकासुर के द्वारा पीड़ित थीं, दुखी थीं, अपमानित और लांछित थीं. पर अब वे सब स्त्रियां श्रीकृष्ण को देखकर जोर-जोर से रोने लगीं. श्रीकृष्ण ने उनसे रोने का कारण पूछा तो उन सभी स्त्रियों ने कहा-

“हे द्वारकाधीश! आपने हम सबको उस दुष्ट की कैद से मुक्त तो करवा दिया, पर अब हम जाएँ कहाँ? हम स्त्रियों को कोई भी अपनाने को तैयार नहीं होगा. समाज के कुछ लोग लोक-लाज, मान-मर्यादा आदि के नाम पर हमारे चरित्र और हमारी पवित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाएंगे.”

और वे सब स्त्रियां रो-रोकर श्रीकृष्ण से प्रार्थना करने लगीं कि भगवान श्रीकृष्ण ही उनसे विवाह कर लें.

तब आखिरकार श्रीकृष्ण ने उन सभी स्त्रियों को आश्रय दिया. श्रीकृष्ण उसी समय अपने 16,100 रूपों में प्रकट हो गए और उन सभी स्त्रियों के हाथों से वरमाला पहन ली. वे सभी स्त्रियां अत्यंत प्रसन्न हो गईं. श्रीकृष्ण उन सभी को अपने साथ द्वारिकापुरी ले आए, जहाँ वे सभी स्त्रियां रानी बनकर स्वतंत्रतापूर्वक और सम्मानपूर्वक रहती थीं.

Written By : Aditi Singhal (Working in the Media)


भगवान श्रीराम द्वारा बाली का वध (क्यों और कैसे)

वाल्मीकि जी ने श्रीराम के क्या-क्या गुण बताए हैं?

जब सीता जी ने की श्रीराम के साथ चलने की जिद, तब …



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Guest Articles 94 Articles
Guest Articles में लेखकों ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। इन लेखों में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Prinsli World या Prinsli.com उत्तरदायी नहीं है।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*