A Star With Six Planets (6 Exoplanets and HD110067 Star)
जैसे ब्रह्माण्ड में हमारे सूर्य का एक परिवार है (Solar System), वैसे ही अनेक ‘सूर्यों’ (तारों) के भी उनके अपने परिवार हैं. जैसे 8 ग्रह सूर्य के चक्कर लगते हैं, वैसे ही बहुत से अन्य ग्रह दूसरे तारों की परिक्रमा करते रहते हैं. ऐसे ग्रहों को एक्सोप्लैनेट (Exoplanets) कहते हैं. हाल ही में खगोलविदों ने पास के तारामंडल (Constellation) में एक नये ‘सौरमंडल’ की खोज की है, जिसकी कई बातें बड़ी दिलचस्प हैं.
हमारी गैलेक्सी मिल्की-वे में कोमा बेरेनिसेस (Coma Berenices) के उत्तरी तारामंडल में HD110067 नाम का एक तारा है, जो हमारे सूर्य से द्रव्यमान में लगभग 20% छोटा है. 6 ग्रह इस तारे की परिक्रमा करते हैं. यह तारा और उसके छह ग्रह हमारी पृथ्वी से लगभग 100 प्रकाश वर्ष दूर स्थित हैं. ये छह ग्रह अपने तारे की परिक्रमा एक लय के साथ करते हैं. ये ग्रह अपने तारे के चारों तरफ इतने सटीक पैटर्न में घूमते हैं कि इन सबकी परिक्रमा को एक संगीत पर सेट किया जा सकता है.
जैसे-जैसे ये छह ग्रह अपनी कक्षाएं पूरी करते हैं और एक-दूसरे पर गुरुत्वाकर्षण बल लगाते हैं, वैसे-वैसे पैटर्न स्पष्ट होते हैं. ये सभी ग्रह अपने तारे की परिक्रमा बड़ी तेजी से करते हैं. सबसे भीतरी ग्रह को तारे की परिक्रमा करने में लगभग 9 दिन लगते हैं, और सबसे बाहरी ग्रह को लगभग 54 दिन लगते हैं. तो इससे आपको इन छह ग्रहों के घूमने के पैटर्न का पता लग गया होगा.
जब तारे का निकटतम ग्रह उसके चारों ओर तीन पूर्ण चक्कर लगाता है, तो दूसरा उसी समय के दौरान ठीक दो चक्कर लगाता है. हमारे अपने सौरमंडल में, प्लूटो (Pluto) नेपच्यून के साथ इसी प्रकार की एक समान प्रतिध्वनि (Similar Resonance) में है (प्लूटो नेपच्यून की प्रत्येक तीन कक्षाओं में हमारे सूर्य की दो बार परिक्रमा करता है).
ये छह ग्रह पृथ्वी और नेपच्यून के आकार के बीच के हैं. यानी ये ऐसे ग्रह हैं, जो आकार में पृथ्वी से बड़े लेकिन नेप्च्यून से छोटे होते हैं. इन ग्रहों को सब-नेप्च्यून (Sub-Neptune) कहते हैं, जो आमतौर पर हमारी मिल्की-वे में सूर्य जैसे तारों की परिक्रमा करते हुए पाए जाते हैं.
हमारी पृथ्वी जैसे नहीं हैं ये ग्रह
ये छह ग्रह अपने तारे की परिक्रमा बड़े करीब से करते हैं. इतने करीब कि उनकी सभी कक्षाएँ हमारे सूर्य और उसके निकटतम ग्रह बुध के बीच की दूरी के भीतर फिट हो सकती हैं, लेकिन HD110067 तारा हमारे सूर्य की तुलना में छोटा और कम चमकीला है, इसलिए उसके ग्रहों पर विकिरण का उतना प्रभाव नहीं पड़ता. और इसीलिए भी ये ग्रह हमारी पृथ्वी जैसे नहीं हैं, यानी इन पर जीवन नहीं हो सकता है.
अरबों सालों से नहीं हुआ कोई बदलाव
एक और चीज जो इस ‘सौरमंडल’ की खोज को सबसे अलग बनाती है, वह यह है कि 1 अरब साल पहले इसका निर्माण होने के बाद इसमें बदलाव बेहद कम हुआ है. इससे पता चलता है कि इस सिस्टम के निर्माण के बाद इसे किसी भी बड़े व्यवधान, जैसे किसी भारी पिंड के टक्कर या झटकों आदि का सामना नहीं करना पड़ा है. इसलिए यह सिस्टम 1 अरब सालों से इसी पैटर्न में घूम रहा है. छह ग्रह एक ही तारे की परिक्रमा कर रहे हैं और ऐसा लगता है कि अपने गठन (Formation) के बाद से उन्होंने अपना स्थान नहीं बदला है.
दरअसल, खगोलविदों का मानना है कि किसी भी सौरमंडल का निर्माण इसी प्रकार के एक लय के पैटर्न के साथ होता है. जब ग्रह धूल भरी प्रोटोप्लेनेटरी डिस्क (Protoplanetary Disks) से पैदा होते हैं तो उनकी प्रतिध्वनि (Resonance) शुरू हो जाती है, लेकिन बाहरी तारों के गुजरने या सिस्टम के भीतर अन्य ग्रहों की तुलना में बड़े ग्रहों के हावी होने के कारण उन नाजुक कक्षाओं का संतुलन बिगड़ जाता है.
खगोलविदों का मानना है कि ऐसा हमारे सौरमंडल में भी हुआ है. सौरमंडल की निर्माण के बाद अनेक टक्करों, झटकों आदि के कारण सबकी अलग-अलग कक्षाओं का निर्माण हुआ होगा. माना जाता है कि बृहस्पति ग्रह (Jupiter) ने हमारे सिस्टम और उसके ग्रहों के प्रारंभिक विकास को आकार देने में निर्णायक भूमिका निभाई है. संभवतः बृहस्पति ग्रह ने सभी उपलब्ध सामग्रियों को इस तरह अपने में समा लिया होगा कि Sub-Neptune के आकार के ग्रहों को एकजुट होने का मौका ही नहीं मिला होगा.
वहीं, अरबों साल पहले बने HD110067 सिस्टम के ग्रह संभवतः इसी लयबद्ध नृत्य का प्रदर्शन कर रहे हैं. इस तरह की विश्वसनीय स्थिरता का मतलब है कि इस सिस्टम को उन झटकों का सामना नहीं करना पड़ा होगा, जिनकी वैज्ञानिक आमतौर पर ग्रहों के निर्माण के शुरुआती दिनों में उम्मीद करते हैं, या यह भी हो सकता है कि HD110067 सिस्टम ऐसे किसी भी व्यवधान के दौरान प्रभावशाली रूप से मजबूत रहा हो.
तो इन ग्रहों का अध्ययन इस बात पर भी प्रकाश डाल सकता है कि हमारे सौरमंडल सहित कई अन्य सौरमंडलों में Sub-Neptune का अभाव क्यों है, बावजूद इसके कि इस प्रकार के ग्रह हमारी आकाशगंगा (मिल्की वे) में सबसे आम प्रकार हैं. HD110067 तारा पृथ्वी के रात्रि के आकाश में उत्तरी तारामंडल कोमा बेरेनिसेस में दिखाई देता है.
इन 6 ग्रहों का पता कैसे लगाया गया?
जब ये छह ग्रह परिक्रमा करते हुए अपने तारे के सामने से गुजरे तो उस तारे की चमक में छोटी-छोटी गिरावट देखकर इन ग्रहों का पता लगाया गया. इसे पारगमन विधि (Transit method) कहते हैं. दरअसल, टेलीस्कोप से एक्सोप्लैनेट का सीधे पता लगाना मुश्किल होता है, क्योंकि वे उन तारों के करीब होते हैं जिनकी वे परिक्रमा करते हैं. तारों की चमक इन्हें आसानी से पहचानने नहीं देती.
तो जब कोई एक्सोप्लैनेट अपने तारे के सामने से गुजरता है तो उसे गोचर या ट्रांजिट (Transit) कहते हैं. जब भी कोई ग्रह अपने तारे के सामने से निकलता है, तो थोड़ी मात्रा में उस तारे का प्रकाश बाधित होता है, यानी उतने समय के लिए तारे की चमक में कमी आ जाती है. खगोल वैज्ञानिक तारे की चमक में बदलाव का पता लगा सकते हैं, जिससे उन्हें ग्रह के आकार (साइज) का मूल्यांकन करने में मदद मिलती है. ट्रांजिट के बीच के समय का अध्ययन करके तारे से एक्सोप्लैनेट की दूरी का पता लगाया जा सकता है.
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