Maa Durga Puja Navratri
मां दुर्गा पूजा (Maa Durga Puja) का पर्व नवरात्रि (Navratri) पूरे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है. नवरात्रि देवी के शक्ति रूपों का महापर्व है. नवरात्रि हमें उस देवी भगवती के विशाल स्वरूप और शक्ति का आभास कराती है, जो जगत की पालनहार हैं और समस्त संसार को आलोकित और ऊर्जामय करने वाली हैं. नवरात्रि का अर्थ है ‘नौ रातें’, यानी नौ दिनों तक देवी या शक्ति के अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है. इन नौ रातों में तीन देवियों- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की उपासना की जाती है. कहते हैं कि इन दिनों मंत्र जाप करने से मनोकामना जल्द पूरी हो जाती है.
साल में आती हैं चार नवरात्रि
साल में चार नवरात्रि (Navratri) आती हैं. देवी भागवत और अन्य धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, साल के पहले महीने यानी चैत्र में पहली नवरात्रि आती है. चौथे महीने यानी आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि, इसके बाद अश्विन मास में तीसरी और प्रमुख नवरात्रि….और साल के 11वें महीने यानी माघ में चौथी नवरात्रि मनाई जाती है. लेकिन इन चारों में आश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख है. दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है. इन दोनों नवरात्रों को शारदीय और बसंत नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है. इन दोनों के अलावा आने वाली नवरात्रि (आषाढ़ नवरात्रि और माघ नवरात्रि) को ‘गुप्त नवरात्रि’ कहा जाता है, और इन गुप्त नवरात्रि के बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है.
भारत में नवरात्रि के अलग-अलग रंग
नवरात्रि भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है. गुजरात में नवरात्रि (Navratri) को डांडिया और गरबा के रूप में मनाया जाता है, जो पूरी रातभर चलता है. देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में आरती से पहले ‘गरबा’ किया जाता है और उसके बाद डांडिया समारोह का आयोजन किया जाता है. वहीं, बंगाल में बंगालियों का मुख्य त्योहार ही दुर्गा पूजा (Maa Durga Puja) होता है. यह पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े त्यौहार में से एक है. नीचे दक्षिण भारत में इस पूरे महीने विशेष पकवान बनाए जाने और चारों दिशाओं को दीपों से प्रकाशमान करने की परंपरा है.
नवरात्रि (Navratri) का महत्व
आखिर संसार में ऐसी कौन सी शक्ति है, जिसने सभी को जन्म दिया है, जो पूरे संसार को चला रही है. आखिर हमें और आपको जीवन जीने और कार्य करने की ऊर्जा कहां से मिलती है. ऐसी कौन सी महाशक्ति है, जो हमारे हृदय में इच्छाएं जगाती है और उन्हें मार भी देती है. रात को सोकर हम कैसे सुबह एक नए उत्साह के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित हो जाते हैं. इन सभी प्रश्नों के उत्तर हमें केवल उस परमशक्ति की उपासना से ही मिलेंगे. नवरात्रि शक्ति की आराधना का पर्व है. उस शक्ति की, जिससे इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है, जो समस्त संसार को चला रही है….और जिस शक्ति की उपासना स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी करते हैं.
देवी भागवत और अथर्ववेद में देवी स्वयं कहती हैं कि ‘मैं ही सृष्टि और मैं ही समष्टि, मैं ही ब्रह्म और मैं ही परब्रह्म, मैं ही जड़ और मैं ही चेतन, मैं ही स्थल और मैं ही विशाल, मैं ही निद्रा और मैं ही चेतना हूं. मुझसे ही सारा जगत उत्पन्न हुआ है और मैं ही इसके काल का कारण बनूंगी. मुझसे पृथक कोई नहीं, मैं सब से पृथक हूं’.
शक्ति पूजा का महत्व
हर एक कार्य के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है. जहां शक्ति का संचय होता है, वहीं सुख सत्कार और शांति के फूल बरसते हैं. वहीं, जहां शक्ति का अभाव होता है, वहां दुख, तिरस्कार और कलह के कांटे ही बिखरे रहते हैं. जो शक्ति का संचय करते रहते हैं, उन्हें ही समर्थ, बलवान, बुद्धिमान और सौभाग्यशाली कहा जाता है. शक्ति का संचय करने के लिए ही शक्ति की पूजा-आराधना की जाती है. नवरात्रि में सभी शक्तियों का जागरण होता है और इसीलिए इन शक्तियों की उपासना से परम पद की प्राप्ति होती है.
‘रात्रि’ का इतना महत्व क्यों?
रात्रि अंधकार और अज्ञान का प्रतीक है. रात्रि के अंधकार में रस्सी भी सर्प जान पड़ती है और अज्ञानता के कारण ही यह संसार सत्य जान पड़ता है. नवरात्रि इस अज्ञानता से मुक्ति पाने की ही आराधना का पर्व है. रात्रि विश्राम देती है, रात्रि में चारों तरफ शांति का वातावरण होता है, ऐसे में अपनी संपूर्ण दिनचर्या से मुक्ति पाकर रात्रि की नीरवता में एकाग्रचित्त होकर मनुष्य के लिए उपासना करना ज्यादा सरल, सहज और सुगम हो जाता है.
इसीलिए भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने दिन की अपेक्षा ‘रात्रि’ को ज्यादा महत्व दिया है….और इसीलिए दीपावली, महाशिवरात्रि, नवरात्रि और होलिका आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है. रात्रि का एक विशेष महत्व है, इसीलिए ऐसे उत्सवों के नामों में ‘दिन’ ना लगाकर ‘रात्रि’ ही लगाया जाता है. ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक है, यानी जिस समय शक्ति की उपासना कर कई सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं.
नारी सम्मान का प्रतीक है मां दुर्गा पूजा (Maa durga Puja) का पर्व नवरात्रि (Navratri)
भारतीय संस्कृति में नारी सम्मान का सबसे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि भारत अपने नए साल का शुभारंभ ही नारी शक्ति की आराधना से करता है. किसी भी संस्कृति में नारी को समर्पित साल में दो महोत्सव नवरात्रि (Navratri) नहीं होते. इसी के साथ नवरात्रि प्रकृति की पूजा का भी महापर्व है. देवी के नौ स्वरूपों का प्रारंभ ही शैलपुत्री (पर्वतराज की पुत्री) यानी प्रकृति की आराधना से होता है.
गर्मी और जाड़े के मौसम में सौर ऊर्जा हमें सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, क्योंकि फसल पकने, वर्षा जल के बादल संघनित होने और ठंड से राहत देने जैसे जरूरी कार्य इसी दौरान संपन्न होते हैं, इसीलिए पवित्र शक्तियों की आराधना करने के लिए यह सबसे अच्छा समय माना जाता है. प्रकृति में बदलाव के कारण हमारे तन-मन और मस्तिष्क में भी कई बदलाव आते हैं, इसीलिए शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए हम उपवास रखकर शक्ति की आराधना करते हैं.
ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के रूप में शक्ति का आह्वान किया जाता है. जो संसार को प्रकाशित करे, जो गुणों को अभिव्यक्ति दे, जो काल को वश में करे और जो मानवमात्र का हित करे, वह मां भवानी हम सभी के घर परिवार समाज और राष्ट्र में हैं.
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है नवरात्रि
नवरात्रि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. यह सत्य की जीत और आध्यात्मिक अज्ञानता को दूर करने का प्रतीक है. एक विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है और झूठ का नाश होता है. यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है. नवरात्रि में ही भगवान श्रीराम ने देवी शक्ति की आराधना करके दुष्ट राक्षस रावण का वध किया था और समाज को यह संदेश दिया था कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है. नवरात्रि में ही मां दुर्गा ने महिषासुर नाम के भयानक दैत्य का वधकर देवताओं को अभयदान दिया था. नवरात्रि की सभी कहानियों का एक ही मूल संदेश है कि असत्य की उम्र सत्य से कम होती है.
नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?
नवरात्रि क्यों मनाते हैं, इसके पीछे दो कथाएं प्रचलित हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शारदीय नवरात्रि की शुरुआत भगवान श्रीराम (Shri Ram) ने की थी. भगवान राम ने ही सबसे पहले समुद्र किनारे शारदीय नवरात्रों की पूजा की शुरुआत की थी. श्रीराम ने लगातार नौ दिनों तक शक्ति की पूजा-आराधना की थी और तब जाकर उन्होंने रावण का वध करके बुराई का नाश किया था. इसी कारण से शारदीय नवरात्रि में 9 दिनों तक मां दुर्गा की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है. जो धर्म की अधर्म पर जीत और सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है.
मां दुर्गा (Maa Durga) ने ली श्रीराम की परीक्षा, दिया विजयश्री का आशीर्वाद
एक कथा के अनुसार, राम-रावण युद्ध से पहले भगवान श्रीराम ने नवरात्रि का व्रत रखा था. भगवान श्रीराम ने 9 दिनों तक शक्ति की आराधना की थी. उन्होंने देवी के सभी स्वरूपों का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने का प्रयास किया. विधि के अनुसार, भगवान श्रीराम ने देवी को चढ़ाने के लिए 108 नीलकमल की व्यवस्था की थी. वे पूरी तरह समर्पित होकर बड़े प्रेम से देवी की आराधना कर रहे थे.
तब मां दुर्गा ने भगवान श्रीराम की परीक्षा लेनी चाही. उन्होंने पूजा सामग्री से एक नीलकमल गायब कर दिया. जब श्रीराम को एक नीलकमल कम दिखा, तो वे चिंतित हो गए. वहां मौजूद सभी लोगों में भय व्याप्त हो गया कि कहीं मां दुर्गा नाराज न हो जाएं और श्रीराम का संकल्प टूट ना जाए.
तभी श्रीराम जी को याद आया कि उन्हें ‘कमलनयन नवकंज लोचन’ भी कहा जाता है. यानी उनके नेत्र भी नीलकमल के समान ही हैं. तब श्रीराम ने ठान लिया कि वह उस नीलकमल के स्थान पर अपना एक नेत्र ही देवी को समर्पित कर देंगे. ऐसा करने के लिए जैसे ही श्रीराम ने एक बाण से अपने नेत्र को निकालना चाहा कि तभी मां दुर्गा प्रकट हो गईं. उन्होंने श्रीराम को रोककर कहा कि “मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं और तुम्हें विजयश्री का आशीर्वाद देती हूं.”
चैत्र मास की नवरात्रि की कथा (Chaitra maas Navratri ki katha)
जहां शारदीय नवरात्र को सत्य और धर्म की जीत (दशहरा) के रूप में मनाया जाता है, तो वहीं चैत्र मास की नवरात्रि भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है. इसी के साथ, चैत्र मास की नवरात्रि में ही मां दुर्गा ने महिषासुर के नाम के राक्षस का वध किया था. महिषासुर ने कठोर तपस्या करके देवताओं से अजय होने का वरदान प्राप्त कर लिया था. वरदान पाकर महिषासुर ने उसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया.
महिषासुर ने अपने अत्याचारों से सभी को त्रस्त कर दिया. उसने सभी देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए और स्वर्गलोक पर कब्जा जमा कर बैठ गया. इस पर सभी देवताओं ने शक्ति का आह्वान किया. देवताओं की पुकार पर मां दुर्गा अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों के साथ प्रकट हुईं. मां दुर्गा और महिषासुर का युद्ध 9 दिनों तक चला. अंत में देवी ने महिषासुर का वध कर दिया और ‘महिषासुरमर्दिनी’ कहलाईं.
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