Swaminarayan Akshardham New Delhi
दिल्ली को ‘भारत का दिल’ कहा जाता है. पवित्र यमुना नदी के किनारे स्थित इस सुन्दर नगर का गौरवशाली इतिहास है. यह भारत का अति प्राचीन नगर है और इसका इतिहास सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है. महाभारत काल में इसका नाम ‘इन्द्रप्रस्थ’ था. दिल्ली में घूमने लायक जगहों की कमी नहीं है. खाने-पीने के शौकीन लोगों के लिए तो यह स्वर्ग की तरह है. यहां अनेकों सुन्दर और प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें से एक है अक्षरधाम मंदिर (Swaminarayan Akshardham Temple Delhi).
अक्षरधाम मंदिर शानदार तरीके से भारत की प्राचीन वास्तुकला, परंपराओं और कालातीत आध्यात्मिक संदेशों का सार प्रदर्शित करता है. प्रदर्शनी हॉल, म्यूजिकल फाउंटेन, भारत के साठ एकड़ के हरे-भरे बगीचे और लोटस गार्डन से परिपूर्ण, अक्षरधाम का अनुभव भारत की गौरवशाली कला, मानव जाति की प्रगति, प्रसन्नता और सद्भाव के लिए मूल्यों और योगदान के माध्यम से एक ज्ञानवर्धक यात्रा है. गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड द्वारा दुनिया के सबसे बड़े हिंदू मंदिर के रूप में घोषित इस मंदिर का उद्घाटन 6 नवंबर, 2005 को किया गया था.
विश्व प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर अक्षरधाम
नई दिल्ली में स्थित अक्षरधाम विश्व प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है. ‘अक्षरधाम’ का अर्थ है- “भगवान का दिव्य निवास”. इसे भक्ति, पवित्रता और शांति के सनातन स्थान के रूप में जाना जाता है. यह भगवान का निवास, पूजा का एक हिंदू गृह और भक्ति, शिक्षा और सद्भाव के लिए समर्पित एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परिसर है. इस मंदिर की कला और वास्तुकला में हिंदू आध्यात्मिक संदेश, जीवंत भक्ति परंपराएं और प्राचीन वास्तुकला सभी प्रतिध्वनित हैं.
अक्षरधाम मंदिर संत स्वामीनारायण (1781- 1830) को और उनके आराध्य देवी-देवताओं को समर्पित है. आठ तरफा खंभों पर टिका हुआ एक 32-फुट ऊंचा तश्तरी के आकार का गुंबद है. मंदिर के केंद्र में संत स्वामीनारायण की प्रतिमा स्थापित है. उनके साथ केंद्रीय मंदिर में उनके उत्तराधिकार भी शामिल हैं. प्रत्येक को सेवा की मुद्रा में चित्रित किया गया है. आध्यात्मिक उत्तराधिकार में गुणितानंद स्वामी, भगतजी महाराज, शास्त्रीजी महाराज, योगीजी महाराज और प्रमुख स्वामी महाराज शामिल हैं.
अक्षरधाम मंदिर की दिव्य प्रतिमायें
अक्षरधाम मंदिर में भगवान् की प्रतिमाओं को देखकर ऐसा लगता है जैसे साक्षात् भगवान् के ही दर्शन कर रहे हों. अक्षरधाम की यात्रा एक आध्यात्मिक रूप से समृद्ध अनुभव है. चाहे वह प्रार्थना की शक्ति को महसूस करने में हो, हिंदू धर्म के प्राचीन सिद्धांतों की सार्वभौमिक प्रकृति से अवगत होने में, या सिर्फ पृथ्वी पर भगवान के निवास की सुंदरता को निहारने में – प्रत्येक तत्व का एक आध्यात्मिक महत्व है.
मंदिर के केंद्र के चारों ओर भगवान् के लिए विशेष मंदिर हैं-
• श्री शिव-पार्वती जी और उनके पुत्र श्री गणेश जी
• श्री सीता-राम जी और हनुमान जी
• श्री राधा-कृष्ण जी
• श्री लक्ष्मी-नारायण जी.
स्वामी महाराज द्वारा बनाया गया यह मंदिर जटिल नक्काशीदार बलुआ पत्थर और संगमरमर से निर्मित है. इस मंदिर के निर्माण में लौह धातु का प्रयोग नहीं किया गया है. इस मंदिर को वास्तुकला विज्ञान पर प्राचीन और मध्य-युग के मध्यकालीन भारतीय ग्रंथों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है.
अक्षरधाम मंदिर में 234 जटिल नक्काशीदार खंभे, 9 अलंकृत गुंबद, 20 चतुष्कोणीय शिखर और भारत के हिंदू धर्म के आध्यात्मिक व्यक्तित्वों की 20,000 मूर्तियां हैं. मंदिर की ऊँचाई 141.3 फीट, चौड़ाई 316 फीट और लम्बाई 356 फीट है. मंदिर के अंदर, प्रत्येक पूजनीय नक्काशीदार स्तंभ, छत और गुंबद भक्ति की एक कहानी साझा करते हैं.
इस मंदिर को बनाने में 30,00,00,000 से भी अधिक घंटे लगे. इसके निर्माण में दुनिया भर के 8,000 से अधिक स्वयंसेवकों ने भाग लिया था. 6 नवंबर 2005 को एचएच प्रमुख स्वामी महाराज के आशीर्वाद और कुशल कारीगरों और स्वयंसेवकों के समर्पित प्रयासों के माध्यम से पारंपरिक रूप से इस मंदिर का उद्घाटन किया गया था.
मंडपम (Mandapam)-
मंदिर के आंतरिक भाग में नौ अलंकृत नक्काशीदार गुंबद हैं जो खूबसूरती से नक्काशीदार स्तंभों पर टिके हुए हैं. गुंबद और सहायक स्तंभों का प्रत्येक सेट एक मंडपम बनाता है. प्रत्येक मंडपम में संत स्वामीनारायण और उनके आराध्यों के अद्वितीय रूप हैं. मंदिर का केंद्र स्वामीनारायण मंडपम (Swaminarayan Mandapam) बनाता है. अन्य मंडपम हैं-
परमहंस मंडपम
घनश्याम मंडपम
लीला मंडपम
नीलकंठ मंडपम
स्मृति मंडपम
सहजानंद मंडपम
भक्त मंडपम
पुरुषोत्तम मंडपम
मंडोवर (Mandovar)
एक प्राचीन पत्थरों से बने मंदिर के बाहरी अग्रभाग को मंडोवर (Mandovar) के रूप में जाना जाता है. स्वामीनारायण अक्षरधाम का मंडोवर पिछले आठ सौ वर्षों में भारत में निर्मित सबसे बड़ा, सबसे जटिल नक्काशीदार मंडोवर है. यह 25 फीट ऊंचा, 611 फीट लंबा है और इसमें हिंदू धर्म के कई महान ऋषियों, साधुओं, भक्तों, आचार्यों और अवतारों की 200 मूर्तियां हैं.
मंडोवर के आधार को ‘जगती’ (Jagati) कहा जाता है. इस परत में, संसार के प्रमुख प्राणियों की नक्काशी मिलती है. हमारे हाथी जो बल और शक्ति का प्रतीक हैं. शेर जो शक्ति और बहादुरी का प्रतीक हैं. गति के लिए विख्यात व्याल (एक पौराणिक पशु) मिलता है. बाद की परतों में, फूलों की नक्काशी मिलती है जो सुंदरता और सुगंध का प्रतिनिधित्व करती है. मंडोवर के मध्य में, जिसे विभूति (Vibhuti) के नाम से जाना जाता है, अवतारों, संतों, देवों, आचार्यों और भक्तों की मूर्तियां हैं. सब कुछ बेहद सजीव सा लगता है.
और इस परत के शीर्ष पर समरन (Samarans) हैं जो लोगों को जीवन में आध्यात्मिक ऊंचाई के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करते हैं. संपूर्ण मंडोवर एक व्यक्ति को अपने जीवन को सांसारिक सुखों की बेड़ियों से मुक्त करने और ईश्वर-प्राप्ति की अंतिम अवस्था तक ले जाने के लिए प्रेरित करता है.
नारायण पीठ (Narayan Peeth)
सम्मान और प्रार्थना के प्रतीक के रूप में मंदिर की प्रदक्षिणा या परिक्रमा करना एक प्राचीन हिंदू परंपरा है. अक्षरधाम मंदिर में इन परिक्रमाओं को करने का मार्ग तीन 60 फीट लंबे कांस्य राहत पैनलों से अलंकृत है. यह पैनल भगवान स्वामीनारायण के जीवन से दैवीय घटनाओं को चित्रित करते हैं और इन मार्गों पर चलने वाले भक्तों को परिक्रमा करते समय भगवान को याद करने में मदद करते हैं. जिस मंदिर में ये पटल स्थापित हैं, उस परत को नारायण पीठ के नाम से जाना जाता है.
गजेंद्र पीठ (Gajendra Peeth)
गजेंद्र पीठ (निचली प्रदक्षिणा) स्वामीनारायण अक्षरधाम की एक अनूठी, मनोरम विशेषता है और एक प्राचीन स्थापत्य परंपरा का प्रेरक पुनरुद्धार है. मायामतम, शिल्पा रत्नाकर, दीपर्णव और अन्य जैसे प्राचीन वास्तुशिल्प ग्रंथों में महलों और मंदिरों के लिए एक ‘गजस्थर’ (Gajsthar or Plinth of Elephants) का उल्लेख किया गया है.
यह परंपरा 1300 साल पुराने एलोरा के प्राचीन कैलाश मंदिर और 1400 साल पुराने महाबलीपुरम मंदिर में मिलती है. 12वीं सदी से पहले कई मंदिरों में गजस्थर लगाकर इस परंपरा का पालन किया जाता था. स्वामीनारायण अक्षरधाम का बड़ा गजस्थर इस परंपरा की साहसिक वापसी का प्रतीक है. अक्षरधाम की इस परंपरा का अनूठा पुनरुद्धार एक नए प्रेरणादायक, कलात्मक नवाचार (Innovation) के साथ आता है.
यह हाथियों से संबंधित प्रेरक घटनाओं को चित्रित करता है कि कैसे हाथी और मनुष्य एक घनिष्ठ सम्बन्ध साझा करते हैं. इस मंदिर की डिजाइन को भी इस प्रकार बनाया गया है जैसे यह पूरा मंदिर महाबली हाथियों की पीठ पर टिका हुआ हो.
सनातन संस्कृति प्रकृति के बहुत करीब है. यह संस्कृति परिवर्तन को स्वीकारने, आधुनिकता को अपनाने के साथ-साथ प्रकृति की रक्षा को भी समान महत्त्व देती है. अक्षरधाम मंदिर में आप अपने देश की इस संस्कृति को जानने और समझने का पूरा प्रयास कर सकते हैं. इसी के साथ, वन और वन में रहने वाले सभी जीव-जंतु कोई न कोई बड़ी सीख देते हैं. हम सभी से जीवन जीने की कला को सीख सकते हैं.
जैसे- एक नक्काशी में, जंगली कुत्तों का झुंड आने वाले हाथी के खिलाफ साजिश रचता है. वे उस पर हमला करने और उसे चोट पहुँचाने का प्रयास करते हैं, लेकिन हाथी इतने बड़े और मजबूत होते हैं कि वे किसी के भौंकने पर कोई ध्यान नहीं देते. हाथी सुनने या पीछे देखने के लिए नहीं रुकता, और न ही अपना रास्ता बदलता है.
इसी क्रम में आपको मंदिर की दीवारों पर ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं की बेहद सुन्दर झांकियां भी देखने को मिलती हैं. इन्हीं में से एक है समुद्र मंथन की झांकी, जिसमें ‘अमृत’ के लिए देवता और दानव साथ हो जाते हैं. सर्प वासुकी को रस्सी के रूप में और मंदराचल पर्वत को मंथन-छड़ी के रूप में उपयोग करते हुए, उन्होंने समुद्र से 14 कीमती वस्तुओं का मंथन किया. इन्हीं 14 रत्नों में से एक सात सूंड वाले सफेद हाथी ऐरावत पर देवराज इंद्र का अधिकार हुआ. ऐरावत को शुभता, धन और शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है. यह स्वर्ग के शासक ‘इंद्र’ का वाहन है.
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