Ghrishneshwar Mahadev Temple : अनुपम है घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर

grishneshwar jyotirlinga temple, verul maharashtra aurangabad, घृष्णेश्वर मंदिर
घृष्णेश्वर मंदिर

Grishneshwar Jyotirlinga Temple Maharashtra

ज्योतिर्लिंगों को भगवान शिव का सबसे शुद्ध और पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है. महाराष्ट्र में औरंगाबाद (Aurangabad, Maharashtra) के निकट दौलताबाद से करीब 11 किलोमीटर दूर घृष्‍णेश्‍वर महादेव का मंदिर (Ghrishneshwar Mahadev Temple) स्थित है. यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में घृष्णेश्वर का स्थान बारहवां है. कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर या घुसृणेश्वर और कुसुमेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं.

घृष्णेश्वर का अर्थ है ‘करुणा के भगवान’. वेरुल में स्थित यह मंदिर एलोरा से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित है. जो भी पर्यटक एलोरा की गुफायें (Ellora caves) देखने के लिये आते हैं, उनके लिये घृष्णेश्वर मंदिर दोहरी सौगात की तरह है.

13वीं और 14वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत द्वारा मंदिर की संरचना को नष्ट कर दिया गया था. पुनर्निर्माण के कई दौरों के बाद मुगल-मराठा संघर्ष के दौरान मंदिर को फिर से नष्ट किया गया. मंदिर दर्शनीय वास्तुकला का उदाहरण है जिसके पुनरुद्धार करने का श्रेय प्रसिद्ध शिवभक्त वीरांगना महारानी अहिल्याबाई होल्कर (Maharani Ahilyabai Holkar) को जाता है. वर्तमान में यह महत्वपूर्ण और सक्रिय तीर्थ स्थल है.

सभी द्वादश ज्योतिर्लिंग किसी न किसी रोचक कथा से जुड़े हुए हैं. पूर्वाग्रह को परे रखकर इन कहानियों की विवेचना की जाये तो बीते हुए युग की सामाजिकता को भी समझा जा सकता है और इतिहास की दृष्टि भी पाई जा सकती है. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग में जलाभिषेक करने के बाद मंदिर को बारीकी से देखते हुए मन शिल्पकारों की प्रशंसा से भर उठता है. यह अवश्य कहा जा सकता है कि अपनी संपूर्णता में अनुपम है घृष्णेश्वर.

शिव पुराण के ज्ञान संहिता में उल्लेख है-

ईदृशं चैव लिंग च दृष्ट्वा पापै: प्रमुच्यते।
सुखं संवर्धते पुंसां शुक्लपक्षे यथा शशी।

अर्थात घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा उसी प्रकार सुख-समृद्धि होती है, जिस प्रकार शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की. स्त्रोत है-

इलापुरे रम्यशिवालये स्मिन्,
समुल्लसंतम त्रिजगद्वरेण्यम्।
वंदेमहोदारतरस्वभावम्,
सदाशिवं तं घृषणेश्वराख्यम्।

जय रामेश्वर जय नागेश्वर वैद्यनाथ केदार हरे,
मल्लिकार्जुन सोमनाथ जय महाकाल ओंकार हरे,
त्र्यम्बकेश्वर जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
काशी-पति श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नीलकण्ठ जय भूतनाथ जय मृत्युंजय अविकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे॥

घृष्णेश्वर मंदिर मराठा मंदिर की स्थापत्य शैली और संरचना का एक उदाहरण है. यह 240 x 185 फीट का मंदिर भारत का सबसे छोटा ज्योतिर्लिंग मंदिर है. शानदार पांच-स्तरीय शिखर अद्भुत है. मंदिर के आधे ऊपर, भगवान् विष्णु जी के दशावतारों को लाल पत्थर पर उकेरा गया है. 24 स्तम्भों पर कोर्ट हॉल बना है. इन स्तंभों पर भगवान् शिव से जुड़ी अलग-अलग कथाओं का सारांश नक्काशी है. गर्भगृह का माप 17 x 17 फीट है. लिंगमूर्ति का मुख पूर्व की ओर है. कोर्ट हॉल में एक नंदी बैल है. मंदिर में कई हिंदू देवी-देवताओं की नक्काशी और मूर्तियां हैं.

घृष्णेश्वर मंदिर में मनाये जाने वाले त्यौहार

मंदिर में सभी हिन्दू त्यौहार अच्छे से मनाये जाते हैं. महाशिवरात्रि उत्सव घृष्णेश्वर मंदिर में एक भव्य आयोजन है. यह यहां का प्रमुख पर्व है. हर साल फरवरी/मार्च में पड़ने वाले इस शुभ दिन पर लाखों भक्त भगवान शिव की एक झलक पाने के लिए इस शहर की यात्रा करते हैं. इसी के साथ इस मंदिर में गणेश चतुर्थी (अगस्त/सितंबर) नवरात्रि या दुर्गा पूजा भी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. उत्सवों में मंदिर में मंच की सजावट, कथाओं का पाठ और जाप किया जाता है.

घृष्णेश्वर मंदिर के आसपास के मंदिर

घृष्णेश्वर मंदिर के साथ-साथ आप एलोरा की गुफाएँ, भद्र मारुति मंदिर (भगवान हनुमान जी को समर्पित), औंधा नागनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर, परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर और त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (जो भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के प्रतीक हैं) के भी दर्शन कर सकते हैं. ये सभी मंदिर घृष्णेश्वर मंदिर से थोड़ी-थोड़ी दूरी पर स्थित हैं, जहां बस या टैक्सी या खुद के वाहन द्वारा पहुंचा जा सकता है.

महत्वपूर्ण तथ्य- घृष्णेश्वर मंदिर साल के सभी 365 दिन खुला रहता है. मंदिर सुबह 5:30 बजे से रात 11 बजे तक खुला रहता है. मंदिर में मुख्य तथा दर्शनीय आरती प्रात: छ: तथा रात्रि आठ बजे होती है. घृष्णेश्वर मंदिर में प्रवेश निःशुल्क है. कई भक्त मंदिर में मुफ्त भोजन भी ग्रहण करते हैं. विशेष रूप से असक्षम और वरिष्ठ नागरिकों के लिए पालकी सेवाएं उपलब्ध हैं. पुरुष दर्शनार्थियों को मंडप में प्रवेश करने के बाद उन्हें ऊपरी वस्त्र रखकर भीतर जाने के निर्देश प्राप्त होते हैं. वैसे तो आप साल में किसी भी समय इस आध्यात्मिक स्थान की यात्रा कर सकते हैं, लेकिन सर्दियों के महीनों के दौरान अक्टूबर और मार्च के बीच यहां जाना सबसे अच्छा होगा.

– Nancy Garg

Read Also : भारत के दर्शनीय स्थल



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Guest Articles 80 Articles
Guest Articles में लेखकों ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। इन लेखों में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Prinsli World या Prinsli.com उत्तरदायी नहीं है।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*