Tea Interesting Facts
दुनियाभर में पानी के बाद सबसे ज्यादा पीया जाने वाला अगर कोई पदार्थ है, तो वह शायद चाय (Tea) ही है. पूरी दुनिया में चाय की एक अलग ही पहचान है. आप कहीं भी जाएं, एक न एक फेमस चाय वाला तो मिल ही जाता है. भारत में तो चाय लोगों की जीवनशैली का एक जरूरी हिस्सा बन चुकी है. अगर हम चाय को भारत का सबसे लोकप्रिय पेय पदार्थ कहें तो गलत भी नहीं होगा. हम में से बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिन्हें चाय पीने का बस एक बहाना चाहिए. किसी भी बात पर, किसी पर समय पर “एक कप चाय हो जाए” कहने की तो जैसे आदत बन चुकी है.
हर बात पर चाय
हम खुश हैं तो हमें चाय चाहिए, हम दुखी हैं तो चाय चाहिए, हम टेंशन में हैं तो चाय, हम कोई चुनौती भरा काम कर रहे हैं या, दिनभर से मेहनत कर रहे हैं तो हमें एक कप बढ़िया सी चाय चाहिए. हम कहीं जा रहे हैं तो चाय, कहीं से आ रहे हैं तो एक कप चाय. सुबह हो गई तो चाय, शाम हो गई तो चाय, आज बहुत सर्दी है तो अदरक वाली एक कड़क चाय, आज दिनभर से बारिश हो रही है तो गरमागरम पकौड़े के साथ एक कप चाय, घर में सब लोग साथ बैठे हैं, खुशनुमा माहौल है तो “चलो एक कप चाय ही हो जाए”…ये लिस्ट खत्म ही नहीं होती.
बहुत सारे चाय प्रेमियों का तो यहां तक कहना है कि अगर उन्हें सुबह उठते ही एक कप चाय ना मिले, तो उनका पूरा दिन खराब हो जाता है. वहीं, सर्दियों में तो चाय के बिना दिन की शुरुआत ही नहीं होती. चाय की ऐसी लोकप्रियता का ही नतीजा है कि अब यह केवल एक ‘ड्रिंक’ नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति का अंग बन गई है. हमारे देश में चाय सभ्यता की एक निशानी बन चुकी है.
बस एक कप चाय की पूछ लो
घर में कोई मेहमान आ जाए, तो उसे सबसे पहले प्यार से चाय ही पूछी जाती है, और ना पूछें तो लोग बुरा मान जाते हैं और कहते हैं कि “जरा देखो तो, उनसे एक कप चाय तक की नहीं पूछी गई.” आप किसी से मिलने जाएं तो आपको भी यही लगता है कि सामने वाला आपको एक चाय के लिए जरूर पूछे. किसी भी व्यक्ति को प्यार से एक कप चाय पिलाकर आप पलभर में उसे अपना बना सकते हैं.
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घर में कोई बड़ा चाय बनाए, तो उसमें से प्यार की खुशबू आती है, आशीर्वाद का भाव झलकता है… कोई छोटा सबसे चाय की पूछे और प्यार से बनाकर लाए, तो उसे सबका ख्याल रखने वाला माना जाता है, वहीं अगर किसी से जबरदस्ती चाय बनाने के लिए कह दिया जाए, तो उसकी खीझ भी स्पष्ट दिखाई देती है. और तो और, हमारे देश में तो रिश्वत भी इसी नाम पर मांगी जाती है कि “जरा चाय-पानी की व्यवस्था करा दीजिए.”
भारत में चाय (Tea in India)
भारत में तो एक से बढ़कर एक चाय के शौकीन मिल जाएंगे. आप किसी भी कोने में जाएं, एक टी-स्टॉल तो लगा हुआ मिल ही जाता है. भारत में जितनी भी चाय उगाई जाती है, उसकी लगभग 70 प्रतिशत चाय तो यहीं इस्तेमाल हो जाती है. और केवल शौकीनों के मामले में ही नहीं, बल्कि चाय उत्पादन के मामले में भी भारत, चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है. दुनिया की लगभग एक चौथाई चाय पत्ती की जरूरत भारत से ही पूरी होती है. चाय का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य असम चाय बागानों की वजह से अपने आप में ही एक सौंदर्य है.
चाय के शौकीनों के लिए असम एक खूबसूरत डेस्टिनेशन है. हमारे देश में चाय के लगभग 1,585 बागान (Tea Garden in India) हैं, जहां से पूरे देशभर में और दुनिया में चाय की सप्लाई की जाती है, और ये सभी बागान भारत के केवल 3 राज्यों- असम, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में हैं. दरअसल, चाय बागान ज्यादातर पर्वतों के ढलानों पर ही होते हैं. ज्यादा ऊंचाई पर उगी हुई चाय वजन में कम, लेकिन ज्यादा सुगंध वाली होती है और इसलिए उसकी कीमत भी ज्यादा होती है, वहीं उतरतीं ढलानों की चाय हल्की मानी जाती है.
दुनिया में चाय (Tea in World)
चाय के बड़े-बड़े शौकीन केवल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में हैं. दुनिया में लगभग 300 करोड़ कप चाय रोज पी ली जाती है. अफगानिस्तान और ईरान का तो राष्ट्रीय पेय चाय ही है. साल 2005 से भारत समेत कई चाय उत्पादक देशों में 15 दिसंबर को ‘चाय दिवस’ मनाया जाता है, लेकिन साल 2015 में भारत की ही तरफ से संयुक्त राष्ट्र महासभा में सिफारिश की गई थी कि 21 मई को ‘अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस’ (International Tea Day) घोषित किया जाए. भारत के इस प्रस्ताव को साल 2019 में स्वीकार किया गया था.
चाय का इतिहास (History of Tea)
चाय कहां से आई, या इसका पता पूरी दुनिया को कैसे लगा, इसके पीछे भी कई कहानियां हैं. मान्यताओं के अनुसार, चाय का इतिहास लगभग 5,000 साल पहले से भी पुराना है. चाय पीने की शुरुआत चीन से मानी जाती है, वहीं भारत में चाय पीने की शुरुआत साल 1835 से असम में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से मानी जाती है. हालांकि यह भी कहा जाता है कि भारत में चाय की एंट्री सैकड़ों सालों पहले सिल्क रूट (प्राचीन चीनी सभ्यता को पश्चिम तक पहुंचाए जाने का एक मुख्य रास्ता) के जरिए हुई थी.
लेकिन माना यही जाता है कि भारत में चाय के बागान लगाने की शुरुआत सबसे पहले 1830 में अंग्रेजों ने ही की थी, जबकि यह भी कहा जाता है कि पश्चिम के देशों ने 16वीं शताब्दी तक चाय देखी ही नहीं थी. 17वीं और 18वीं शताब्दी में यूरोप के लोगों ने पहली बार चाय के बारे में जाना था और तब वहां चाय इतनी महंगी हुआ करती थी कि यूरोप के देशों तक चाय पहुंचाने के लिए इसकी तस्करी की जाती थी.
चीन में चाय की शुरुआत को लेकर कहा जाता है कि चीनी इतिहास के दूसरे सम्राट शेन नोंग जब अपनी सेना के साथ किसी दूर के इलाके में रुके हुए थे, तब उन्होंने अपनी थकान मिटाने के लिए अपने एक नौकर से अपने लिए पानी गर्म करने के लिए कहा. जहां पानी गर्म किया जा रहा था, वहीं के पास लगे कुछ पौधों की पत्तियां उस पानी में गिर गईं. जब यह गर्म पानी सम्राट ने पिया, तो उन्हें इसका स्वाद और सुगंध बड़ा पसंद आया और उन्होंने कुछ ताजगी का भी अनुभव किया. कहते हैं पानी में गिरी पत्तियां चाय की ही थीं और यहीं से चीन में चाय बनाने की परंपरा शुरू हुई.
हमारे पास चाय कैसे आती है?
चाय की बोआई बीजों से या पुराने पौधों की कटिंग की कलम से होती है. चाय के लिए अच्छी, समृद्ध और ढलान वाली जमीन चाहिए होती है, क्योंकि जलभराव होने पर चाय के पौधे बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं. इसीलिए चाय पहाड़ी राज्यों या पर्वतों के ढलानों पर ही उगाई जाती है. चाय के पौधों की ऊंचाई करीब 5-6 फीट होती है.
अगर इन पौधों को बढ़ने दिया जाए तो ये और भी ऊंचे हो जाते हैं, लेकिन चाय के पौधों को काटकर इन्हें चार-पांच फीट की ऊंचाई तक ही रखा जाता है. चाय के फूल सफेद रंग के और खुशबूदार छोटे-छोटे होते हैं. चाय उसके पौधों की सुखाई हुईं पत्तियां ही हैं. 400 ग्राम चाय बनाने में चाय की लगभग 2 हजार से भी ज्यादा पत्तियों की जरूरत पड़ती है. वर्तमान में भारत और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा चाय उगाते हैं.
कितनी तरह की चाय?
कहते हैं कि पूरी दुनिया में चाय की लगभग 20 हजार से भी ज्यादा किस्में पाई जाती हैं और दुनिया में करीब 1,500 से भी ज्यादा तरह की चाय पी जाती है. इनमें से मुख्य रूप से 6 तरह की चाय दुनियाभर में लोकप्रिय है. सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली चाय दूध और पानी को मिलाकर बनने वाली पारंपरिक चाय ही है. इसके बाद अब ग्रीन-टी का नंबर आता है, जिसके फायदे पढ़-पढ़कर लोग इसकी तरफ झुकते चले जा रहे हैं. इनके बाद ब्लैक टी, हर्बल टी, व्हाइट टी और फिर OoLong Tea को भी खूब पसंद किया जाता है.
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चाय की कीमत उसकी सुगंध और उसके गुणों के आधार पर तय होती है. दार्जिलिंग की एक किस्म की चाय की कीमत 2 लाख रुपये प्रति किलोग्राम है. चीन में तो एक स्पेशल किस्म की चाय Da Hong Pao की कीमत सोने से भी करीब 20 गुना ज्यादा है, ऐसा इसलिए क्योंकि इस चाय का पौधा लगभग विलुप्त हो चुका है.
कैसे हुई Tea Bag की शुरुआत?
इन सबके आलावा, आजकल टी-बैग (Tea Bag) के जरिए भी चाय बनाने का खूब चलन है, क्योंकि इससे चाय बनाना बड़ा आसान है और इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है. टी-बैग से चाय बनाने की शुरुआत 1908 में अमेरिका से मानी जाती है, जहां के एक व्यापारी थॉमस सुलिवन चाय बेचा करते थे. वे लोगों को छोटी-छोटी पोटलियों में चाय दिया करते थे. उनके कुछ ग्राहकों को लगा कि शायद इन पोटलियों को गर्म पानी में डुबोकर चाय बनानी होती है. कुछ लोगों ने ऐसा ही किया और तब से चाय बनाने के लिए टी-बैग का आइडिया आया.
लेकिन…
इसमें कोई शक नहीं कि पूरी दुनिया में चाय को बेहद पसंद किया जाता है. दिन में एक कप चाय पीने में कोई बुराई भी नहीं है. दुनिया में चाय की कुछ किस्में ऐसी हैं, जिनमें इतने गुण होते हैं कि वे औषधि का भी काम करती हैं, लेकिन उनकी कीमत भी उतनी ही ज्यादा होती है. आयुर्वेद ने अब तक चाय को सेहत के लिए अच्छा नहीं बताया है.
दरअसल, चाय मादक पदार्थों में आती है. यह उत्तेजना पैदा करती है, इसीलिए इसे पीने के बाद कुछ देर तक जितनी ताजगी और स्फूर्ति का एहसास होता है, उसके बाद उतनी ही जल्दी आलस भी आता है. चाय का ज्यादा सेवन शरीर को कमजोर बना सकता है, त्वचा का रंग काला भी कर सकता है. इसके ज्यादा सेवन से कब्ज और अनिद्रा की शिकायत हो जाती है. इसलिए आप चाय के कितने भी बड़े शौकीन हों, लेकिन इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करें.
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