Unity and Diversity in Hindus : हिन्दुओं में एकता और अनेकता

सनातन धर्म क्या है, सनातन धर्म कितना पुराना है, आर्य कौन है कहां से आए, सनातन और हिन्दू धर्म में अंतर, हिन्दू धर्म कितना पुराना है, हिन्दू सनातन धर्म के संस्थापक, what is hindu religion, how old is sanatan dharma kitna purana, sanatan dharm kya hai, arya kahan se aaye the, unity and diversity in hindu
आर्य, हिन्दू और सनातन धर्म -- एक महत्वपूर्ण तथ्य

Unity and Diversity in Hindu

एक व्यक्ति ने अपने एक लेख में लिखा कि –
“जिस बहुलता को भारत का गुण बताया जाता है, वह वास्तव में उसका शाप बन चुकी है. अब्राहमिक धर्मों को देखें- एक ईश्वर, एक संदेशवाहक और एक पुस्तक. दुविधा की कोई सम्भावना नहीं. अब वह पुस्तक क्या संदेश दे रही है, वह पृथक से बहस का विषय है, पर गलतफहमी की कोई गुंजाइश कम से कम उन्होंने नहीं रख छोड़ी है. इससे समाज में एकता आती है. भारत के समाज में कभी एकता नहीं आ सकती, क्योंकि उसके गुणसूत्र में ही विभाजन के फैक्टर्स बैठे हुए हैं- बहुदेववाद, अवतारवाद. भारत के पतन का कारण है अवतारवाद और बहुदेववाद.”

यहाँ मैं बताना चाहती हूँ कि अब्राहमिक धर्मों में एकता है, इसीलिए उन लोगों के बीच कोई भी गलत बात या बुराई फैलती है, तो वह सब के बीच में फैलती है. कोई उस गलत बात का विरोध करने वाला नहीं है. लगभग सारे अब्राहमिक पंथ कुर्बानी देते हैं, स्त्रियों को बुर्के में रखते हैं. उनके बीच यदि दुविधा की कोई सम्भावना नहीं, इसलिए सुधार की भी कोई सम्भावना नहीं. जो गंदगी या बुराई प्रवेश कर गई सो कर गई.

हिंदू धर्म में बहुदेववाद है, इसलिए आज जो लोग मांस खाने के लालच में शैव और शाक्त का नाम लेते हैं (हालाँकि भगवान् शिव ने और मां काली ने कभी नहीं कहा कि मुझे पशुओं की बलि चाहिए. बल्कि शैव और शाक्त के मूल ग्रंथों में मांसाहार का और भी सख्त विरोध है), तो कम से कम स्वयं को वैष्णव कहने वाले लोग ऐसे कुकर्मों से बच तो जाते हैं. यदि यहां भी एकता होती तो यह राक्षसपन पूरे हिंदू धर्म में फैल जाता. ऐसी एकता किस काम की जो सबको ही राक्षस और शोषणकारी बना दे, जिसमें सुधार की कोई गुंजाइश ही न बचे.

यहाँ बहुदेववाद है इसलिए यदि हिंदुओं के बीच कोई भी बुराई आती है तो उसका विरोध करने वाले भी हिंदू ही होते हैं. एक ही गंदगी पूरे धर्म में या पूरी दुनियाभर में नहीं फैल पाती. यदि सनातन धर्म में बहुदेववाद नहीं होता तो सनातन, सनातन नहीं रहता, यह भी मजहब ही बन जाता, जब कुछ स्वार्थी लोग हर जगह ही ईश्वर का अल्लाहीकरण करके पूरे सनातन का भी इस्लामीकरण कर देते.

समय के साथ पानी में गंदगी आ जाना एक सामान्य बात है, समय के साथ संक्रमण से प्रभावित होकर बीमार हो जाना स्वाभाविक है, लेकिन उस गंदगी को साफ करना या उस बीमारी का इलाज भी आवश्यक है. जिन “धर्मों” या पंथों में समय के साथ आने वाली बीमारी के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं होती, वह बीमार होता ही चला जाता है, और तब या तो वह खुद मर जाता है या अपने संक्रमण से सबको संक्रमित करने लगता है.

मैं यह नहीं कह रही हूँ कि हिन्दू धर्म में केवल अच्छाइयां ही हैं, मैं केवल इतना कह रही हूँ कि यहाँ समय-समय पर बुराइयां आती जरूर रहती हैं, लेकिन यहाँ सुधार की भी गुंजाइश बनी रहती है. मुगलों और अंग्रेजों के समय संक्रमण के प्रभाव से हिन्दू धर्म में कई बीमारियों (कुरीतियों और बुराइयों) ने प्रवेश किया, लेकिन चूंकि यहाँ डॉक्टर की भी व्यवस्था है, इसलिए वे बीमारियां भी दूर हो गईं. बहुदेववाद और अवतारवाद की धारणा गलत नहीं है. जब सालों की जमी गंदगी को साफ करना असंभव हो जाये, तो उसी को साफ करने के लिए होते हैं अवतार. ये अवतार किसी और धर्म में नहीं होते, इसलिए वहां सुधार की भी कोई गुंजाइश नहीं रहती, और इसलिए वे सनातन नहीं है, शाश्वत नहीं हैं.

हाँ हम हिन्दू ब्रह्म को तीन शक्तियों ब्रह्मा-विष्णु महेश के रूप में पूजते हैं, क्योंकि सृष्टि का अनवरत चलना न तो केवल जन्म से संभव है, न केवल विस्तार से और न केवल संहार से. और इसीलिए सनातन धर्म ‘एक’ की सर्वोच्चता को न स्वीकार करता है और न नकारता है. इसीलिए हमारे पुराण बारी-बारी से सबको सर्वोच्च बताते हैं. यहाँ शिव भी सर्वोच्च हैं और विष्णु भी. यहाँ एकेश्वरवाद भी सर्वोच्च है और बहुदेववाद भी. यहाँ निराकार भी सर्वोच्च है और साकार भी.

और यदि अवतारवाद हिन्दुओं को कमजोर करना सिखाता, यदि अवतारवाद हिन्दुओं को कर्म न करने की प्रेरणा देता, तो महाभारत में श्रीकृष्ण का विराट स्वरूप देखने के बाद तो अर्जुन को युद्ध लड़ना ही नहीं चाहिए था. महाभारत से हमें सीखना चाहिए कि भगवान तो मार्गदर्शन करेंगे, लेकिन कर्म तो हमें ही करना पड़ेगा, और अपने कर्मों का फल भी हमें ही भोगना होगा.

Written By : Radhika Mittal

हमारी सहयोगी Aditi Singhal जी लिखती हैं कि-
“सनातन धर्म में विचारों की नदी बहती रहती है, झूठों का पर्दाफाश होता रहता है और पुराने सत्य फिर उजागर होते रहते हैं. अपनी इसी विशेषता के कारण यहां किसी एक की सत्ता नहीं है, कोई निरंकुश नहीं हो पाता, एक संतुलन बना रहता है. यहाँ केवल धर्म की सत्ता है और अधर्म का विरोध है, और जब धर्म को बल मिलता है, तब सनातन धर्म पुनः स्थापित हो जाता है.

यहां सब मनुष्य हैं, जो जीवन में परिवर्तन भी पसंद करते हैं, और इसी के कारण वे अपनी मूल चीजों की तरफ बार-बार आकर्षित होते रहते हैं. बाकी “धर्मों” में यह सुविधा नहीं है, इसलिए उनके यहां के परेशान और हीन कुंठित बंदे भी यहीं आकर अपनी भड़ास निकालते हैं, फिर भले ही उनका यहां से कोई लेना-देना नहीं हो, क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि वे अपने यहां खुद की ही गलत बातों का विरोध करेंगे तो या तो उनका सिर तन से जुदा हो जायेगा या उन्हें जहर का प्याला दे दिया जाएगा.

मैं आर्यसमाजियों के अधिक पक्ष में नहीं रहतीं, लेकिन कभी-कभी लोग आस्था या धर्म के नाम पर over हो जाते हैं, इतने over कि न अपनी नदियों का ध्यान रखते हैं न पहाड़ों का, न दूसरों की सुविधाओं का न बेजुबान प्राणियों का, तो ऐसे लोगों को कंट्रोल करने के लिए आर्यसमाजियों का होना भी जरूरी है, दोनों एक-दूसरे को कंट्रोल करते रहते हैं.

यहां का पारिस्थितिकी तंत्र बड़ा मजबूत है. यहां सब एक-दूसरे के पीछे पड़े रहते हैं, एक-दूसरे को सुधारने में लगे रहते हैं, जिससे यहां का पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन में बना रहता है, यह साइकिल चलती रहती है. दिक्कत वहां हो जाती है, जब एक वर्ग की संख्या ज्यादा या कम हो जाती है.”

prinsli.com

Sanatan Dharm



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Guest Articles 94 Articles
Guest Articles में लेखकों ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। इन लेखों में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Prinsli World या Prinsli.com उत्तरदायी नहीं है।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*