Body Changes in Space
जब हम रात को तारों से भरे आकाश की खूबसूरती को देखते हैं, तब कभी-कभी तो हमारा भी मन करता है कि काश! हम भी इस खूबसूरत आसमान में उड़ सकते. इसीलिए अंतरिक्ष (Space) से जुड़ी बातें हमें हमेशा से आकर्षित करती रही हैं. लगभग हर व्यक्ति का सपना होता है कि एक न एक बार वह भी अंतरिक्ष की सैर करे और वहां की खूबसूरती को करीब से देखे. लेकिन पृथ्वी पर रहकर अंतरिक्ष में जाना और वहां की सैर करने की सोचना भले ही बड़ा रोमांचक लगता हो, लेकिन यह इतना आसान नहीं है.
अंतरिक्ष में जाने के बाद इंसान के शरीर में कई ऐसे बदलाव होते हैं, जिनका सामना करना काफी कठिन होता है. वहां जाने के लिए खुद को वहां की परिस्थितियों के अनुकूल बनाना पड़ता है. इसीलिए अंतरिक्ष यात्रियों (Astronauts) को वहां जाने से पहले, वहां रहने के दौरान और वहां से आने के बाद खूब एक्सरसाइज करनी पड़ती है, नहीं तो उन्हें कई तरह की बीमारियों और दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. आइए जानते हैं कि अंतरिक्ष में जाने के बाद किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है-
बदल सकता है DNA- अंतरिक्ष में ना तो गुरुत्वाकर्षण बल (ग्रेविटी) है, न ऑक्सीजन है, न हवा है और न पानी. ऐसे में वहां जाने के बाद इंसान के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं. यहां तक कि इंसान का DNA भी बदल सकता है. अंतरिक्ष में रहने के दौरान शरीर के जीन्स में कई तरह के बदलाव देखे गए हैं.
शरीर हो जाता है हल्का- अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण बल नहीं है, इसलिए वहां जाते ही आप हल्के हो जाते हैं. यानी वहां पहुंचने के बाद आप खुद को पूरी तरह हल्का या भार रहित महसूस करेंगे.
हाथ-पैर हो जाते हैं सुन्न, चेहरा हो जाता है गोल- जब हम पृथ्वी पर होते हैं तो गुरुत्वाकर्षण बल के कारण हमारे शरीर का खून और बाकी तरल पदार्थ, जैसे पानी वगैरह शरीर के ऊपरी भाग से नीचे की ओर बहता है, लेकिन अंतरिक्ष में इसका ठीक उल्टा हो जाता है. वहां गुरुत्वाकर्षण बल न होने के कारण हमारे शरीर में बहने वाला खून और बाकी तरल पदार्थ पैर से सिर की तरफ बहने लगते हैं. इससे शरीर पर विपरीत असर पड़ता है और हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं. साथ ही चेहरे पर भी सूजन आने लगती है, जिससे चेहरा गोल और बड़ा लगने लगता है. इसी वजह से जब अंतरिक्ष यात्री वापस धरती पर आते हैं तो उनका चेहरा गोल-मटोल लगता है.
नजर हो जाती है कमजोर- खून के उल्टी दिशा में बहने (पैर से सिर की तरफ) से सिर पर भी दबाव बढ़ने लगता है, जिससे सिरदर्द की समस्या तो हो ही जाती है, साथ ही आंखों की रोशनी भी कम हो सकती है.
बढ़ने लगती है शरीर की लंबाई- गुरुत्वाकर्षण बल न होने के कारण वहां इंसान की लंबाई भी करीब 2 से 4 प्रतिशत तक बढ़ सकती है. हालांकि धरती पर वापस आने के बाद लंबाई पहले जितनी भी हो सकती है.
मांसपेशियां और हड्डियां हो जाती हैं कमजोर- अंतरिक्ष में जब शरीर में कोई भार नहीं रह जाता तो मांसपेशियां भी सिकुड़ने लगती हैं, इसीलिए अंतरिक्ष में जाने के बाद वहां मांसपेशियां और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. यही वजह है कि अंतरिक्ष यात्रियों को वहां रहने के दौरान काफी एक्सरसाइज करनी पड़ती है.
हृदय में आ जाती है सिकुड़न- केवल मांसपेशियां ही नहीं, अंतरिक्ष में जाने के बाद इंसान का दिल या हृदय भी सिकुड़ जाता है. इसका कारण ये है कि अंतरिक्ष में हृदय ब्लड पंप करना कम कर देता है, जिससे वह सिकुड़ने लगता है, साथ ही उसका आकार पहले की तुलना में ज्यादा गोल हो जाता है.
गिरने लगते हैं नाखून– अंतरिक्ष में रहने के दौरान यात्रियों में नाखूनों के गिरने की समस्या भी सामने आई है. बताया जाता है कि अंतरिक्ष यात्रियों को जो स्पेशल डिजाइन के ग्लव्स या दस्ताने पहनाए जाते हैं, उसी के कारण नाखूनों पर दबाव बढ़ता है, जिससे वे गिरने लगते हैं.
कैंसर होने का खतरा- धरती पर पर्यावरण (Environment) की वजह से अंतरिक्ष से आने वाली रेडिएशन से हमारी रक्षा होती है, लेकिन अंतरिक्ष में रहने के दौरान बहुत तेज रेडिएशन का सामना करना पड़ता है, जिससे कैंसर होने तक का खतरा बढ़ जाता है.
अनिद्रा और तनाव की समस्या- अंतरिक्ष के कॉस्मिक रेडिएशन की वजह से वहां रहने के दौरान नींद न आने की समस्या भी होने लगती है, साथ ही तनाव भी बढ़ता है. इसका मतलब ये होता है कि इंसान का दिमाग धीरे-धीरे अंतरिक्ष के वातावरण के अनुकूल हो रहा है.
सुनीता विलियम्स ने बताया था अंतरिक्ष में जाने का अनुभव
भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) ने अंतरिक्ष में करीब एक साल बिताया था. वहां से लौटने के बाद उन्होंने अपना अनुभव लोगों के साथ शेयर किया था. उन्होंने बताया था कि “अंतरिक्ष में जाने का एक अलग ही अनुभव होता है. लेकिन वहां रहने के दौरान यात्रियों को बहुत एक्सरसाइज करनी पड़ती है, ताकि हड्डियां मजबूत बनी रहें और वजन कम ना हो, साथ ही हृदय भी ठीक तरह से अपना काम करता रहे”. सुनीता के अनुसार, “सभी यात्री साथ बैठकर लंच-डिनर करते हैं. वहां से प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और साथ बैठकर प्लानिंग भी बनाते हैं. स्पेस स्टेशन पर TV भी देखते हैं. खाली समय में वहां से नजर आ रही पृथ्वी की तस्वीरें लेते हैं, इंटरनेट प्रोटोकॉल फोन होता है, जिससे सभी यात्री अपने-अपने घर पर फोन भी करते हैं.”
क्या अंतरिक्ष में जला सकते हैं माचिस? क्या चलाई जा सकती है बंदूक?
अंतरिक्ष में आग (Fire) तो नहीं लगाई जा सकती, लेकिन बंदूक (Gun) चलाई जा सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि आग लगने के लिए ऑक्सीजन (Oxygen) की जरूरत होती है और अंतरिक्ष में तो ऑक्सीजन है ही नहीं, इसलिए अगर आप वहां माचिस की तीली जलाते हैं तो वह नहीं जलेगी, लेकिन आप वहां बंदूक चला सकते हैं, क्योंकि आजकल की बंदूकों के अंदर जो केमिकल होता है, वह ऑक्सीडाइजर के रूप में काम करता है, इसलिए आप अंतरिक्ष में कहीं भी हों, बंदूक चला सकते हैं, लेकिन वहां बंदूक चलने की आवाज नहीं होगी, जैसे धरती पर जोर से सुनाई देती है, क्योंकि वहां ध्वनि के एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए कोई माध्यम (Medium) नहीं है.
लगेगा न्यूटन के गति का तीसरा नियम
अंतरिक्ष में बंदूक चलाते समय आपके साथ न्यूटन के गति का तीसरा नियम (Newton’s Third Law of Motion) काम करेगा. यानी जब आप बंदूक चलाएंगे तो जिस दिशा में गोली जाएगी, उसकी विपरीत दिशा में आपको भी झटका लगेगा. जब हम पृथ्वी पर होते हैं तो यह झटका हमें महसूस होता है, वो भी बड़े जोर से. पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण झटका लगते ही हम गिर जाते हैं या उसे रोक भी सकते हैं, लेकिन अंतरिक्ष में ऐसा नहीं होगा. अंतरिक्ष में बंदूक चलाने पर आपको पीछे की तरफ धक्का तो लगेगा, लेकिन यह धक्का आपको महसूस नहीं होगा. आप केवल इसे देख सकते हैं कि जिस दिशा में बंदूक की गोली जा रही है, उसकी विपरीत दिशा में आप जा रहे हैं.
बंदूक से निकली गोली का क्या होगा?
एक और सवाल कि बंदूक से निकली उस गोली का क्या होगा, तो आपको तो पता ही होगा अंतरिक्ष में कोई भी चीज स्थिर नहीं रहती, अपनी गति के अनुसार घूमती रहती है. बंदूक से निकली गोली के साथ भी ऐसा ही होगा. ग्रेविटी न होने के कारण वह गोली कहीं भी नहीं गिरेगी. बंदूक से निकलने के बाद वह तब तक चलती या दौड़ती रहेगी, जब तक वह किसी चीज से, जैसे कि किसी ग्रह या एस्टेरॉयड से टकरा नहीं जाती.
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