Stars and Black Hole in Space-
जन्म, विस्तार और मृत्यु – दृश्यमान ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु में ये तीनों गुण पाए जाते हैं. तारों की भी यही कहानी है.
ब्लैक होल (Black hole) ब्रह्मांड की सबसे अनोखी चीजों में से एक है, जिसका निर्माण किसी तारे जैसे पिंड की मृत्यु से होता है (Black holes are formed by stellar death). ब्लैक होल में गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी ज्यादा होती है कि इससे प्रकाश तक बाहर नहीं आ सकता है. इसी वजह से ये दिखाई नहीं देता है. वैज्ञानिक किसी जगह पर इसके होने का अनुमान लगा सकते हैं.
जैसे- अगर यह देखने को मिले कि कुछ पिंड या ग्रह, उपग्रह आदि किसी सेंटर की परिक्रमा कर रहे हैं, लेकिन वे किसकी परिक्रमा कर रहे हैं, ये नहीं दिखाई दे रहा है, तो अनुमान लगाया जाता है कि उस सेंटर में ब्लैक होल होगा, जिसके गुरुत्वाकर्षण बल से बंधे ये पिंड या ग्रह, उपग्रह उसकी परिक्रमा कर रहे हैं.
कहा जाता है कि ब्लैक होल की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravitational Force) इतनी ज्यादा होती है कि इसके एक चम्मच धूल का द्रव्यमान, पृथ्वी के 20 हजार हाथियों के द्रव्यमान के बराबर होगा. ब्लैक होल पर समय (Time) का भी कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है.
ब्लैक होल क्या है?
(What is Black Hole)
ब्लैक होल उस बहुत विशाल और भारी चीज की तरह है, जिसे किसी बहुत छोटे से गोल डिब्बे में जबरन ठूंसकर पैक कर दिया गया है. एक ऐसे तारे के बारे में कल्पना करें, जो सूर्य से दस गुना ज्यादा विशाल है, लेकिन जिसे पृथ्वी के किसी बड़े शहर के आकार के गोले में ठूंसकर पैक कर दिया गया है. कुछ ऐसा ही है ब्लैक होल.
ब्लैक होल तारों से बनते हैं. जब एक तारा अपने जीवन के आखिरी चरण में पहुंचता है, तो वह कुछ भी बन सकता है, जैसे श्वेत वामन तारा, या श्याम वामन तारा, या न्यूट्रॉन तारा या ब्लैक होल. कोई भी तारा अपनी मृत्यु के बाद इनमें से क्या बनेगा, ये उसके अपने शुरुआती द्रव्यमान के अनुसार तय होता है.
यानी सभी तारे ब्लैक होल नहीं बनते हैं, जैसे हमारा सूर्य भी एक तारा है, लेकिन ये अपने जीवन के अंत में ब्लैक होल नहीं बनेगा. दरअसल, वे ही तारे आगे चलकर ब्लैक होल बनते हैं, जिनका आकार और द्रव्यमान सूर्य से भी कई गुना ज्यादा होता है, नहीं तो जिन तारों का द्रव्यमान सूर्य के बराबर या सूर्य से कम होता है, वे तारे श्वेत वामन तारा (White Dwarf stars) बनकर समाप्त हो जाते हैं.
यानी ब्लैक होल बनना तारों के जीवन चक्र (Life cycle of Stars) पर निर्भर करता है, तो अब हम ये देखते हैं कि तारे क्या हैं और ये कैसे बनते हैं-
तारे क्या हैं (What are Stars)-
तारे ऐसे खगोलीय पिंड (Celestial Body) हैं, जो लगातार प्रकाश और ऊष्मा उत्सर्जित करते रहते हैं. ये हाइड्रोजन, हीलियम और धूल के विशाल बादलों से बने होते हैं. तारों में उनके कुल वजन का लगभग 70% हाइड्रोजन, 28% हीलियम, 1.5% कार्बन, नाइट्रोजन, नियॉन और 0.5% आयरन और अन्य भारी तत्व होते हैं.
सूर्य (Sun) को मिलाकर सभी तारों में हाइड्रोजन परमाणु लगातार हीलियम परमाणु में बदलते रहते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान बड़ी मात्रा में ऊर्जा, ताप और प्रकाश उत्पन्न होता है और इसी से तारों में चमक पैदा होती है, यानी उनमें अपना प्रकाश आ जाता है. जैसे सूर्य में अपना प्रकाश होता है. तारों को उनकी उम्र, आकार, रंग, चमक और ताप के अनुसार कई भागों में बांटा गया है. रंगों के अनुसार तारे तीन प्रकार के होते हैं- लाल, सफेद और नीले.
ध्रुव तारे (Pole Star) को छोड़कर रात में सभी तारे आकाश में पूर्व से पश्चिम की तरफ जाते हुए दिखाई देते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूरब की ओर घूमती है. यानी जब पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूरब की तरफ घूमती है, तो सारे तारे इसकी उल्टी दिशा, यानी पूरब से पश्चिम की तरफ जाते हुए दिखाई देते हैं.
कुछ प्रमुख तारे- ध्रुव तारा, सूर्य, साइरस, प्रॉक्सिमा सेंचुरी, अल्फा सेंचुरी, बीटा सेंचुरी, स्पाइका, रेगुलर, कैपेला, वेगा आदि. प्रॉक्सिमा सेंचुरी (Proxima Centauri) सूर्य के बाद पृथ्वी के सबसे निकट का तारा है. इस तारे की पृथ्वी से दूरी लगभग 4.22 प्रकाश वर्ष है, जबकि अल्फा सेंचुरी पृथ्वी से करीब 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है.
अंतरिक्ष में अरबों तारे मौजूद हैं, लेकिन ये सभी तारे एक समान दूरी पर नहीं हैं. ये तारे ग्रुप बनाकर रहते हैं और इन ग्रुपों को ही ‘आकाशगंगा’ या गैलेक्सी (Galaxies) कहते हैं. अंतरिक्ष में मौजूद तारों के बीच की दूरी इतनी ज्यादा होती है कि उनके बीच की दूरी को हम किलोमीटर या मील में नहीं नाप सकते, इसीलिए हम तारों, पिंडों या ग्रहों के बीच की दूरियों को मापने के लिए खगोलीय इकाई (Astronomical Units) जैसे ‘प्रकाश वर्ष’ और ‘पारसेक’ का इस्तेमाल करते हैं.
प्रकाश वर्ष क्या है (What is Light Year)- एक साल में प्रकाश जितनी दूरी तय करता है, उस दूरी को ही ‘एक प्रकाश वर्ष’ कहा जाता है. प्रकाश 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड की स्पीड से चलता है. एक साल में यह 9.46 x 10^12 किलोमीटर (9.46*10 power 12 km) की दूरी तय करता है. इसी को ‘एक प्रकाश वर्ष’ कहा जाता है. जैसे पृथ्वी सूर्य से 14,95,98,900 किलोमीटर दूर है. अब अगर इसी दूरी को प्रकाश वर्ष में मापा जाए, तो हम कहेंगे कि पृथ्वी सूर्य से केवल 8.311 प्रकाश वर्ष दूर है.
तारे कैसे बनते हैं-
(How Stars are formed)
Life cycle of Stars- तारे मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैस से बनते हैं. आकाशगंगाओं (Galaxies) में मौजूद हाइड्रोजन और हीलियम जब इकट्ठी होकर बादलों की तरह बन जाती हैं, तो वहीं से तारों का जीवन चक्र शुरू हो जाता है. अब इसे हम थोड़ा विस्तार से देखते हैं (चित्र देखिए)
(1) ब्रह्मांड का जन्म और परमाणु- ज्यादातर वैज्ञानिकों के अनुसार, ब्रह्मांड का जन्म बिग बैंग (महाविस्फोट) से हुआ है. जब यह महाविस्फोट हुआ, तो अलग-अलग प्रकार के परमाणु (Atom) भी बनने लगे. हाइड्रोजन को ब्रह्मांड का पहला परमाणु कहा जाता है और इसके बाद हीलियम बना और इसके बाद कई सारे परमाणु बनने लगे.
(2) निहारिकाओं का बनना- इन परमाणुओं और गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) की मदद से गैस और धूल इकट्ठी होकर भारी और सघन बादल (Heavy and Dense Clouds) बनने लगे. इन बादलों को ‘निहारिका’ या ‘नेबुला’ (Nebula or Niharika) कहा जाता है. ब्रह्मांड में इन निहारिकाओं को बनने में लाखों सालों का समय लग जाता है.
(3) निहारिकाओं में सिकुड़न- गैस और धूल से बने ये बादल ब्रह्मांड में इतने बड़े और इतने फैले हुए होते हैं कि उनके सामने हमारा सौरमंडल (Solar System) कुछ नहीं. इन बादलों का आकार बहुत विशाल होता है, इसलिए इनमें गुरुत्वाकर्षण बल भी बहुत ज्यादा होता है. जब गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही इन बादलों में संकुचन या सिकुड़न (Contraction) शुरू होता है, तो इसी सिकुड़न की वजह से तारों का जन्म होने लगता है.
(4) प्रोटोस्टार का बनना- बहुत ज्यादा गुरुत्वाकर्षण बल के कारण निहारिका में सिकुड़न (पदार्थों का अंदर की तरफ समाते जाना) शुरू हो जाता है. यानी जब निहारिका की गैसें और धूल गुरुत्वाकर्षण बल (Gravity) के कारण अपने केंद्र पर इकठ्ठा होने लगती हैं, तो वही निहारिका या बादल एक गोल पिंड का रूप लेने लगता है, जिसे प्रोटोस्टार (Protostar) कहा जाता है. यानी प्रोटोस्टार एक अत्यंत सघन गैसीय पिंड (Dense Gaseous Body) होता है.
प्रोटोस्टार दिखने में एक विशाल काली गैस की गेंद की तरह लगता है. प्रोटोस्टार का बनना तारों के बनने का पहला स्टेज है. इसमें प्रकाश नहीं होता. फिर जब अगले स्टेज में प्रोटोस्टार एक तारे का रूप ले लेता है, तब उसमें अपना प्रकाश आ जाता है..
(5) प्रोटोस्टार में सिकुड़न और उसका तापमान बढ़ना- प्रोटोस्टार में बहुत ज्यादा गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सिकुड़न जारी रहता है. इतने सिकुड़न की वजह से प्रोटोस्टार में मौजूद हाइड्रोजन परमाणु एक-दूसरे से टकराने लगते हैं, यानी हाइड्रोजन और हीलियम से बने इन बादलों के परमाणु जब अंदर की तरफ जाने की होड़ में एक-दूसरे से टकराने लगते हैं, तो इनके टकराने से प्रोटोस्टार का तापमान बढ़ने लगता है. यह प्रक्रिया लाखों सालों तक चलती रहती है. इस दौरान प्रोटोस्टार के अंदर का तापमान -173 डिग्री सेल्सियस से बढ़कर 107 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.
(6) प्रोटोस्टार को अपना प्रकाश मिलना- 107 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर हाइड्रोजन की नाभिकीय संलयन प्रक्रिया (Nuclear Fusion Process) शुरू हो जाती है. ऐसे में चार छोटे हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर या जुड़कर एक बड़ा हीलियम नाभिक बनाते हैं. इससे ताप और प्रकाश के रूप में बहुत ऊर्जा पैदा होती है. हाइड्रोजन के जुड़ने से हीलियम बनने की प्रक्रिया के दौरान पैदा हुई यही ऊर्जा प्रोटोस्टार को चमकदार बना देती है… और इस तरह वह प्रोटोस्टार एक चमकदार तारा बन जाता है. यह तारा बहुत लंबे समय तक चमकता रहता है, जैसे हमारा सूर्य चमक रहा है.
(7) तारे का लाल दानव बनना- प्रकाश बढ़ने के साथ-साथ अब ये तारा (प्रोटोस्टार) धीरे-धीरे और बड़ा होता जाता है और अपने जीवन के आखिरी चरण में पहुंचने लगता है. तारे के आखिरी स्टेज का पहला भाग है- रेड जाइन्ट स्टेज यानी तारा एक रेड जाइन्ट तारा (Red Giant Star) बन जाता है, जिसे हिंदी में ‘लाल दानव तारा’ कहा जाता है.
इसके बाद यह यह तारा या तो आगे चलकर श्वेत वामन तारा बनकर समाप्त हो जाता है, या सुपरनोवा तारे के रूप में इसमें विस्फोट हो जाता है, जिससे यह न्यूट्रॉन तारा या ब्लैक होल बन जाता है… इनमें से तारा क्या बनेगा, यह उसके शुरुआती द्रव्यमान पर निर्भर करता है.
तारा लाल दानव कैसे बनता है-
शुरुआत में तारों में मुख्य रूप से हाइड्रोजन ही होती है. फिर समय बीतने के साथ हाइड्रोजन तारों के क्रोड या सेंटर (Core or Center) से बाहर की ओर हीलियम में बदलने लगती है. जब तारे के कोर में मौजूद पूरी हाइड्रोजन हीलियम में बदल जाती है, तो तारे के कोर में नाभिकीय संलयन प्रक्रिया बंद हो जाती है, जिससे तारे के सेंटर में केवल हीलियम बचा रह जाता है.
संलयन प्रक्रिया के बंद होने की वजह से तारों के कोर में प्रेशर कम हो जाता है. तब यह कोर अपने खुद के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सिकुड़ने लगता है. हालांकि, तारों के बाहरी भाग में अभी भी कुछ हाइड्रोजन बची रह जाती है, जिससे बहुत कम तीव्रता के साथ ऊर्जा बाहर निकलती रहती है.
इन सभी बदलावों के कारण तारों में संतुलन बिगड़ जाता है. इसे दोबारा संतुलित करने के लिए तारे अपने बाहरी क्षेत्र को फैलाने लगते हैं. इससे तारे बहुत बड़े आकार के और लाल रंग के हो जाते हैं, जिसे रेड जाइन्ट स्टार या लाल दानव तारा कहा जाता है.
सूर्य भी बनेगा लाल दानव- हमारा सूर्य भी आज से करीब 5,000 मिलियन सालों बाद एक रेड जॉइन्ट स्टार बन जाएगा. कहा जाता है कि सूर्य का बाहरी भाग फैलते-फैलते इतना बड़ा हो जाएगा कि यह अपने आसपास के ग्रहों, जैसे बुध, शुक्र और यहां तक कि पृथ्वी को भी निगल जाएगा.
(8) रेड जाइन्ट तारा बनने के बाद तारे का भविष्य उसके शुरुआती द्रव्यमान पर निर्भर करता है. अगर तारे का शुरुआती द्रव्यमान सूर्य के बराबर है, तो रेड जाइन्ट तारे के क्षेत्र का विस्तार नहीं होता है और तब उसका केवल सेंटर या कोर ही बचा रह जाता है. तब तारे का कोर या सेंटर सिकुड़ते रहने से यह एक श्वेत वामन तारा (White Dwarf Star) बन जाता है.
तारे का लगभग 75% द्रव्यमान सुपरनोवा में अंतरिक्ष में उत्सर्जित (ejected) हो जाता है. बचे हुए कोर का भाग्य उसके द्रव्यमान पर निर्भर करता है. यदि बचा हुआ कोर हमारे सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 1.4 से 5 गुना है, तो यह एक न्यूट्रॉन तारे में ढह जाएगा. यदि कोर बड़ा है, तो यह एक ब्लैक होल में ढह जाएगा. न्यूट्रॉन तारे में बदलने के लिए, किसी तारे को सुपरनोवा से पहले सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 7 से 20 गुना बड़ा होना चाहिए. केवल सूर्य के 20 गुना से अधिक द्रव्यमान वाले तारे ही ब्लैक होल बन सकते हैं.
(A) श्वेत वामन तारे का बनना- तारे के हीलियम कोर के बहुत ज्यादा सिकुड़ने से कोर का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, जिससे नाभिकीय संलयन प्रक्रिया का दूसरा दौर शुरू हो जाता है. इससे बहुत ज्यादा मात्रा में ऊर्जा निकलती है. बाद में कोर का पूरा हीलियम भी कार्बन में बदल जाता है, जिसके बाद नाभिकीय संलयन प्रक्रिया पूरी तरह रुक जाती है. इससे तारे के अंदर पैदा हो रही ऊर्जा बंद हो जाती है. इससे तारे का कोर अपने भार के कारण सिकुड़ने लगता है और वह एक श्वेत वामन तारा बन जाता है.
(B) ब्लैक होल का बनना- लेकिन अगर तारे का द्रव्यमान सूर्य की तुलना में बहुत ज्यादा है, तो रेड जाइन्ट तारा बनने के बाद उसमें विस्फोट हो जाता है, जिसे सुपरनोवा (Supernova) कहते हैं. इसी सुपरनोवा तारे का कोर सिकुड़ते-सिकुड़ते न्यूट्रॉन तारा (Neutron star) या ब्लैक होल बन सकता है.
सुपरनोवा विस्फोट में एक सेकंड के दौरान इतनी ऊर्जा निकलती है, जितनी सूर्य द्वारा लगभग 100 सालों में निकलती है. इतनी सारी ऊर्जा कई दिनों तक आकाश को प्रकाशित रखती है. सुपरनोवा विस्फोट के बाद जो मटेरियल अंतरिक्ष में फैल जाता है, वह नए तारों के निर्माण के लिए एक रॉ मटेरियल (Raw Material) के रूप में काम करता है. सुपरनोवा विस्फोट के बाद उस तारे का कोर या सेंटर सुरक्षित बच रहता है, जिसमें लगातार सिकुड़न होता रहता है. तारे का यही सेंटर एक न्यूट्रॉन तारा या एक ब्लैक होल बन जाता है.
न्यूट्रॉन तारों में पाए जाने वाले पदार्थों की सघनता (Density), श्वेत वामन तारे के पदार्थों से ज्यादा होती है. कई श्वेत वामन तारों का पता लगाया भी गया है, लेकिन अब तक एक भी न्यूट्रॉन तारे का पता नहीं लगाया जा सका है. चक्कर लगाता हुआ न्यूट्रॉन तारा रेडियो तरंगों का उत्सर्जन करता है, जिसे पल्सर (Pulsar) कहते हैं.
चंद्रशेखर सीमा क्या है (What is Chandrasekhar Limit)
भारत के महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर ने बताया था कि सूर्य के द्रव्यमान के 1.44 गुना से कम द्रव्यमान वाले तारे श्वेत वामन तारा बनकर समाप्त होते हैं… और सूर्य के द्रव्यमान के 1.44 गुना से ज्यादा द्रव्यमान के तारे सुपरनोवा के रूप में विस्फोट होकर न्यूट्रॉन तारे या ब्लैक होल में बदल जाते हैं. सूर्य के द्रव्यमान या सौर द्रव्यमान के 1.44 गुना की अधिकतम सीमा को चंद्रशेखर सीमा कहा जाता है.
क्या ब्लैक होल पृथ्वी को निगल सकता है?
नहीं, क्योंकि कोई ब्लैक होल हमारे सौरमंडल के इतने करीब नहीं है. इसके अलावा, ब्लैक होल ब्रह्माण्ड में सितारों और ग्रहों को निगलते हुए नहीं चलते हैं. हमारा सूर्य कभी ब्लैक होल नहीं बनेगा क्योंकि यह इतना बड़ा तारा नहीं है. हमारा सूर्य अपने जीवन के अंतिम चरण में श्वेत वामन तारा (White Dwarf stars) बनेगा. और मान भी लीजिये कि एक ब्लैक होल सूर्य की जगह खड़ा हो जाए, तब भी यह पृथ्वी को नहीं निगलेगा, बल्कि पृथ्वी उस ब्लैक होल की उसी तरह परिक्रमा करेगी, जैसे वह सूर्य की करती रहती है.
ब्लैक होल की गुरुत्वाकर्षण शक्ति चाहे जितनी ज्यादा हो, लेकिन हर चीज की एक सीमा जरूर है. जितने क्षेत्र तक ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण बल का असर होगा, उतने ही क्षेत्र के अंदर आने वाली चीजों को यह निगल सकेगा.
♦ ब्लैक होल चार प्रकार के होते हैं- Stellar, Intermediate, Supermassive, Miniature.
एक नजर-
What is Schwarzschild Radius
अगर आप पृथ्वी को एक गेंद की तरह अपने हाथ पर रखकर उसे, दबाकर सिकोड़ने की कोशिश करें, तो आप पृथ्वी को लगभग इतना सिकोड़ सकते हैं कि पृथ्वी की त्रिज्या मात्र 9 mm ही रह जाए. इसी तरह आप सूर्य को भी इतना सिकोड़ सकते हैं, कि सूर्य की त्रिज्या मात्र 3 किलोमीटर ही रह जाए. इसे श्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या या गुरुत्वाकर्षण त्रिज्या (Schwarzschild radius or Gravitational radius) कहते हैं, जो किसी वस्तु की कम्प्रेस सीमा (Compress Limit) होती है.
यानी अगर हमारा सूर्य ब्लैक होल बन जाए, तो उसकी त्रिज्या मात्र 3 किलोमीटर ही रह जाएगी. तो जरा सोचिए कि जिन बड़े ब्लैक होल्स की त्रिज्या अरबों किलोमीटर है, वे किसी समय कितने बड़े तारे रहे होंगे.
वैज्ञानिकों के अनुसार, अब तक TON 618 नाम का ब्लैक होल अब तक के खोजे गए सबसे बड़े ब्लैक होल्स में से एक है. इसका द्रव्यमान 66 बिलियन सौर द्रव्यमान (Solar Masses) है. यह हमारी पृथ्वी से लगभग 18.2 अरब प्रकाश-वर्ष दूर है.
हमारी आकाशगंगा का ब्लैक होल
हमारी आकाशगंगा का नाम मिल्की-वे (Milky Way galaxy) है, जिसमें किसी जगह हमारा छोटा सा सौरमंडल (Solar System) मौजूद है. इस मिल्की-वे के सेंटर में जो ब्लैक होल है, उसका नाम ‘धनु A’ या ‘सेजिटेरियस A’ (Sagittarius A) है.
इस ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य से चार मिलियन गुना ज्यादा है और इसका रेडियस (त्रिज्या) लगभग 12 करोड़ किलोमीटर है, तो जरा सोचिए कि ये ब्लैक होल किसी समय कितना बड़ा तारा रहा होगा.
हमारा सूर्य इस ब्लैक होल (Sagittarius A) से करीब 26,000 प्रकाश वर्ष दूर है. सूर्य करीब 251 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से दौड़ लगाते हुए इस ब्लैक होल की परिक्रमा कर रहा है. सूर्य को इस ब्लैक होल की एक परिक्रमा पूरी करने में लगभग 23 करोड़ साल लग जाते हैं.
एक नजर-
परमाणु क्या है (What is Atom)- पदार्थ का ऐसा अति सूक्ष्म कण जो अविभाज्य (Indivisible) हो, या वह कण जिसे छोटे कणों में बांटा न जा सके. या साधारण से पदार्थ की सबसे छोटी घटक इकाई (Smallest constituent unit), जिसमें एक रासायनिक तत्व के गुण होते हैं.
निहारिका क्या है (What is Nebula)- निहारिका अंतरिक्ष में धूल और गैस के बने बादल हैं. कुछ निहारिकाएं मृत तारे के विस्फोट से निकलने वाली गैस और धूल से आती हैं, जैसे सुपरनोवा, जहां नए तारे बनने लगते हैं. इस वजह से, कुछ निहारिकाओं को “स्टार नर्सरी” भी कहा जाता है.
नाभिकीय संलयन प्रक्रिया क्या है- एक भौतिक प्रतिक्रिया (Physical Reaction) जो परमाणु के नाभिक (Nucleus of Atom) में बदलाव की वजह बनती है, उसे परमाणु प्रतिक्रिया (Nuclear Reaction) कहा जाता है. इस परमाणु प्रतिक्रिया के दौरान निकलने वाली ऊर्जा को परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy) कहते हैं. परमाणु प्रतिक्रिया दो तरह की होती है-
(1) नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)
(2) नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission)
नाभिकीय संलयन प्रक्रिया- संलयन का अर्थ होता है- जुड़ना या जोड़ना. यानी एक भारी नाभिक बनाने के लिए हल्के इलेक्ट्रॉन्स के दो नाभिकों को मिलाकर जो प्रक्रिया होती है, वह नाभिकीय संलयन कहलाती है. नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है. परमाणुओं के नाभिक पॉजिटिवली चार्ज होते हैं और इसलिए वे एक-दूसरे को पीछे हटाते हैं. तो इन दो नाभिकों को संयोजित (Connect) करने या फ्यूज करने के लिए और एक भारी नाभिक बनाने के लिए बहुत ज्यादा ऊष्मा या ऊर्जा और उच्च दबाव (High Pressure) की जरूरत होती है.
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