Position of Comets, Asteroids, Meteors and Meteorites in the Solar System-
हमारे इस अनंत अंतरिक्ष में कई तरह के खगोलीय पिंड (Celestial Bodies in Universe) पाए जाते हैं, जैसे- ग्रह, उपग्रह, तारे आदि. क्षुद्रग्रह या एस्टेरॉयड्स (Asteroids), धूमकेतु आदि भी इन्हीं पिंडों में से एक हैं, लेकिन ये आकार में बहुत छोटे पिंड होते हैं, और इसलिए इन्हें ‘लघु ग्रह’ (Minor Planets) भी कहा जाता है. ये साइज में कई सैंकड़ो किलोमीटर बड़े भी हो सकते हैं, या कंकड़ के समान बहुत छोटे भी हो सकते हैं.
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ये एस्टेरॉयड्स कुछ और नहीं, बल्कि लगभग 4.6 अरब साल पहले सौरमंडल (Solar System) के निर्माण के समय बच गए अवशेष या टुकड़े या मलबा हैं, जो ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बंधे होने की वजह से उन्हीं के साथ सूर्य (Sun) की परिक्रमा करते रहते हैं, और इसी से ये एक-दूसरे से या दूसरे बड़े पिंडों से टकराते भी रहते हैं. ये एस्टेरॉयड्स धूल, बर्फ, चट्टानों या धातुओं आदि से बने होते हैं और किसी भी आकार के हो सकते हैं.
एस्टेरॉयड्स बेल्ट (Asteroids Belt)- NASA की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे सौरमंडल में अब तक 11,13,527 एस्टेरॉयड्स का पता लगाया जा चुका है. ज्यादातर क्षुद्रग्रह (7,50,000 से भी ज्यादा) ‘एस्टेरॉयड्स बेल्ट’ में पाए जाते हैं, जो बृहस्पति और मंगल (Jupiter and Mars) के बीच स्थित है, जिनमें बहुत सारे एस्टेरॉयड्स का व्यास 1 किलोमीटर है, तो बाकी के एस्टेरॉयड्स का आकार बहुत ही छोटा है. ज्यादातर एस्टेरॉयड्स चट्टानों से बने होते हैं, लेकिन नई रिसर्च के अनुसार कुछ एस्टेरॉयड्स लोहे और निकल जैसी धातुओं से भी बने हैं.
क्विपर बेल्ट क्या है (What is Kuiper Belt)-
हमारे सौरमंडल में वरुण ग्रह (नेपच्यून) की कक्षा के पास सूर्य के चारों तरफ बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़ों से बना एक घेरा है, जो सूर्य की परिक्रमा करता रहता है. इस घेरे को ही ‘क्विपर बेल्ट’ कहते हैं. ये घेरा मंगल और बृहस्पति के बीच लाखों की संख्या में पाए जाने वाले छोटे-छोटे एस्टेरॉयड्स के घेरे की ही तरह ही है.
(चित्र में देखिए. आपको एक घेरा मंगल और बृहस्पति के बीच, और दूसरा वैसा ही एक घेरा वरुण ग्रह के बाद दिखाई दे रहा होगा. मंगल और बृहस्पति के बीच का घेरा एस्टेरॉयड बेल्ट है, जबकि वरुण ग्रह के बाद का घेरा क्विपर बेल्ट है. धूमकेतु इस क्विपर बेल्ट से भी बाहर यानी सौरमंडल के आखिरी छोर में मौजूद रहते हैं).
वैज्ञानिकों के लिए एस्टेरॉयड्स, धूमकेतु आदि इसलिए इंटरेस्टिंग टॉपिक रहे हैं, क्योंकि इनकी सहायता से उस समय के बारे में बहुत कुछ पता चल सकता है, जिस समय हमारे सौरमंडल की उत्पत्ति हुई थी.
Biggest Asteroid of Solar System
सबसे बड़ा एस्टेरॉयड ‘सीरीस’ (Largest Asteroid- Ceres) है, जिसका व्यास लगभग 800 किलोमीटर है और इसका ज्यादातर भाग पानी से भरा हुआ है. वहीं, सबसे छोटे एस्टेरॉयड्स कंकड़ के समान हैं. एस्टेरॉयड्स सूर्य की परिक्रमा अनियमित तरीके से करते हैं, और इसी कारण से इनके आपस में या दूसरे ग्रहों-उपग्रहों से टकराने का खतरा बना रहता है.
बृहस्पति हमारे सौरमंडल का ‘गुरु ग्रह’ क्यों है?
क्या आप जानते हैं कि विज्ञान की नजर में भी बृहस्पति या जुपिटर (Jupiter) को ही ‘गुरु ग्रह’ क्यों कहा जाता है, क्योंकि बृहस्पति अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल से पृथ्वी की तरफ जाने वाले एस्टेरॉयड्स को अपनी तरफ खींच लेता है. अगर ऐसा नहीं होता तो शायद वे एस्टेरॉयड्स पृथ्वी या अन्य ग्रहों से टकरा जाते, जिससे भारी तबाही होती.
जैसे साल 1994 में एक धूमकेतु बड़ी तेजी से आया. ऐसा लगा कि वह पृथ्वी के पास आकर कोई तबाही मचाने को है, लेकिन तभी बृहस्पति ने उसे अपनी तरफ खींच लिया. वहां भयंकर विस्फोट हुआ और फिर सब शांत हो गया. इसीलिए बृहस्पति को सौरमंडल का ‘वैक्यूम क्लीनर’ भी कहा जाता है.
एस्टेरॉयड्स का पृथ्वी से टकराना
आमतौर पर एस्टेरॉयड्स पृथ्वी से कम ही टकराते हैं, लेकिन जब भी टकराते हैं, तो अपने आकार के अनुसार बड़ा विनाश कर सकते हैं. हालांकि, कभी-कभी इनका टकराना पृथ्वी के लिए अच्छा भी साबित हुआ है, जैसे हजारों सालों पहले इनके टकराने से पृथ्वी पर अलग-अलग आकार के गहरे गड्ढों या गर्तों का निर्माण हुआ है. जब सालों तक इन गर्तों में बारिश का पानी भर गया, तो ये गर्त बड़ी-बड़ी झीलों में बदल गए. जैसे महाराष्ट्र में लोनार झील का निर्माण एक उल्कापिंड के टकराने से ही हुआ था.
देखिए कुछ उदाहरण-
साल 2020 में इंडोनिशिया में एक ताबूत बनाने वाले व्यक्ति की छत पर एक कीमती उल्कापिंड के गिरने से वह व्यक्ति करोड़पति बन गया था. तो वहीं, साल 2021 में कनाडा में एक महिला के बिस्तर पर एक उल्कापिंड छत में छेद करते हुए उस समय गिरा, जब वह महिला रात को उसी बिस्तर पर सो रही थी. वह महिला बाल-बाल बची.
एक एस्टेरॉयड के टकराने से हुआ था डायनासोरों का अंत?
वैज्ञानिकों के एक अनुमान के मुताबिक, इस धरती से डायनासोरों (Dinosaurs) का अंत लगभग 6 करोड़ साल पहले हो गया था. एक स्टडी के अनुसार, पृथ्वी से डायनासोरों का अंत एक एस्टेरॉयड या क्षुद्रग्रह (Asteroid) के टकराने से हुआ था. इस एस्टेरॉयड का व्यास लगभग 9.6 किलोमीटर था और जब वह धरती से टकराया तो उससे पूरी दुनिया से डायनासोर और करोड़ों जीव खत्म हो गए थे.
क्षुद्रग्रह, उल्का और उल्कापिंड के बीच अंतर
(Difference between Asteroid, Meteor and Meteorite)
क्षुद्रग्रह (Asteroids)- सौरमंडल में ग्रहों-उपग्रहों के साथ घूम रहे पत्थरों, चट्टानों, बर्फ आदि के छोटे-बड़े, किसी ही आकार के टुकड़े. सौरमंडल में ग्रहों के निर्माण के समय ये टुकड़े बच गए थे. गुरुत्वाकर्षण बल से बंधे होने के कारण ये टुकड़े भी सूर्य के चक्कर काटते रहते हैं. इसीलिए इन्हें ‘लघु ग्रह’ भी कहा जाता है.
जब ये क्षुद्रग्रह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें उल्का (Meteors) कहा जाता है, जिन्हें आमतौर पर हम ‘टूटा तारा’ कह देते हैं. जब कोई क्षुद्रग्रह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करके जमीन से टकराता है या जमीन पर गिर जाता है, तो उसे उल्कापिंड (Meteorite) कहते हैं. यह आकाश से गिरते हुए पत्थर की तरह हैं.
वहीं, NASA के मुताबिक, कभी-कभी एस्टेरॉयड्स एक-दूसरे से टकराते रहते हैं, जिससे इनके छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं. उन टुकड़ों को उल्कापिंड (Meteorites) कहा जाता है. वहीं, अगर कोई उल्कापिंड पृथ्वी के काफी करीब आ जाता है और पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाता है, तो यह वाष्पीकृत (Vaporizes) हो जाता है और तब इसे उल्का (Meteor) कहते हैं.
अलग-अलग प्रकार के एस्टेरॉयड्स
(Different types of Asteroids)
क्षुद्रग्रह पेटी या एस्टेरॉयड बेल्ट (Main Asteroid Belt) : ज्यादातर क्षुद्रग्रह मंगल और बृहस्पति के बीच मौजूद एस्टेरॉयड बेल्ट में पाए जाते हैं, जिनके बारे में हम ऊपर पढ़ चुके हैं.
नियर अर्थ ऑब्जेक्ट (Near Earth Objects) : इन ऑब्जेक्ट्स की कक्षाएं (Orbits) पृथ्वी के करीब होती हैं. वे एस्टेरॉयड्स जो वास्तव में पृथ्वी के परिक्रमा वाले रास्ते को पार करते हैं, उन्हें ‘अर्थ-क्रॉसर्स’ (Earth-crossers) कहा जाता है.
ट्रोजन एस्टेरॉइड (Trojan Asteroids) : ट्रोजन ऐसे एस्टेरॉयड्स होते हैं, जो हमारे सौरमंडल के ग्रहों के लगातार साथी या उनके फॉलोअर्स की तरह सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं, और इसलिए ये एस्टेरॉइड्स अपने साथी ग्रहों के साथ कभी नहीं टकराएंगे.
ये एस्टेरॉइड्स ग्रहों के सामने या उनके पीछे लगभग 60 डिग्री के निश्चित बिंदु पर रहते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं. हमारे सौरमंडल में अब तक 6 ग्रहों के ट्रोजन एस्टेरॉइड्स का पता चला है. ये ग्रह हैं- पृथ्वी, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, यूरेनस (अरुण) और नेपच्यून (वरुण). वैज्ञानिकों ने अब तक पृथ्वी के दो ट्रोजन एस्टेरॉयड (Earth Trojan asteroids) की खोज की है-
(1) 2010 TK7 : जनवरी 2010 में खोजा गया 300 मीटर व्यास का एस्टेरॉयड. यह सूर्य-पृथ्वी के L4 लैग्रैन्जियन पॉइंट के आसपास घूमता रहता है.
(2) 2020 XL5 (614689) : दिसंबर 2020 में खोजा गया लगभग 1.2 किमी के व्यास का एस्टेरॉयड (जनवरी 2021 में इसे ‘अर्थ ट्रोजन’ के रूप में मान्यता दी गई). यह सूर्य-पृथ्वी के L4 लैग्रेंजियन पॉइंट (60°) के आसपास घूमता रहता है.
धूमकेतु या पुच्छल तारे क्या होते हैं-
सौरमंडल की अंतिम सीमा बहुत बाहर तक फैली हुई है. सौरमंडल के छोर पर बहुत छोटे-छोटे अरबों पिंड पाए जाते हैं, जिन्हें धूमकेतु या पुच्छल तारे (Comets or Tail Stars) कहा जाता है. ये धूमकेतु मुख्य रूप से गैस और धूल से बने होते हैं और आकाश में एक लंबी चमकदार पूंछ सहित प्रकाश के चमकीले गोले की तरह दिखाई देते हैं (ऊपर के चित्रों में देखिए).
वैज्ञानिकों का मानना है कि इन धूमकेतुओं का निर्माण बहुत समय पहले उसी गैसीय बदलाव से हुआ होगा, जिससे सौरमंडल के अन्य पिंडों का निर्माण हुआ. ये धूमकेतु सूर्य के चारों तरफ एक लंबी, अनियमित और अंधेरी कक्षा में परिक्रमा करते रहते हैं.
ये धूमकेतु हमारी पृथ्वी से बहुत दूर हैं और इन्हें सामान्य रूप से देखा नहीं जा सकता है. ये धूमकेतु केवल तभी दिखाई देते हैं, जब ये अपने रास्ते से भटककर सूर्य की तरफ जाने लगते हैं, और फिर सूर्य की किरणें इनकी गैसों को चमकीला बना देती हैं, तब ये देखे जा सकते हैं. ये धूमकेतु भी ग्रहों की तरह ही सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं.
अब तक धूमकेतुओं की पूंछ की स्टडी करने से यह पता चलता है कि धूमकेतुओं में कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन के अणु पाए जाते हैं, जो कि जीवन की उत्पत्ति के लिए जरूरी और सहायक होते हैं.
जब कोई धूमकेतु सूर्य के पास से गुजरता है, तो वह अपनी गैस का कुछ भाग को देता है. आखिर में अंतरिक्ष में उसके केवल धूल कण बचे रह जाते हैं, और जब ये कण पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, तो गर्म प्रतिरोधी वायु द्वारा उत्पन्न ऊष्मा से जल जाते हैं, जिसके बाद ये उल्का (Meteors) बन जाते हैं. इसे भी हम टूटता तारा या शूटिंग स्टार (Shooting Stars) कहते हैं.
इस तरह हम कह सकते हैं कि उल्काएं एस्टेरॉयड्स के टुकड़े और धूमकेतुओं की तरफ से पीछे छोड़े गए धूल के कण होते हैं. अगर उल्का का आकार बड़ा होता है, तो इसका एक भाग वायुमंडल में बिना जले पृथ्वी की सतह तक पहुंच सकता है और इस टुकड़े को उल्कापिंड (Meteorite) कहते हैं.
यानी वह उल्का जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने पर पूरी तरह से नहीं जलता है और पृथ्वी की सतह पर आ जाता है, उसे उल्कापिंड कहा जाता है. इन उल्का पिंडों की संरचना और पदार्थों की स्टडी करके सौरमंडल के गठन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी पाई जा सकती है.
पृथ्वी से तो कम ही उल्कापिंड टकराते हैं, जबकि चंद्रमा (Moon) की सतह पर टकराने वाले उल्कापिंडों की संख्या बहुत ज्यादा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि गिरते हुए उल्कापिंडों को घर्षण से उत्पन्न ऊष्मा द्वारा जलाने के लिए चंद्रमा के पास वायुमंडल (Atmosphere) नहीं है.
साइकी (Psyche)
साइकी (Psyche) मंगल और बृहस्पति के बीच मौजूद एस्टेरॉइड बेल्ट में सूर्य की परिक्रमा करने वाला एक एस्टेरॉइड है. कहा जाता है कि यह एस्टेरॉइड चट्टानों या बर्फ से बने दूसरे एस्टेरॉइड्स के विपरीत लोहे और निकल धातु से बना हुआ है. ऐसा भी माना जाता है कि शुरुआत में यह एस्टेरॉइड एक ग्रह रहा होगा, लेकिन अन्य अंतरिक्ष पिंडों से टकराने के कारण इसका बाहरी चट्टानी भाग टूटकर इससे अलग हो गया होगा, जिससे यह एस्टेरॉइड बन गया होगा.
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