Lunar Eclipse (Chandra Grahan)
हमारे सौरमंडल (Solar System) में मुख्य रूप से सूर्य, 8 ग्रह और उनके उपग्रह हैं. सूर्य (Sun) सौरमंडल के केंद्र में है और यही सौरमंडल का सबसे बड़ा पिंड (Largest Body) है. सभी आठों ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं और सभी ग्रहों के उपग्रह अपने-अपने ग्रहों की परिक्रमा करते रहते हैं. जैसे- पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है. इस दौरान, यानी रास्ते में ये तीनों कभी-कभी एक-दूसरे के सामने आते रहते हैं, जिससे इन सभी पर एक-दूसरे की परछाई या छाया पड़ जाती है, उसी परछाई को ‘ग्रहण’ (Eclipse) कहा जाता है.
क्या है सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण?
परिक्रमा करते-करते जब चंद्रमा (Moon), पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है, तब (चंद्रमा के सामने आ जाने की वजह से) सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता और पृथ्वी के कुछ हिस्सों पर दिन में भी अंधेरा छा जाता है, इसी स्थिति को ‘सूर्य ग्रहण’ (Solar Eclipse) कहते हैं.
वहीं, परिक्रमा करते-करते जब पृथ्वी (Earth), सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है, तब (पृथ्वी के सामने आ जाने की वजह से) सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता, जिससे चंद्रमा की सतह पर अंधेरा छा जाता है. इस स्थिति को चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) कहते हैं. ‘सूर्य ग्रहण’ अमावस्या को ही होता है, जबकि चंद्र ग्रहण पूर्णिमा की रात को ही होता है. यहां हम चंद्र ग्रहण को समझने की कोशिश करते हैं.
चंद्र ग्रहण के दौरान क्या-क्या होता है?
चंद्रग्रहण तब होता है, जब पृथ्वी (Earth), सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है….और तब पृथ्वी की परछाई या छाया चंद्रमा पर पड़ती है. इस दौरान सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा बिल्कुल एक सीधी रेखा में होते हैं और यह घटना केवल पूर्णिमा के दिन ही होती है. चंद्र ग्रहण कुछ घंटों तक ही चलता है. चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा पर पृथ्वी की दो छाया बनती हैं- आंशिक छाया या पेनुम्ब्रा (Penumbra) और प्रतिछाया या पृथ्वी की कक्षा (Umbra).
जैसे सूर्य ग्रहण के समय पृथ्वी पर चंद्रमा की दो परछाईं या छाया बनती हैं, जिनमें से एक को छाया (Shadow or Umbra) और दूसरी को उपच्छाया या आंशिक छाया (Penumbra) कहा जाता है. छाया का आकार पृथ्वी पर पहुंचते समय काफी छोटा हो जाता है. इस छाया के क्षेत्र में खड़े लोगों को ही पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देता है. वहीं, उपच्छाया या आंशिक छाया का आकार पृथ्वी पर पहुंचते हुए बड़ा होता जाता है और इसके क्षेत्र में खड़े लोगों को आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देता है.
चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा पृथ्वी की दो छाया पर से गुजरता है…
चंद्रग्रहण के दौरान सबसे पहले, चंद्रमा पृथ्वी की आंशिक छाया या पेनुम्ब्रा (Penumbra) की तरफ चला जाता है. पेनुम्ब्रा, पृथ्वी की छाया का वह हिस्सा होता है, जहां सूर्य से आने वाला पूरा प्रकाश नहीं रुकता है, यानी यहां से चंद्रमा को सूर्य का कुछ प्रकाश मिलता रहता है (लेकिन सामान्य पूर्णिमा की तरह पूरा प्रकाश नहीं मिलता). इससे किसी सामान्य पूर्णिमा की तुलना में चंद्रमा का वह हिस्सा धुंधला दिखाई देता है (नीचे चित्र देखें).
इसके बाद चंद्रमा पृथ्वी की कक्षा या प्रतिछाया (Umbra) में चला जाता है, जहां पृथ्वी अपनी छाया से चंद्रमा तक सूर्य से आने वाले पूरे प्रकाश को रोक लेती है, यानी यहां चंद्रमा तक सूर्य की रोशनी बिल्कुल नहीं पहुंच पाती. इस दौरान, चंद्रमा की पूरी डिस्क पृथ्वी की कक्षा या प्रतिछाया (Umbra) में ही आ जाती है. ये स्थिति आते ही चंद्रमा लाल (Blood Moon) दिखाई देता है.
चंद्र ग्रहण शुरू होने के बाद चंद्रमा पहले काले और फिर धीरे-धीरे लाल रंग में बदल जाता है. करीब 14 मिनट के बाद, चंद्रमा पृथ्वी की कक्षा या प्रतिछाया (Umbra) से बाहर निकलकर वापस पेनुम्ब्रा (Penumbra) में आ जाता है (जहां उसे सूर्य का कुछ प्रकाश मिलता रहता है और फिर जब वह वहां से भी वापस चला जाता है तो चंद्र ग्रहण खत्म हो जाता है).
चंद्र ग्रहण को बिना किसी यंत्र या उपकरण की सहायता के नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है (जबकि सूर्य ग्रहण को बिना किसी यंत्र या उपकरण की सहायता के देखना खतरनाक होता है).
अमावस्या और पूर्णिमा क्या है (Amavasya aur Purnima kya hai)?
अमावस्या और पूर्णिमा क्या है- सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा, तीनों ही घूम रहे हैं. घूमते-घूमते जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है, तब चंद्रमा के जिस हिस्से पर सूर्य की रोशनी पड़ती है, वह हिस्सा पृथ्वी की तरफ नहीं होता, बल्कि सूर्य की तरफ होता है, तो ऐसे में हम चंद्रमा का प्रकाशित भाग नहीं देख पाते और इसलिए हमें चंद्रमा ही नहीं दिखाई पड़ता, इसे ही ‘अमावस्या’ (Amavasya or New Moon) कहा जाता है.
वहीं जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है, तब चंद्रमा के जिस हिस्से पर सूर्य की रोशनी पड़ती है, वह हिस्सा पृथ्वी की तरफ ही होता है और तब हम चंद्रमा के पूरे प्रकाशित भाग को देख पाते हैं और उसे हम ‘पूर्णिमा’ (Purnima or Full Moon) कहते हैं.
हर पूर्णिमा को क्यों नहीं होता चंद्र ग्रहण?
अब सवाल ये है कि चंद्र ग्रहण हर पूर्णिमा को क्यों नहीं होता? दरअसल, सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण तभी हो सकता है, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा लगभग एक सीधी रेखा में हों, तब ही तो पृथ्वी या चंद्रमा एक-दूसरे के लिए सूर्य की रोशनी को रोक पाएंगे. लेकिन ये तीनों हर अमावस्या या पूर्णिमा को एक सीधी रेखा में नहीं आ सकते, क्योंकि चंद्रमा की कक्षा का तल (Orbital Plane) पृथ्वी की कक्षा के तल से 5 डिग्री झुका हुआ है.
यानी चंद्रमा का कक्षीय समतल (Moon’s orbital plane) पृथ्वी के कक्षीय समतल (Earth’s orbital plane) से 5 डिग्री का कोण बनाता है, इसीलिए सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा हर अमावस्या या पूर्णिमा को एक सीधी रेखा में नहीं होते, जिससे किसी पर भी एक-दूसरे की छाया हर बार नहीं पड़ पाती (यानी इसी से चंद्रमा की परछाई पृथ्वी पर हर बार नहीं पड़ती) और न ही कोई किसी के लिए सूर्य के प्रकाश को रोक पाता है… और इसीलिए हर पूर्णिमा और अमावस्या को ग्रहण नहीं होता (चित्र देखें और तुलना करें).
चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य
नोट- चंद्रमा, पृथ्वी की परिक्रमा गोलाकार नहीं बल्कि अंडाकार पथ (Elliptical Orbit) में करता है, इसलिए पृथ्वी से उसकी दूरी में बदलाव होता रहता है. सूर्य की तुलना में चंद्रमा लगभग 400 गुना छोटा है, लेकिन फिर भी आकाश में दोनों समान आकार के ही दिखाई देते हैं, क्योंकि चंद्रमा की तुलना में सूर्य पृथ्वी से 400 गुना ज्यादा दूर है. सूर्य पृथ्वी से 14,95,98,900 किलोमीटर दूर है, जबकि पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी 3,84,400 किलोमीटर है. चंद्रमा पृथ्वी का एक चक्कर (परिक्रमा) 27.3 दिन में पूरी करता है.
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