Hanuman ji and Shri Ram
हनुमान जी के मिलते ही श्रीराम स्वयं ही उनके कंधों पर बैठ गए
हे पवनपुत्र! हे महावीर! अब यह रामकथा तुम्हारे कंधों पर..
लेकिन तब श्रीराम ने हनुमान जी को “पुत्र” नहीं कहा, पर माता सीता ने तो हनुमान जी से मिलते ही उन्हें अपना पुत्र कह दिया, अपने लाड़ले पुत्र को समस्त सिद्धियां दे डालीं.
अजर अमर गुननिधि सुत होहू।
करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥
हनुमान जी द्वारा माता सीता का समाचार सुनाते ही श्रीराम ने कहा-
सुनु कपि तोहि समान उपकारी।
नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥
प्रति उपकार करौं का तोरा।
हे कपि! तुम्हारे समान मेरा कोई उपकारी नहीं है. मैं तुम्हारा बदले में क्या उपकार करूँ?
और तभी हनुमान जी ने तुरंत संकेत किया
‘प्रभु! माता ने मुझे पुत्र कहा है, तो अब आप भी मुझको…’
और तब श्रीराम ने तुरंत कहा-
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं।
पुत्र! मैं तुमसे उऋण नहीं हो सकता (पुत्र! मैं तुम्हारा ऋण कभी नहीं चुका सकता)
जिस पर माता सीता जी प्रसन्न हो जाएं, उसे तो श्रीराम की कृपा मिलनी ही है.
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राम सर्वस्व हैं, सर्वशक्तिमान हैं, पर राम का काम भी अपने हनुमान के बिना नहीं चलता. हनुमान जी रामसीता जी के प्रथम पुत्र हैं और लाड़ले भी. हनुमान जी पर विशेष ही कृपा रहती है उनकी.
और इसीलिए पूरी रामायण में एकमात्र हनुमान जी ही हैं जो किसी कठिन से कठिन परिस्थिति में भी रोये नहीं. अपना हर कार्य शांत और प्रसन्न मन से करते हैं. समस्या कैसी भी हो, पर वे चिंता में समय नहीं गंवाते, हर समस्या का समाधान खोजने और कर्म करने के लिए उठ खड़े होते हैं. वे किसी भी कार्य को करते समय अपनी बुद्धि, शक्ति और भक्ति सभी का इस्तेमाल करते हैं, और इसीलिए वे कभी असफल भी नहीं हुए.
जब हनुमान जी की पूँछ में आग लगाई जाती है और उनका अपमान कर उन्हें पूरे नगर में घुमाया जाता है, तब हनुमान जी सोचते हैं कि, “अब लंका में मेरा कौन सा कार्य शेष रह गया?”
यानी जब हनुमान जी पर कोई संकट आता है, तब हनुमान जी चिंता में पड़ने की बजाय यह सोचते हैं कि अवश्य ही मेरे द्वारा कोई महत्वपूर्ण कार्य होना है, इसलिए मेरे ऊपर यह संकट आया है.
हनुमान जी झुकाना तो जानते ही हैं, साथ ही झुकना भी जानते हैं. जैसे मेघनाद द्वारा ब्रह्मास्त्र चलाये जाने पर हनुमान जी स्वयं ही ब्रह्मास्त्र में बंध जाते हैं (जबकि कोई भी शक्ति हनुमान जी को नहीं बांध सकती), क्योंकि हनुमान जी विचार करते हैं कि ‘यदि मैं ब्रह्मास्त्र का मान नहीं रखूंगा, तो फिर संसार में ब्रह्मास्त्र की महिमा ही कहाँ रह जाएगी.’
ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥
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श्रीराम और हनुमान का मिलन रामकथा में एक नया और सुंदर रूप ले लेती है. हनुमान जी के आते ही रामायण में भक्ति और जोश का अनुपम रंग चढ़ जाता है. रामकथा हनुमान जी के बिना पूर्ण नहीं है. हनुमान जी लोकनायक हैं. जन संकटमोचक हैं. जनांदोलन की शक्ति हैं. युवा शक्ति जागरण बिना बजरंग पूजन के सम्भव ही नहीं.
श्रीराम और सीता जी को मिलाने वाले, सुग्रीव को राज्य दिलाना हो, विभीषण का दुख दारिद्र्य दूर करना हो, लक्ष्मण जी की जान बचानी हो, नागपाश से मुक्ति, अहिरावण से मुक्ति, अर्जुन की सहायता से लेकर गोस्वामी जी के माध्यम से त्रस्त तत्कालीन जनता में राम नाम की शक्ति भरने वाले बजरंग बली की महिमा का कोई पारावार नहीं है. लोक देवता के रूप में हनुमान जी की उपासना दुर्गा माता के साथ भी होती है.
हनुमान जी की आराधना करने से एक अलग ही भक्ति और ऊर्जा का संचार होता है.
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गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान जी के बारह मंदिर बनाए थे. हनुमान जी पर गोस्वामी जी ने हनुमान चालीसा लिखी, शक्तिहीन हिंदू समाज को मेरुदंड मिल गया, समाज खड़ा हो उठा. लगभग चार सौ वर्ष बाद भी संसार मे सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक तुलसीदास की रामचरितमानस है, संसार में सबसे अधिक गायी जाने वाली पंक्तियां उन्ही की लिखी “हनुमान चालीसा” की हैं.
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भय की स्थिति में यह देश हनुमान चालीसा का पाठ करता है. हनुमान चालीसा के पाठ से विपत्ति समाप्त होने का दावा नहीं करते हम, पर भय को जीत लेने का आत्मविश्वास हनुमान चालीसा से अधिक और कहीं से नहीं मिलता. यह तुलसीदास जी और उनकी भक्ति की शक्ति है.
तुलसीदास जी और उनकी रचनाएं राष्ट्र की सीमाओं को पार कर जापान समेत अनेक देशों के सिलेबस का हिस्सा हैं. सबसे अधिक शोधकार्य उन पर हुए हैं.
भगवान श्रीराम जब संपूर्ण प्रजा सहित बैकुंठ जा रहे थे तब हनुमान जी उनके साथ नहीं गए. श्रीराम से पृथ्वी पर रहकर राम कथा श्रवण का ही वरदान मांगा जो उन्हें दिया गया.
इसीलिए जहां श्रीराम हैं, वहां हनुमान जी तो जरूर होंगे
या
हनुमान जी वहीं हैं, जहां श्रीराम हैं..
हनुमान जी से जुड़े कुछ तथ्य
हनुमान जी पहले वानरराज सुग्रीव के साथ किष्किंधा में रहते थे, फिर वे बाद में भगवान श्रीराम के साथ अयोध्या आ गए. वे कुछ समय मकरध्वज के पास (आज के दक्षिण अमेरिका के होंडूरास और पूर्व माया सभ्यता) में भी रहे. कुछ समय तक उन्होंने अफ्रीका की कुछ जगहों पर भी निवास किया. त्रेतायुग के समापन के बाद हनुमान जी किम्पुरुष वर्ष में निवास करने लगे.
किम्पुरुष वर्ष हिमालय के उत्तर में हेमकीता के निकट का क्षेत्र है, जिसका वर्णन पौराणिक आख्यायनों में मिलता है. रामायण में लिखा है कि किम्पुरुष वर्ष के लोग जंगल, पहाड़ों में झोपड़े बनाकर रहते थे और फल, पत्ते खाकर निर्वाह करते थे. ऐसा माना जाता है यहाँ के लोगों की आयु सामान्यत: दस हजार वर्ष की होती है. यहाँ यति, नरसिंघ, रीछ, वानर गण के लोग रहते हैं. एशिया के अतिरिक्त आज भी लैटिन अमेरिका अफ्रीका के देशों में हनुमान जी की उपासना होती है. उनकी मूर्तियां जो हजारों वर्ष पुरानी हैं, प्रायः पुरानी सभ्यता वाली जगहों पर मिलती हैं.
हनुमान जी व्याकरण (शब्द शास्त्र) के आचार्य हैं. बातचीत करते समय उनके मुख से कोई त्रुटि नहीं होती है. सुर, नर, नाग, गन्धर्व से भी बढ़कर हनुमान जी ने अखण्ड ब्रह्मचर्य धारण किया हुआ है. हालाँकि कर्नाटक में एक जगह हनुमान जी की पत्नी के साथ पूजा होती है, लेकिन वह विवाह प्रतीकात्मक था जो उन्होंने सूर्य की पुत्री के साथ किया था.
हनुमान जी एकादश रुद्र हैं जो विष्णु अवतार भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त हैं. हनुमान जी श्रीराम के ऐसे एकमात्र सेवक हैं जिन्हें माता सीता ने अपना पुत्र कहा है. हनुमान जी बुद्धि, विवेक, धैर्य और विनम्रता के स्रोत हैं. भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के समय हनुमान जी चार समुद्र और 500 नदियों से जल लाए थे. यह उनकी असाधारण शक्ति का द्योतक है.
छोटे बालक से लेकर वयोवृद्ध के हृदय में एक समान भाव के साथ विद्यमान महावीर बजरंग बली हर उस स्थान पर रहते हैं जहाँ राम कथा का पारायण होता है. राम कथा कहने से पहले बजरंगी का आह्वान किया जाता है और उनके लिए अलग चौकी रखी जाती है जिस पर बैठकर वे रामकथा सुनते हैं. हनुमान जी की कृपा से समस्त व्याधियों से छुटकारा प्राप्त होता है. हनुमान चालीसा का पाठ हर भय से अभय होने का रामबाण उपाय है.
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