विजय का पर्व दशहरा, जानिए इस दिन क्या-क्या करना माना जाता है बेहद शुभ

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Dussehra Vijayadashami Festival

Dussehra Vijayadashami Festival

त्योहार (Festival) सभी के हर्षोल्लास और श्रद्धा भावना के प्रतीक होते हैं. देश में सालभर में बहुत से त्योहार आते हैं और इन सभी त्योहारों को मनाने की एक अपनी ही विधि और परंपरा है. हमारे त्योहार लोगों में आपसी प्रेम और सद्भावना का संदेश देते हैं और जीवन में नई खुशियां और उल्लास का संचार करते हैं. इन त्योहारों में होली, रक्षाबंधन, दीपावली और विजयादशमी प्रमुख हैं. इन सभी का धार्मिक महत्व भी है और सामाजिक पक्ष भी. इन सभी त्योहारों में दशहरे (Dussehra) का विशेष स्थान है. इस दिन किया गया कोई भी कार्य शुभ फल और विजय देने वाला माना गया है.

क्या है दशहरा?

दशहरा दश+हरा से मिलकर बना है. इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम (Shri Ram) ने रावण के 10 सिरों को काटकर आतंक का नाश किया था. रावण के दस सिर दस तरह के पापों के प्रतीक हैं. उनका नाश करने के कारण ही इस पर्व का नाम भी दशहरा पड़ा. सत्य की असत्य पर, पुण्य की पाप पर, न्याय की अन्याय पर और प्रकाश की अंधकार पर जीत का प्रतीक ही दशहरा या विजयादशमी (Dussehra or Vijayadashami) कहलाता है. यह त्यौहार समाज में नई चेतना और सजगता लाता है. हृदय से बुराइयों को खत्म करता है और एक विश्वास जगाता है कि अत्याचारी चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है.

भगवान श्रीराम ने कराया था सभी को मुक्त

यह त्यौहार हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में दशमी के दिन पूरे भारत में मनाया जाता है. दुष्ट और अत्याचारी रावण ने माता सीता (Maa Sita) का अपहरण किया, इस पर भगवान राम ने युद्ध करके उसे पराजित कर दिया और उसके राज्य में बंधक बनाए गए सभी देवी देवताओं, नवग्रहों आदि को मुक्त कराया. दशहरे से पहले हर साल शारदीय नवरात्रि की समय आदिशक्ति मां दुर्गा की उपासना की जाती है. नवरात्रि की शुरूआत भगवान श्रीराम ने ही की थी. रावण के साथ युद्ध से पहले श्रीराम ने मां दुर्गा की पूजा-आराधना कर उनसे विजय का आशीर्वाद मांगा था.

नए कार्य की शुरुआत के लिए अच्छा दिन

चूंकि दशहरा का त्यौहार विजय का प्रतीक है, इसलिए इस दिन किसी भी नए कार्य की शुरुआत करना, या किसी अच्छी चीज की खरीदारी करना, नए या साफ-सुथरे कपड़े पहनना और अच्छे पकवान खाना और खिलाना शुभ माना जाता है. कहते हैं कि दशहरा के दिन भगवान श्रीराम का स्मरण और शमी वृक्ष की पूजा करके जिस नए कार्य या व्यवसाय की शुरुआत की जाती है, उसमें सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है. इसी के साथ, इस दिन अपनी किसी न किसी बुराई को छोड़ने का भी संकल्प लिया जाता है.

मौसम में परिवर्तन

दशहरा का संबंध ऋतु चक्र या मौसम के बदलाव से भी है. प्राचीन काल में व्यापारी, यात्री, सेना और साधु-संत बारिश के मौसम में एक स्थान से दूसरे स्थान तक सरलता से नहीं जा पाते थे. लेकिन इस समय तक बारिश का मौसम समाप्त हो जाता था और इस दिन को शुभ समझकर यात्रा का शुभारंभ किया जाता था. क्षत्रिय और सैनिक लोग शस्त्र-पूजन कर शत्रु पर चढ़ाई करते थे.

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महिलाएं हाड़ी की फसल बोने से पहले जौ बोती थीं और विजयादशमी के दिन मौली के धागे से अंकुरित जौ को पुत्र और पति की टोपी में रख देती थीं. सर्दियों का आगमन किसानों के हृदय में उल्लास भर देता है. इस तरह यह त्यौहार हमारे मन में गौरव, उत्साह और आत्मविश्वास का संचार करता है और हृदय में एक नई स्फूर्ति और नए जीवन की तरंगे उठने लगती हैं.

दशहरा पर्व को मनाने की विधि

दशहरे के त्यौहार को मनाने की अनेक विधियां प्रचलित हैं. दशहरे से पहले जगह-जगह पर रामलीला (Ramleela) का आयोजन किया जाता है. आखरी दिन बड़ी धूमधाम से रावण वध का आयोजन कर यह पर्व मनाया जाता है. रावण के साथ मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले बनाकर उन्हें आतिशबाजी और पटाखों से भर दिया जाता है और भगवान श्रीराम का अभिनय करने वाला पात्र उन तीनों पुतलों पर तीर चलाता है. तीनों पुतले विस्फोटक ध्वनि के साथ फटकर जल उठते हैं. इस दृश्य को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है. गांवों में इस दिन बड़े-बड़े दंगलों का भी आयोजन किया जाता है. इस दौरान भगवान श्रीराम जी की झांकी का भी विशेष महत्व होता है.

दशहरा के अलग-अलग रंग

दशहरा के दिन पूरे देश में रावण का पुतला जलाया जाता है, जो बुराई को जलाने या खत्म करने का प्रतीक माना जाता है. इसी परंपरा के साथ दशहरा का समापन होता है, लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में इस त्यौहार को मनाने के तरीके भी अलग-अलग हैं. दशहरा का त्योहार केवल भारत में ही नहीं, अन्य देशों में भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. नेपाल, इंडोनेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड, मलेशिया में भी दशहरा का पर्व काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. नेपाल में तो यह सबसे बड़े त्यौहार में से एक है. नेपाल या गोरखा सेनाएं बड़े ही अलग अंदाज में विजयादशमी को मनाती हैं. दशहरा वाले दिन राजा प्रजा को दही, रोली और चावल का टीका लगाते हैं.

दशहरे के दिन कौन-कौन से कार्य माने जाते हैं बेहद शुभ-

स्वतंत्र मछली के दर्शन

आपने देखा होगा कि दशहरे के दिन सुबह-सुबह छोटे-छोटे बच्चे किसी भी बर्तन में तैरती हुई मछलियों (Fish) के दर्शन कराने घर-घर ले जाते हैं, क्योंकि इस दिन स्वतंत्र रूप से तैरती हुईं मछलियों के दर्शन करना बहुत ही शुभ माना जाता है. लेकिन इस दिन किसी बर्तन में बंधक बनाई गई मछलियों के दर्शन नहीं किए जाते. मछलियों को बंधक बनाना पाप माना जाता है. अगर आप किसी नदी, तालाब या किसी भी जलाशय में स्वतंत्र रूप से तैरती हुई या उछलती-कूदती हुई मछली को देखते हैं, तो वह बहुत ही शुभ और भाग्योदय का संकेत माना जाता है. इसी के साथ, इस दिन मछलियों को ताजे आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर भी खिलाई जाती हैं.

नीलकंठ के दर्शन

दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी (Neelkanth) के दर्शन करना बहुत ही शुभ माना गया है. कहते हैं कि राम-रावण के युद्ध के समय भगवान शिव ने भगवान श्रीराम को नीलकंठ के रूप में आकर दर्शन दिए थे. तब से नीलकंठ के दर्शन होना भगवान शिव के आशीर्वाद का ही प्रतीक माना जाता है. मान्यता है अगर इस दिन नीलकंठ के अपने आप दर्शन हो जाते हैं, तो यह किस्मत चमकने का संकेत होता है.

शमी का पूजन

दशहरा के दिन शमी पौधे की पूजा करना (Shami worship) और उसके नीचे एक दिया जलाना बहुत ही शुभ माना गया है. कहते हैं कि रावण के साथ युद्ध से पहले भगवान श्रीराम ने शमी वृक्ष के सामने अपने विजय की प्रार्थना की थी, साथ ही रावण का अंत करने के बाद भी उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा की थी. ये भी कहा जाता है कि जब पांडवों को देश निकाला दिया गया था, तब उन्होंने अपने हथियार शमी वृक्ष में ही छुपाए थे. इसीलिए दशहरा के दिन शमी वृक्ष की पूजा और शस्त्र पूजा का विशेष महत्व है.

अस्त्र-शस्त्रों की पूजा

क्षत्रियों या सैनिकों के लिए इस त्यौहार का बड़ा ही महत्व है. दशहरा के दिन शस्त्र-पूजन (Worship of weapons) का रिवाज है. प्राचीन काल में सैनिक या क्षत्रिय युद्ध पर जाने से पहले अस्त्र-शस्त्रों की पूजा किया करते थे. नवरात्रि की शुरुआत से ही दसों दिन शक्ति पूजा के पर्व के रूप में बनाए जाते हैं और दशहरा के दिन अस्त्र-शस्त्रों की पूजा कर शौर्य, वीरता और विजय का आशीर्वाद मांगा जाता है. इसी के साथ, इस दिन अपने वाहनों की भी पूजा की जाती है.

राम कथा पढ़ना-सुनना

दशहरा के दिन भगवान श्रीराम की कथा सुनने और श्रीराम रक्षास्त्रोत या सुंदरकांड का पाठ करने का भी बड़ा महत्व है. वैसे तो दशहरा के पहले रामलीला का आयोजन किया ही जाता है. वहीं, अगर दशहरा के दिन भगवान श्रीराम के विजय की कहानियां पढ़ी या सुनी जाएं, तो यह बहुत अच्छा माना जाता है. इसी के साथ, दशहरा के दिन अपने घर या मंदिर में विजय के प्रतीक लाल पताका लगाना शुभ और सफलता का प्रतीक माना गया है.

पान-मिठाइयां खाना और खिलाना

दशहरा के दिन पान खाने और खिलाने की विशेष परंपरा है. इस दिन लोग अलग से पान बनवाते हैं, खाते हैं और एक-दूसरे को खिलाते भी हैं. इसी के साथ, इस दिन भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान जी को भी पान का बीड़ा अर्पित किया जाता है, उन्हें विजय की बधाई दी जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है. इसके बाद घर के सभी सदस्य पान खाते हैं.

दशहरा विजय और खुशियां मनाने का त्योहार है. इस दिन आपसी मतभेद भूलकर एक-दूसरे को प्यार से मिठाईयां खिलाई जाती है. घरों में अच्छे-अच्छे पकवान बनाए जाते हैं और मिल-बैठकर खाए जाते हैं. अपनी किसी न किसी बुराई को छोड़ने का संकल्प लिया जाता है. इस तरह के कार्यों से जीवन में नई खुशियों का संचार होता है.

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