विश्व के आश्चर्यों की गिनती में एलोरा के कैलाश मंदिर (Kailash Temple of Ellora) का नाम नहीं मिलेगा. महाराष्ट्र के औरंगाबाद (Aurangabad, Maharashtra) जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एलोरा की विश्व प्रसिद्ध गुफायें, जिन्हें स्थानीय भाषा में वेरूल लेनी (Verul Leni) के नाम से भी जाना जाता है, इसी गुफा श्रृंखला की एक कड़ी है रहस्यमय कैलाश मंदिर जो कि भगवान शिव को समर्पित है.
इस मंदिर के आलेखन का कार्य राष्ट्रकूट नरेश दंतिदुर्ग (735-757 ई.) द्वारा किया गया था और निर्माण का श्रेय राजा कृष्ण प्रथम (757-773 ई.) को दिया जाता है. मंदिर की वास्तुकला पल्लव और चालुक्य शैलियों के निशान दिखाती है. यह मंदिर प्राचीन अभियांत्रिकी का आज संरक्षित उदाहरण है. इस तरह की कलाकृति दुनिया में और कहीं नहीं है.
एलोरा समूह की गुफा क्रमांक-16, जिसे कैलाशनाथ मंदिर (Kailashnath Temple) के रूप में पहचान मिली है, यह गुफा श्रृंखला का सर्वश्रेष्ठ तथा सुंदरतम मंदिर है, जो भारत में ज्ञात चट्टानों को काटकर बनाये गये मंदिरों में विशालतम है. पुरातत्वविदों का मानना है कि यह एक ही चट्टान से बना है.
कैलाश मंदिर को बनाने में दस पीढ़ियां और लगभग 200 वर्षों का समय लगा है. इसका निर्माण कई राजाओं के शासनकाल तक फैला हुआ है. यह दर्शाता है कि इस निर्माण के पीछे कितना धैर्य, कितनी योजना और कितना श्रम लगा है, उसका वर्णन शब्दों की क्षमता से परे है. इस निर्माण के रूप में कल्पना को ही हकीकत में बदल दिया गया.
किस विधि से हुआ कैलाश मंदिर का निर्माण
अभियांत्रिकी की कोई पुस्तक उठा लीजिये, आपको उल्लेख यही मिलेगा कि पहले बुनियाद बनाई जानी चाहिये और उसके ऊपर भवन खड़ा किया जायेगा. भारत के कितने इंजीनियर यह जानते हैं कि कैलाश मंदिर का निर्माण किस विधि अथवा प्रक्रिया से हुआ है? बुनियाद तैयार करने के बाद तो बड़े-बड़े भवन खड़े किये जाते हैं लेकिन अद्भुत शिल्पी थे वे, जिन्होंने पहले शीर्ष पर काम आरम्भ किया.
एक सिरे से भीतरी भाग का उत्खनन किया जाता रहा है, जिससे हजारों टन पत्थर के अलग करने के बाद केवल मंदिर ही शेष रह गया. धीरे-धीरे शिल्पियों के छेनी-हथोड़ों ने बुनियाद रचने के बाद विराम लिया. एक पर्वताकार बेसाल्टिक शिला के लगभग 85 हजार क्यूबिक मीटर हिस्से में से काट-तराश कर इस मंदिर का निर्माण किया गया है. आज जब हम बड़ी-बड़ी मशीनों और उन्नत अभियांत्रिकी के दौर में रह रहे हैं, तब भी निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि कैलाशनाथ मंदिर जैसी संरचना का पुनर्निर्माण अब नहीं हो सकता.
किन चट्टानों से हुआ था कैलाश मंदिर का निर्माण
कैलाश मंदिर मुख्य रूप से बेसाल्ट की चट्टानों (Rocks of Basalt) को काटकर बनाया गया है. बेसाल्ट चट्टानें उस दौर में मूर्तिकला के लिये श्रेष्ठतम मानी जाती थीं. बेसाल्ट वस्तुत: एक दौर में अलग-अलग चरणों में उत्सर्जित लावा प्रवाह के कारण निर्मित चट्टाने हैं, जो प्रवाह के अलग-अलग दौर में सीढ़ीनुमा आकार ले लेती हैं.
एलोरा के निकट कोई भू-विज्ञान में रुचि रखने वाला व्यक्ति उन दरारों को भी देख-परख सकता है, जिनसे होकर कभी लावा प्रवाहित हुआ करता था. बेसाल्ट चट्टानों से अटी पड़ी ये पहाड़ियाँ वस्तुत: सह्याद्रि पर्वत माला का हिस्सा हैं जिनका निर्मिति काल क्रिटेशियस युग (लगभग 65 मिलियन वर्ष पूर्व) माना गया है. माना जाता है कि मंदिर के निर्माण के समय जो मलबा यानी जो भी पत्थर निकले थे, उन्हें किसी और निर्माण में प्रयोग किया गया था.
कैलाशनाथ मंदिर की मुख्य विशेषताएं
मंदिर का शिखर 95 फीट ऊँचा है. मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 50 मीटर लम्बा और 33 मीटर चौड़ा है. प्रवेश करते ही दो मुख्य महाकाव्य रचयिता संत श्री वाल्मीकि जी और वेद व्यास जी (Shri Valmiki and Ved Vyas), जिन्होंने क्रमश: रामायण और महाभारत (Ramayana and Mahabharata) की रचना की, के दर्शन हो जाते हैं.
द्वार मण्डप पर स्थित चार स्तम्भ में कलश और पत्ते वस्तुत: समृद्धि व उर्वरता के प्रतीक के रूप में स्थापित किये गये हैं. द्वारमार्ग के दोनों तरफ धन के देवता कुबेर के चित्र उकेरे गये हैं जो समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं. मंदिर के प्रांगण के प्रवेश द्वार पर एक नीचा गोपुरम है. प्रवेश द्वार के बाईं ओर अधिकांश देवता भगवान् शिव से संबद्ध हैं जबकि दाहिने हाथ की ओर के देवता भगवान् विष्णु से संबद्ध हैं.
स्वागत द्वार के दो और मुख्य आकर्षण हैं- श्री गणेश जी तथा दुर्गा जी की भव्य प्रतिमायें. प्रवेश के बाद दाहिनी तरफ की दीवार पर स्तम्भों के पार्श्व में गंगा-यमुना तथा सरस्वती नदियों की स्त्रीरूप में प्रतिमायें हैं. प्रत्येक नदी प्रतिमा को अपने वाहन के साथ दर्शाया गया है, अर्थात गंगा जी मगरमच्छ पर, यमुना जी कछुये पर और सरस्वती जी हाथी पर विराजमान हैं जो कि शुद्धता, समर्पण तथा प्रज्ञता के प्रतीक हैं. प्रवेशद्वार पर उत्कीर्णित शंखनिधि, पद्मनिधि तथा गजलक्ष्मी राज्य के वैभव-सम्पदा की साक्षी हैं.
मंदिर के चारों ओर बरामदे, खम्भे, पंक्तियाँ तथा कमरे निर्मित हैं. मंदिर भीतर-बाहर चारों ओर मूर्ति-अलंकरणों से भरा हुआ है. 25 फीट ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया मंदिर का विमान एक समानांतर चतुर्भुज के आकार का है. मंदिर में एक सीढ़ी ऊपर बरामदे तक जाती है. मंदिर के प्रधान भवन में एक गर्भगृह है, जिसके आगे स्तम्भ युक्त मण्डप निर्मित है.
मुख्य भवन के बाद एक नंदी मंदिर है जिसके दोनों ओर दो ध्वज स्तभ हैं और उन पर त्रिशूल स्थापित किये गये हैं. खुले मंडप में नंदी जी विराजमान हैं और उनके दोनों ओर विशालकाय हाथी तथा स्तंभ बने हैं. मुख्यमण्डप, नंदीमंडप, प्रवेशद्वार, गलियारा, बरामदा, तथा गौण मंदिर आदि इस संरचना के प्रमुख अंग हैं. नंदी मंडप की निचली मंजिलें दोनों ठोस संरचनाएं हैं, जिन्हें विस्तृत उदाहरणात्मक नक्काशियों से सजाया गया है.
मंदिर विन्यास में मुख्यत: वाद्यमण्डप, नंदीमण्डप, नाट्यमण्डप, अर्धमण्डप, स्तम्भयुक्त मण्डप, अंतराल, पूजागृह, गलियारा, गौणमंदिर आदि है. गर्भगृह, अंतराल, मंडप की छतों पर विकसित कमल, अन्नपूर्णादेवी तथा नटराजशिव का अनुक्रम अंकन है. सम्पूर्ण रचना में स्तम्भ, अर्धस्तम्भ, गवाक्ष के साथ नखशिखांत अलंकृत हैं. प्रमुख अलंकरण में देवी-देवताओं की विशाल प्रतिमायें, पुराणों-महाकाव्यों के दृश्य, मिथुन मूर्तियाँ, पशु-पक्षी, बेल-बूटियाँ तथा ज्यामितीय का समावेश है.
मुख्य मंदिर सम्पूर्ण रूप से चित्रित था, इसलिए इसे रंगनाथ रंगमहल (Ranganatha Rangmahal) भी कहा जाता है. रंगमहल का 7 मीटर ऊँचा आधार तल ठोस तथा अनुप्रयोग्य है जो विशालकाय हाथी, सिंह आदि पशुओं और रामायण-महाभारत के दृश्यों से अलंकृत है. मंदिर एक बहुत बड़े आँगन के केंद्र में स्थित है जिसे खम्भों और विशालकाय उत्कीर्णित हाथियों का सहारा दिया गया है, मानो यह मंदिर अधर में लटका हुआ है.
सम्पूर्ण मंदिर तीनों ओर से स्तम्भयुक्त गलियारों से घिरा हुआ है जहाँ हिन्दू ऐतिहासिक कथाओं-मूर्तियों का उत्कीर्णन है. प्रांगण स्थित उत्तुंग कीर्ति स्तम्भ विशाल गजराज राष्ट्रकूट वंश की सत्ता को प्रदर्शित करता है. उत्तरी गलियारे में लंकेश्वर मंदिर की रचना की गई है. मंदिर के आधार भाग में पशु पक्षियों की पंक्तियों के उपर मिथुन मूर्तियों का पट्ट भी उत्कीर्णित है. मंदिर के स्तम्भ व दीवार पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उत्कीर्णित हैं. पूजागृह में शिवलिंग तथा पार्श्विक दीवार पर महेशमूर्ति का अंकन है.
कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश का स्वरूप देने में भी शिल्पकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मंदिर के शीर्ष पर स्थित पत्थरों को सफेद प्लास्टर और रंग के प्रयोग से हिमाच्छादित दर्शाया गया था. समय के साथ मंदिर पर की गई चित्रकारी के रंग उतर गये हैं, वहीं कई प्रतिमायें खण्डित हो गई हैं, फिर भी कैलाश मंदिर अब भी शान से मुस्कुराता हुआ सिर उठाये खड़ा है.
संरचना की पिछली तरफ से पहाड़ी टीले पर चढ़कर शीर्ष से यदि मंदिर को देखा जाये तो इसका वास्तविक वैभव दिखाई देता है. छत को इस तरह सजाया-संवारा गया है कि दूर से देखने पर ही इस स्थल की अनुपमता का अहसास होने लगे. यूनेस्को (UNESCO) ने एलोरा गुफा समूहों को विश्व धरोहर की सूची में स्थान दिया है, हालाँकि कैलाश गुफा मंदिर को इससे अधिक महत्व प्राप्त होना चाहिये.
– Nancy Garg
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