सबको एकजुट करता है गणेश चतुर्थी का त्योहार, आनंद के साथ होती है पूजा और नम आंखों से विदाई

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Ganesh Chaturthi (Ganeshotsav)

Ganesh Chaturthi Ganeshotsav

गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे भारत में सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले त्योहारों में से एक है. मुख्य रूप से यह महाराष्ट्र में मनाया जाता है, लेकिन इस त्योहार की रौनक देशभर में रहती है. 11 दिनों तक चलने वाला ये उत्सव अपने साथ इतना आनंद और उल्लास लेकर आता है कि इस समय का पूरा वातावरण ही बदल जाता है.

क्या बच्चे क्या बूढ़े, क्या अमीर क्या गरीब और क्या छोटा-बड़ा…इस समय सब घुलमिल जाते हैं. अलग-अलग पंडालों में जब आरती होती है, तब लोग बड़े उत्साह के साथ मिलजुल कर अपने-अपने घरों से ऐसे निकलते हैं, जैसे एक ही घर के सदस्य अपने-अपने कमरों से निकलकर इकठ्ठा हो रहे हों. हर कोई बप्पा के ही रंग में रंगे नजर आता है और चारों तरफ बस एक ही गूंज सुनाई देती है- गणपति बप्पा मोरया…

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चतुर्थी से चतुर्दशी तक

गणेश चतुर्थी का त्योहार हरतालिका तीज के एक दिन बाद से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) तक यानी 10 दिनों तक चलता है और इसीलिए इसे ‘गणेशोत्सव (Ganeshotsav)’ कहा जाता है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं. चतुर्थी से भगवान गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना कर उनकी पूजा से इस उत्सव की शुरुआत होती है और अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है. विसर्जन के साथ ही गणेशोत्सव की समाप्ति होती है.

भगवान गणेश जी रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि के दाता हैं. कहा जाता है कि गुरु-शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्या अध्ययन की शुरुआत होती थी. इस दिन बच्चे डंडे बजाकर खेलते भी हैं, इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इस उत्सव को ‘डंडा चौथ’ भी कहा जाता है. महाराष्ट्र में गणेश जी को ‘मंगलपूर्ति’ के नाम से पूजा जाता है. वहीं, दक्षिण भारत में ये ‘कला शिरोमणि’ के रूप में विराजते हैं.

पूजन विधि

गणेश चतुर्थी के दिन सुबह-सुबह स्नान आदि करके गणेशजी की प्रतिमा बनाई जाती है. यह प्रतिमा अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, पीतल, मिट्टी या गाय के गोबर से बनाई जा सकती है. भगवान की प्रतिमा जितनी ज्यादा प्राकृतिक चीजों जैसे- साफ मिट्टी से जिसमें केमिकल का इस्तेमाल न किया गया हो, से बनाई जाए, उतना ही अच्छा माना जाता है. इसके बाद एक कलश लेकर और उसमें जल भरकर उसे कोरे कपड़े से बांधा जाता है और इस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है. प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार कर उसका पूजन किया जाता है.

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गणेश जी को दक्षिणा अर्पित करके उन्हें 21 लड्डुओं का प्रसाद लगाया जाता है. गणेश जी की मूर्ति के पास 5 लड्डू रखकर बाकी लड्डू बांट दिए जाते हैं. फिर शाम के समय भी पूजा की जाती है. भगवान गणेश जी को बड़ी संख्या में कई तरह की मिठाइयां अर्पित की जाती हैं, लेकिन हर जगह उनकी सबसे पसंदीदा मिठाई मोदक (Modak) का प्रसाद जरूर लगाया जाता है. गणेशोत्सव के दौरान देशभर में अलग-अलग तरह से मोदक बनाए जाते हैं. 10 दिनों तक भगवान गणेश जी की अच्छे से सेवा की जाती है.

प्रेम और भक्ति-भाव का रखें विशेष ध्यान

भगवान गणेश जी प्रथम देवता के रूप में पूजे जाते हैं, जिनकी पूजा-आराधना के बिना कोई भी पूजा पूरी नहीं मानी जाती है. गणेशोत्सव के दौरान घरों में देशभर के अलग-अलग पंडालों में गणेश प्रतिमा की स्थापना की जाती है और 10 दिनों तक उनका विधि-विधान से पूजन किया जाता है. पूजा के दौरान आसपास के लोग दर्शनों के लिए आते हैं. भगवान गणेश जी के साथ भक्त बड़ी जल्दी घुलमिल जाते हैं. इनकी पूजन विधि ज्यादा कठिन नहीं होती. वे श्रद्धा भाव से की गई थोड़ी सी ही पूजा से प्रसन्न हो जाते हैं.

गणेश प्रतिमा का विसर्जन

भगवान गणेश जी के साथ आनंद के 10 दिन बिताने के बाद आता है उनके विदा होने का समय. अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है. इस दौरान लोग ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते हुए नदी, तालाबों या समुद्र के पास पहुंचते हैं, जहां हर्षोल्लास के साथ भगवान गणेश जी की आरती की जाती है और उसके बाद प्रतिमा को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है. ऐसा करते समय मंत्रोच्चारण भी किए जाते हैं.

10 दिनों में गणेश जी अपने भक्तों के मन को ऐसे बांध लेते हैं कि 11वें दिन उन्हें विदा करना सभी भक्तों के लिए बहुत कठिन हो जाता है. बप्पा को विदा करते समय सभी की आंखें नम हो जाती हैं, लेकिन सब भक्तजन उन्हें खुशी-खुशी विदा करते हैं और अगले साल फिर जल्दी आने की प्रार्थना करते हैं. दरअसल, भगवान गणेश जी जल तत्व के ही अधिपति हैं और यही कारण है कि भगवान गणपति की पूजा-अर्चना करके अनंत चतुर्दशी के दिन प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है. शास्त्रों के अनुसार, मिट्टी के बने गणेश जी की मूर्तियों को जल में विसर्जित करना अनिवार्य है.

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