Indian great scientist and mathematician Shri Bhaskaracharya in Hindi
विज्ञान समेत सभी क्षेत्रों में भारत को विश्वगुरु कहा जाता है, क्योंकि यही वह पावन धरती है, जहां से मानव सभ्यता और संस्कृति का जन्म हुआ. जहां से विज्ञान और गणित का भी जन्म हुआ. आज विज्ञान ने जितनी भी उन्नति की है और आज तक जितनी भी उन्नति हुई है, वे सभी भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों और विद्वानों की खोज का ही परिणाम है. भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों और विद्वानों ने जीवनभर कठिन साधना और अध्ययन करते हुए कई ऐसी बड़ी और महत्वपूर्ण खोजें की हैं, जिन्हें समझना आज के लोगों के लिए संभव ही नहीं है.
हमारे प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों और विद्वानों की कही गईं बातों और की गईं खोजों को समझने के लिए ही आज के बड़े-बड़े वैज्ञानिक बड़ी-बड़ी रिसर्च करते रहते हैं. आज के वैज्ञानिक युग के हजारों नुकसान सामने आ रहे हैं, लेकिन अगर हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों और विद्वानों की बातों का सही-सही मतलब पता चल जाए तो विज्ञान की और भी प्रगति के साथ-साथ पृथ्वी को भी सुखी और समृद्ध बनाया जा सकता है.
भारत में पहले ही हो चुकी थीं सभी खोजें
हमें पढ़ाया जाता है कि गुरुत्वाकर्षण बल की खोज न्यूटन ने की और गैलीलियो ने बताया था कि ‘पृथ्वी गोल है और सूर्य के चारों ओर चक्कर काटती है’…, जबकि सच ये है कि न्यूटन से भी सैकड़ों सालों पहले गुरुत्वाकर्षण का ज्ञान भास्कराचार्य (Shri Bhaskaracharya) दे चुके थे, वहीं आर्यभट्ट (Aryabhata) गैलीलियो से करीब हजार साल पहले ही बता चुके थे कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है. फिलहाल हम यहां भास्कराचार्य के जीवन से जुड़ीं कुछ रोचक बातों को जानते हैं, जो रात-रातभर खुले मैदान में बैठकर अंतरिक्ष के ग्रहों-पिण्डों आदि का सूक्ष्म अध्ययन करते रहते थे और एक महान गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और ज्योतिष के रूप में विख्यात हुए.
भास्कराचार्य (Bhaskaracharya) ही थे वह महान वैज्ञानिक, जिन्होंने…
भास्कराचार्य (Bhaskaracharya) विश्व प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और गणितज्ञ थे, जिनके नाम पर भारत ने अपना ‘भास्कर-2’ अंतरिक्ष यान छोड़ा था. भास्कराचार्य ही वह पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने न्यूटन से सदियों पहले यह बता दिया था कि ‘पृथ्वी में हर एक चीज को अपनी तरफ खींचने के अद्भुत शक्ति है’. सबसे पहले उन्होंने ही यह बताया था कि कोई संख्या जब जीरो से विभाजित की जाती है, तो अनंत हो जाती है. किसी संख्या और अनंत का जोड़ भी जीरो या अनंत होता है.
अपनी प्रतिभाओं के बल पर ही वह उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी रहे थे. भास्कराचार्य ने समय-गणना का सही तरीका बतलाया और पहले के ज्योतिषियों के लेखों में गलतियों का पता लगाकर उन्हें सही भी किया. भास्कराचार्य के बारे में किसी ने लिखा है कि “भास्कराचार्य के लिखे हुए को या तो स्वयं भास्कराचार्य ही समझ सकते हैं, या फिर सरस्वती जी या ब्रह्माजी. हम जैसों के वश की बात नहीं.”
भास्कराचार्य का जन्म और परिवार (Bhaskaracharya family)
शायद एक भास्कराचार्य पहले भी हो चुके थे, इसीलिए यहां जिन विद्वान की बात की जा रही है, उन्हें ‘भास्कराचार्य द्वितीय’ कहा जाता है. जानकारी के अनुसार, भास्कराचार्य का जन्म सन 1114 में महाराष्ट्र के सह्याद्रि पर्वत की घाटियों में बसे ‘विज्जडविड’ गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम महेश्वर था और वह शांडिल्य गोत्रीय ब्राह्मण थे. वे भास्कराचार्य के पिता होने के साथ-साथ उनके गुरु भी थे. उन्होंने ही भास्कराचार्य को गणित, वेदों और शास्त्रों की शिक्षा दी थी. भास्कराचार्य का भी सबसे पसंदीदा विषय गणित ही था. उन्होंने अपने पिता के लिखे ग्रंथों से बहुत सारा ज्ञान इकठ्ठा किया और ज्योतिष का भी बहुत अच्छा अध्ययन किया.
भास्कराचार्य की पुत्री लीलावती (Bhaskaracharya daughter Lilavati)
भास्कराचार्य के पुत्र का नाम लक्ष्मीधर था, जो गणित के महान विद्वान थे. उनके पौत्र चंगदेव भी गणित और ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे. भास्कराचार्य की एक पुत्री भी थीं, जिनका नाम लीलावती (Lilavati) था. भास्कराचार्य को अपनी पुत्री से बहुत प्रेम था. उनकी पुत्री विवाह के तुरंत बाद ही विधवा हो गई थी, जिससे भास्कराचार्य को बेहद दुख पहुंचा था. कहा जाता है कि लीलावती के वैधव्य ने ही भास्कराचार्य को ग्रहों, नक्षत्रों आदि के प्रति इतना जिज्ञासु बना दिया था कि वह इतनी महत्वपूर्ण खोज कर सके.
शुभ मुहूर्त में ही विवाह करने की थी कोशिश, लेकिन…
कई लोग ये सवाल उठाते हैं कि जब भास्कराचार्य इतने बड़े ज्योतिषी थे, तो उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह शुभ मुहूर्त में क्यों नहीं किया, या उन्हें अपनी पुत्री के विवाह से पहले उसके वैधव्य का ज्ञान क्यों नहीं हुआ. इस संबंध में कहा जाता है कि भास्कराचार्य को अपनी बेटी लीलावती के वैधव्य का ज्ञान पहले ही हो चुका था, इसीलिए उन्होंने उसका विवाह शुभ मुहूर्त में करने का फैसला किया था.
इसके लिए उन्होंने एक ‘घटिका यंत्र’ भी तैयार किया था, जो कि तांबे का बना हुआ था. इस यंत्र की पेंदी में एक छोटा सा छेद था, जिससे बूंद-बूंद करके पानी यंत्र में पहुंचता था और इस यंत्र के भर जाने पर एक निश्चित समय की सूचना मिलती थी. एक तरह से यह यंत्र घड़ी का ही काम करता था, जिसका इस्तेमाल उस समय के ज्योतिषी समय की गणना के लिए किया करते थे. लेकिन विवाह से पहले ही लीलावती के वस्त्रों में से एक छोटा सा मोती टूटकर इस यंत्र में गिर गया, जिससे उसकी गति में अंतर आ गया. इस वजह से भास्कराचार्य को लीलावती के विवाह के लिए शुभ मुहूर्त का सही ज्ञान नहीं हो सका.
इस घटना से यह भी सिद्ध होता है कि कोई इंसान अपनी योग साधना के बल पर भविष्य तो देख सकता है, लेकिन भविष्य को बदल नहीं सकता.
पुत्री के नाम पर लिखा इतना बड़ा ग्रंथ
इसके बाद भास्कराचार्य ने अपनी पुत्री को अपने साथ रखकर उसे भी गणित की उच्च शिक्षा दी, साथ ही कहा कि “मैं अपनी बेटी के नाम पर ऐसा ग्रंथ लिखूंगा, जो अमर हो जाएगा.” और तब भास्कराचार्य ने अपनी पुत्री के नाम पर ही ‘लीलावती’ ग्रंथ (Bhaskaracharya Lilavati) की रचना की और यह ग्रंथ लीलावती को ही समर्पित किया. हालांकि, कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि लीलावती कोई अलग ग्रंथ नहीं, बल्कि भास्कराचार्य की तरफ से लिखा गया प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सिद्धांत शिरोमणि’ का ही एक भाग है, जिसकी रचना उन्होंने मात्र 36 साल की उम्र में सन 1150 में की थी.
भास्कराचार्य का ‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ
‘सिद्धांत शिरोमणि’ के 4 भाग बताए जाते हैं- लीलावती (अंकगणित), बीजगणित, ग्रहगणित और गोलाध्याय. यानी इस ग्रंथ के पहले 2 भाग गणित से और बाकी 2 भाग खगोलशास्त्र से संबंधित हैं, जिनमें ग्रहों की गति और आकाशमंडल की घटनाओं को विस्तार से समझाया गया है.
‘लीलावती’ खंड में अलग-अलग विषयों से संबंधित 278 श्लोक हैं. इस ग्रंथ में भार और की इकाई, अंकगणितीय कार्य जैसे- जोड़, घटाना, गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल भिन्नों के लघुकरण के नियम, त्रिभुज का क्षेत्रफल, पिरामिड, गोले का घनत्व आदि शामिल हैं. इस ग्रंथ में दशगुणोत्तर प्रणाली के अंक दर्शाए गए हैं. इनके आलावा, इसमें त्रैराशिक, पंचराशिक और कुहक आदि से जुड़े प्रश्न भी दिए गए हैं. बाद के कई विद्वानों ने लीलावती पर टीकाएं लिखी हैं.
‘बीजगणित’ खंड में 213 श्लोक हैं, जिनमें उन्होंने बीजगणित को बड़े ही सरल रूप में पेश किया है. उन्होंने बताया कि जब जीरो से कोई भी संख्या विभाजित की जाती है तो वह अनंत हो जाती है और उसका जोड़ भी जीरो या अनंत होता है. इस खंड में उन्होंने धन और ऋण संख्याओं (Positive and Negative Numbers) का जोड़, समीकरण आदि को अच्छे से समझाया है और उदाहरण देकर उन्हें हल करने का तरीका भी बताया है. उन्हीं की विधियां आज बीजगणित में पढ़ाई जाती हैं.
बीजगणित खंड में अज्ञात संख्याओं के आधार पर जोड़, गुणा, भाग आदि को अच्छे से समझाया गया है, जैसे आज हम सवालों को X या 100 मानकर हल करते हैं. भास्कराचार्य ने संख्याओं को पॉजिटिव और नेगेटिव भागों में बांटा है. उनके अनुसार किसी भी पॉजिटिव या नेगेटिव संख्या का वर्ग पॉजिटिव ही होता है.
‘ग्रहगणित’ और ‘गोलाध्याय’ खंड ज्योतिष के प्राचीन सिद्धांतों पर आधारित हैं. एक समय इस बात पर विवाद खड़ा हुआ था कि पृथ्वी किस आधार पर स्थित है. कुछ लोगों का तो यह मानना था कि पृथ्वी का कोई आधार नहीं है और वह नीचे की तरफ धंसती जा रही है. तब भास्कराचार्य ने लोगों की गलत धारणाओं और भ्रमों का समाधान करते हुए बताया था कि पृथ्वी का कोई आधार नहीं है और न ही वह धंसती है. उसके चारों तरफ मौजूद ग्रह और नक्षत्र एक-दूसरे को आपस में बांधे हुए हैं.
इसी तरह भास्कराचार्य ने इस बात को भी स्पष्ट किया था कि सूर्य पर चंद्रमा की छाया पड़ने से सूर्यग्रहण और चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ने से चंद्रग्रहण होता है. सिद्धांत शिरोमणि बहुत ही लोकप्रिय ग्रंथ रहा है और कई विद्वानों ने इस पर टीकाएं भी लिखी हैं. इसके अलावा भास्कराचार्य ने ‘विवाह पटल’, ‘भास्कर व्यवहार’, ‘सूर्य सिद्धांत’ आदि की भी रचना की हैं. उनकी ये सभी रचनाएं विश्व को दिए गए अमूल्य उपहार हैं.
बिना दूरबीनों के इस तरह किया था ग्रहों का अध्ययन
आज के समय में तो वैज्ञानिक बड़ी-बड़ी दूरबीनों से अंतरिक्ष के अलग-अलग ग्रहों और उपग्रहों को देख पाते हैं और उनका अध्ययन करते हैं, लेकिन सैकड़ों साल पहले जब ऐसी दूरबीनें नहीं थीं, तब उस समय के कुछ विद्वानों की अत्यधिक जिज्ञासा ही उन्हें महान बनाती थीं. भास्कराचार्य ने अपनी अत्यधिक जिज्ञासा से ही समय की गणना का सही-सही तरीका खोज निकाला था. इसी से उन्होंने पहले के ज्योतिषियों के लेखों में कई गलतियों और अशुद्धियों का भी पता लगाया था और उन्हें सही किया.
भास्कराचार्य सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों, पिण्डों आदि के बारे जानने के इतने ज्यादा इच्छुक रहते थे कि वह रात-रातभर खुले मैदान मैं बैठकर उन ग्रहों का अध्ययन किया करते थे. इसके लिए वह लंबे बांस की खोखली नली भी बना लेते थे, जिसकी सहायता से वे ग्रहों-नक्षत्रों आदि की गति का निरीक्षण किया करते थे.
वह बड़े ध्यान से देखते थे कि कौन सा पिण्ड किस स्थान से उदित होता है और कहां-कहां से भ्रमण करता हुआ कहां अस्त हो जाता है. इन सब में उन्हें कई-कई दिन भी लग जाते थे. उसके बाद वह जब किसी नतीजे पर पहुंचते थे, तो उसका भी पूरी तरह निरीक्षण करके उसे प्रमाणित करते थे. ये सभी कार्य वे किसी नौकरी या पुरस्कार के लिए नहीं करते थे, वह बहुत जिज्ञासु थे और लोक कल्याण की भावना थी, इसीलिए वह अपने इन कार्यों में लगे रहते थे.
भगवान के भी थे बड़े भक्त
इसी के साथ, भास्कराचार्य भगवान के भी बहुत बड़े भक्त थे. महत्वपूर्ण खोजों के साथ-साथ पूजा पाठ करना, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना और उन पर टीकाएं लिखना भी उनके पसंदीदा कार्यों में शामिल था. भास्कराचार्य की मृत्यु कब हुई, इसके बारे में कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलते हैं, लेकिन जानकारी के अनुसार उनकी मृत्यु करीब 65 से 70 वर्ष की आयु में हुई थी. भास्कराचार्य के जीवन से आज के हम सभी युवाओं को सीख लेनी चाहिए.
Read Also : संख्या के जादूगर श्री रामानुजन कैसे खोजते थे गणित की समस्याओं का हल
Tags : contribution of bhaskaracharya in mathematics, bhaskaracharya information, bhaskaracharya mathematician, bhaskaracharya gravity, indian great scientist bhaskaracharya biography in hindi, bhaskaracharya ka jivan parichay, bhaskaracharya lilavati, bhaskaracharya mathematics, bhaskaracharya siddhanta siromani, भारत के महान वैज्ञानिक और गणितज्ञ श्री भाष्कराचार्य का जीवन परिचय
Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved
All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.
Be the first to comment